बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ग़रीब निर्माण मज़दूरों के लिए एक बड़े आर्थिक मदद का एलान किया है। उम्मीद है कि ये पैसा सीधे उनके बैंक खातों में जाएगा।
हालाँकि, अभी भी कुछ परेशानियाँ हैं जैसे कि रजिस्ट्रेशन, बैंक की जानकारी (KYC), और ये सुनिश्चित करना कि मज़दूरों को दूसरे राज्यों में भी इसका फायदा मिले। जानकारों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वो मज़दूरों की हमेशा मदद करे और उन्हें काम करने के तरीके सिखाए।
क्या है मामला
बिहार सरकार ने राज्य के लगभग 16 लाख निर्माण मज़दूरों को 802 करोड़ रुपये की मदद देने का एलान किया है। सरकार ऐसा इसलिए कर रही है ताकि जो मज़दूर मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं, उन्हें थोड़ी राहत मिल सके और उनकी ज़िंदगी थोड़ी आसान हो जाए। ये पैसा सीधे मज़दूरों के खातों में भेजा जाएगा, लेकिन इसके बारे में पूरी जानकारी आना बाकी है।
क्यों है इसकी ज़रूरत
बिहार में बहुत से लोग निर्माण के काम में लगे हुए हैं, लेकिन उनके सामने कई दिक्कतें हैं। जैसे कि उन्हें हमेशा काम नहीं मिलता, ठेकेदार उन्हें ठीक से नहीं रखते, सुरक्षा के लिए ज़रूरी सामान नहीं मिलता और उनकी कमाई भी तय नहीं होती। ऐसे में, सरकार की तरफ से 802 करोड़ रुपये की मदद का एलान एक अच्छी खबर है। इससे उन परिवारों को बहुत फायदा होगा जिनकी कमाई बारिश या काम न होने की वजह से कम हो जाती है और जिनके पास कोई और सहारा नहीं होता। सरकार का कहना है कि वो जल्द ही पैसा भेजना शुरू कर देगी, ताकि काम भी चलता रहे और लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे भी हों।
पहले क्या हुआ और अब क्या हो रहा है
सरकार ने पहले भी निर्माण मज़दूरों के लिए नियम बनाए हैं, लेकिन उन नियमों को ठीक से लागू नहीं किया जा सका। बिहार से बहुत से लोग दूसरे राज्यों में जाकर काम करते हैं। इसलिए, मज़दूरों के संगठनों ने सरकार से कहा है कि वो सिर्फ पैसे की मदद न करे, बल्कि उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखे, उन्हें दुर्घटना से बचाने का इंतज़ाम करे, उन्हें काम करने के तरीके सिखाए और उन्हें सुरक्षित माहौल में काम करने दे।
अभी क्या स्थिति है
सरकार के एलान के मुताबिक, राज्य के लगभग 16 लाख रजिस्टर्ड निर्माण मज़दूरों को इस मदद का फायदा मिलेगा। अगर 802 करोड़ रुपये को बराबर बांटा जाए, तो हर मज़दूर को लगभग 5,000 रुपये मिलेंगे। ये पैसा सीधे उनके बैंक खातों में भेजा जाएगा, जिसके लिए आधार कार्ड और बैंक की जानकारी ज़रूरी होगी। सरकार ये भी ध्यान रख रही है कि कहीं कोई गलत तरीके से फायदा न उठाए और किसी का खाता बंद न हो। गाँव में लोगों को बताने के लिए कैंप लगाए जाएंगे ताकि कोई भी ज़रूरतमंद मज़दूर छूट न जाए।
बारिश के मौसम में गाँव में निर्माण का काम कम हो जाता है, इसलिए ये पैसे लोगों के घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और कर्ज़ चुकाने में काम आ सकते हैं। शहरों में भी जो लोग निर्माण के काम में लगे हैं, उन्हें भी इससे थोड़ी राहत मिलेगी। हालाँकि, अभी ये साफ़ नहीं है कि ये मदद एक बार ही मिलेगी या किस्तों में। इसके अलावा, ये भी देखना होगा कि कौन इस मदद के लिए योग्य है और जिनका रजिस्ट्रेशन अभी हुआ है, उन्हें इसका फायदा मिलेगा या नहीं।
एक उदाहरण
औरंगाबाद के आसपास के इलाकों में बहुत से लोग राजमिस्त्री और हेल्पर का काम करते हैं। वहाँ दिहाड़ी 350 से 600 रुपये तक मिलती है, जो मौसम और काम के हिसाब से बदलती रहती है। ऐसे में, अगर एक राजमिस्त्री परिवार को 5,000 रुपये मिलते हैं, तो वो महीने भर का राशन खरीद सकते हैं, बच्चों की स्कूल की फीस भर सकते हैं या दवा-इलाज करा सकते हैं। दूसरी तरफ, जो महिलाएँ हेल्पर का काम करती हैं या जो बूढ़े हो चुके हैं और हमेशा काम नहीं कर पाते, उनके लिए ये पैसे बहुत मददगार साबित हो सकते हैं। लोगों का कहना है कि बैंक खाता बंद होने, आधार कार्ड लिंक न होने या कार्ड की तारीख खत्म हो जाने की वजह से अक्सर पैसे अटक जाते हैं। इसलिए, इस बार सरकार को ये देखना होगा कि पैसा ज़रूरतमंदों तक पहुँचे।
सरकार, अधिकारी और जानकारों की राय
सरकार का कहना है कि वो ग़रीब निर्माण मज़दूरों को आर्थिक मदद देकर उन्हें राहत पहुँचा रही है। साथ ही, इससे राज्य की तरक्की भी होगी। श्रम विभाग का कहना है कि वो ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि किसी को गलत तरीके से फायदा न मिले और पैसा सीधे लोगों के खातों में पहुँचे। जानकारों का मानना है कि पैसे की मदद अच्छी है, लेकिन सरकार को मज़दूरों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और ट्रेनिंग का भी ध्यान रखना चाहिए, ताकि उनकी कमाई बढ़ सके। कुछ अर्थशास्त्रियों का ये भी कहना है कि सरकार को ये बताना चाहिए कि वो मज़दूरों के लिए इकट्ठा किए गए पैसे को कैसे खर्च कर रही है और ठेकेदारों को भी मज़दूरों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
आम लोगों की राय
स्थानीय लोग इस एलान से खुश हैं। बहुत से मज़दूर परिवार इसे त्योहारों से पहले एक अच्छी खबर मान रहे हैं। साथ ही, लोगों को ये भी डर है कि जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है या जिनका बैंक खाता बंद है, उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा। कुछ लोगों का कहना है कि जानकारी और कागज़ न होने की वजह से गाँव के मज़दूरों तक योजनाओं का फायदा नहीं पहुँच पाता। शहरों में मज़दूरों का कहना है कि सरकार को ये बताना चाहिए कि पैसे कब तक मिलेंगे और मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी करना चाहिए, ताकि कोई परेशानी होने पर तुरंत समाधान हो सके। कुल मिलाकर, लोग चाहते हैं कि प्रक्रिया आसान हो, लाइनें कम लगें और पैसा बिना किसी परेशानी के सीधे खाते में आ जाए।
क्या हैं दिक्कतें और विवाद
- रजिस्ट्रेशन और नवीनीकरण: रजिस्ट्रेशन कराने और उसे रिन्यू कराने में बहुत कागज़ लगते हैं, जिससे कई मज़दूरों को परेशानी होती है।
- दूसरे राज्यों में काम करने वाले: जो मज़दूर दूसरे राज्यों में काम करते हैं, उन्हें इसका फायदा कैसे मिलेगा, ये साफ़ नहीं है।
- पैसे अटक जाना: बैंक खाता बंद होने, नाम गलत होने या IFSC कोड बदलने की वजह से पैसे अटक जाते हैं।
- जानकारी की कमी: किस-किस को फायदा मिला और पैसे कैसे खर्च हुए, इसकी जानकारी लोगों को नहीं मिल पाती, जिससे विवाद होता है।
- बिचौलियों का रोल: रजिस्ट्रेशन कराने में कुछ लोग पैसे लेते हैं, जिससे गड़बड़ियाँ होती हैं।
- सेस फंड का इस्तेमाल: मज़दूरों के लिए इकट्ठा किए गए पैसे को सही तरीके से खर्च नहीं किया जाता।
- सुरक्षा के नियम: काम करने की जगह पर सुरक्षा के नियम ठीक से लागू नहीं होते।
आगे क्या हो सकता है
- पैसे पहुँचाने का तरीका: गाँव पंचायतों और नगर पालिकाओं के साथ मिलकर कागज़ बनवाने में मदद करना, बैंक खाते खुलवाना और हेल्पलाइन शुरू करना।
- दूसरे राज्यों में भी फायदा: ऐसा सिस्टम बनाना जिससे बिहार के मज़दूर दूसरे राज्यों में भी काम करते हुए फायदा उठा सकें।
- जानकारी देना: पैसे के बारे में जानकारी देने के लिए वेबसाइट बनाना और सोशल ऑडिट करवाना।
- काम सिखाना और सुरक्षा: मज़दूरों को काम सिखाना और ठेकेदारों को सुरक्षा के नियम सिखाना।
- एक साथ मदद: पैसे के साथ-साथ बीमा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और पेंशन जैसी योजनाओं को भी आसान बनाना।
- ठेकेदारों की जिम्मेदारी: ठेकेदारों और मकान बनाने वालों के साथ मिलकर नियम बनाना, ताकि वो मज़दूरों को समय पर पैसे दें और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखें।
- जागरूकता फैलाना: लोगों को आसान भाषा में जानकारी देना, मोबाइल वैन चलाना और कॉल सेंटर खोलना।
- डेटा इकट्ठा करना: रजिस्ट्रेशन की जानकारी रखना और गलत तरीके से फायदा उठाने वालों को रोकना।
सब मिलाकर
बिहार सरकार ने निर्माण मज़दूरों को आर्थिक मदद देकर उन्हें थोड़ी राहत पहुँचाने की कोशिश की है। अगर सरकार रजिस्ट्रेशन, KYC और पैसे पहुँचाने में आने वाली दिक्कतों को दूर कर ले, तो ये कोशिश कामयाब हो सकती है। सरकार को ये भी ध्यान रखना होगा कि मज़दूरों को सुरक्षा मिले, वो दूसरे राज्यों में भी इसका फायदा उठा सकें और उन्हें काम करने के नए तरीके सीखने को मिलें। अगर सरकार इन सब बातों पर ध्यान देती है, तो ये कदम बिहार के निर्माण मज़दूरों की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव ला सकता है। सरकार, अधिकारी, जानकार और स्थानीय लोग मिलकर कोशिश करें तो मुश्किलों को दूर किया जा सकता है।


