ISRO ने अगली पीढ़ी सैटेलाइट लॉन्च की तैयारी तेज की

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब अगली पीढ़ी के उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए तेज़ी से काम कर रहा है। ये नए उपग्रह संचार, पृथ्वी की निगरानी, और नेविगेशन जैसी सेवाओं को और भी बेहतर बनाएँगे, क्योंकि इनमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। ISRO का मुख्य लक्ष्य है कि डेटा भेजने की स्पीड बढ़ाई जाए, सिस्टम अपने आप काम करें, और देश में ही सामान बनाने वाली कंपनियों को मज़बूत किया जाए।

तैयारी कैसे चल रही है और क्या-क्या बदलाव होंगे:

ISRO सिर्फ़ लॉन्च की तारीख़ को आगे बढ़ाने पर ध्यान नहीं दे रहा है, बल्कि वो पूरे मिशन को बेहतर बनाने में लगा है। इसमें उपग्रह को डिज़ाइन करना, बनाना, टेस्ट करना, जोड़ना और लॉन्च करना शामिल है। ISRO चाहता है कि उपग्रह ज़्यादा डेटा भेजें, ज़्यादा सही जानकारी दें, और ज़्यादा समय तक काम करें।

इस बार ख़ास बात ये है कि मिशन के हिसाब से पेलोड को अलग-अलग हिस्सों में बनाया जाएगा, ताकि संचार और पृथ्वी की निगरानी करने वाले उपग्रहों में एक ही तरह के प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल हो सके। इससे पैसे भी कम लगेंगे और मिशन को जल्दी पूरा किया जा सकेगा। साथ ही, क्वालिटी को और बेहतर बनाने और जोखिम को कम करने के लिए भी कड़े नियम बनाए जा रहे हैं।

टेक्नोलॉजी में क्या नया होगा:

अगली पीढ़ी के संचार उपग्रहों में हाई-स्पीड सिस्टम होंगे, जो Ku/Ka बैंड पर ज़्यादा डेटा भेज सकेंगे। इससे गाँवों और शहरों के बीच डिजिटल खाई को पाटने में मदद मिलेगी, 4G/5G नेटवर्क को सपोर्ट मिलेगा, और आपदा के समय जल्दी से संचार बहाल किया जा सकेगा। जहाँ तक हो सके, Q/V बैंड जैसी तकनीकें भी इस्तेमाल की जाएंगी, ताकि फ़्रीक्वेंसी का ज़्यादा इस्तेमाल हो सके।

उपग्रहों में अब इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन का इस्तेमाल भी बढ़ाया जा रहा है। इससे ईंधन का वज़न कम होगा और ज़्यादा पेलोड ले जाया जा सकेगा। साथ ही, ये लंबे समय तक स्टेशन पर बने रहने में भी मदद करेगा। इसके अलावा, ऑनबोर्ड प्रोसेसिंग और सॉफ़्टवेयर से चलने वाले पेलोड जैसी चीज़ें उपग्रह को और भी ज़्यादा फ़्लेक्सिबल बनाएँगी।

आगे चलकर ऑप्टिकल इंटर-सैटेलाइट लिंक और बेहतर एन्क्रिप्शन भी इस्तेमाल किए जाएँगे, ताकि डेटा ज़्यादा सुरक्षित रहे और तेज़ी से पहुँचे। नेविगेशन के मामले में, अगली पीढ़ी के पेलोड आयनमंडल में होने वाली गड़बड़ियों को ठीक करके और बेहतर क्लॉक लगाकर ज़्यादा सटीक जानकारी देने का लक्ष्य रखते हैं।

मिशन की अलग-अलग कैटेगरी:

संचार: संचार उपग्रहों को हाई-स्पीड बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य और सरकारी सेवाओं को डिजिटल बनाने में मदद मिल सके। सैटेलाइट कनेक्टिविटी राज्य और केंद्र सरकार के डिजिटल कार्यक्रमों के लिए एक ज़रूरी हिस्सा बनेगी।

निगरानी: पृथ्वी की निगरानी करने वाले मिशन में हाई-रिज़ॉल्यूशन ऑप्टिकल, सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR), और मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड का इस्तेमाल होगा। इससे खेती, पानी के स्रोत, शहरों की प्लानिंग, समुद्री निगरानी और आपदा से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए ज़रूरी डेटा मिलेगा। बार-बार निगरानी करने और बादलों को पार करके देखने वाले रडार पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

नेविगेशन: नेविगेशन के मामले में, सेवाओं को ज़्यादा बेहतर, सटीक और भरोसेमंद बनाने पर ध्यान दिया जाएगा, ताकि ट्रांसपोर्ट, समय की जानकारी, इमरजेंसी में मदद और लोकेशन से जुड़ी सेवाओं को बेहतर बनाया जा सके। अलग-अलग सिस्टम के साथ काम करने की क्षमता और मल्टी-फ़्रीक्वेंसी सपोर्ट से यूज़र्स को अच्छा अनुभव मिलेगा।

लॉन्च करने वाले वाहन और सुविधाएँ:

PSLV, GSLV और LVM3 जैसे लॉन्च वाहन अलग-अलग वज़न के उपग्रहों के लिए इस्तेमाल किए जाएँगे। छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने की क्षमता को भी धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है, ताकि क्लस्टर/कॉन्स्टेलेशन मिशन समय पर पूरे हो सकें। इससे मिशन में होने वाले जोखिम को कम किया जा सकेगा और शेड्यूल में फ़्लेक्सिबिलिटी रहेगी।

श्रीहरिकोटा की लॉन्चिंग सुविधाओं में एकीकरण, ईंधन भरने और काउंटडाउन की प्रक्रिया को स्टैंडर्ड किया जा रहा है। धरती पर मौजूद ट्रैकिंग नेटवर्क और टेलीमेट्री सपोर्ट की क्षमता बढ़ाकर, मिशन के दौरान रियल-टाइम में फ़ैसले लेने में सुधार होने की उम्मीद है।

उद्योगों के साथ मिलकर प्रोडक्शन लाइन को बढ़ाया जा रहा है। इससे एक साथ कई मिशनों की तैयारी हो सकेगी और सप्लाई चेन पर दबाव कम होगा। लक्ष्य है कि डिज़ाइन से लेकर लॉन्च तक का काम समय पर और बिना किसी रुकावट के पूरा हो।

टेस्टिंग और क्वालिटी:

हर उपग्रह को कई तरह के टेस्ट से गुज़रना होता है, जैसे वाइब्रेशन, आवाज़, गर्मी और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफ़ेस (EMI/EMC)। इससे ये पता चलता है कि वो लॉन्च और कक्षा की मुश्किल परिस्थितियों में काम कर सकता है या नहीं। नई पीढ़ी के पेलोड की जटिलता को देखते हुए, हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर की जाँच पर खास ध्यान दिया जा रहा है।

क्वालिटी के मामले में, मटेरियल की ट्रेसबिलिटी, सप्लायर की क्वालिफिकेशन और खराबी के कारणों का विश्लेषण सख्ती से किया जा रहा है। इसके अलावा, एक ही सिस्टम के कई हिस्से लगाए जा रहे हैं, ताकि अगर एक हिस्सा खराब हो जाए तो भी सेवा चलती रहे।

लॉन्च से पहले मिशन रेडीनेस रिव्यू और फ़्लाइट रेडीनेस रिव्यू में अलग-अलग टीमें मिलकर ये देखती हैं कि सब कुछ ठीक है या नहीं। इसका मकसद है कि तकनीकी जोखिम कम से कम हो और मिशन सफल हो।

सामाजिक और आर्थिक असर:

हाई-स्पीड संचार उपग्रह दूर-दराज के इलाकों में ई-गवर्नेंस, टेली-मेडिसिन और ई-लर्निंग को आसान बनाते हैं। इससे गाँवों में कारोबार करने वाले, महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों और छोटे व्यवसायों को डिजिटल मार्केट तक पहुँच मिलती है, जिससे तरक्की होती है।

पृथ्वी की निगरानी से मिलने वाला डेटा खेती में सही सलाह देने, पानी की निगरानी करने और शहरी बाढ़ जैसी घटनाओं से निपटने में मदद करता है। समय पर चेतावनी देकर और संसाधनों का सही इस्तेमाल करके इंसानों और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। समुद्री निगरानी से ब्लू-इकोनॉमी और समुद्री सुरक्षा दोनों को फ़ायदा होता है।

नेविगेशन सेवाएँ लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाती हैं, ईंधन बचाती हैं और सड़क सुरक्षा में सुधार करती हैं। सटीक समय की जानकारी वित्तीय नेटवर्क, ऊर्जा ग्रिड और टेलीकम्युनिकेशन के लिए ज़रूरी है। कुल मिलाकर, स्पेस से जुड़ी सेवाएँ सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकता बढ़ाती हैं।

उद्योग और स्टार्टअप:

अगली पीढ़ी के उपग्रह कार्यक्रम देश के उद्योग और स्टार्टअप के लिए अवसर बढ़ा रहे हैं। कंपोनेंट सप्लाई, पेलोड सब-असेंबली, ग्राउंड सिस्टम और डेटा जैसी सेवाओं में प्राइवेट कंपनियाँ आगे आ रही हैं। सरकार की नीतियाँ इस काम को और आसान बना रही हैं।

टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और जॉइंट वेंचर के ज़रिए देश में ही आधुनिक मैन्युफैक्चरिंग क्षमताएँ विकसित हो रही हैं। इससे विदेशों पर निर्भरता कम होगी और प्रोजेक्ट को समय पर पूरा किया जा सकेगा। डेटा एप्लिकेशन के मामले में स्टार्टअप के लिए नए समाधान विकसित करने की काफ़ी संभावनाएँ हैं।

सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए टर्मिनल, एंटेना और मॉडम जैसे यूज़र-साइड उपकरणों को भी देश में ही बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। इससे सर्विस की लागत कम होगी और दूर-दराज के इलाकों में इसे जल्दी पहुँचाया जा सकेगा।

चुनौतियाँ:

  • हाई-स्पीड और मल्टी-फ़्रीक्वेंसी सिस्टम के लिए स्पेक्ट्रम का सही इस्तेमाल करना ज़रूरी है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालमेल और घरेलू नियमों में समानता होनी चाहिए, ताकि कोई रुकावट न आए।
  • स्पेस में कचरा बढ़ता जा रहा है। मिशन के आखिर में उपग्रह को सुरक्षित तरीके से हटाने और उसे ट्रैक करने के नियमों का पालन करना ज़रूरी है। उपग्रहों में 'एंड-ऑफ़-लाइफ़' रणनीतियों को डिज़ाइन के समय से ही शामिल करना होगा।
  • जटिल पेलोड को डेवलप करने में लागत और समय का ध्यान रखना मुश्किल होता है। इसके लिए कुशल लोग, सप्लाई चेन और दूसरे विकल्प ज़रूरी हैं।

आगे क्या होगा:

आगे एक रणनीति बनाई जाएगी, जिसमें नई टेक्नोलॉजी को धीरे-धीरे इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि सेवाओं को शुरू करते समय किसी तरह का जोखिम न हो। ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे गेटवे, नेटवर्क मैनेजमेंट और यूज़र टर्मिनल को भी बढ़ाया जाएगा।

डेटा सेवाओं के लिए क्लाउड-नेटिव आर्किटेक्चर, API-आधारित एक्सेस और ओपन स्टैंडर्ड्स को अपनाने से सरकारी और प्राइवेट यूज़र्स के लिए नए मौके मिलेंगे। साथ ही, शिक्षा और रिसर्च संस्थानों के साथ मिलकर काम करने से लोगों में हुनर बढ़ेगा।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जॉइंट एक्सपेरिमेंट और डेटा शेयरिंग से मिशनों के वैज्ञानिक और आर्थिक फायदे बढ़ाए जा सकते हैं। इसका मकसद है कि भारत का स्पेस इकोसिस्टम दुनिया में मुकाबला करने लायक और नया बना रहे।

सरकार की नीतियाँ:

उपग्रह संचार और पृथ्वी की निगरानी सेवाओं को बढ़ाने के साथ-साथ प्राइवेसी, सुरक्षा और डेटा की सुरक्षा जैसे सवाल भी उठेंगे। इसके लिए ज़रूरी है कि नियम साफ़ हों, लाइसेंस पारदर्शी हों और जवाबदेही तय हो।

इंडस्ट्रियल पॉलिसी में डिज़ाइन-इन-इंडिया और मेक-इन-इंडिया दोनों पर ध्यान देना चाहिए। एक्सपोर्ट की संभावनाओं को देखते हुए क्वालिटी स्टैंडर्ड को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाना ज़रूरी है। इसके अलावा, इनोवेशन को बढ़ावा देने वाली टेस्टिंग लैब भी होनी चाहिए।

फंडिंग तक आसान पहुँच होनी चाहिए, खासकर हार्डवेयर बनाने वाले स्टार्टअप के लिए। लंबे समय तक खरीदारी की गारंटी और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल से आर्थिक स्थिरता मिल सकती है।

निष्कर्ष:

ISRO की अगली पीढ़ी के सैटेलाइट्स की तैयारी भारत की स्पेस ताकत को नई दिशा देगी। हाई-स्पीड कम्युनिकेशन, बेहतर पृथ्वी की निगरानी और सटीक नेविगेशन सेवाओं से देश का विकास तेज़ी से होगा। अब ध्यान इस बात पर रहेगा कि लॉन्च समय पर हो, ऑपरेशन भरोसेमंद हों और उद्योगों के साथ मिलकर इसे आगे बढ़ाया जाए।

Raviopedia

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