जगन्नाथ मिश्र: बिहार की राजनीति का एक दिलचस्प चेहरा

बिहार की राजनीति में कुछ नाम ऐसे हैं जिन्हें भुला पाना मुश्किल है, और जगन्नाथ मिश्र उनमें से एक थे. वे न सिर्फ़ तीन बार मुख्यमंत्री रहे, बल्कि उन्होंने शिक्षा और राजनीति के मेल से एक अलग पहचान भी बनाई. लोग उन्हें प्यार से 'डॉक्टर साहब' कहते थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी विवादों से भी घिरी रही, जैसे कि प्रेस विधेयक और चारा घोटाला.
जगन्नाथ मिश्र का जन्म 24 जून 1937 को हुआ था, और 19 अगस्त 2019 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. वे एक ऐसे नेता थे जिन्हें उनके समर्थक खूब मानते थे, लेकिन उनकी आलोचना करने वाले भी कम नहीं थे.

एक नज़र में:

  • जगन्नाथ मिश्र, जिन्हें लोग 'डॉक्टर साहब' के नाम से भी जानते थे.
  • जन्म: 24 जून 1937
  • मृत्यु: 19 अगस्त 2019 (82 वर्ष की आयु में)
  • जन्मस्थान: बलुआ बाज़ार (सुपौल, मिथिला क्षेत्र). यहीं पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.
  • शिक्षा: अर्थशास्त्र में एमए और पीएचडी. उन्होंने बिहार यूनिवर्सिटी (मुज़फ्फरपुर) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में भी काम किया.
  • पद: बिहार के मुख्यमंत्री (1975-77, 1980-83, 1989-90), केंद्र सरकार में मंत्री, राज्यसभा सदस्य (1988-90, 1994-2000).
  • पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, लेकिन बाद में एनसीपी और जद(यू) से भी जुड़े.
  • परिवार: उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्र पूर्व रेल मंत्री थे. उनकी पत्नी का नाम वीणा मिश्र और बेटे का नाम नीतीश मिश्र है, जो बिहार के मंत्री रह चुके हैं.
  • फ़ैसले: उन्होंने उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा घोषित किया (19 सितंबर 1980). उन्होंने 'बिहार प्रेस बिल' (1982) भी पेश किया, जिसे बाद में वापस ले लिया गया.
  • विवाद: चारा घोटाले में उन पर कई आरोप लगे. 2013 और 2018 में उन्हें सज़ा भी हुई, लेकिन 2017 और 2018 में कुछ मामलों में वे बरी भी हो गए.

शिक्षा से राजनीति तक:

जगन्नाथ मिश्र की कहानी बड़ी दिलचस्प है. वे उर्दू को दूसरी राजभाषा बनवाने, बिहार प्रेस बिल लाने और चारा घोटाले के मुकदमों में उलझने के बावजूद एक प्रभावशाली नेता बने रहे. उनके निधन के बाद बिहार में राजकीय शोक घोषित किया गया, और उन्हें 'अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री' के तौर पर याद किया गया. इसने उनकी विरासत पर एक नई बहस छेड़ दी.
जगन्नाथ मिश्र 1970 से 1990 के दशक तक बिहार की राजनीति में छाए रहे. वे कम उम्र में ही मुख्यमंत्री बन गए थे. उन्होंने उर्दू को राजभाषा का दर्जा दिलवाया, लेकिन 'बिहार प्रेस बिल' लाकर प्रेस की आज़ादी पर भी सवाल उठाए. हालांकि, बाद में उन्होंने इस पर अफ़सोस भी जताया.
उनकी कहानी में दो पहलू हैं - एक तरफ़ वे शिक्षक और अर्थशास्त्री थे, तो दूसरी तरफ़ उन्होंने राजनीति की मुश्किलों का भी सामना किया. चारा घोटाले के मुकदमों ने उनकी छवि को काफ़ी नुकसान पहुंचाया.

शुरुआती जीवन:

जगन्नाथ मिश्र का जन्म मिथिला के एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बड़े भाई लालित नारायण मिश्र केंद्र सरकार में बड़े नेता थे. 1975 में उनकी हत्या हो गई, जिससे पूरे परिवार और बिहार की राजनीति को धक्का लगा. इसी माहौल में जगन्नाथ मिश्र की सोच विकसित हुई, जहाँ उन्हें अपनी क्षेत्रीय पहचान, कांग्रेस की विचारधारा और उत्तर बिहार के लोगों की उम्मीदों को समझना था.

शिक्षा और शुरुआती करियर:

जगन्नाथ मिश्र ने अर्थशास्त्र में पढ़ाई की. वे बिहार यूनिवर्सिटी, मुज़फ्फरपुर में प्रोफेसर भी रहे, और यहीं से लोग उन्हें 'डॉक्टर साहब' कहने लगे. उनकी शिक्षा और कॉलेज के बारे में जानकारी मिलती है कि वे एक अच्छे शिक्षक थे और हर मुद्दे को अर्थशास्त्र के नज़रिए से देखते थे.

राजनीतिक करियर की शुरुआत:

1968 में वे शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद के सदस्य बने. 1972 में वे पहली बार झंझारपुर से विधायक चुने गए. 1975 में उनके भाई की हत्या के बाद, वे 38 साल की उम्र में बिहार के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. उस समय जेपी आंदोलन और आपातकाल की वजह से राज्य और केंद्र सरकार के बीच रिश्ते तनावपूर्ण थे.

उपलब्धियाँ:

10 जून 1980 को उन्होंने उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा बनाने का ऐलान किया, और 19 सितंबर 1980 को इसे लागू भी कर दिया. इस फ़ैसले से उन्हें सामाजिक और भाषाई प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने राज्य के खजाने को भरने के लिए खनिजों पर टैक्स लगाया, औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण बनाया, और महात्मा गांधी सेतु जैसे बड़े प्रोजेक्ट शुरू करवाए. इससे उन्हें एक ऐसे नेता की छवि मिली जो विकास और लोगों के कल्याण के लिए काम करता था.

विवाद:

1982 में 'बिहार प्रेस बिल' लेकर वे विवादों में घिर गए. इस बिल में अश्लील और झूठी ख़बरें छापने वालों पर रोक लगाने की बात थी. लेकिन पत्रकारों ने इसका विरोध किया और हड़ताल कर दी. पूरे देश में इस पर बहस हुई, और आख़िरकार इसे वापस लेना पड़ा. 1983 में उन्होंने केंद्र सरकार की खनन नीति की आलोचना की, जिसके कुछ हफ़्तों बाद उनसे इस्तीफ़ा मांग लिया गया. इससे पता चलता है कि उनके और केंद्र सरकार के बीच मतभेद थे.

मुक़दमे:

1990 के दशक में चारा घोटाले के मामलों ने उन्हें परेशान कर दिया. 30 सितंबर 2013 को सीबीआई की अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया. 2018 में उन्हें चाईबासा कोषागार मामले में फिर से सज़ा हुई, लेकिन दिसंबर 2017 और मार्च 2018 में वे दो मामलों में बरी भी हो गए. 19 मार्च 2018 को वे डुमका कोषागार मामले में बरी हुए, लेकिन उसी दौरान उन्हें दूसरे मामलों में पांच साल की सज़ा भी सुनाई गई. इन मुक़दमों की वजह से उनकी छवि पर दाग लग गया, और कुछ मामलों में उनकी अपील अभी भी अदालत में लंबित है.

लोग क्या सोचते थे:

उनके समर्थक उन्हें एक अच्छा प्रशासक और तुरंत फ़ैसला लेने वाला नेता मानते थे. लेकिन प्रेस बिल जैसे फ़ैसलों के कारण लोग उनकी लोकतांत्रिक सोच पर सवाल उठाते थे. हालांकि, 2017 में उन्होंने प्रेस बिल के लिए अफ़सोस जताया था. उर्दू भाषा के लिए उन्होंने जो काम किया, उससे पता चलता है कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व को कितना महत्व देते थे.

विरासत:

उनके निधन पर बिहार में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया. उन्हें 'अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री' के तौर पर याद किया जाता है. 1990 के बाद बिहार की राजनीति में जो बदलाव आया, उससे कांग्रेस कमज़ोर हो गई. लेकिन उनके परिवार और समर्थकों ने उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाया, जिससे पता चलता है कि उनका प्रभाव आज भी बना हुआ है.

कालक्रम:

  • 24 जून 1937: जन्म
  • 1968: विधान परिषद के सदस्य बने
  • 1972: झंझारपुर से विधायक चुने गए
  • 3 जनवरी 1975: उनके भाई एल.एन. मिश्र की हत्या
  • अप्रैल 1975: 38 साल की उम्र में पहली बार मुख्यमंत्री बने
  • 30 अप्रैल 1977: पहला कार्यकाल समाप्त
  • 8 जून 1980: दूसरी बार मुख्यमंत्री बने
  • 19 सितंबर 1980: उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा घोषित किया
  • 31 जुलाई 1982: 'बिहार प्रेस बिल' पास किया, लेकिन बाद में वापस ले लिया
  • 23 जुलाई 1983: केंद्र सरकार की नीतियों पर भाषण दिया
  • 14 अगस्त 1983: मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा
  • दिसंबर 1989: तीसरी बार मुख्यमंत्री बने
  • 10 मार्च 1990: तीसरा कार्यकाल समाप्त
  • 1988-1990, 1994-2000: राज्यसभा के सदस्य रहे
  • 30 सितंबर 2013: चारा घोटाले में दोषी ठहराए गए
  • 23 दिसंबर 2017: एक मामले में बरी, दूसरे में सज़ा
  • 23/24 जनवरी 2018: चाईबासा मामले में सज़ा (5 साल)
  • 19 मार्च 2018: डुमका मामले में बरी
  • 19 अगस्त 2019: दिल्ली में निधन, राजकीय शोक घोषित

कुछ विचार:

जगन्नाथ मिश्र ने एक बार कहा था कि मुझे काम करने के मौके मिले, लेकिन मुझे अपमान और दुख भी बहुत मिला.
उन्होंने 2017 में कहा था कि मुझे 'बिहार प्रेस बिल' नहीं लाना चाहिए था.
1983 में उन्होंने कहा था कि यह अच्छी बात नहीं है कि ग्राहक ही रॉयल्टी की दरें तय करें.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके निधन पर कहा था कि डॉक्टर मिश्र एक प्रसिद्ध राजनेता और शिक्षाविद थे.
राज्यपाल फागू चौहान ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वे एक अच्छे प्रशासक, संवेदनशील राजनेता और अर्थशास्त्र के विद्वान थे.
जगन्नाथ मिश्र ने 2011 में कहा था कि बिहार में उर्दू आंदोलन को फिर से शुरू करने की ज़रूरत है.

आंकड़े:

  • मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल: 3 बार - 1975-77, 1980-83, 1989-90
  • विधानसभा/परिषद: 1968 (विधान परिषद), 1972-1990 (विधायक)
  • संसद: राज्यसभा सदस्य
  • फ़ैसले: उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाया, प्रेस बिल लाए (वापस लिया)
  • मुक़दमे: 2013, 2018 में सज़ा, 2017, 2018 में कुछ मामलों में बरी

कुछ सवाल:

  1. क्या उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाने का फ़ैसला आज भी उतना ही ज़रूरी है जितना पहले था?
  2. क्या 'बिहार प्रेस बिल' को वापस लेना लोकतंत्र के प्रति ज़िम्मेदारी थी या किसी दबाव का नतीजा?
  3. चारा घोटाले में सज़ा और बरी होने से उनकी छवि पर क्या असर पड़ा?
  4. 1990 के बाद बिहार की राजनीति में जो बदलाव आया, उसमें जगन्नाथ मिश्र के दौर से क्या सीखा जा सकता है?

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