नालंदा विश्वविद्यालय अवशेष व ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल

 नालंदा: प्राचीन ज्ञान का एक जीवंत गवाह

भारत के बिहार राज्य में स्थित नालंदा, दुनिया की सबसे पुरानी विश्वविद्यालय परंपरा का जीता-जागता उदाहरण है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक, यह बौद्ध शिक्षा और शोध का एक खास केंद्र रहा। आज, यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया है।

नालंदा महाविहार के खंडहरों में आपको स्तूप, विहार, चैत्य और कलाकृतियों के अवशेष मिलेंगे। ये अवशेष बताते हैं कि यह जगह 800 सालों तक ज्ञान का केंद्र बनी रही। पटना से करीब 90 कि.मी. दूर स्थित इस परिसर में, आप खुले आंगन में घूमते हुए कक्षाओं, छात्रावासों, और पुरानी वास्तुकला को महसूस कर सकते हैं।

खंडहरों से सिर्फ़ 1.3 कि.मी. दूर ह्वेनसांग (ह्वेन त्सांग) मेमोरियल हॉल है। यह इमारत चीनी विद्वान-यात्री ह्वेनसांग की यादों और पांडुलिपियों को समर्पित है। इसे भारत और चीन के सांस्कृतिक सहयोग का प्रतीक माना जाता है।

परिचय

नालंदा महाविहार का पुरातात्विक स्थल भारतीय उपमहाद्वीप की पुरानी विश्वविद्यालय परंपरा का प्रतीक है। यहां व्यवस्थित तरीके से आठ सदियों तक ज्ञान का प्रसार हुआ। यह जगह बौद्ध धर्म के विकास, मठ-आधारित शिक्षा और कला-वास्तुकला की शानदार यात्रा को दिखाती है। इसलिए, यह इतिहास, धर्म और संस्कृति तीनों ही नज़रिए से बहुत खास है।

इतिहास और महत्व

माना जाता है कि बुद्ध के समय के इस क्षेत्र में, पांचवीं शताब्दी ईस्वी के आसपास एक विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। इसने अगले सात सौ सालों तक अपनी शिक्षा के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाए रखी। नालंदा में बौद्ध आगम (महायान और हीनयान), दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष, चिकित्सा जैसे विषयों की पढ़ाई होती थी। चीनी यात्रियों ह्वेनसांग और ई-त्सिंग ने इसके बारे में विस्तार से लिखा है।

यूनेस्को की सूची में दर्ज जानकारी से पता चलता है कि नालंदा ने शिक्षा-संस्थान, वास्तुकला और प्रशासन के ऐसे नियम बनाए, जिनका असर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई विश्वविद्यालयों पर पड़ा। तेरहवीं शताब्दी में आक्रमण और त्याग के बाद भी, यहां के पुरातात्विक अवशेष 23 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनमें 11 विहार और 14 मंदिर शामिल हैं, जो उस गौरवशाली अतीत की झलक दिखाते हैं। बिहार पर्यटन के अनुसार, पाल वंश के बाद 1200 ईस्वी के आसपास बख्तियार खिलजी के हमले से इसे काफ़ी नुक़सान पहुंचा।

क्या-क्या देखें

मुख्य अवशेष परिसर: यहां उत्तर से दक्षिण दिशा में स्तूप, चैत्य, विहार, प्रार्थना-स्थल और बहुत सारे स्तूप हैं। ये सभी प्राचीन विश्वविद्यालय-शहर की भव्यता को दर्शाते हैं। (23 हेक्टेयर में 11 विहार और 14 मंदिर)

नालंदा आर्कियोलॉजिकल म्यूज़ियम: 1917 से चल रहे इस म्यूजियम में बौद्ध मूर्तियां, सिक्के, मुहरें, टेराकोटा, और जले हुए चावल के नमूने हैं। यह आमतौर पर सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक खुला रहता है, लेकिन शुक्रवार को बंद रहता है। आने से पहले समय की जांच कर लें।

ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल: यह खंडहरों से लगभग 1.3 कि.मी. दूर है। यह स्मारक ह्वेनसांग के जीवन, यात्राओं और उनसे जुड़ी चीजों को दिखाता है।

पद्मपुष्कर्णी/झील: मेमोरियल ऐतिहासिक पद्मपुष्कर्णी झील के पास है, जो इस जगह को एक खास सांस्कृतिक पहचान देता है।

आसपास की जगहें: पावापुरी (26 कि.मी.) और बिहार शरीफ (13 कि.मी.) सड़क से जुड़े हुए हैं। राजगीर सबसे नज़दीकी बड़ा शहर है, जहां से नालंदा के लिए सड़क अच्छी है।

घूमना-फिरना और अनुभव

यूनेस्को की लिस्ट में शामिल खंडहरों में घूमते हुए, आपको लगेगा कि लेक्चर हॉल, छात्रावास और आंगन सच में आपके सामने हैं। यह जगह इतिहास और खोज करने वालों के लिए बहुत अच्छी है। घूमने के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से अप्रैल तक होता है, जब मौसम अच्छा रहता है। यहां साइकिल-रिक्शा, ऑटो और तांगे आसानी से मिल जाते हैं, जिनसे आप खंडहरों, म्यूजियम और मेमोरियल जैसी जगहों पर जा सकते हैं।

कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग: सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा पटना (जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा) है, जो लगभग 89-90 कि.मी. दूर है। यहां से आप सड़क के रास्ते नालंदा जा सकते हैं।

रेल मार्ग: नालंदा के लिए सबसे नज़दीकी स्टेशन राजगीर है। गया जंक्शन (लगभग 95 कि.मी.) भी एक बड़ा रेलवे स्टेशन है, जो कई शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग: नालंदा, पटना (90 कि.मी.), गया (95 कि.मी.), बोधगया (110 कि.मी.), पावापुरी (26 कि.मी.), बिहार शरीफ (13 कि.मी.) और राजगीर से सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप बस या टैक्सी से आसानी से पहुंच सकते हैं।

कहां ठहरें

ज़्यादातर लोग राजगीर या बिहार शरीफ में रुकना पसंद करते हैं, क्योंकि ये नालंदा के पास हैं और यहां कई होटल और गेस्ट हाउस हैं। राजगीर में बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम के होटल और अन्य ठिकाने भी हैं।

राजगीर में रुकने से आप नालंदा के खंडहरों, म्यूजियम और ह्वेनसांग मेमोरियल को एक ही दिन में घूम सकते हैं।

स्थानीय खाना और संस्कृति

नालंदा जिले की मशहूर मिठाई ‘सिलाव खाजा’ को दिसंबर 2018 में जीआई टैग मिला था। यह मिठाई अपनी खास परतदार बनावट और स्थानीय जलवायु और पानी के कारण मिलने वाले अनोखे स्वाद के लिए जानी जाती है। बौद्ध धर्म के तीर्थस्थान के रूप में, नालंदा में देश-विदेश से श्रद्धालु और इतिहास प्रेमी आते हैं। यहां के बाज़ारों में आपको संस्कृति और स्मृति चिन्हों की झलक देखने को मिलेगी। खंडहरों के पास हल्के नाश्ते, स्थानीय पेय और क्षेत्रीय व्यंजनों का आनंद लेते हुए, आप विरासत पर्यटन का शांत और यादगार अनुभव ले सकते हैं।

निष्कर्ष

अगर आप भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था, बौद्ध कला और संस्कृति को करीब से देखना चाहते हैं, तो यूनेस्को की लिस्ट में शामिल नालंदा महाविहार के खंडहरों और ह्वेनसांग मेमोरियल की यात्रा ज़रूर करें। यहां का व्यवस्थित परिसर, संग्रहालय और स्मारक मिलकर आपको एक ऐसा अनुभव देंगे, जो आपकी यादों में हमेशा रहेगा।

Raviopedia

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