PMO की 23 सितंबर की बैठक: घरेलू ऑडिट नियमों में संभावित बदलाव

घरेलू ऑडिट और कंसल्टेंसी फर्मों को बढ़ावा देने के लिए सरकार गंभीर है। 23 सितंबर को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में एक बड़ी मीटिंग होने वाली है। इसमें इस बात पर विचार किया जाएगा कि कैसे इन फर्मों को और मजबूत बनाया जाए ताकि ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कंपनियों को टक्कर दे सकें।

मीटिंग में क्या होगा?

यह मीटिंग नई दिल्ली में होगी। इसमें घरेलू ऑडिट और कंसल्टेंसी फर्मों के लिए नियमों में बदलाव पर बात होगी। सरकार यह देखेगी कि इन फर्मों को कैसे आसान तरीके से काम करने दिया जाए ताकि ये आगे बढ़ सकें। मीटिंग का मुख्य उद्देश्य भारतीय फर्मों को दुनिया भर में और भी ज़्यादा कंपटीटिव बनाना है।

क्यों ज़रूरी है यह मीटिंग?

अभी देश में कई ऑडिट और कंसल्टेंसी फर्में हैं, लेकिन उनमें से ज़्यादातर छोटी हैं। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में Big Four जैसी बड़ी कंपनियों का दबदबा है। इससे भारतीय फर्में अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स में पीछे रह जाती हैं। इसलिए, सरकार चाहती है कि नीतियाँ ऐसी हों कि भारतीय फर्में भी आगे बढ़ सकें।

अधिकारी क्या कहते हैं?

मीटिंग की तैयारी कर रहे एक बड़े अधिकारी ने कहा कि उनका मकसद मुकाबला बढ़ाना है, लेकिन वे नियमों को कमजोर नहीं करेंगे। वे यह भी देखेंगे कि क्वालिटी, आज़ादी और पारदर्शिता से समझौता किए बिना घरेलू फर्मों को बराबर का मौका कैसे मिले।

इंडस्ट्री के लोगों की क्या राय है?

इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि सरकारी टेंडर में अनुभव और टर्नओवर जैसी शर्तें अक्सर छोटी फर्मों के लिए मुश्किल खड़ी करती हैं। उनका सुझाव है कि योग्यता के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए और साथ मिलकर ऑडिट करने जैसे कदम उठाने चाहिए।

पहले क्या हुआ है?

पिछले कुछ सालों में सरकार ने पेशेवर सेवाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया है। डिजिटल कामकाज को बढ़ावा दिया गया है और पारदर्शिता लाई गई है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है?

दुनिया भर में ऑडिट बाजार में कुछ बड़ी कंपनियों का ही दबदबा है। कई देशों ने मुकाबला और क्वालिटी बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए हैं। भारत में भी ऐसे ही सुधारों की ज़रूरत है।

मीटिंग में क्या बदलाव हो सकते हैं?

  • सरकारी टेंडर के नियमों पर फिर से विचार किया जा सकता है ताकि छोटी फर्मों को भी मौका मिले।
  • साथ मिलकर ऑडिट करने के नियमों को साफ़ किया जा सकता है।
  • भारतीय फर्मों को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करने में मदद की जा सकती है।

भारतीय फर्मों के सामने क्या दिक्कतें हैं?

भारतीय फर्मों को अपनी पहचान बनाने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेटवर्क बनाने और नई तकनीक अपनाने में दिक्कतें आती हैं। इसके अलावा, अच्छे लोगों को बनाए रखना और उन्हें बेहतर ट्रेनिंग देना भी ज़रूरी है।

दूसरे देशों से क्या सीख सकते हैं?

कई देशों ने बाजार में मुकाबला बढ़ाने और क्वालिटी सुधारने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए हैं। भारत को भी इन अनुभवों से सीखना चाहिए।

इंडस्ट्री की क्या उम्मीदें हैं?

कंसल्टेंसी और ऑडिट क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि सरकार उनसे सलाह ले। वे चाहते हैं कि कोई भी बदलाव धीरे-धीरे हो ताकि किसी को परेशानी न हो। वे तकनीक और डेटा सुरक्षा को लेकर भी स्पष्ट नियम चाहते हैं।

इसका क्या असर होगा?

इन बदलावों से पेशेवर सेवाओं का निर्यात बढ़ेगा और नई नौकरियाँ मिलेंगी। साथ ही, वित्तीय रिपोर्टिंग बेहतर होगी और निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा।

आगे क्या होगा?

मीटिंग के बाद सरकार एक योजना बना सकती है और लोगों से सुझाव मांग सकती है। इसके बाद, सुधार धीरे-धीरे किए जाएंगे। सरकार यह भी ध्यान रखेगी कि नियमों में पारदर्शिता हो और किसी तरह का टकराव न हो।

निष्कर्ष

23 सितंबर की मीटिंग से घरेलू ऑडिट और कंसल्टेंसी फर्मों के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं। अगर सही बदलाव किए जाते हैं, तो भारतीय फर्में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी आगे बढ़ सकती हैं। आने वाले दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी।


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