सोनपुर हरिहरनाथ मंदिर व प्रसिद्ध सोनपुर मेला

बिहार के सारण जिले में, जहाँ गंगा और गंडक नदियाँ मिलती हैं, सोनपुर नाम का एक अद्भुत जगह है। यहाँ हरिहरनाथ मंदिर है, जो आध्यात्मिकता, इतिहास और संस्कृति का एक अनोखा संगम है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) के आसपास, यहाँ एक मेला लगता है, जो एशिया के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक माना जाता है। यह मेला 15 दिनों से लेकर एक महीने तक चलता है।

हरिहरनाथ मंदिर भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) की एकता का प्रतीक है। यह मंदिर गजेंद्र मोक्ष की कहानी से भी जुड़ा है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ स्नान करने और पूजा करने आते हैं। अब तो दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल (जेपी सेतु) भी बन गया है, जिससे पटना से सोनपुर आना बहुत आसान हो गया है। इससे यात्रियों को मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, हस्तशिल्प बाज़ार और धार्मिक अनुष्ठानों का अनुभव लेने में काफ़ी आसानी होती है।


सोनपुर: एक परिचय

सोनपुर, गंगा और गंडक नदियों के मिलन स्थल पर बसा हुआ एक प्राचीन तीर्थ स्थान है। यह अपनी संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। हरिहरनाथ मंदिर और एशिया में प्रसिद्ध सोनपुर मेला यहाँ की शान हैं। यहाँ आध्यात्मिकता, लोक कला, पशुधन की परंपराएँ और उत्सव एक साथ मिलकर एक अद्भुत माहौल बनाते हैं, जिसे देखने के लिए हर साल लाखों लोग आते हैं।

इतिहास और पौराणिक महत्व

हरिहरनाथ मंदिर को हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। यह गजेंद्र मोक्ष की कहानी से भी जुड़ा है। इस कहानी में, भगवान विष्णु ने गजेंद्र (हाथी) को ग्राह (मगरमच्छ) से बचाया और उसे मुक्ति दिलाई थी। माना जाता है कि मेले की शुरुआत बहुत पहले हुई थी। इसे हरिहर क्षेत्र मेला भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र स्नान और पूजा के साथ होती है। आजकल, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद हाथियों की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। अब यह मेला सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ पारंपरिक पशुधन प्रदर्शनों का केंद्र बन गया है।

सोनपुर में क्या-क्या देखें

हरिहरनाथ मंदिर: यह मंदिर भगवान विष्णु और शिव के मिलन का प्रतीक है। यह गजेंद्र मोक्ष की परंपरा से जुड़ा हुआ है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ स्नान और पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

सोनपुर मेला ग्राउंड: यह एशिया का मशहूर पशु मेला है। यहाँ घोड़े, बैल, बकरियाँ और कई अन्य जानवर लाए जाते हैं। इसके अलावा, यहाँ हस्तशिल्प, सांस्कृतिक कार्यक्रम और मनोरंजन के साधन भी होते हैं, जो लोगों को काफ़ी आकर्षित करते हैं।

धार्मिक अनुष्ठान और आरती: यहाँ संगम पर स्नान करना और शाम की आरती में शामिल होना एक शानदार अनुभव होता है। मंदिर के दर्शन करने से यात्रियों को एक विशेष आध्यात्मिक माहौल मिलता है।

हस्तशिल्प और लोक कला: यहाँ मधुबनी, टिकुली, खादी और अन्य स्थानीय शिल्पों की दुकानें हैं, जहाँ आपको क्षेत्रीय कला और स्मृति चिह्न मिल सकते हैं।

जेपी सेतु (दीघा-सोनपुर पुल): यह गंगा नदी पर बना 4,556 मीटर लंबा पुल है, जिस पर रेल और सड़क दोनों हैं। यहाँ से नदी का नज़ारा बहुत सुंदर दिखता है, जो फ़ोटोग्राफ़ी के लिए शानदार है।

पर्यटन और अनुभव

कार्तिक पूर्णिमा के आसपास और नवंबर-दिसंबर में मेले के दौरान सोनपुर में उत्सव का माहौल रहता है। अगर आप घूमने के लिए आना चाहते हैं, तो अक्टूबर से मार्च का महीना सबसे अच्छा होता है। यहाँ पशुधन परेड, लोक नृत्य, संगीत, कुश्ती, नौटंकी, झूले और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जो पर्यटकों को पूरे दिन व्यस्त रखते हैं। संगम के किनारे शाम की आरती, मंदिर परिसर की फ़ोटोग्राफ़ी और स्थानीय बाज़ारों में ख़रीदारी करना लोगों को बहुत पसंद आता है।

धार्मिक यात्रा: कार्तिक स्नान, मंदिर के दर्शन और भजन-कीर्तन में भाग लें।

सांस्कृतिक कार्यक्रम: लोक नृत्य, संगीत, नाटक और कुश्ती जैसे पारंपरिक खेलों का आनंद लें।

फ़ोटोग्राफ़ी: संगम, जेपी सेतु और मेले की रंगीन तस्वीरें लें।

शॉपिंग: मधुबनी पेंटिंग, टिकुली आर्ट, खादी के कपड़े और स्थानीय हस्तशिल्प खरीदें।

यहाँ कैसे पहुँचें

हवाई मार्ग: सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, पटना (PAT) है। सोनपुर यहाँ से लगभग 21-22 किलोमीटर दूर है और टैक्सी से लगभग 25 मिनट लगते हैं।

रेल मार्ग: सोनपुर जंक्शन (SEE) पूर्व मध्य रेलवे के सोनपुर मंडल का मुख्यालय है। यहाँ से बिहार के कई बड़े शहरों के लिए ट्रेनें मिलती हैं।

सड़क मार्ग: पटना से जेपी सेतु (दीघा-सोनपुर पुल) के ज़रिए सोनपुर सीधे जुड़ा हुआ है। इससे उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच सड़क और रेल संपर्क आसान हो गया है।

कहाँ ठहरें

मेले के दौरान, सरकार की तरफ़ से हट्स/नॉन-एसी कमरे जैसी अस्थायी आवास की सुविधाएँ दी जाती हैं, लेकिन ये सीमित होती हैं। इसलिए पहले से बुकिंग करना बेहतर होता है। पटना और हाजीपुर-सोनपुर में कई तरह के होटल और गेस्टहाउस मिल जाते हैं। पटना एयरपोर्ट से सोनपुर के लिए सीधी टैक्सी मिलती है, जिससे यात्रा करना आसान हो जाता है। मंदिर के पास कुछ सस्ते होटल भी मिल जाते हैं, जबकि परिवार के साथ यात्रा करने वालों के लिए पटना में ज़्यादा विकल्प उपलब्ध हैं।

स्थानीय खानपान और संस्कृति

लिट्टी-चोखा बिहार का प्रसिद्ध व्यंजन है, जो देश-विदेश में भी मशहूर है। मेले में या यात्रा के दौरान इसे ज़रूर खाना चाहिए। यहाँ खाजा, चंद्रकला/पेडकिया जैसी मिठाइयाँ भी मिलती हैं, जो भोजपुरी और मगही संस्कृति का स्वाद कराती हैं। मेले के सांस्कृतिक मंचों पर लोक नृत्य, नौटंकी, संगीत, कठपुतली और जादू जैसे कार्यक्रम होते हैं, जो क्षेत्रीय कलाओं की झलक दिखाते हैं।

लिट्टी-चोखा: यह सत्तू से भरी हुई गेहूं की गेंद होती है, जिसे बेक करके घी और भुर्ता (आलू/बैंगन) के साथ परोसा जाता है।

खाजा व चंद्रकला/पेडकिया: ये मेले और बाज़ारों में मिलने वाली लोकप्रिय मिठाइयाँ हैं।

लोक कला-हस्तशिल्प: मधुबनी पेंटिंग, टिकुली आर्ट, खादी के कपड़े और घरेलू शिल्प उत्पाद यहाँ मिलते हैं।

निष्कर्ष

हरिहरनाथ मंदिर की आध्यात्मिकता, गंगा-गंडक के संगम का पवित्र वातावरण और सोनपुर मेले की रौनक सोनपुर को बिहार का एक अनोखा पर्यटन स्थल बनाती है। इसका समृद्ध इतिहास, जीवंत संस्कृति, आसान कनेक्टिविटी और कई तरह की गतिविधियाँ इसे परिवारों, श्रद्धालुओं और संस्कृति में रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक आदर्श जगह बनाती हैं।

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