पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान 24 अक्टूबर से 3 नवंबर तक आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है, जिसका सीधा असर बिहार में सरकारी नौकरी की शारीरिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हजारों युवाओं पर पड़ा है। चुनावी व्यवस्था के चलते लिए गए इस निर्णय ने युवाओं के अभ्यास में बाधा डाली है, जिससे उनकी तैयारी प्रभावित हुई है। सुरक्षा और प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए यह कदम उठाया गया है।
मुख्य खबर:
बिहार में आने वाले चुनावों की तैयारी को लेकर पटना जिला प्रशासन ने एक बड़ा फैसला लिया है। शहर के बीचोबीच स्थित गांधी मैदान को 24 अक्टूबर से 3 नवंबर तक के लिए आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया। इस मैदान में हर रोज सुबह-शाम हजारों की संख्या में युवा सरकारी नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। मैदान को बंद करने का मुख्य कारण चुनावी वाहनों का जमावड़ा और चुनाव संबंधी अन्य व्यवस्थाएं बताई जा रही हैं।
क्या हुआ:
गांधी मैदान, जो कभी स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र था और अब युवाओं के सपनों को पूरा करने का स्थान बन गया है, चुनावी तैयारियों के कारण एक तरह से वीरान हो गया है। मैदान का एक बड़ा हिस्सा चुनावी वाहनों और अन्य व्यवस्थाओं के लिए घेर लिया गया है। इससे रोजाना यहां अभ्यास करने आने वाले लगभग 20,000 से अधिक युवाओं की तैयारी में बाधा आई है। युवा सुबह से ही मैदान के बाहर इकट्ठा होने लगे थे, लेकिन उन्हें अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई। कई युवा दूर-दराज के इलाकों से आते हैं और उनके पास अभ्यास के लिए कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।
क्यों हुआ:
जिला प्रशासन का कहना है कि सुरक्षा और चुनावी मशीनरी के सुचारू संचालन के लिए यह अस्थायी बंदी जरूरी थी। प्रशासन ने यह भी चेतावनी दी है कि बिना अनुमति मैदान का 'अनावश्यक' उपयोग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अधिकारियों के अनुसार, मैदान में चुनावी सामग्री का भंडारण किया जाएगा और सुरक्षा बलों के ठहरने की व्यवस्था भी की जाएगी।
किस पर असर:
मैदान बंद होने से सबसे ज्यादा असर उन युवाओं पर पड़ा है जो पुलिस, आर्मी और अन्य सरकारी भर्तियों की शारीरिक परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। इन परीक्षाओं में दौड़, ऊंची कूद और लंबी कूद जैसी शारीरिक गतिविधियां शामिल होती हैं, जिनके लिए खुले मैदान की जरूरत होती है। अब ये अभ्यर्थी वैकल्पिक मैदानों और समय-तालिकाओं की तलाश में भटक रहे हैं। कई युवाओं ने बताया कि उनके पास तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं है और मैदान बंद होने से उनकी मेहनत पर पानी फिर सकता है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि:
बिहार की राजनीति में युवाओं, अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और दलित समुदायों के मुद्दे हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। चुनावी माहौल में युवा चेहरों और नए राजनीतिक समीकरणों को लेकर बहस तेज हो गई है। सभी राजनीतिक पार्टियां युवाओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे कर रही हैं। कुछ पार्टियां नौकरियों का वादा कर रही हैं, तो कुछ शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दे रही हैं।
बयान:
राजनीतिक दलों के बीच समुदाय-आधारित दावों और आरक्षण/प्रतिनिधित्व को लेकर तीखी बयानबाजी देखने को मिल रही है। इस तरह की बयानबाजी से समाज में ध्रुवीकरण का खतरा बढ़ सकता है। कुछ नेता आरक्षण कोटे को बढ़ाने की बात कर रहे हैं, तो कुछ निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की मांग कर रहे हैं।
असर:
गांधी मैदान की बंदी अस्थायी है, लेकिन यह घटना दिखाती है कि चुनावी व्यवस्था और सार्वजनिक उपयोगिताओं के बीच संतुलन साधना कितना जरूरी है। नीति निर्माताओं को इस पर ध्यान देना चाहिए कि भविष्य में इस तरह की स्थिति से कैसे बचा जा सकता है। 'पब्लिक ट्रेनिंग स्पेस' का वैकल्पिक खाका तैयार करना जरूरी है, ताकि युवाओं को अपनी तैयारी के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। सरकार को चाहिए कि वह हर जिले में कम से कम एक ऐसा मैदान जरूर विकसित करे, जहां युवा बिना किसी बाधा के अपनी तैयारी कर सकें।
निष्कर्ष:
उम्मीद है कि प्रशासनिक बंदी हटते ही गांधी मैदान फिर से युवाओं के लिए खुल जाएगा। लेकिन, लंबे समय में बड़े शहरों में युवा प्रशिक्षण के लिए समर्पित पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की मांग और तेज होगी। सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए और युवाओं के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।
