सेंट्रल रेलवे (Central Railway) ने एक बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने मुंबई डिवीजन में KAVACH नाम के एक सिस्टम का ट्रायल पूरा कर लिया है। इससे ट्रेनें और भी सुरक्षित हो जाएंगी। रेलवे का कहना है कि वे जल्द ही इस सिस्टम को 4,000 किलोमीटर के रूट पर लगाने वाले हैं।
28 सितंबर को पनवेल-रोहा सेक्शन में हुआ था ट्रायल
ये ट्रायल 28 सितंबर को पनवेल-रोहा सेक्शन में हुआ था। सेंट्रल रेलवे पहला ऐसा जोन बन गया है, जिसने अपने सभी पांचों डिवीजनों में इस सिस्टम का ट्रायल पूरा कर लिया है। उन्होंने 730 लोको में इस सिस्टम को लगाने की परमिशन भी दे दी है। इससे खतरे के सिग्नल को पार करने और टक्कर होने का खतरा कम हो जाएगा।
क्या है KAVACH?
KAVACH एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। इसका मतलब है कि अगर ड्राइवर किसी वजह से लाल सिग्नल को नहीं देख पाता है, तो ये सिस्टम अपने आप ब्रेक लगा देगा। इससे एक्सीडेंट होने का खतरा कम हो जाएगा। इसके अलावा, ये सिस्टम स्पीड को भी कंट्रोल करता है, लेवल क्रॉसिंग पर अपने आप सीटी बजाता है, और ड्राइवर को सिग्नल दिखाता है। इसमें SOS नाम का एक फीचर भी है, जिससे इमरजेंसी में मदद मिल सकती है।
सेंट्रल रेलवे के अधिकारी क्या कहते हैं?
सेंट्रल रेलवे के एक बड़े अधिकारी ने कहा कि ये सिस्टम पूरे नेटवर्क में लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि इससे इमरजेंसी में तुरंत एक्शन लिया जा सकेगा।
अभी क्या हो रहा है?
कुछ स्टेशनों पर KAVACH सिस्टम पहले से ही लगा दिए गए हैं। भुसावल और कल्याण शेड्स में लोको में इस सिस्टम को लगाने का काम चल रहा है। भुसावल में एक कंट्रोल सेंटर भी बनाया गया है। पहले फेज में 730 लोकोमोटिव में ये सिस्टम लगाया जाएगा। इसके लिए 3,000 से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
कैसे काम करता है ये सिस्टम?
ये सिस्टम रेडियो लिंक के जरिए सिग्नल की जानकारी और लोकोमोटिव की लोकेशन लेता है। फिर ये मूवमेंट की लिमिट, स्पीड लिमिट और सेफ्टी का ध्यान रखता है। इससे ट्रेनें सुरक्षित और अच्छी तरह से चल पाती हैं। सेंट्रल रेलवे ने 10 सितंबर को सोलापुर डिवीजन में इसका पहला ट्रायल किया था।
इससे क्या फायदा होगा?
KAVACH सिस्टम से इंसानों से होने वाली गलतियों का खतरा कम हो जाएगा। ट्रेनें समय पर चलेंगी और जो रूट बहुत बिजी हैं, वहां भी ट्रेनों को सुरक्षित तरीके से चलाया जा सकेगा। इस सिस्टम को लगाने से सप्लाई चेन, ट्रेनिंग और रखरखाव में भी सुधार होगा। लंबे समय में इंश्योरेंस और दूसरी लागत भी कम हो सकती है। ये सिस्टम भारत में ही बना है, इसलिए ये आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा देता है। इससे हम दुनिया में भी सेफ्टी के मामले में बेहतर हो जाएंगे।
आगे क्या होगा?
अगले फेज में लोको में इस सिस्टम को लगाने की स्पीड बढ़ाई जाएगी। ज्यादा रूट को कवर किया जाएगा और फील्ड डेटा के हिसाब से सिस्टम को एडजस्ट किया जाएगा। इसके अलावा, यात्रियों और कर्मचारियों के लिए SOP को अपडेट किया जाएगा और उन्हें सिमुलेटर के जरिए ट्रेनिंग दी जाएगी।
