हाल ही में आई एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि जो बच्चे ज़्यादा वक़्त स्क्रीन पर बिताते हैं, उनके गणित और पढ़ने जैसे विषयों में नंबर कम आ सकते हैं। इस रिपोर्ट के बाद स्कूलों और माता-पिता के बीच इस बात पर ज़ोरदार बहस छिड़ गई है कि बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम को कैसे कंट्रोल किया जाए।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को स्क्रीन का इस्तेमाल कम करना चाहिए और सिर्फ़ ज़रूरी कामों के लिए ही करना चाहिए। इसके साथ ही, उन्हें दूसरी गतिविधियों में भी हिस्सा लेना चाहिए, जैसे कि खेलना और पढ़ना।
रिपोर्ट में क्या है?
इस रिपोर्ट में ये पता चला है कि ज़्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर डाल सकता है। इसकी वजह ये है कि स्क्रीन टाइम बच्चों का ध्यान भटकाता है, जिससे उन्हें सीखने में मुश्किल होती है। इसके अलावा, ज़्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों की नींद भी खराब हो सकती है, जिससे उनकी सेहत और पढ़ाई दोनों पर असर पड़ता है।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारत में शहरी परिवारों के बीच ऑनलाइन पढ़ाई और मनोरंजन का चलन बढ़ रहा है, जिससे ये समस्या और भी गंभीर हो गई है।
माता-पिता और स्कूल क्या कर सकते हैं?
इस समस्या से निपटने के लिए माता-पिता और स्कूलों को मिलकर काम करना होगा।
माता-पिता ये कर सकते हैं:
- बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की लिमिट तय करें।
- बच्चों को बताएं कि स्क्रीन का इस्तेमाल कैसे करना है।
- बच्चों को दूसरी गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
- बच्चों के साथ मिलकर स्क्रीन देखें और उनसे बात करें कि वे क्या देख रहे हैं।
स्कूल ये कर सकते हैं:
- क्लास में डिवाइस के इस्तेमाल के लिए नियम बनाएं।
- बच्चों को बताएं कि स्क्रीन का इस्तेमाल सुरक्षित तरीके से कैसे करना है।
- क्लास में ऐसी पढ़ाई कराएं जिसमें स्क्रीन का इस्तेमाल कम हो।
- माता-पिता को स्क्रीन टाइम के बारे में जानकारी दें।
आगे क्या होगा?
कई स्कूल अब डिजिटल हाइजीन नाम के कोर्स शुरू करने की सोच रहे हैं, ताकि बच्चों को स्क्रीन के इस्तेमाल के बारे में सही जानकारी दी जा सके और उन्हें इसके नुकसान से बचाया जा सके। इसके अलावा, स्कूलों में स्क्रीन टाइम के लिए गाइडलाइन भी बनाई जा सकती हैं।
ज़रूरी है कि हम सब मिलकर बच्चों को स्क्रीन के नुकसान से बचाएं और उन्हें एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने में मदद करें।
