आचार्य किशोर कुणाल: बिहार के आध्यात्मिक, दार्शनिक और दानशील हृदय

पटना के महावीर मंदिर से लेकर अयोध्या विवाद के मध्यस्थता तक, आचार्य किशोर कुणाल का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है। यह कहानी है धार्मिक जागृति, समाज सेवा और संस्थानों के निर्माण की। उन्होंने बिहार और पूरे देश के लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी। दुख की बात है कि 29 दिसंबर, 2024 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। इसलिए, अब हम उन्हें 'स्वर्गीय' के रूप में याद करेंगे, न कि 'जीवित' के रूप में।

आइये, उनके जीवन के कुछ खास पहलुओं पर नजर डालते हैं:

  • नाम: किशोर कुणाल (आचार्य किशोर कुणाल के नाम से प्रसिद्ध)
  • जन्म/मृत्यु: 10 अगस्त 1950, मुजफ्फरपुर (बिहार) / 29 दिसंबर 2024, पटना
  • परिवार: भूमिहार समुदाय से थे। शुरुआती शिक्षा मुजफ्फरपुर के बरुराज में हुई।
  • शिक्षा: इतिहास और संस्कृत में पटना विश्वविद्यालय से स्नातक (1970) और एमए (1983)।
  • पद: आईपीएस अधिकारी (1972, गुजरात कैडर), अयोध्या में विशेष कार्याधिकारी (OSD), महावीर मंदिर ट्रस्ट के सचिव, बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष।
  • रचनाएँ: 'अयोध्या रिविजिटेड' (2016), 'दलित-देवो भव', 'मुंडेश्वरी मंदिर' (अध्ययन)।
  • संस्थान: महावीर कैंसर संस्थान और शोध केंद्र (1998 से), ज्ञान निकेतन (पटना)।
  • परिवार: पुत्र सयान कुणाल, बहू शांभवी चौधरी (सांसद, समस्तीपुर)।
  • सार्वजनिक जीवन: बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में मंदिरों का प्रबंधन और सुधार किया।
  • विवाद: अयोध्या के दस्तावेजों की व्याख्या और शिलालेखों की प्रामाणिकता पर मतभेद, 'विराट रामायण मंदिर' के नामकरण पर विवाद (अंगकोरवाट के संदर्भ में)।
  • सम्मान: भगवान महावीर पुरस्कार (2008), पद्मश्री (मरणोपरांत, 2025)।

एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व

आचार्य किशोर कुणाल को बिहार के धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में एक ऐसे प्रशासक और विद्वान के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने मंदिर प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवा और धर्मार्थ संस्थानों को आधुनिक कार्यशैली और पारदर्शिता से जोड़ा। उन्होंने इन क्षेत्रों में एक ऐसा मॉडल स्थापित किया जो लोगों के लिए बहुत मददगार साबित हुआ। अयोध्या विवाद में उनकी भूमिका और 'अयोध्या रिविजिटेड' जैसी किताब ने उन्हें धार्मिक मामलों का एक गंभीर और कभी-कभी विवादास्पद विद्वान बना दिया।

प्रारंभिक जीवन

किशोर कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव में हुआ था। वे एक भूमिहार परिवार से थे और उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में हुई। बचपन से ही उन्हें इतिहास और संस्कृत में बहुत रुचि थी। इसी रुचि ने उन्हें आगे चलकर पटना विश्वविद्यालय में इतिहास और संस्कृत की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। इस पढ़ाई ने उनकी सोच को मजबूत किया और उन्हें शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने में मदद की।

शिक्षा

1970 में स्नातक और 1983 में परास्नातक की पढ़ाई के दौरान, उन्हें आर.एस. शर्मा और डी.एन. झा जैसे महान इतिहासकारों से सीखने का अवसर मिला। इन इतिहासकारों ने उन्हें ऐतिहासिक स्रोतों का विश्लेषण करने और आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने में मदद की। उनकी यह शिक्षा बाद में शिलालेखों, संस्कृत ग्रंथों और औपनिवेशिक सर्वेक्षणों को समझने और उनकी व्याख्या करने में बहुत उपयोगी साबित हुई।

कैरियर की शुरुआत

1972 में आईपीएस अधिकारी के रूप में गुजरात कैडर में शामिल होने के बाद, उनकी पहली नियुक्ति आनंद में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के रूप में हुई। 1978 तक वे अहमदाबाद के डीसीपी रहे। 1983 में परास्नातक की डिग्री पूरी करने के बाद, वे पटना के एसएसपी बने। इसी दौरान उन्होंने महावीर मंदिर के पुनरुद्धार और उसे एक नया रूप देने का काम शुरू किया।

उपलब्धियां

महावीर मंदिर ट्रस्ट के सचिव के रूप में, उन्होंने 1998 में महावीर कैंसर संस्थान एवं शोध केंद्र (एमसीएसआरसी) की स्थापना की। यह संस्थान बिहार और झारखंड में कैंसर से पीड़ित लोगों के लिए एक बड़ी उम्मीद बन गया। इन दोनों राज्यों में लगभग 2.5 लाख लोग कैंसर से पीड़ित हैं और हर साल 80,000 नए मामले सामने आते हैं। एमसीएसआरसी एक ऐसा केंद्र है जो कैंसर के मरीजों को बेहतर इलाज और देखभाल प्रदान करता है।
ट्रस्ट ने धीरे-धीरे 9 अस्पतालों और स्वास्थ्य इकाइयों का संचालन शुरू किया, जिनमें महावीर कैंसर संस्थान, महावीर आरोग्य संस्थान, महावीर वात्सल्य अस्पताल, महावीर नेत्रालय, वरिष्ठ नागरिक अस्पताल और हॉस्पिस शामिल हैं। इस तरह, उन्होंने स्वास्थ्य सेवा का एक अनूठा नेटवर्क बनाया।
'राम रसोई' के माध्यम से अयोध्या में प्रतिदिन लगभग 10,000 श्रद्धालुओं को भोजन उपलब्ध कराने का संचालन बिहार की संस्थाओं की धार्मिक सेवा क्षमता का एक शानदार उदाहरण है।

महत्वपूर्ण मोड़

  • 1990 में, उन्हें अयोध्या विवाद के समाधान के लिए केंद्र सरकार के 'अयोध्या सेल' में ओएसडी (अयोध्या) के रूप में नियुक्त किया गया। इस भूमिका में, उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) के बीच सबूतों के आदान-प्रदान, विशेषज्ञ समितियों और संस्थागत परीक्षणों (ICHR/ASI/Archives) जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में भाग लिया। इससे पता चलता है कि वे हर काम को कितनी सावधानी और समझदारी से करते थे।
  • 1993 में, उन्होंने बिहार के मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति की पहल की। इसकी शुरुआत 13 जून 1993 को महावीर मंदिर से हुई। इस कदम ने समाज सुधार और धार्मिक संस्थानों में सभी को समान अवसर देने की बहस को एक नई दिशा दी।
  • 'विराट रामायण मंदिर' परियोजना (पूर्वी चंपारण) उनकी एक और महत्वाकांक्षी परियोजना थी। वे अंगकोरवाट से भी विशाल मंदिर-समूह बनाना चाहते थे। हालांकि, कंबोडिया से नामकरण पर आपत्ति के बाद, उन्होंने 'विराट रामायण' नाम अपनाया। 13 नवंबर 2013 को इस मंदिर के मॉडल का अनावरण किया गया।

विवाद

  • 'अयोध्या रिविजिटेड' में, उन्होंने बाबरी मस्जिद के शिलालेखों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए और तर्क दिया कि ढांचे में बदलाव बाबर के बजाय औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था। उनके ये निष्कर्ष मुख्यधारा के इतिहासकारों से अलग थे, जिसके कारण विशेषज्ञों के बीच बहस और मतभेद हुए।
  • 'विराट रामायण मंदिर' का प्रारंभिक नाम 'विराट अंगकोरवाट मंदिर' रखने पर कंबोडिया ने आपत्ति जताई, जिसके बाद भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद नाम बदल दिया गया। यह घटना धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सांस्कृतिक जिम्मेदारी का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
  • बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक/अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने अतिक्रमण हटाने, संपत्ति प्रबंधन और कुछ मठ-मंदिरों के प्रशासनिक सुधारों पर काम किया। इस दौरान, उच्च न्यायालय ने उनके कार्यों की सराहना की (उदाहरण के लिए, 11 अप्रैल 2007 का संदर्भ)।

कार्यशैली

आचार्य किशोर कुणाल की कार्यशैली प्रशासनिक सख्ती, दानशीलता और शास्त्रीय ज्ञान के संतुलित मिश्रण पर आधारित थी। उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ जन स्वास्थ्य और शिक्षा को संस्थागत रूप देकर दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित किया। दलित पुजारियों की नियुक्ति जैसे फैसलों से पता चलता है कि वे परंपराओं का सम्मान करने के साथ-साथ एक सुधारवादी धार्मिक प्रशासक भी थे।

विरासत

बिहार और झारखंड क्षेत्र में कैंसर के इलाज को सुलभ बनाना, ट्रस्ट प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना, और धार्मिक दान को आधुनिक प्रशासनिक तरीकों से जोड़ना उनकी स्थायी विरासत के मुख्य स्तंभ हैं। अयोध्या पर उनकी किताब और 'विराट रामायण' जैसी परियोजनाएं आने वाले दशकों में भी ऐतिहासिक चर्चा और सांस्कृतिक विकास को प्रभावित करती रहेंगी।

कालानुक्रमिक घटनाक्रम

  • 10 अगस्त 1950: मुजफ्फरपुर (बिहार) के बरुराज में जन्म
  • 1970: पटना विश्वविद्यालय से इतिहास/संस्कृत में स्नातक
  • 1972: आईपीएस (गुजरात कैडर), पहली पोस्टिंग: आनंद के एसपी
  • 1978: अहमदाबाद के डीसीपी बने
  • 30 अक्तूबर 1983: पटना महावीर मंदिर का नवीनीकरण कार्य आरम्भ
  • 4 मार्च 1985: नवीनीकृत महावीर मंदिर का उद्घाटन
  • 1990–91: अयोध्या विवाद के लिए ओएसडी (केंद्र सरकार का ‘अयोध्या सेल’)
  • 13 जून 1993: बिहार में प्रथम दलित पुजारी की नियुक्ति (महावीर मंदिर से पहल)
  • 1998: महावीर कैंसर संस्थान एवं शोध केंद्र (MCSRC), पटना—स्थापना
  • 2001: स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (IPS)
  • 11 अप्रैल 2007: पटना हाईकोर्ट के आदेश में उनके ट्रस्ट-प्रबंधन की सराहना
  • 13 नवम्बर 2013: ‘विराट रामायण मंदिर’ मॉडल का अनावरण (नामकरण विवाद के बाद)
  • 2016: ‘अयोध्या रिविजिटेड’ का प्रकाशन (प्रभात प्रकाशन)
  • 20 जून 2023: ‘विराट रामायण मंदिर’ निर्माण-कार्य आरम्भ का ऐलान (स्थानीय ब्रीफिंग)
  • 29 दिसम्बर 2024: हृदयाघात से निधन, अंतिम संस्कार कोनहारा घाट पर

अनमोल वचन

“We will build a bigger temple in Bihar’s East Champaran district than the 12th-century Angkor Wat temple in Cambodia.” — आचार्य किशोर कुणाल (विराट रामायण परियोजना पर) 
“This book [Ayodhya Revisited] would be a great asset to the nation at large, helpful in defusing tension between the two communities.” — न्यायमूर्ति जी.बी. पतनायक, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, भारत, भूमिका से 
“Mr. Kunal has held the inscriptions on the disputed structure to be fake and has ably proved how the conclusions drawn by historians are wrong.” — भूमिका-संदर्भ, Ayodhya Revisited पर 
“वर्ष 2025 के सावन तक मंदिर में विश्व के सबसे बड़े शिवलिंग की स्थापना…” — (स्थानीय ब्रीफिंग का सार; प्रत्यक्ष उद्धरण हेतु स्रोत-पुष्टि अपेक्षित) 
“Known as champions of the cause of charity work through religious bodies.” — आकाशवाणी समाचार, शोक-संदेश 
 “A key mediator in the Ayodhya talks who wore many hats.” — इंडियन एक्सप्रेस, शोक-लेख 
“Like Saint Ravidas, Acharya Kunal worked to eradicate caste discrimination in the management of Hindu temples in Bihar.” — टाइम्स ऑफ इंडिया, अंतिम संस्कार कवरेज 
“He the most ancient nature of Mundeshwari Mandir… and recovered Trust properties worth crores from criminals.” — महावीर मंदिर ट्रस्ट प्रोफ़ाइल

आँकड़े

ट्रस्ट के अंतर्गत स्वास्थ्य इकाइयाँ: 9 (कैंसर, नेत्र, हृदय, वरिष्ठ नागरिक, हॉस्पिस आदि)
एमसीएसआरसी की स्थापना: 1998; स्थान: फुलवारीशरीफ, पटना
बिहार–झारखंड में कैंसर: लगभग 2.5 लाख मामले, लगभग 80,000 नए रोगी प्रति वर्ष (अनुमानित)
राम रसोई (अयोध्या): लगभग 10,000 श्रद्धालु प्रति दिन, दो बार भोजन
प्रकाशित पुस्तकें: लगभग 18 ('अयोध्या रिविजिटेड', 'दलित-देवो भव', 'मुंडेश्वरी' शोध-कृति आदि)
सामाजिक पहल: 18 वर्ष से कम आयु के कैंसर पीड़ित बच्चों का निःशुल्क उपचार (महावीर मंदिर की पहल)

विचारणीय बातें

  • क्या धार्मिक ट्रस्ट-प्रबंधन का 'दान-सेवा + संस्थागत प्रशासन' मॉडल अन्य राज्यों में भी स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने का एक अच्छा तरीका हो सकता है?
  • 'अयोध्या रिविजिटेड' में शिलालेखों/इतिहास-लेखन से क्या अकादमिक सहमति की दिशा में नए स्रोत-आधारित संवाद को बढ़ावा मिल सकता है?
  • दलित पुजारियों की नियुक्ति क्या धर्म-संस्थानों में समावेशन का एक अच्छा उदाहरण है?
  • 'विराट रामायण' जैसी बड़ी परियोजनाओं से स्थानीय अर्थव्यवस्था और तीर्थ-ढांचे पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

आचार्य किशोर कुणाल एक असाधारण व्यक्ति थे जिन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ किया। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता रहेगा।

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