एक सशक्त शुरुआत:
पटना के एक निजी अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ लगी है। इनमें से कई लोगों के हाथों में आयुष्मान कार्ड हैं। कुछ लोग अस्पताल में दाख़िल हो चुके हैं, जबकि कुछ शिकायत कर रहे हैं कि कार्ड होने के बाद भी उनसे पैसे मांगे जा रहे हैं। यह नज़ारा दिखाता है कि देश के सबसे बड़े सार्वजनिक बीमा कार्यक्रम का असर व्यापक तो है, लेकिन एक समान नहीं है।
केंद्र सरकार का कहना है कि 29,000 से ज़्यादा सूचीबद्ध अस्पतालों में 1,949 प्रक्रियाओं के लिए नकद-रहित इलाज उपलब्ध है और अधिकृत उपचार का कुल मूल्य ₹1 लाख करोड़ को पार कर चुका है। लेकिन शिकायतों में सबसे ज़्यादा मामले अस्पतालों द्वारा पैसे मांगने और नकद-रहित इलाज से इनकार करने के हैं।
पृष्ठभूमि
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) की शुरुआत 2018 में हुई थी। इसका मकसद देश की सबसे गरीब 40% आबादी यानी लगभग 12.34 करोड़ परिवारों को प्रति वर्ष ₹5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा कवर देना है, ताकि वे द्वितीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नकद-रहित तरीके से उठा सकें।
इस योजना का प्रबंधन राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) करता है। यह प्राधिकरण रियल-टाइम डैशबोर्ड, प्री-ऑथराइजेशन, पोर्टेबिलिटी और एंटी-फ्रॉड इकाइयों के ज़रिए निगरानी और धोखाधड़ी रोकने के लिए संस्थागत व्यवस्था करता है।
आज की स्थिति:
30 जून 2024 तक 34.7 करोड़ से ज़्यादा आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके हैं, 7.37 करोड़ लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की अनुमति मिली है और 29,000 से ज़्यादा अस्पताल इस योजना में शामिल हैं। ये आंकड़े इस कार्यक्रम के विशाल पैमाने और विस्तार को दर्शाते हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखांकन अनुमानों के मुताबिक, 2013-14 से 2021-22 के बीच कुल स्वास्थ्य खर्च में लोगों की जेब से होने वाले खर्च (Out-of-Pocket Expenditure - OOPE) का हिस्सा 62.6% से घटकर 39.4% हो गया है। इसमें सामाजिक सुरक्षा और सरकारी खर्च में बढ़ोतरी का अहम योगदान रहा है।
बिहार में स्थिति:
बिहार में 30 जून 2024 तक 2.95 करोड़ (295.26 लाख) आयुष्मान कार्ड बनाए गए हैं, जो राज्य की पात्र आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। हालांकि, राज्य सरकार के पोर्टल पर सिर्फ 1.21 करोड़ परिवारों को ही पात्र बताया गया है।
पटना समेत कई ज़िलों में निजी और सार्वजनिक अस्पताल इस योजना में शामिल हैं, जैसे कि रूबन मेमोरियल और जीवक हार्ट हॉस्पिटल। लेकिन शिकायतें बताती हैं कि नकद-रहित इलाज में कभी-कभी गैर-ज़रूरी भुगतान या प्रक्रिया संबंधी दिक्कतें आती हैं।
कार्ड, नकद और दावे
हरियाणा में बकाया भुगतान को लेकर विवाद के चलते कुछ निजी अस्पतालों ने कुछ समय के लिए नकद-रहित इलाज बंद कर दिया था। जींद के एक मरीज़, शमशेर सिंह ने कहा, सरकार और अस्पताल अपना मसला सुलझाएं, मरीजों को परेशान न करें। यह घटना दिखाती है कि मरीज़ किस तरह व्यवस्था पर निर्भर हैं और उन्हें क्या जोखिम हो सकते हैं।
संसद में सरकार ने यह साफ किया है कि इस योजना में शामिल अस्पताल पात्र लोगों को इलाज से मना नहीं कर सकते। अगर कोई अस्पताल ऐसा करता है, तो उसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराने के लिए एक बहु-स्तरीय प्रणाली मौजूद है। इसमें अस्पतालों पर जुर्माना लगाने, उन्हें निलंबित करने, योजना से बाहर करने और यहां तक कि उनके ख़िलाफ़ FIR दर्ज कराने जैसे प्रावधान भी हैं।
CAG, शिकायतें और दंड
CAG ने 2023 में इस योजना के कामकाज का ऑडिट किया। ऑडिट में पाया गया कि लाभार्थी डेटाबेस में कई गंभीर गलतियां हैं, जैसे डुप्लीकेट आईडी, गलत जन्मतिथि और एक ही मोबाइल नंबर से लाखों लोगों का पंजीकरण। इसके अलावा, कई राज्यों में अपात्र परिवारों द्वारा इस योजना का लाभ उठाने के मामले भी सामने आए।
शिकायतों का विश्लेषण करने पर पता चला कि सबसे ज़्यादा शिकायतें अस्पतालों द्वारा पैसे मांगने की थीं। 2018-21 के बीच योजना से बाहर किए गए 121 अस्पतालों में से 75 पर अवैध वसूली या धोखाधड़ी के आरोप लगे थे। इसके बाद, NHA और राज्य सरकारों ने ऐसे अस्पतालों पर जुर्माना लगाने और उन्हें योजना से बाहर करने जैसी कार्रवाइयां कीं।
भुगतान, मूल्य निर्धारण और निजी भागीदारी
कई राज्यों में निजी अस्पताल भुगतान में देरी, पैकेज की दरों और नकदी के प्रवाह को लेकर असंतुष्ट हैं। चंडीगढ़-हरियाणा क्षेत्र में ₹600 करोड़ बकाया होने जैसे विवादों के कारण नकद-रहित सेवाएं बाधित हो जाती हैं, जिससे मरीजों को परेशानी होती है।
नीति के स्तर पर, पैकेज की दरों को समय-समय पर अपडेट करना, दावों का समय पर निपटान करना और एक पारदर्शी ऑडिट और धोखाधड़ी-रोधी ढांचा बनाना निजी भागीदारी को टिकाऊ बनाने के लिए ज़रूरी है। इसके लिए, अस्पतालों को योजना में शामिल करने और बाहर करने के नियमों में बदलाव किया गया है और जुर्माने के प्रावधान लागू किए गए हैं।
राज्य मॉडल: एकीकरण बनाम विस्तार
- राजस्थान ने मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना को आयुष्मान भारत के साथ मिलाकर कवर को ₹25 लाख तक बढ़ा दिया है। यह राज्य सरकार द्वारा समर्थित सुपर-कवर का एक अच्छा उदाहरण है।
- आंध्र प्रदेश ने दिसंबर 2023 में Dr YSR आरोग्यश्री योजना के तहत कवर को बढ़ाकर ₹25 लाख कर दिया, जबकि केरल ने KASP योजना के ज़रिए PM-JAY के साथ राज्य की योजनाओं को मिलाकर ₹5 लाख का एकीकृत ढांचा बनाया। तमिलनाडु में PMJAY-CMCHIS एकीकृत मॉडल चल रहा है।
बिहार बनाम अन्य राज्य
- बिहार में आयुष्मान कार्ड बनाने का स्तर तो ऊंचा है, लेकिन इलाज की गुणवत्ता और अस्पतालों के व्यवहार में असमानताएं बनी हुई हैं। इसी तरह, तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में इस योजना का उपयोग कम होने के कारणों का पता लगाने के लिए शोध कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
- राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने जहां कवर की राशि बढ़ाकर लोगों को ज़्यादा वित्तीय सुरक्षा दी है, वहीं बिहार जैसे बड़े और गरीब राज्यों में मानकीकरण, पैकेज-रेट और क्लेम के निपटान की प्रक्रिया का पालन करना भी उतना ही ज़रूरी है, ताकि इस योजना का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके।
खर्च कम हुआ, लेकिन पूरी सुरक्षा नहीं
NHA के अनुमान के मुताबिक, सरकारी स्वास्थ्य खर्च का हिस्सा बढ़ा है और लोगों की जेब से होने वाला खर्च 39.4% तक घट गया है। यह सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक वित्तपोषण में सुधार का संकेत है। हालांकि, अस्पताल के स्तर पर नकद-रहित वसूली में देरी या इनकार करने से इस लाभ को कम किया जा सकता है।
धोखाधड़ी रोकने के लिए चलाए गए अभियान में 1,100 से ज़्यादा अस्पतालों को योजना से बाहर कर दिया गया और ₹122 करोड़ से ज़्यादा का जुर्माना लगाया गया। इससे पता चलता है कि निगरानी सख्त हुई है, लेकिन मरीज़ों और अस्पतालों के बीच भरोसा और अनुशासन बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास करते रहने होंगे।
आगे का रास्ता
इसका समाधान समय पर भुगतान करने, पैकेज की दरों को वैज्ञानिक तरीके से अपडेट करने, ज़िला स्तर पर शिकायतों के निवारण के लिए एक उत्तरदायी प्रणाली बनाने और सेवा प्रदाताओं पर पारदर्शी जुर्माना और प्रोत्साहन लगाने में है। इन उपायों को राज्यों की ज़रूरतों के हिसाब से अनुकूलित करना होगा।
बिहार जैसे राज्यों में ज़िला और ब्लॉक स्तर पर सूचीबद्ध निजी और सरकारी अस्पतालों के नेटवर्क का सक्रिय ऑडिट करने, मरीज़ों को परामर्श देने और कार्ड के उपयोग के बारे में शिक्षा देने के साथ-साथ नकद-रहित के सिद्धांत को स्थायी रूप से लागू करने से इस योजना का असर और गहरा हो सकता है।
विभिन्न पक्षों के तर्क, तथ्य-आधारित मूल्यांकन
- सरकार का कहना है कि यह योजना पोर्टेबल है, इसमें नकद-रहित इलाज मिलता है और यह बड़े पैमाने पर असरदार है। कार्ड, अस्पताल में भर्ती होने और खर्च के आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं, लेकिन गुणवत्ता की निगरानी और शिकायतों का निवारण करने के लिए हमेशा तैयार रहना ज़रूरी है।
- अस्पताल लंबे समय से दरों और भुगतान में देरी को लेकर चिंता जताते रहे हैं। जब भुगतान रुक जाता है, तो सेवाएं बाधित हो जाती हैं। इसलिए समय पर भुगतान और धोखाधड़ी के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति को साथ लेकर ही संतुलन बनाया जा सकता है।
- नागरिक-कार्यकर्ता CAG की रिपोर्ट के आधार पर डेटा को सही करने, अपात्र लोगों को रोकने और पारदर्शिता बढ़ाने की मांग करते हैं, जो इस योजना के उपयोग, भरोसे और वित्तीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी है।
निष्कर्ष
एक तरफ़ रिकॉर्ड स्तर पर कवरेज, घटता हुआ OOPE और बड़ी संख्या में अधिकृत उपचार हैं, तो दूसरी तरफ़ CAG की अनियमितताएं, अस्पतालों द्वारा पैसे की वसूली/इलाज से इनकार और भुगतान को लेकर विवाद हैं। ये बातें बताती हैं कि यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज का वादा सिर्फ कार्ड गिनने से नहीं, बल्कि सेवा की गुणवत्ता और उसे लागू करने से पूरा होगा।
पाठकों के लिए सवाल -
क्या ज़मीन पर नकद-रहित, समय पर और सम्मानजनक इलाज की गारंटी है? अगर नहीं, तो जवाबदेही किससे और कैसे तय होगी - हॉस्पिटल से, सरकार से या दोनों से मिलकर?
डेटा:
- 34.7 करोड़+ आयुष्मान कार्ड; 7.37 करोड़ अधिकृत अस्पताल में भर्तियाँ; ₹1 लाख करोड़+ उपचार का मूल्य; 29,000+ सूचीबद्ध अस्पताल; 1,949 प्रक्रियाएँ।
- बिहार: 2.95 करोड़ कार्ड; राज्य पोर्टल पर 1.21 करोड़ परिवार पात्र बताए गए।
- OOPE का हिस्सा 2013-14 से 2021-22 में 62.6% से 39.4% तक गिरा; सरकारी स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा बढ़ा।
- धोखाधड़ी रोकने के लिए की गई कार्रवाइयाँ: 1,100+ अस्पताल योजना से बाहर किए गए; ₹122 करोड़+ का जुर्माना; शिकायतों में अस्पताल द्वारा पैसे माँगना प्रमुख।
- राज्य के उदाहरण: राजस्थान/आंध्र में कवर ₹25 लाख तक; केरल KASP और तमिलनाडु PMJAY–CMCHIS एकीकृत मॉडल।
विचार:
- क्या बिहार में कार्ड से इलाज वास्तव में नकद-रहित और बिना देरी के मिल रहा है, या अस्पताल के स्तर पर वसूली और क्लेम को लेकर विवाद लाभार्थियों को बीच में ही छोड़ देते हैं?
- OOPE में गिरावट के बावजूद, कौन-से जिलों/प्रक्रियाओं में जेब से खर्च बना हुआ है, और उसे घटाने के लिए पैकेज-रेट/भुगतान-चक्र में क्या सुधार ज़रूरी हैं?
- CAG द्वारा उजागर डेटा में गड़बड़ियों के बाद, लाभार्थी मान्यता और धोखाधड़ी पर नियंत्रण के लिए राज्यों को कौन-सी कड़ी निगरानी और पारदर्शिता अपनानी चाहिए?
- क्या ऊँचे कवर (₹25 लाख) का मॉडल हर राज्य के लिए वित्तीय रूप से टिकाऊ है, या बेहतर कार्यान्वयन, क्लेम का प्रबंधन और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश ज़्यादा असरदार होगा?
