तेलंगाना सरकार बठुकम्मा 2025 को एक बड़ा, दुनिया भर में पसंद किया जाने वाला त्योहार बनाने की सोच रही है। यह नौ दिन का फूलों का त्योहार इस साल 21 से 30 सितंबर के बीच होगा, और इसकी शुरुआत वारंगल से होगी। सरकारी अधिकारी खूब तैयारी कर रहे हैं, खासकर पर्यटकों को आकर्षित करने, अलग-अलग देशों के लोगों के बीच रिश्ते सुधारने, साफ-सफाई का ध्यान रखने और सुरक्षा बनाए रखने पर ध्यान दिया जा रहा है।
यह त्योहार क्यों खास है?
बठुकम्मा तेलंगाना का बहुत ही खास त्योहार है। इसमें औरतें मिलकर नाचती-गाती हैं, फूलों से पूजा करती हैं और प्रकृति को धन्यवाद देती हैं। इस बार सरकार इसे दुनिया भर में फेमस करना चाहती है। इसके लिए विदेशों में प्रचार किया जाएगा, टीवी और इंटरनेट पर दिखाया जाएगा, घूमने के लिए पैकेज बनाए जाएंगे और जो लोग दूसरे देशों में रहते हैं, उन्हें भी शामिल किया जाएगा।
इस योजना से न सिर्फ तेलंगाना की संस्कृति को दुनिया जानेगी, बल्कि राज्य का नाम भी रोशन होगा। यहां के बने हुए सामान और फूलों से होने वाले कारोबार को भी बढ़ावा मिलेगा। सारे कार्यक्रम वारंगल में होंगे, जहां पुराने किले और इमारतों के बीच बठुकम्मा की सजावट और नाच-गाने के कार्यक्रम होंगे।
कब और कहां होगा यह त्योहार?
यह त्योहार 21 से 30 सितंबर 2025 तक मनाया जाएगा। हर साल की तरह, पहले दिन से आठवें दिन तक औरतें अपने इलाके में, जैसे कि तालाबों, मंदिरों और चौराहों पर फूलों से बठुकम्मा बनाएंगी और गाने गाकर नाचेंगी। आखिरी दिन, जिसे 'सद्दुला बठुकम्मा' कहते हैं, सब मिलकर बठुकम्मा को पानी में विसर्जित करेंगे और कार्यक्रम खत्म हो जाएगा।
वारंगल को इसलिए चुना गया है क्योंकि यहां काकतीय राजाओं के समय की चीजें, भद्रकाली झील और पुराने स्मारक हैं। इनके सामने कार्यक्रम करने से त्योहार और भी अच्छा लगेगा। इसके अलावा, हैदराबाद, करीमनगर, सिद्दिपेट, सरूरनगर और मुलुगु जैसे शहरों में भी ऐसे ही कार्यक्रम होंगे, ताकि सब लोग इसमें शामिल हो सकें।
बठुकम्मा की कहानी
बठुकम्मा तेलंगाना की औरतों का खास त्योहार है। इसमें औरतें अलग-अलग तरह के फूलों से एक के ऊपर एक परत बनाती हैं, जैसे टंगेडु, गन्नेदा, बंथि और गुलदाउदी। फिर वे गाने गाकर देवी की पूजा करती हैं। यह त्योहार बारिश के मौसम के खत्म होने और ठंड के मौसम के शुरू होने पर मनाया जाता है।
इतिहासकारों का कहना है कि काकतीय राजाओं के समय से ही यहां फूलों की पूजा करने और पानी को बचाने की परंपरा रही है। वारंगल में तालाब, बावड़ी और मंदिर इसी बात का सबूत हैं। इसलिए सरकार ने वारंगल को मुख्य जगह बनाकर संस्कृति और पुराने चीजों को देखने के लिए पर्यटन को बढ़ावा देने का फैसला किया है।
क्या-क्या इंतजाम किए जा रहे हैं?
सरकार लोगों की भीड़ को संभालने, ट्रैफिक को ठीक करने और लोगों को सुविधाएं देने के लिए अलग-अलग विभागों के साथ मिलकर काम कर रही है। तालाबों और मैदानों में स्टेज बनाए जा रहे हैं, लाइट लगाई जा रही है, पीने के पानी का इंतजाम किया जा रहा है, फर्स्ट एड की सुविधा दी जा रही है और टॉयलेट बनाए जा रहे हैं। शहरों में पार्किंग की जगह बनाई जा रही है, दूसरे रास्तों का इंतजाम किया जा रहा है और बसें ज्यादा चलाई जा रही हैं।
सुरक्षा के लिए पुलिस, होमगार्ड और स्वयंसेवक मिलकर काम करेंगे। भीड़ वाली जगहों पर ड्रोन कैमरे से नजर रखी जाएगी, कंट्रोल रूम बनाए जाएंगे और खोए हुए लोगों को ढूंढने के लिए सेंटर बनाए जाएंगे। औरतों और बूढ़े लोगों के लिए अलग से हेल्प डेस्क और मोबाइल मेडिकल यूनिट बनाई जाएंगी।
पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार फूलों के इस्तेमाल और विसर्जन को इको-फ्रेंडली बनाने पर जोर दे रही है। शहरों को साफ रखने, कचरे को अलग करने, खाद बनाने और प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने के लिए कहा गया है। तालाबों में रहने वाले जीव-जंतुओं को बचाने के लिए दूसरी जगहों पर विसर्जन करने और कचरा इकट्ठा करने की व्यवस्था की जा रही है।
कुछ खास बातें और आंकड़े
- त्योहार की शुरुआत वारंगल से होगी और यह नौ दिनों तक चलेगा।
- इसमें नाच-गाना, पारंपरिक कपड़े और संगीत होगा।
- टीवी और इंटरनेट पर लाइव दिखाया जाएगा और सोशल मीडिया पर प्रचार किया जाएगा।
- पुराने जगहों को देखने के लिए खास इंतजाम किए जाएंगे।
- फूल उगाने वाले किसानों, हस्तशिल्पियों और छोटे व्यापारियों के लिए बाजार लगाए जाएंगे।
- कचरा जल्दी इकट्ठा किया जाएगा, खाद बनाई जाएगी और प्लास्टिक का इस्तेमाल कम किया जाएगा।
- भीड़ को संभालने, औरतों की सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन और मेडिकल मदद की व्यवस्था होगी।
संस्कृति और पर्यटन के जानकारों का मानना है कि इस तरह के आयोजन से देश और विदेश के पर्यटक आएंगे। होटल, खाने-पीने की दुकानें और ट्रांसपोर्ट की मांग बढ़ेगी।
आर्थिक और सामाजिक असर
इस त्योहार की तैयारी से रोजगार, छोटे व्यापार और औरतों के ग्रुप को फायदा होगा। फूलों की मांग बढ़ने से किसानों और मंडियों का काम बढ़ेगा। साड़ी, गहने, हस्तशिल्प और खाने-पीने की चीजों की बिक्री भी बढ़ेगी।
बठुकम्मा से लोगों में एकता बढ़ती है। औरतें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और शहर और गांव के बीच का फर्क कम होता है। वारंगल जैसे शहरों में यह त्योहार पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच संस्कृति का आदान-प्रदान करने का मौका देता है।
सरकार इस मौके का इस्तेमाल छोटे कारोबारों को दिखाने, लोगों को काम सिखाने और औरतों को रोजगार देने की योजनाओं से जोड़ने के लिए कर सकती है। इससे यह त्योहार सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं रहेगा, बल्कि विकास का जरिया भी बनेगा।
दुनिया भर में पहचान
इस योजना का लक्ष्य है कि यह त्योहार दुनिया भर में जाना जाए। अलग-अलग भाषाओं में जानकारी दी जाएगी, सोशल मीडिया पर हैशटैग इस्तेमाल किए जाएंगे और दूसरे देशों में रहने वाले तेलंगाना के लोगों के साथ मिलकर कार्यक्रम किए जाएंगे। दूसरे देशों के सांस्कृतिक केंद्रों और विश्वविद्यालयों में वर्कशॉप, फोटो प्रदर्शनी और लोक-नृत्य के कार्यक्रम किए जाएंगे।
टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए वारंगल के किले, मंदिर और झीलों को दिखाने के लिए 'कल्चरल ट्रेल्स' बनाए जाएंगे। 360-डिग्री वीडियो, छोटी डॉक्यूमेंट्री और लाइव अपडेट जैसी चीजें दिखाई जाएंगी, ताकि विदेशी लोग भी इसमें शामिल हो सकें।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे त्योहारों से देश का नाम रोशन होता है और निवेश, शिक्षा और पर्यटन के नए मौके मिलते हैं। सरकार, स्थानीय लोग, उद्योग और समुदाय मिलकर काम करके इसे सफल बना सकते हैं।
आगे क्या होगा?
जल्द ही कार्यक्रमों की लिस्ट, जगहों और कलाकारों के बारे में जानकारी दी जाएगी। सरकार लोगों से सुझाव भी मांगेगी, ताकि उनकी राय को भी योजना में शामिल किया जा सके।
सरकार चाहती है कि बठुकम्मा को हर साल मनाया जाए और इसे 'कल्चरल कैलेंडर' का हिस्सा बनाया जाए। इसमें साफ-सफाई, सुरक्षा और विकलांग लोगों के लिए सुविधाएं जैसी चीजों का ध्यान रखा जाएगा। इससे यह त्योहार दूसरे त्योहारों के लिए भी एक अच्छा उदाहरण बन सकता है।
निष्कर्ष
तेलंगाना सरकार बठुकम्मा 2025 को संस्कृति, पर्यटन और पहचान का संगम बनाना चाहती है। 21 से 30 सितंबर के बीच वारंगल में होने वाले कार्यक्रमों में सुरक्षा, साफ-सफाई और डिजिटल पहुंच पर ध्यान दिया जा रहा है। जल्द ही पूरी जानकारी दी जाएगी और स्थानीय लोगों और उद्योग के साथ मिलकर इसे सफल बनाने की तैयारी चल रही है।



