भारत में प्राकृतिक संसाधन, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आज हमारे जीवन, अर्थव्यवस्था और भविष्य की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है। इसके लिए हमें सही नीतियों, आधुनिक तकनीकों और लोगों की भागीदारी के साथ तुरंत काम करना होगा।

भारत में कई समस्याएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, जैसे हवा का प्रदूषण, भूजल का घटता स्तर, प्लास्टिक कचरा और जंगलों पर दबाव। इन समस्याओं को दूर करने के लिए हमें सतत विकास, संरक्षण और अक्षय ऊर्जा जैसी रणनीतियों पर ध्यान देना होगा।

परिचय:

जंगल, पानी, ज़मीन, खनिज और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधन हमारे विकास की नींव हैं। लेकिन, अंधाधुंध इस्तेमाल और प्रदूषण ने इन्हें खतरे में डाल दिया है, जिससे जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। भारत ने 2023 में अपने कुल क्षेत्रफल का 25.17% हिस्सा जंगल और पेड़ों से ढका हुआ बताया है। यह हमारे पर्यावरण, जल संतुलन और कार्बन को जमा करने के लिए बहुत ज़रूरी है। इसके साथ ही, 2021 में वायु प्रदूषण दुनिया में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण था, जो हमें साफ हवा और बेहतर शहरों की ज़रूरत पर ज़ोर देता है।

प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति और महत्व:

भारत में कुल जंगल और पेड़ों से ढका क्षेत्र 8,27,357 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 21.76% जंगल और 3.41% पेड़ शामिल हैं। ये कार्बन को जमा करने, जैव विविधता और जल चक्र के लिए ज़रूरी हैं। भूजल की बात करें तो, 2023 के अनुमान के अनुसार, हर साल 449.08 अरब घन मीटर पानी फिर से भर जाता है, जबकि 241.34 अरब घन मीटर पानी निकाला जाता है। इससे पता चलता है कि हम 59.26% पानी निकाल रहे हैं, इसलिए हमें जल प्रबंधन को बेहतर बनाने की ज़रूरत है। ऊर्जा के क्षेत्र में, भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 31 मार्च 2025 तक 220.10 गीगावॉट तक पहुंच गई है। यह ऊर्जा सुरक्षा और प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

समस्याएं: कारण और असर:

2021 में वायु प्रदूषण से दुनिया भर में 8.1 मिलियन लोगों की मौत हुई, और यह बच्चों में मौत के जोखिम का एक बड़ा कारण रहा। इसका असर हमारे स्वास्थ्य, उत्पादन और खेती पर पड़ता है। भूजल का ज़्यादा इस्तेमाल, यानी कई क्षेत्रों में जितना पानी भरता है उससे ज़्यादा निकाला जाता है, कृषि, पीने के पानी और शहरों की आपूर्ति पर दबाव डालता है। 2023 के राष्ट्रीय आकलन में इसके संकेत साफ दिखाई देते हैं। प्लास्टिक कचरे की बढ़ती मात्रा को देखते हुए, भारत ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध और EPR (Extended Producer Responsibility) सिस्टम लागू किया है। फिर भी, राज्यों और नगर पालिकाओं की रिपोर्ट बताती है कि कचरा प्रबंधन और नियमों का पालन करने में और सुधार की ज़रूरत है।

समाधान: नीतियां, प्रबंधन और संरक्षण:

जंगल के क्षेत्र में वृद्धि और आग से अलर्ट करने जैसी तकनीकों से संरक्षण को बढ़ावा मिला है। लेकिन, हमें जैव विविधता और समुदाय आधारित वन प्रबंधन को भी उतना ही महत्व देना होगा। पानी के लिए, एक्वीफर रिचार्ज (aquifer recharge), पानी की मांग को कम करना और फसल उगाने के तरीकों में सुधार—जैसे जल बजटिंग और माइक्रो-इरिगेशन—पानी निकालने के दबाव को कम करते हैं। यह राष्ट्रीय भूजल आकलन के अनुसार नीतियों से ही संभव है। कचरा प्रबंधन में, EPR, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर बैन और डिजिटल ट्रैकिंग के ज़रिए प्लास्टिक के संग्रह, रीसाइक्लिंग और वैकल्पिक सामग्रियों के इस्तेमाल को तेज़ी से बढ़ाया जा सकता है।

नवाचार और तकनीक:

भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 220.10 गीगावॉट तक पहुंच गई है, और सौर और पवन ऊर्जा में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए स्टोरेज, हाइब्रिड और आरटीसी (Round-The-Clock) परियोजनाओं के साथ ग्रिड की विश्वसनीयता को मज़बूत किया जा रहा है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन 2030 तक 5 MMT हरित हाइड्रोजन उत्पादन और 125 GW अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य लेकर उर्वरक, रिफाइनिंग, स्टील और शिपिंग जैसे उद्योगों से प्रदूषण कम करने का एक राष्ट्रीय खाका प्रस्तुत करता है। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में 2024 में 20,22,873 यूनिट की रिकॉर्ड बिक्री से पता चलता है कि स्वच्छ परिवहन के लिए चार्जिंग, निर्माण और नीतिगत प्रोत्साहन का असर दिख रहा है।

केस स्टडी: भारत और दुनिया:

  • महाराष्ट्र का हिवरे बाजार जल संरक्षण, कंटूर-बंडिंग, चेक-डैम और ग्रामसभा आधारित जल बजटिंग के कारण सूखे से जूझता क्षेत्र होने के बावजूद आज समृद्ध है। यहाँ जल प्रबंधन के नियमों का पालन करने से फसल उगाने के तरीके और लोगों की आजीविका में सुधार हुआ है।
  • कोस्टा रिका ने भुगतान आधारित संरक्षण और समुदाय केंद्रित वनीकरण से जंगलों को फिर से हरा-भरा किया और REDD+ के तहत 2018-19 में 3.28 मिलियन टन उत्सर्जन कटौती पर 16.4 मिलियन डॉलर का लाभ प्राप्त किया। इससे पता चलता है कि प्रकृति आधारित समाधान आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हो सकते हैं।

स्थानीय और सामुदायिक पहल:

EPR पोर्टल पर रजिस्टर निर्माता और प्रोसेसर प्लास्टिक पैकेजिंग के संग्रह और रीसाइक्लिंग को बढ़ा रहे हैं, जिससे नगर पालिकाओं की क्षमता और नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा मिलता है। सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध, स्रोत पर कचरे को अलग करना और सामग्री का दोबारा इस्तेमाल करने जैसी राज्य और शहर स्तर की पहल तभी सफल होती हैं जब निगरानी, प्रवर्तन और नागरिकों की जागरूकता साथ-साथ चले। गांवों और कस्बों में पेड़ लगाना, बारिश के पानी को इकट्ठा करना, तालाबों को फिर से जीवित करना और जल बजटिंग जैसे कदम—हिवरे बाजार की तरह—स्थानीय जल संतुलन और कृषि को बेहतर बनाते हैं।

तकनीक से होने वाले बदलाव:

अक्षय ऊर्जा के बढ़ने के साथ-साथ स्मार्ट ग्रिड, हाइब्रिड/RTC पावर और ऊर्जा भंडारण जैसी प्रणालियाँ आपूर्ति को स्थिर करती हैं और कोयले से होने वाले प्रदूषण को कम करती हैं, जिससे सतत विकास के लक्ष्यों की ओर ठोस प्रगति होती है। हरित हाइड्रोजन के लिए इलेक्ट्रोलाइज़र का निर्माण, हब-आधारित क्लस्टर और मांग पैदा करने के उपाय उद्योगों से प्रदूषण कम करने के लिए नई सप्लाई चेन बना रहे हैं। EV इकोसिस्टम—निर्माण, बैटरी और चार्जिंग—में तेज़ी से निवेश और 2024 में 2 मिलियन से ज़्यादा इकाइयों की बिक्री स्वच्छ गतिशीलता के बाज़ार के अच्छे संकेत हैं।

क्या करें:

  • ऊर्जा: घर की छत पर सोलर पैनल लगवाएं, ऊर्जा बचाने वाले उपकरण इस्तेमाल करें और सार्वजनिक परिवहन या इलेक्ट्रिक वाहन अपनाकर अपने कार्बन फ़ुटप्रिंट को कम करें और अक्षय ऊर्जा की मांग बढ़ाएं।
  • जल: बारिश के पानी को इकट्ठा करें, सूक्ष्म सिंचाई का इस्तेमाल करें और जल बजटिंग जैसे उपायों से एक्वीफर रिचार्ज और पानी की मांग को कम करने में मदद करें।
  • कचरा: कचरे को स्रोत पर ही अलग करें। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें, दोबारा इस्तेमाल करें, रीसायकल करें और EPR चैनलों का उपयोग करके कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाएं।
  • हरित आवरण: स्थानीय स्तर पर पेड़ लगाएं और जैव विविधता कॉरिडोर बनाकर वन क्षेत्र और कार्बन स्टॉक बढ़ाएं।
  • साफ हवा: स्वच्छ ईंधन और कुकिंग का इस्तेमाल करें, स्वच्छ परिवहन का इस्तेमाल करें और धूल और बायोमास जलाने पर नियंत्रण करके हवा से होने वाली बीमारियों के खतरे को कम करें।

निष्कर्ष:

भारत ने वन क्षेत्र में वृद्धि, प्लास्टिक EPR, अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में अच्छी शुरुआत की है। लेकिन, वायु गुणवत्ता, जल संतुलन और कचरा प्रबंधन में लगातार, समन्वित और विज्ञान आधारित प्रयास ही बदलाव ला सकते हैं। सरकार, उद्योग और समुदाय—तीनों की साझेदारी से संरक्षण, सतत विकास और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है, बशर्ते कि डेटा आधारित नीति, नवाचार और स्थानीय भागीदारी साथ-साथ चलें। यह सही समय है जब हर घर, हर संस्था और हर शहर पर्यावरण को प्राथमिकता देने वाले निर्णय लें, प्रदूषण कम करें, अक्षय ऊर्जा अपनाएं और संरक्षण को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाएं।

Raviopedia

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