सूखा और पानी का संकट: बिहार किधर जा रहा है? क्या नीतियां फेल हो गईं और अंधाधुंध पानी का इस्तेमाल हो रहा है?

बिहार समेत पूरे भारत में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। इसकी वजह हैं कमजोर नीतियां, पानी का बेहिसाब इस्तेमाल और पानी बचाने के तरीकों पर ध्यान न देना। हम आपको ज़मीनी हकीकत और एक्सपर्ट्स की राय बताएँगे।

एक ग्राउंड रिपोर्ट

गया जिले के डुमरिया ब्लॉक में मिट्टी फटी हुई है और हैंडपंप सूखे पड़े हैं। ये बिहार की हालत बता रहे हैं। गर्मी जल्दी शुरू हो गई और बारिश कम हुई, जिसकी वजह से अप्रैल में ही पानी का संकट गहरा गया है। किसान राजीव महतो बताते हैं, दस साल पहले इस बोरिंग से 40 फीट पर पानी मिल जाता था। अब 80 फीट पर भी पंप सूखा है। ये सिर्फ बिहार या गया की बात नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के कई गाँव मौसम, गलत नीतियों और पानी के बेपरवाह इस्तेमाल की वजह से परेशान हैं।

 इतिहास और संकट की जड़ें

कभी भारत में पानी खूब हुआ करता था, लेकिन आबादी बढ़ने, शहर बनने और खेती के लिए पानी की मांग बढ़ने से पानी पर दबाव बढ़ गया। आज़ादी के बाद सिंचाई के प्रोजेक्ट्स से हरित क्रांति तो हुई, लेकिन पानी के गलत इस्तेमाल से समस्या और बढ़ गई। बिहार के दक्षिणी हिस्से में पहले जो आहर-पाइन जैसे सिस्टम थे, उन पर ध्यान नहीं दिया गया। बारिश का पानी बचाने में भी ढिलाई बरती गई और लोगों ने भी साथ नहीं दिया, जिससे संकट और गहरा गया।

आज क्या हाल है?

2025 की मॉनसून रिपोर्ट के अनुसार, भारत का लगभग 19% हिस्सा सूखे से जूझ रहा है। बिहार के मुजफ्फरपुर, सारण, किशनगंज जैसे जिलों में तो बहुत ज़्यादा सूखा है। यहाँ बारिश 44 से 60% तक कम हुई है। गया, जहानाबाद, अरवल, बक्सर और नालंदा जैसे जिलों में भूजल का स्तर खतरे के निशान से नीचे चला गया है। कई जगह हैंडपंप पूरी तरह सूख गए हैं, जिससे आम लोग और किसान परेशान हैं।
आईआईटी-पटना के अनुसार, बिहार में हर व्यक्ति के लिए 2001 में 1594 घन मीटर पानी था, जो 2025 में घटकर सिर्फ 1006 घन मीटर रह गया है। अनुमान है कि 2050 तक ये 635 घन मीटर तक आ सकता है, जिसके बाद राज्य में पानी की बहुत कमी हो जाएगी। पानी का ज़्यादा इस्तेमाल होने से सिंचाई ही नहीं, पीने के पानी के लिए भी त्राहिमाम मची है। अगर इसी तरह पानी का इस्तेमाल होता रहा तो आने वाले सालों में बिहार की हालत पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसी हो जाएगी, जहाँ पानी का संकट चरम पर है।

सरकार क्या कर रही है?

सरकार ने जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत 13,100 चेक डैम, 14,927 वर्षा जल संचयन स्ट्रक्चर और 48,652 एकड़ में माइक्रो-इरीगेशन की सुविधा दी है। साथ ही, पानी बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं और लोगों को साथ लाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन, ताकतवर लोग, पैसे की हेराफेरी और लोगों के कम साथ देने से इन नीतियों का असर कम हो रहा है। गाँवों में पानी का प्रबंधन पंचायतें कर रही हैं, लेकिन उनके पास साधन और अधिकार कम होने से दिक्कतें आ रही हैं।

 खतरे और चुनौतियाँ

बिहार हर साल लगभग 29 अरब घन मीटर भूजल निकालता है, जबकि हर साल 31.4 बीसीएम पानी वापस जाता है। वैसे तो राष्ट्रीय स्तर के मुकाबले ये दर कम है, लेकिन कुछ इलाकों में बेतरतीब बोरवेलिंग से भविष्य के लिए खतरा बढ़ गया है। अंधाधुंध सिंचाई, शहर बनने और मानसून के बदलते पैटर्न के कारण पानी को रिचार्ज करने के पुराने तरीके बेकार हो गए हैं। 'आहर-पइन' जैसे लोकल सिस्टम को फिर से शुरू करने की बातें तो हुईं, लेकिन उन्हें ठीक से लागू नहीं किया जा सका।

गाँव-शहर, पानी का प्रदूषण और क्वालिटी

आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन, सीवेज और भारी धातुओं की वजह से बिहार के तीन लाख से ज़्यादा ग्रामीण वार्डों में पीने का पानी दूषित हो गया है। सुरक्षित और लगातार पानी मिलता रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि लोग साथ आएं, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो (जैसे एटमॉस्फेरिक वाटर जनरेशन) और सरकार व जनता दोनों मिलकर काम करें।

लोग क्या कह रहे हैं?

गया के किसान निराश हैं। अमरनाथ पासवान कहते हैं, मेहनत तो करता हूँ, पर भरोसा नहीं है कि इस बार अनाज होगा। सरकार के अधिकारी दावा करते हैं, हमारे जल संरक्षण अभियानों से ग्राउंडवॉटर बढ़ा है और 91% जिले सुरक्षित हैं। जल एक्सपर्ट डॉ. शशि शेखर का कहना है कि अगर 'रूफटॉप हार्वेस्टिंग' और सामुदायिक टैंकों को ठीक नहीं किया गया तो बिहार पानी नहीं बचा पाएगा। वहीं विपक्षी नेता सवाल उठाते हैं, ज़मीनी हकीकत ये है कि ज़्यादातर योजनाएं सिर्फ कागज़ों पर चल रही हैं और फंड के दुरुपयोग की शिकायतें आम हैं।

कहां हो रही है गड़बड़?

बिहार में जल संरक्षण के कई प्लान बने, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों में लोगों को जागरूक करने और लोकल स्ट्रक्चर (जैसे चेक डैम, तालाब, स्टेप वेल) को लागू करने में बिहार पीछे रह गया। दुनिया के देशों की बात करें तो इज़राइल, सिंगापुर जैसे देशों में पानी का सही प्रबंधन और रीसायकल करने की वजह से जल संकट काबू में है, जबकि भारत और बिहार अभी तक ठीक से डेटा भी नहीं जुटा पाए हैं और सिस्टम में पारदर्शिता लाने में भी दिक्कत हो रही है।

सवाल और जिम्मेदारी

सूखा और पानी का संकट सिर्फ पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि ये हमारी नैतिकता और लोकतंत्र पर भी सवाल है। अगर नीति, संसाधन और लोगों की भागीदारी को ठीक से नहीं मिलाया गया तो बिहार जैसे राज्य में पानी खत्म हो जाएगा। क्या हम अब भी अपनी नीतियों, व्यवहार और प्राथमिकताओं को बदलेंगे या आने वाली पीढ़ी को सिर्फ सूखे हैंडपंप और बंजर खेत ही देकर जाएंगे?





Raviopedia

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