बिहार विधानसभा चुनाव घोषणा संभव: अक्टूबर का पहला सप्ताह

बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान जल्द ही हो सकता है। खबर है कि अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनाव आयोग इसकी घोषणा कर सकता है। फिलहाल, आयोग अंदर ही अंदर चुनाव की तैयारियों में जुटा है। सुरक्षा व्यवस्था से लेकर चुनाव के कैलेंडर तक, हर चीज पर बारीकी से काम चल रहा है। जैसे ही तारीखों का एलान होगा, पूरे राज्य में आचार संहिता लग जाएगी। इसके बाद नामांकन से लेकर वोटिंग तक का पूरा शेड्यूल सामने आ जाएगा।

राजनीतिक माहौल

पिछले चुनाव के बाद से बिहार की राजनीति में काफी उथल-पुथल हुई है। कई पार्टियां इधर-उधर हुई हैं, जिससे इस बार का चुनाव और भी दिलचस्प होने वाला है। बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं, और यहां आमतौर पर कई चरणों में वोटिंग होती है। इसमें सुरक्षा, त्योहारों का सीजन और प्रशासनिक व्यवस्था को ध्यान में रखा जाता है। अगर अक्टूबर की शुरुआत में घोषणा होती है, तो वोटिंग की तारीखें त्योहारों (दुर्गा पूजा और दिवाली) और मानसून के जाने के बाद तय की जा सकती हैं।

क्या हो रहा है?

चुनाव आयोग के सूत्रों की मानें तो वोटर लिस्ट, EVM मशीन और सुरक्षा बलों की जरूरत का आंकलन लगभग पूरा हो चुका है। अब बस तारीखों पर आखिरी फैसला होना बाकी है।

  • जो पार्टियां अभी सरकार में हैं, उनका कहना है कि अगर समय पर घोषणा हो जाती है, तो उन्हें प्रचार करने में आसानी होगी। वे अपनी सरकार के काम को लोगों तक पहुंचा पाएंगे।
  • वहीं, विपक्षी पार्टियों का कहना है कि वे पूरी तरह से तैयार हैं। वे रोजगार, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों को उठाकर जनता के बीच जाएंगे।
  • जिला निर्वाचन अधिकारियों ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। वे नामांकन केंद्र, सुरक्षा, संवेदनशील बूथ और कर्मचारियों की ट्रेनिंग की योजना बना रहे हैं।

सरगर्मी तेज

  • राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया पर प्रचार तेज कर दिया है और बूथ स्तर पर मैनेजमेंट का काम भी शुरू हो गया है।
  • चुनाव की तारीखों के एलान की खबर आते ही पार्टियों में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत तेज हो गई है।
  • व्यापारिक संगठनों और शिक्षकों ने चुनाव आयोग से गुजारिश की है कि चुनाव की तारीखें त्योहारों और परीक्षाओं से न टकराएं, ताकि लोगों को परेशानी न हो।
  • वहीं, कुछ सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि आचार संहिता लगते ही सरकारी विज्ञापनों और ट्रांसफर-पोस्टिंग पर रोक लगनी चाहिए, ताकि चुनाव निष्पक्ष हो सके।

क्या होगा असर?

  • अगर अक्टूबर के पहले हफ्ते में घोषणा होती है, तो प्रचार का जोर अक्टूबर के आखिर और नवंबर के बीच में रहने की उम्मीद है। इस दौरान गांवों में खेती का काम चलेगा और शहरों में त्योहारों की रौनक रहेगी, इसलिए रैलियों और सभाओं की रणनीति अलग-अलग इलाकों के हिसाब से बदल सकती है।
  • दलित, पिछड़ा, सवर्ण और मुस्लिम वोट के साथ-साथ युवाओं और महिलाओं की भूमिका भी अहम रहने वाली है। खासकर, महिलाओं की वोटिंग में बढ़ती भागीदारी और उनके लिए चलाई जा रही योजनाओं पर सबकी नजर रहेगी।
  • पार्टियों को जल्द से जल्द सीट बंटवारे पर सहमति बनानी होगी, वरना बागियों का खतरा बढ़ सकता है। छोटे दलों की भी अहम भूमिका रहेगी, खासकर सीमांचल, कोशी और मगध क्षेत्र में।
  • रोजगार, उद्योग, किसान, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे चुनाव में छाए रहेंगे। युवाओं का ध्यान भी इन्हीं मुद्दों पर रहने वाला है।
  • आचार संहिता लगते ही ट्रांसफर, सरकारी घोषणाएं और योजनाओं का उद्घाटन सब बंद हो जाएगा। अगर कई चरणों में वोटिंग होती है, तो सुरक्षा बलों की उपलब्धता और अलग-अलग राज्यों के साथ तालमेल बिठाना जरूरी होगा।

नजरें टिकी हैं

कुल मिलाकर, अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनाव की घोषणा होने से बिहार में चुनावी माहौल गरमा जाएगा। अब सबकी नजरें चुनाव आयोग के एलान, वोटिंग के कार्यक्रम और सुरक्षा व्यवस्था पर टिकी हैं।

Raviopedia

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