प्रशांत किशोर का आरोप: बिहार में बढ़ीं भ्रष्टाचार शिकायतें

जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने हालिया बयान में दावा किया है कि बिहार में मंत्री और अधिकारी करोड़ों रुपये के गबन में शामिल हैं। उनके अनुसार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हैं, लेकिन मंत्रिपरिषद और नौकरशाही में भ्रष्टाचार की शिकायतें बढ़ रही हैं। उन्होंने इन मामलों की स्वतंत्र जांच और पारदर्शिता बढ़ाने की मांग की है। सत्तापक्ष ने आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि सरकार भ्रष्टाचार पर शून्य सहिष्णुता की नीति पर काम कर रही है।

पृष्ठभूमि

बिहार की राजनीति में भ्रष्टाचार का मुद्दा लंबे समय से चुनावी विमर्श का केंद्र रहा है। जन सुराज अभियान के माध्यम से प्रशांत किशोर लगातार सरकारी कार्यप्रणाली, सेवा वितरण और योजनाओं के क्रियान्वयन पर सवाल उठाते रहे हैं। राज्य में विजिलेंस और लोकायुक्त जैसी संस्थाएं सक्रिय बताई जाती हैं, लेकिन विपक्ष और नागरिक समाज समय-समय पर शिकायतों की प्रभावी सुनवाई और दोषियों पर त्वरित कार्रवाई को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में, मंत्रियों और अधिकारियों पर गबन से जुड़े नए आरोप राजनीतिक तापमान बढ़ा सकते हैं।

बयान

जन सुराज/प्रशांत किशोर: दावा किया गया कि विभागीय स्तर पर ठेके, योजनाओं की निविदाओं और भुगतानों में अनियमितताएं बढ़ी हैं, जिनसे सार्वजनिक धन का दुरुपयोग हो रहा है। साथ ही यह भी कहा गया कि मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत छवि ईमानदार है, पर “सिस्टम” में जवाबदेही की कमी दिख रही है।

सरकार/सत्तापक्ष: सरकार से जुड़े हलकों का कहना है कि बिना ठोस साक्ष्य लगाए गए आरोप राजनीतिक हैं। उनके अनुसार, शिकायतें मिलने पर विभागीय जांच, विजिलेंस संदर्भ और ई-टेंडरिंग जैसी प्रक्रियाएं लागू हैं, जिनसे अनियमितताओं पर कड़ाई होती है।

प्रशासनिक पक्ष: अधिकारियों का तर्क है कि वित्तीय लेन-देन अब अधिक डिजिटल और ट्रैक करने योग्य हैं; ऐसे में गबन की आशंका पर त्वरित ऑडिट और जांच संभव है।

विशेषज्ञ दृष्टिकोण: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि “ईमानदार मुख्यमंत्री, मगर भ्रष्ट मंत्री/अधिकारी” वाला विमर्श शासन-व्यवस्था में संरचनात्मक सुधारों की मांग को बल देता है—जैसे पारदर्शी टेंडर, सामाजिक लेखा परीक्षा और समयबद्ध दंडात्मक कार्रवाई।

प्रतिक्रिया

विपक्षी दलों ने आरोपों को आधार बनाकर सरकार से उच्च स्तरीय और समयबद्ध जांच की मांग की है। सत्तारूढ़ गठबंधन ने इसे “आरोप की राजनीति” करार देते हुए कहा कि राज्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए तंत्र मौजूद है। नागरिक समूहों ने आरटीआई आधारित खुलासों, जिलावार शिकायत निपटान डेटा के सार्वजनिक प्रकाशन और सोशल ऑडिट रिपोर्टों की नियमित प्रस्तुति पर जोर दिया है।

विश्लेषण

यह विवाद बिहार की चुनावी राजनीति में सुशासन बनाम सिस्टम सुधार की बहस को तेज कर सकता है। यदि आरोपों पर औपचारिक जांच शुरू होती है, तो यह शासन की जवाबदेही, पारदर्शिता और कैडर-स्तरीय अनुशासन पर सीधे असर डालेगी। जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों पर इसका परोक्ष प्रभाव भी संभव है, क्योंकि ठेके/भुगतान और स्थानीय विकास योजनाएं अक्सर सामाजिक गठबंधनों और जिला-स्तरीय नेतृत्व से जुड़ती हैं। साफ-सुथरी छवि और “डिलीवरी-first” नैरेटिव पर टिकी राजनीति में ऐसे आरोप विपक्ष को मुद्दा देते हैं, जबकि सत्तापक्ष के लिए त्वरित जांच, डेटा-समर्थित स्पष्टीकरण और दिखाई देने वाली कार्रवाई ही राजनीतिक क्षति सीमित करने का उपाय हो सकता है।

निष्कर्ष

मंत्रियों और अधिकारियों पर गबन के आरोपों ने बिहार में भ्रष्टाचार बनाम पारदर्शिता की बहस को फिर उभारा है। आने वाले दिनों में यदि स्वतंत्र जांच, जिलावार डेटा सार्वजनिक करने और जवाबदेही तंत्र को सुदृढ़ करने के ठोस कदम उठते हैं, तो राजनीतिक माहौल और प्रशासनिक विश्वसनीयता—दोनों पर उसका असर दिखेगा।

Raviopedia

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