बीजेपी ने तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ पर तीखा हमला बोलते हुए दावा किया कि कार्यक्रमों में आम जनता की भागीदारी सीमित है और मंच पर अधिकतर वे नेता दिख रहे हैं जो टिकट की चाहत में सक्रिय हैं। पार्टी ने कहा कि यह यात्रा “ग्रासरूट मुद्दों से ज्यादा टिकट वितरण की लॉबींग” का मंच बनती जा रही है। आरजेडी ने आरोपों को खारिज करते हुए भीड़ के उत्साह और मुद्दों की प्रासंगिकता पर जोर दिया, साथ ही इसे बीजेपी की “घबराहट” करार दिया।
पृष्ठभूमि
‘बिहार अधिकार यात्रा’ को आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी, महंगाई, विशेष राज्य का दर्जा और राज्य के हिस्से के संसाधनों की मांग जैसे मुद्दों के केंद्र में रखकर शुरू किया है। आगामी विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि और हालिया राजनीतिक पुनर्संरचनाओं के बीच यह यात्रा विपक्षी खेमे के लिए जनसमर्थन जुटाने का प्रमुख अभियान मानी जा रही है। बिहार की राजनीति में यात्राएं—भीड़, संदेश और संगठन—तीनों का परीक्षण होती हैं, और इसी संदर्भ में बीजेपी ने इसे “ऑप्टिक्स बनाम ऑर्गेनाइजेशन” की कसौटी पर रखने की कोशिश की है।
बयान
बीजेपी का पक्ष: पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि “कार्यक्रमों में दिखाई देने वाली भीड़ वास्तविक जनसमर्थन नहीं, बल्कि टिकट के इच्छुक नेताओं और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा है।” उनके अनुसार, स्थानीय स्तर पर जनसुनवाई और बूथ-कवरेज के संकेत “कम उत्साह” दर्शाते हैं। बीजेपी ने आरोप लगाया कि यात्रा का एजेंडा “विकास” से हटकर “टिकट राजनीति” की ओर मुड़ गया है।
आरजेडी का जवाब: आरजेडी नेताओं ने कहा कि यात्रा का हर पड़ाव बेरोजगार युवाओं, किसानों और महिला मतदाताओं की वास्तविक भागीदारी दिखा रहा है। उन्होंने कहा, “जो मुद्दे हम उठा रहे हैं, वे जनता के दैनिक जीवन से जुड़े हैं—भीड़ अपने आप में जवाब है।” पार्टी ने यह भी जोड़ा कि टिकट को लेकर उत्साह “स्वाभाविक चुनावी प्रक्रिया” है, इसे जनसमर्थन पर शक की वजह नहीं माना जा सकता।
एनडीए/महागठबंधन सहयोगी संकेत: सहयोगी दलों में भी इसे लेकर रणनीतिक चर्चा तेज है। जहां एनडीए इस नैरेटिव को आगे बढ़ा रहा है कि विपक्षी रैलियां “नेता-केंद्रित” हैं, वहीं महागठबंधन घटक इसे “मुद्दा-आधारित लामबंदी” बताकर मैदान में मजबूती का दावा कर रहे हैं।
प्रतिक्रियाएं
विपक्ष/गठबंधन: कांग्रेस और वाम दलों के स्थानीय नेताओं ने यात्रा को “जन-अधिकार” की पहल बताते हुए समर्थन दिया और कहा कि सत्ता पक्ष “मुद्दों से ध्यान भटकाने” की कोशिश कर रहा है।
जदयू/लोजपा(रा)/अन्य: एनडीए के अन्य नेता इसे “चुनावी टिकट के इच्छुकों की परेड” कहकर तंज कस रहे हैं, साथ ही अपने-अपने जिलों में “घरों-घर तक पहुंच” अभियान तेज करने की बात कर रहे हैं।
जनता/सोशल मीडिया: सोशल प्लेटफॉर्म पर यात्राओं की भीड़ को लेकर वीडियो और तस्वीरें साझा हो रही हैं। जहां समर्थक इसे “ऊर्जावान भागीदारी” कहते हैं, वहीं विरोधी “मंच-प्रबंधित उपस्थिति” का आरोप दोहराते हैं।
विश्लेषण
चुनावी समीकरण: बीजेपी का “कम जनभागीदारी” वाला नैरेटिव विपक्ष की गति को मनोवैज्ञानिक स्तर पर बाधित करने की कोशिश है, ताकि मैदान पर दिखने वाली भीड़ को वोट में बदलने की आरजेडी की क्षमता पर सवाल बने रहें। दूसरी ओर, आरजेडी इस यात्रा से युवाओं, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यक मतदाताओं में मुद्दा-आधारित एकजुटता की कोशिश कर रही है।
जातिगत राजनीति: बिहार की पारंपरिक सामाजिक समीकरणों में Yadav–Muslim कोर के साथ गैर-यादव ओबीसी, महादलित और अति-पिछड़ा समूह निर्णायक रहते हैं। बीजेपी की रणनीति यात्रा को “नेता-केंद्रित” साबित कर इस धारणा को मजबूत करना है कि “टिकट राजनीति” सामाजिक समूहों की वास्तविक मांगों पर हावी है, जबकि आरजेडी इसे “अधिकार और रोजगार” के फ्रेम में रखकर व्यापक गठजोड़ साधने की कोशिश कर रही है।
संगठन बनाम ऑप्टिक्स: मैदान पर भीड़ दिखाना और उसे बूथ-स्तर के प्रबंधन में बदलना दो अलग चरण हैं। यदि आरजेडी यात्रा के दौरान बने उत्साह को पंचायत-वार समितियों, मतदाता सूचियों के सूक्ष्म प्रबंधन और उम्मीदवार चयन में परिवर्तित कर पाती है, तो लाभ मिल सकता है। वहीं, बीजेपी का पलटवार नैरेटिव यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि भीड़ की खबरों का असर “निर्णायक मतदाताओं” तक सीमित रहे और गठबंधन की सीट-शेयरिंग सुसंगत संदेश देती दिखे।
टिकट चाहत का प्रश्न: हर चुनाव-पूर्व दौर में टिकट के दावेदारों की सक्रियता बढ़ती है। बीजेपी इसी स्वाभाविक प्रवृत्ति को आरजेडी के खिलाफ “एजेंडा-फ्लिप” के रूप में प्रस्तुत कर रही है, जबकि आरजेडी इसे “उम्मीदवारी में रुचि और संगठन की बढ़त” का संकेत बताती है। वास्तविक असर उम्मीदवार चयन, असंतोष प्रबंधन और अंततः स्थानीय गठबंधनों पर निर्भर करेगा।
निष्कर्ष
‘बिहार अधिकार यात्रा’ को लेकर बीजेपी और आरजेडी के बीच नैरेटिव-युद्ध तेज हो गया है—एक पक्ष भीड़ की प्रामाणिकता पर सवाल उठाता है, तो दूसरा इसे जनता की आवाज बताता है। अगले चरणों में जिलावार भीड़, उम्मीदवार चयन और गठबंधन संकेत इस बहस की दिशा तय करेंगे।

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