क्या बदल रहा है, क्या नहीं? बिहार में रोज़गार की तलाश
“जब लोग पेट भरने के लिए दिल्ली, मुंबई, पंजाब, गुजरात जाते हैं, तो क्या सिर्फ़ वो ही ग़लत हैं?” पटना स्टेशन पर खड़ा राजेश, पसीने से लथपथ होकर ये सवाल सिर्फ़ खुद से नहीं, बल्कि पूरे बिहार से पूछ रहा है। यहाँ एक तरफ़ योजनाओं की बातें होती हैं, तो दूसरी तरफ़ लोगों के सपने टूटते हैं। बिहार में बेरोज़गारी अब सिर्फ़ आंकड़ों का खेल नहीं है, ये हर घर की कहानी बन गई है।
कैसे बिहार में बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या बन गई?
आज़ादी के बाद बिहार शिक्षा और सरकारी कामकाज के लिए जाना जाता था, लेकिन 1980 के बाद यहाँ सब कुछ बदलने लगा। यहाँ के कारखाने बंद हो गए, नए उद्योग नहीं लगे, लोगों में झगड़े होने लगे और बाढ़-सूखे जैसी मुसीबतें आने लगीं। इससे लोगों के लिए काम मिलना मुश्किल हो गया। लोग दूसरे राज्यों में जाकर काम ढूंढने लगे, और ये बिहार की पहचान बन गई। सालों से खेती पर ज़्यादा ध्यान देने, उद्योगों की कमी, घूसखोरी और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से यहाँ रोज़गार के अवसर कम होते गए।
सरकार क्या कर रही है?
- बिहार सरकार ने 'मुख्यमंत्री स्वयं सहायता भत्ता योजना' शुरू की है। इसके तहत 12वीं पास और 20 से 25 साल के बेरोजगार युवाओं को हर महीने ₹1,000 मिलते हैं, ताकि वो अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकें।
- 2023-24 के आर्थिक सर्वे के हिसाब से, बिहार में बेरोज़गारी की दर 3 से 4.3% है। ये देश के औसत से थोड़ी ज़्यादा है, लेकिन हरियाणा और पंजाब से बेहतर है।
- 'बिहार लघु उद्यमी योजना' में गरीब लोगों, एससी/एसटी, महिलाओं और युवाओं को अपना काम शुरू करने के लिए 2-2 लाख रुपये तक की मदद मिलती है।
- सरकार का कहना है कि 2025-2030 तक वो एक करोड़ नए रोज़गार पैदा करेंगे, जिसमें लोगों को हुनर सिखाने और महिलाओं को काम देने की योजनाएं भी शामिल हैं।
लेकिन असली कहानी क्या है?
- गाँव में 3.3% पुरुष बेरोजगार हैं, शहरों में ये आँकड़ा 6.9% (पुरुष) और 9.1% (महिलाएँ) है।
- लोगों की कमाई अब भी बहुत कम है, सिर्फ़ ₹35,119 सालाना, जबकि देश का औसत ₹1,72,000 है।
- लोग काम के लिए दूसरे राज्यों में जा रहे हैं, मनरेगा में काम करने के दिन बढ़ रहे हैं, और अपना काम शुरू करने में मुश्किलें आ रही हैं।
सरकारी योजनाओं से किसे फ़ायदा हुआ?
समस्तीपुर की सुनीता कहती हैं, मैंने अप्लाई किया और मुझे हर महीने 1000 रुपये मिलने लगे, लेकिन नौकरी तो अब भी ढूंढनी पड़ रही है। सुनीता उन लोगों में से हैं जिन्हें बेरोज़गारी भत्ते का फ़ायदा मिल रहा है।
युवा, जानकार और अधिकारी क्या सोचते हैं?
- मुजफ्फरपुर के प्रमोद कहते हैं, सरकार से पैसे तो मिल जाते हैं, लेकिन उससे क्या होगा? हमें तो नौकरी चाहिए जिससे ज़िंदगी बने।
- पटना यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री डॉ. अशोक कुमार का कहना है, सरकार जो पैसे दे रही है वो बस थोड़ी मदद है, असली ज़रूरत है कि लोगों को हमेशा के लिए काम मिले और वो काम में माहिर हों।
- एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता कहती हैं, लड़कियों के पास डिग्री तो है, लेकिन वो घर में ही रह जाती हैं। महिलाओं में बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है, जो आंकड़ों में दिखाई नहीं देती।
अलग-अलग लोगों की क्या राय है?
- सरकार कहती है कि उनकी योजनाएं बहुत अच्छा काम कर रही हैं। मुख्यमंत्री जी का कहना है कि वो बिहार के हर युवा को रोज़गार देने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
- विपक्ष का कहना है कि योजनाएं तो चल रही हैं, लेकिन ठीक से काम नहीं हो रहा है, इसलिए लोग दूसरे राज्यों में जा रहे हैं।
- जानकारों का मानना है कि आंकड़ों में बेरोज़गारी कम दिखती है, क्योंकि बहुत से लोग दूसरे राज्यों में चले गए हैं, अपना छोटा-मोटा काम कर रहे हैं, या फिर उम्मीद हार चुके हैं।
बिहार और दूसरे राज्यों में क्या फ़र्क है?
- 2024-25 में बिहार में बेरोज़गारी की दर 3 से 4.3% है, जबकि केरल में 7.2%, पंजाब में 5.5%, राजस्थान में 4.2% और आंध्र प्रदेश में 4.1% है।
- बिहार की औसत कमाई, लोगों का विकास और उद्योगों में निवेश अब भी दूसरे राज्यों से कम है।
- लेकिन हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में भी बेरोज़गारी की दर बिहार से ज़्यादा है।
क्या परेशानियाँ हैं, क्या गलत हो रहा है, और क्या करना चाहिए?
1. योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन ठीक से काम नहीं हो रहा है। ज़रूरतमंद युवाओं तक मदद नहीं पहुँच रही है।
2. खेती और सर्विस के अलावा दूसरे क्षेत्रों में रोज़गार कम हैं। उद्योग लगाने की नीतियाँ ठीक नहीं हैं और निवेश भी कम हो रहा है।
3. लोग दूसरे राज्यों में जा रहे हैं, और कोरोना के बाद ये और भी बढ़ गया है।
4. लोगों के पास शिक्षा और हुनर तो है, लेकिन वो अच्छी नहीं है और बाज़ार में उसकी माँग नहीं है।
आखिर में क्या?
बिहार में बेरोज़गारी एक ऐसी लड़ाई है जिसमें राजनीति, नीतियाँ और लोगों की उम्मीदें शामिल हैं। पुराने तरीके काम नहीं कर रहे हैं, और नए अभी तक बने नहीं हैं। योजनाओं, आंकड़ों और वादों के बावजूद, हर युवा का सपना अभी भी अधूरा है। बिहार को हमेशा के लिए विकास चाहिए, जिसमें शिक्षा, उद्योग और समाज सब शामिल हों। तभी लोग दूसरे राज्यों में नहीं जाएंगे, और ये सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि हकीकत बनेगी।
कुछ सवाल जिन पर बात होनी चाहिए:
1. क्या सरकार की योजनाएं बिहार में बेरोज़गारी को कम कर सकती हैं?
2. सरकार, प्राइवेट कंपनियां और अपना काम—किस दिशा में राज्य को आगे बढ़ना चाहिए?
3. लोगों को दूसरे राज्यों में जाने से रोकने के लिए क्या करना ज़रूरी है?
4. बिहार में बेरोज़गारी की जो कहानी है, उससे हम देश और दूसरे राज्यों के लिए क्या सीख सकते हैं?
