शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियाँ: सरकारी स्कूलों की हालत और निजीकरण का असर

सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं और शिक्षकों की ट्रेनिंग की कमी से शिक्षा की क्वालिटी गिर रही है, जबकि निजीकरण से बेहतर सुविधाएं तो मिली हैं, लेकिन असमानता भी बढ़ी है। बिहार की स्थिति बाकी राज्यों से अलग क्यों है?



शिक्षा व्यवस्था की हालत: एक खतरे की घंटी

अपने देश में हर तीसरा बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता है। पर क्या ये स्कूल इन बच्चों के सपनों को पूरा कर पा रहे हैं? रिसर्च से पता चला है कि लगभग 95% सरकारी स्कूलों में जरूरी चीजें भी नहीं हैं। क्लासरूम, शौचालय, लाइब्रेरी या कंप्यूटर लैब जैसी बेसिक चीजें गायब हैं। इससे शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। दूसरी तरफ, प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा में नए तरीके अपनाकर और बेहतर सुविधाएं देकर अच्छे लेवल सेट किए हैं, लेकिन वे बहुत महंगे होते जा रहे हैं और उन पर गरीब बच्चों को शिक्षा से दूर करने के आरोप लग रहे हैं।

पिछला इतिहास: शिक्षा में सरकारी और प्राइवेट का झगड़ा

आजादी के बाद भारत ने शिक्षा को बहुत जरूरी माना, लेकिन जनसंख्या बढ़ने और पैसे की कमी के चलते सरकारी स्कूलों में ज्यादा निवेश नहीं हो पाया। इसलिए, 1990 के दशक से प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा मिलना शुरू हो गया। इसका मकसद था शिक्षा को फैलाना और उसकी क्वालिटी सुधारना। कई राज्यों ने प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा दिया, ताकि सरकारी स्कूलों की कमियों को पूरा किया जा सके। हालांकि, इससे शिक्षा एक बिजनेस बन गई, जहाँ सिर्फ मुनाफा देखा जाने लगा। इससे शिक्षा में असमानता बढ़ी, जिसने देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को और गहरा कर दिया।

सरकारी स्कूलों की दिक्कतें: बिहार के हिसाब से

बिहार में तो स्थिति और भी खराब है। राज्य में स्कूल ठीक से बटे हुए नहीं हैं। सिर्फ 2% स्कूल ही माध्यमिक शिक्षा देते हैं, जबकि पूरे देश में यह औसत 9.8% है। ज्यादातर स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं भी पूरी नहीं हैं। जैसे, सिर्फ 80% स्कूलों में बिजली है, 18.5% में इंटरनेट है और सिर्फ 14.7% में साफ शौचालय हैं। डिजिटल डिवाइड साफ दिख रहा है, क्योंकि जहाँ केरल में 99.4% स्कूलों में कंप्यूटर हैं, वहीं बिहार में सिर्फ 19.6% में हैं। इस वजह से बिहार के ज्यादातर बच्चे माध्यमिक शिक्षा तक नहीं पहुँच पाते और 25.6% बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, जो देश के औसत से दोगुना है। इससे पता चलता है कि बिहार के बच्चों के लिए शिक्षा सिस्टम में बहुत दिक्कतें हैं।

अलग-अलग राय: सरकार, विपक्ष और जानकार क्या कहते हैं?

सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के जरिए शिक्षा के स्तर को सुधारने की कोशिश की जा रही है, जिससे 2030 तक सबको शिक्षा मिल सके। सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं और बजट में पैसे दिए हैं ताकि सरकारी स्कूलों की हालत सुधरे। लेकिन विपक्ष और शिक्षा के जानकारों का मानना है कि इस नीति में प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देकर सरकारी शिक्षा को कमजोर किया जा रहा है, जिससे गरीब और पिछड़े लोगों के लिए शिक्षा पाना मुश्किल हो रहा है। स्थानीय लोगों और समाजसेवियों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में टीचरों का गायब रहना, सिलेबस का सही न होना और खराब व्यवस्था भी बड़ी दिक्कतें हैं, जिन्हें तुरंत ठीक करना जरूरी है।

आखिरी बात: सबके लिए शिक्षा जरूरी है, इसलिए बीच का रास्ता निकालना होगा

शिक्षा देश के भविष्य की नींव है। सरकारी स्कूलों की क्वालिटी सुधारे बिना शिक्षा को सबके लिए और एक जैसी बनाना मुमकिन नहीं है। वहीं, प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने से असमानता और बढ़ेगी। बिहार की स्थिति एक चेतावनी है कि बुनियादी सुधार किए बिना शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी बदलाव नहीं हो सकता। जरूरी है कि सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के बीच संतुलन बनाया जाए। सरकारी स्कूलों को बेहतर सुविधाएं, नया सिलेबस, अच्छे टीचर और जिम्मेदारी मिलनी चाहिए, और प्राइवेट सेक्टर से शिक्षा में नए तरीके आने चाहिए। तभी भारत का शिक्षा सिस्टम सभी को बराबर मौके दे पाएगा।





पाठकों के लिए सवाल

  1. क्या सरकारी स्कूलों की क्वालिटी सुधारे बिना शिक्षा में बराबरी हो सकती है?
  2. क्या प्राइवेट स्कूलों से शिक्षा की क्वालिटी सुधरती है या असमानता बढ़ती है?
  3. बिहार जैसे राज्यों में शिक्षा सुधारने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार को क्या करना चाहिए?
  4. जिन बच्चों के पास डिजिटल शिक्षा नहीं है, उनके लिए तुरंत क्या करना चाहिए?

Raviopedia

तेज़ रफ्तार जिंदगी में सही और भरोसेमंद खबर जरूरी है। हम राजनीति, देश-विदेश, अर्थव्यवस्था, अपराध, खेती-किसानी, बिजनेस, टेक्नोलॉजी और शिक्षा से जुड़ी खबरें गहराई से पेश करते हैं। खेल, बॉलीवुड, हॉलीवुड, ओटीटी और टीवी की हलचल भी आप तक पहुंचाते हैं। हमारी खासियत है जमीनी सच्चाई, ग्राउंड रिपोर्ट, एक्सप्लेनर, संपादकीय और इंटरव्यू। साथ ही सेहत, धर्म, राशिफल, फैशन, यात्रा, संस्कृति और पर्यावरण पर भी खास कंटेंट मिलता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post