बिहार के गाँवों और शहरों में 60% कम स्वास्थ्य केंद्र, डॉक्टरों की भारी कमी से स्वास्थ्य सेवाओं का संकट गहराया
कहानी:
बात जब लोगों की सेहत की आती है, तो गाँव-देहात में खुले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और वहाँ बैठे डॉक्टर भगवान से कम नहीं होते। लेकिन बिहार जैसे राज्य में, जहाँ एक बड़ा हिस्सा गाँवों में बसता है, स्वास्थ्य सेवा का ये हाल है कि पूछिए मत। यहाँ तो स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी है, और जहाँ हैं, वहाँ डॉक्टर नहीं मिलते। ऐसे में लोगों को अपनी सेहत की चिंता खाए जाती है।
पहले क्या था और अब क्या है:
पहले, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत पूरे देश में खूब स्वास्थ्य केंद्र खोले गए, ताकि लोगों को आसानी से इलाज मिल सके। लेकिन बिहार में तो उल्टा ही हुआ। यहाँ तो 2005 से लेकर अब तक कई स्वास्थ्य केंद्र बंद हो गए, और जो बचे हैं, उनमें भी ठीक से सुविधाएँ नहीं हैं।
डॉक्टरों की भी कमी है। मेडिकल कॉलेज तो खुल गए, सीटें भी बढ़ गईं, लेकिन गाँव-देहात में डॉक्टर कहाँ हैं? कोई भी गाँव में जाकर काम नहीं करना चाहता।
आज की हालत:
- बिहार में लगभग 22,543 छोटे स्वास्थ्य केंद्रों की ज़रूरत है, लेकिन सिर्फ 9,654 ही काम कर रहे हैं। वहीं, 3,748 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) की ज़रूरत है, लेकिन सिर्फ 1,519 ही हैं।
- नियम तो यह है कि हर 30,000 लोगों पर एक PHC होना चाहिए, लेकिन बिहार में तो 73,531 लोगों पर एक PHC है।
- और तो और, PHC में प्रसव कक्ष (डिलीवरी रूम) सिर्फ 484 केंद्रों में हैं, और ऑपरेशन थिएटर तो सिर्फ 231 केंद्रों में हैं।
- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी डॉक्टरों की भारी कमी है। 77% सर्जन, 69% महिला रोग विशेषज्ञ, और 70% फिजिशियन नहीं हैं।
- पूरे देश में डॉक्टर और लोगों का अनुपात 1:811 है, जो कि ठीक है। लेकिन बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में तो यह अनुपात बहुत ही खराब है।
- पटना के एक PHC में काम करने वाली डॉ. रेखा सिंह बताती हैं, यहाँ तो अक्सर डॉक्टर ही नहीं होते, जिससे मरीजों को इलाज के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है।
सरकार क्या कहती है और ज़मीनी हकीकत क्या है:
- सरकार तो कहती है कि सबकुछ ठीक है, लेकिन बिहार में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी और डॉक्टरों की कमी साफ दिखती है। सरकार की योजनाएँ कागज़ों पर तो बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं होता।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को खूब पैसा मिलता है, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हो पाता।
- सरकारी रिपोर्टों में भी माना गया है कि 44% PHC 24 घंटे नहीं खुलते, और कई केंद्रों में ज़रूरी मशीनें भी नहीं हैं।
- बिहार में कई स्वास्थ्य केंद्र किराए के मकानों में चल रहे हैं, जिससे मरीजों को अच्छी सुविधाएँ नहीं मिल पातीं।
दूसरे राज्यों से तुलना:
अगर बिहार की तुलना गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से करें, तो हालत और भी खराब दिखती है। वहाँ तो PHC भी ज़्यादा हैं और डॉक्टर भी ज़्यादा हैं। श्रीलंका और क्यूबा जैसे देशों ने भी स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत ध्यान दिया है, और उनसे हमें सीखना चाहिए।
किसका क्या कहना है:
सरकार कहती है कि डॉक्टरों की संख्या WHO के हिसाब से ठीक है, और मेडिकल कॉलेजों में सीटें भी बढ़ रही हैं।
लेकिन विपक्ष और जानकार लोग कहते हैं कि बिहार सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था में बहुत कमी है।
गाँवों के लोग और स्वास्थ्य कर्मचारी कहते हैं कि डॉक्टरों की कमी और स्वास्थ्य केंद्रों की कमी सबसे बड़ी परेशानी है।
क्या करें:
बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने की बहुत ज़रूरत है। सरकार को सिर्फ कागज़ों पर योजनाएँ नहीं बनानी चाहिए, बल्कि ज़मीन पर भी काम करना चाहिए। लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिए, और इसके लिए सरकार को जवाबदेह होना चाहिए। तभी बिहार स्वस्थ बनेगा।
कुछ सवाल:
- बिहार में स्वास्थ्य केंद्रों और डॉक्टरों की कमी को कैसे दूर किया जा सकता है?
- सरकार जो बजट देती है, उसका सही इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है?
- गाँवों में अच्छे डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी कैसे मिल सकते हैं?
- बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने में गाँव के लोगों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की क्या भूमिका होनी चाहिए?
