बिहार के एक छोटे से गांव, सिताबदियारा में जन्मे जयप्रकाश नारायण, जिन्हें लोग जे.पी. भी कहते थे, ने छात्र आंदोलनों में हिस्सा लिया, देश की आजादी की लड़ाई लड़ी और 1970 के दशक में 'संपूर्ण क्रांति' की शुरुआत की। उन्होंने सत्ता के अहंकार को चुनौती दी और लोगों पर आधारित एक ऐसी राजनीति की नींव रखी जिसमें ईमानदारी सबसे ऊपर थी। जे.पी. ऐसे नेता थे, जिन्होंने लोकतंत्र को सिर्फ वोट डालने की प्रक्रिया नहीं माना, बल्कि इसे समाज में पूरी तरह से बदलाव लाने का एक तरीका समझा।
जे.पी. का परिचय और महत्व
जयप्रकाश नारायण, जिन्हें प्यार से 'लोकनायक' कहा जाता है, एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी विचारक थे। 1970 के दशक में, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तो उन्होंने उनके खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में सबसे अहम भूमिका निभाई। वे हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों, लोगों की आजादी और अहिंसक आंदोलनों की बात करते थे। जे.पी. ने बिहार में जन्म लिया और लोगों को लोकतंत्र का असली मतलब समझाया। उनका नारा, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है आज भी राजनीति में एक नई सोच जगाता है।
जन्म और शुरुआती जीवन
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बंगाल प्रेसिडेंसी के छपरा (आज का सिताबदियारा) में हुआ था। वे एक कायस्थ परिवार से थे। उनका बचपन बाढ़ वाले इलाके में बीता। उनके पिता, हरसूदयाल, नौकरी करते थे और अलग-अलग जगह पर तैनात रहते थे। जे.पी. ने शुरुआती पढ़ाई पटना में की। युवावस्था में वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और 'बिहार विद्यापीठ' से बहुत प्रभावित हुए। बिहार विद्यापीठ एक ऐसा स्कूल था, जहां अलग तरह से शिक्षा दी जाती थी। यहीं से जे.पी. ने लोगों की सेवा करने और आंदोलनों में भाग लेने का फैसला किया। उन्होंने प्रभावती देवी से शादी की। प्रभावती देवी कांग्रेस नेता ब्रजकिशोर प्रसाद की बेटी थीं। वह भी गांधीवादी विचारधारा का पालन करती थीं और साबरमती आश्रम से जुड़ी हुई थीं।
कैरियर की शुरुआत
आगे की पढ़ाई के लिए जे.पी. 1922 में अमेरिका चले गए। उन्होंने कैलिफोर्निया, आयोवा, विस्कॉन्सिन और ओहायो जैसे राज्यों में अलग-अलग काम किए और समाजशास्त्र की पढ़ाई की। इसी दौरान वे मार्क्सवाद से प्रभावित हुए और उन्होंने मजदूरों की जिंदगी को करीब से देखा। 1929 में भारत लौटने के बाद, जवाहरलाल नेहरू के कहने पर वे कांग्रेस में शामिल हो गए। जल्द ही वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक-महासचिव बन गए। इस पार्टी ने आजादी की लड़ाई को समाजवादी दिशा दी। 1930 के दशक में उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और जेल भी गए। उन्होंने संगठन बनाने, विचारों को आगे बढ़ाने और लोगों को आंदोलनों में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्य उपलब्धियां और योगदान
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, जे.पी. हजारीबाग केंद्रीय कारागार से अपने साथियों के साथ भाग निकले और भूमिगत रहकर आंदोलन चलाया। यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। उन्होंने 'आज़ाद दस्ता' जैसे संगठन भी बनाए। आजादी के बाद, जे.पी. को राजनीति में मजा नहीं आया, इसलिए 1954 में वे विनोबा भावे के भूदान-सर्वोदय आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने रेलवे कर्मचारियों के संगठन का नेतृत्व भी किया और मजदूरों के आंदोलनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान में उन्होंने 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया। इस नारे ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सामाजिक-राजनीतिक अन्याय के खिलाफ पूरे भारत में लोगों को जगाया। इसी नारे ने 1975 में आपातकाल के खिलाफ लोगों को एकजुट किया।
विवाद और चुनौतियां
1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया, जिसके बाद जे.पी. ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने को कहा। उन्होंने सुरक्षा बलों से भी कहा कि वे गैरकानूनी आदेशों का पालन न करें। समर्थकों ने इसे नैतिक विरोध बताया, लेकिन कुछ लोगों ने कहा कि जे.पी. संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहे हैं। 25 जून 1975 को आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उनकी तबीयत खराब हो गई और बाद में उन्हें डायलिसिस करानी पड़ी। यह उनके जीवन की एक कठिन परीक्षा थी। 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ और गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। इसमें जे.पी. की सलाह बहुत महत्वपूर्ण थी। हालांकि, सत्ता में आने के बाद कई तरह के मतभेद हुए, लेकिन जे.पी. हमेशा अपने सिद्धांतों पर टिके रहे।
समाज और देश पर प्रभाव
बिहार से उठी छात्र शक्ति की लहर पूरे देश में फैल गई और विपक्षी पार्टियां एकजुट हो गईं। इससे लोकतंत्र में जन आंदोलनों का महत्व बढ़ गया और लोगों की आजादी का सवाल उठने लगा। जे.पी. की राजनीति ने चुनाव जीतने से ज्यादा लोगों की नैतिकता को लोकतंत्र का आधार बनाने पर जोर दिया। यही कारण है कि वे 'जनता के नेता' यानी लोकनायक के रूप में जाने जाते हैं। आपातकाल के बाद 1977 में जो सत्ता परिवर्तन हुआ, उसमें जे.पी. की भूमिका ने संघीय-लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष के महत्व को मजबूत किया।
विरासत
उन्हें 1965 में रैमोन मैग्सेसे पुरस्कार और 1999 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। ये सम्मान लोगों पर आधारित नैतिक राजनीति के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक हैं। पटना का जय प्रकाश नारायण हवाई अड्डा, जेपी सेतु और कई संस्थान उनके नाम पर हैं। हर साल उनकी जयंती पर लोकतांत्रिक मूल्यों को याद किया जाता है। 8 अक्टूबर 1979 को पटना में उनका निधन हो गया, लेकिन 'संपूर्ण क्रांति' और 'नैतिक जनशक्ति' के विचार आज भी भारतीय लोकतंत्र में जीवित हैं।
निष्कर्ष
जयप्रकाश नारायण की कहानी बिहार की धरती से निकली एक ऐसी आवाज की कहानी है जिसने सत्ता से ज्यादा समाज को और पद से ज्यादा सिद्धांतों को महत्व दिया। उनकी बिहार-केंद्रित राजनीति ने भारत के लोकतांत्रिक चरित्र को नैतिक रूप से मजबूत किया। इसलिए वे भारत की सामूहिक चेतना में हमेशा जीवित रहेंगे। जब भी राजनीति में अहंकार और गैर-जिम्मेदारी बढ़ती है, तो 'लोकनायक' की याद लोगों को फिर से एकजुट करती है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
- जन्म: 11 अक्टूबर 1902, सिताबदियारा (छपरा), परिवार: कायस्थ, पिता: हरसूदयाल, माता: फुलरानी देवी
- शिक्षा: बिहार विद्यापीठ, अमेरिका में पढ़ाई (एम.ए. समाजशास्त्र), मजदूर जीवन का अनुभव, मार्क्सवाद का अध्ययन
- विवाह: प्रभावती देवी, गांधी आश्रम से जुड़ी
- राजनीति: 1929 में कांग्रेस में शामिल, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक-महासचिव
- स्वतंत्रता संग्राम: 1930 में सविनय अवज्ञा, 1942 में हजारीबाग जेल से भागे और भूमिगत आंदोलन चलाया
- सर्वोदय/समाजकार्य: 1954 से भूदान-सर्वोदय, रेलकर्मी महासंघ के अध्यक्ष
- जेपी आंदोलन/आपातकाल: 5 जून 1974 को 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया, 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए
- पुरस्कार: रैमोन मैग्सेसे (1965), भारत रत्न (1999, मरणोपरांत)
- संस्थान/स्थल: जय प्रकाश नारायण हवाई अड्डा, जेपी सेतु
- निधन: 8 अक्टूबर 1979, पटना
पाठकों के लिए कुछ सवाल
- क्या 'संपूर्ण क्रांति' का नैतिक विचार आज के लोकतंत्र में सुधार ला सकता है?
- जेपी की राजनीति और 1977 की सत्ता परिवर्तन की कहानी से आज का विपक्ष क्या सीख सकता है?
- सर्वोदय और छात्र आंदोलन के तरीकों को आज के डिजिटल युग में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है?

