बिहार की धरती से ही भारत के पहले बड़े साम्राज्य की शुरुआत हुई। पाटलिपुत्र (आज का पटना) में बैठकर बनाई गई योजनाओं, कुशल नेताओं और शासन के तरीकों ने 321 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। चंद्रगुप्त मौर्य ने यह सब किया और चाणक्य ने इसमें उनकी पूरी मदद की। इससे भारतीय उपमहाद्वीप को एक नई दिशा मिली। यह सिर्फ़ बिहार के इतिहास में ही नहीं, बल्कि दुनिया के इतिहास में भी एक बड़ा बदलाव था। इसने दिखाया कि कैसे एक जगह से पूरे देश पर शासन किया जा सकता है, कैसे समझदारी से काम लिया जा सकता है और कैसे नए तरीके अपनाए जा सकते हैं।
यह कहानी है कि कैसे 321 ईसा पूर्व में चाणक्य की समझदारी और चंद्रगुप्त की हिम्मत से मौर्य साम्राज्य खड़ा हुआ। उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एक साथ जोड़ा और शासन करने के नए तरीके सिखाए।
परिचय:
बिहार की पुरानी राजधानी, पाटलिपुत्र से मौर्य साम्राज्य की शुरुआत हुई। 321 ईसा पूर्व के आसपास, चंद्रगुप्त मौर्य ने भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से को एक साथ मिलाकर एक राज्य बनाया। यह पहली बार था जब किसी ने इतने बड़े इलाके को एक साथ मिलाकर उस पर शासन किया। मौर्य साम्राज्य में हर चीज़ का हिसाब रखा जाता था और एक बड़ी सेना भी थी। इस बदलाव का केंद्र बिहार था, जहाँ से पूरे उपमहाद्वीप की राजनीति तय होती थी।
कैसे बना साम्राज्य:
मगध की भूमि और नंद शासन:
मगध (आज का मध्य-पश्चिमी बिहार) हमेशा से ही ताकतवर रहा है। यहाँ की जमीन उपजाऊ थी, नदियों का जाल बिछा हुआ था और व्यापार के रास्ते भी यहीं से गुजरते थे। पाटलिपुत्र शहर गंगा और सोन नदियों के संगम पर बसा हुआ था, इसलिए यह और भी खास था। शिशुनाग, नंद और मौर्य वंशों ने यहीं से राज किया। नंद वंश (लगभग 343–321 ईसा पूर्व) ने तेजी से अपने राज्य को बढ़ाया और हर चीज़ को अपने कंट्रोल में ले लिया। लेकिन, इससे लोगों में नाराज़गी भी फैल गई और सत्ता बदलने का समय आ गया। नंद वंश का आखिरी राजा धननंद माना जाता है। उसके बाद ही चंद्रगुप्त ने अपनी ताकत दिखाई और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
बाहरी परिस्थितियाँ:
323 ईसा पूर्व में अलेक्जेंडर की मृत्यु हो गई। इससे उत्तर-पश्चिम में एक खाली जगह बन गई। मगध के राजा के पास मौका था कि वह अपनी शक्ति बढ़ाए और उत्तर-पश्चिमी इलाकों पर कब्जा करे। चंद्रगुप्त ने इस मौके का फायदा उठाया और अपना साम्राज्य फैलाया। इससे बिहार का इतिहास पूरी तरह से बदल गया, क्योंकि पाटलिपुत्र साम्राज्य को बढ़ाने और चलाने का केंद्र बन गया।
चाणक्य और राज्यशास्त्र:
चाणक्य ने एक किताब लिखी जिसका नाम था अर्थशास्त्र। इस किताब में शासन करने, पैसे का हिसाब रखने, मंत्रियों को चुनने, टैक्स लगाने, युद्ध करने और जासूस रखने के बारे में जानकारी दी गई थी। मौर्य साम्राज्य ने इस किताब में लिखी बातों को माना और अपना शासन चलाया। अर्थशास्त्र में बताया गया है कि कैसे समझदारी से काम लेना चाहिए, युद्ध कैसे करना चाहिए और अपने राज्य को सुरक्षित कैसे रखना चाहिए। इससे मौर्य साम्राज्य को मजबूत होने और आगे बढ़ने में मदद मिली।
स्थापना की कहानी:
शिक्षा और संगठन:
कहा जाता है कि चंद्रगुप्त ने तक्षशिला में शिक्षा ली थी। वहाँ चाणक्य ने उन्हें राजनीति और युद्ध के बारे में सिखाया। इससे चंद्रगुप्त को एक अच्छा शासक बनने में मदद मिली। चाणक्य की सलाह पर चंद्रगुप्त ने एक सेना बनाई, लोगों का समर्थन हासिल किया और धननंद को हराकर मगध पर कब्जा कर लिया। 321 ईसा पूर्व के आसपास मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई। पाटलिपुत्र पर कब्जा करना मौर्य साम्राज्य के लिए बहुत जरूरी था, क्योंकि यहीं से पूरे गंगा के मैदान में शासन चलाया जा सकता था और सेना को जरूरी चीजें पहुँचाई जा सकती थीं।
समझौता:
अलेक्जेंडर के बाद सेल्यूकस प्रथम निकेटर ने उत्तर-पश्चिम में अपना शासन स्थापित किया। 305 ईसा पूर्व के आसपास चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को हराया और उनसे समझौता किया। सेल्यूकस ने सिंधु नदी के पास के कुछ इलाके चंद्रगुप्त को दे दिए और बदले में 500 युद्ध में काम आने वाले हाथी लिए। साथ ही, दोनों परिवारों के बीच शादी भी हुई। इस समझौते से दोनों को फायदा हुआ। सेल्यूकस को पश्चिमी देशों से लड़ने के लिए शांति मिली और मौर्य साम्राज्य को उत्तर-पश्चिम में अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद मिली। हाथियों की ताकत की वजह से सेल्यूकस को एंटिगोनस से जीतने में मदद मिली।
विदेशी दूत:
सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में अपना दूत बनाकर भेजा। मेगस्थनीज ने ‘इंडिका’ नाम की एक किताब लिखी, जिसमें पाटलिपुत्र के बारे में, वहाँ के शासन के बारे में और वहाँ के समाज के बारे में जानकारी दी गई। इससे लोगों को मौर्य साम्राज्य के बारे में पता चला। उस समय खेती, सेना और खजाने का अलग-अलग हिसाब रखा जाता था। सैनिकों को राज्य की तरफ से वेतन मिलता था और हाथियों और घोड़ों पर राजा का अधिकार होता था। यह सब बिहार की राजधानी पाटलिपुत्र से चलाया जाता था। यह शहर शासन करने, व्यापार करने और सीखने का केंद्र था।
असर:
मौर्य साम्राज्य ने एक ऐसी शासन व्यवस्था बनाई जिसमें एक बड़ी सेना थी, हर काम के लिए अलग-अलग अधिकारी थे और टैक्स वसूलने का अच्छा तरीका था। इससे पूरे उपमहाद्वीप में एक जैसा शासन चलने लगा। बिहार के इतिहास में पाटलिपुत्र ने भारत को बनाने में एक बड़ी भूमिका निभाई। यहीं से पूरे भारत पर शासन करने का तरीका निकला।
बाद में:
मौर्य शासन ने आकेमेनिड (फ़ारसी) शासन से प्रेरणा ली और अपने तरीके से शासन करने के लिए अधिकारियों को तैयार किया। चाणक्य की नीतियों ने इसमें मदद की। अशोक के समय में इस शासन व्यवस्था को और आगे बढ़ाया गया। उन्होंने धम्म का प्रचार किया और लोगों को अच्छे काम करने के लिए कहा। इससे भारत की राजनीति और समाज पर एक गहरा असर पड़ा। इस तरह बिहार ने भारत को एक नई दिशा दी और देश को आगे बढ़ाने में मदद की।
क्यों जरूरी:
आज के भारत और बिहार के लिए मौर्य साम्राज्य इसलिए जरूरी है क्योंकि इसने हमें सिखाया कि कैसे राज्य को चलाना चाहिए, कैसे जानकारी इकट्ठा करनी चाहिए, कैसे टैक्स लगाना चाहिए और कैसे समझदारी से दूसरे देशों से बात करनी चाहिए। आज भी जब हम एक अच्छा राज्य बनाने की बात करते हैं, तो मौर्य साम्राज्य से सीख लेते हैं। खासकर जब अलग-अलग तरह के लोगों को एक साथ लेकर चलने की बात आती है। मौर्य साम्राज्य ने दुनिया के साथ कैसे संबंध बनाए, इससे हमें पता चलता है कि भारत को दुनिया में अपनी जगह कैसे बनानी चाहिए।
बातचीत:
मेगस्थनीज की किताब ‘इंडिका’ से हमें मौर्य युग के बारे में जानकारी मिलती है। इससे पता चलता है कि पाटलिपुत्र में शासन कैसे चलता था और सेना कैसी थी। आजकल के खोज से पता चलता है कि मौर्य सेना के पास हाथियों, घोड़ों और बैलों की बड़ी तादाद थी। इन जानवरों की देखभाल करना और उन्हें खाना देना राज्य के लिए एक बड़ा खर्च था, लेकिन इससे सेना मजबूत बनी रहती थी। विशाखदत्त के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में चाणक्य की समझदारी के बारे में बताया गया है।
आज:
जब भी बिहार में बदलाव की बात होती है, तो मौर्य साम्राज्य की बातें होती हैं। हमें याद आता है कि कैसे उन्होंने सच्चाई के साथ शासन किया, टैक्स के नियम बनाए और पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध रखे। बिहार को समझना मतलब पाटलिपुत्र को समझना, जिसने भारत को स्थिर बनाया और आगे बढ़ाया।
सीख:
मौर्य साम्राज्य से हमें यह सीख मिलती है कि अच्छी योजनाएँ और अच्छे लोग दोनों जरूरी हैं। चाणक्य की योजनाएँ और चंद्रगुप्त का नेतृत्व एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। उस समय दुनिया में हाथियों का इस्तेमाल युद्ध में होता था और समझौतों से सरहदें तय होती थीं। इससे पता चलता है कि मजबूत सेना और समझदारी से काम लेने से ही एक साम्राज्य चलता है। आज भी भारत में ऐसा ही है। अगर हम अपनी ताकत बढ़ाएँ, लोगों को अधिकार दें और समझदारी से काम लें, तो हमारा देश आगे बढ़ेगा।
आखिर में:
मौर्य साम्राज्य की स्थापना से बिहार भारत के इतिहास का एक जरूरी हिस्सा बन गया। पाटलिपुत्र से शुरू हुई राजनीति ने भारत में पहली बार एक ऐसा शासन बनाया जो बड़ा था, संगठित था और नियमों से चलता था। चाणक्य ने अपनी समझदारी से चंद्रगुप्त की मदद की और उन्हें एक अच्छा शासक बनाया। 321 ईसा पूर्व की यह घटना हमें याद दिलाती है कि बिहार का इतिहास सिर्फ़ पुरानी बातें नहीं हैं, बल्कि आज भी हमें सिखाता है कि शासन कैसे चलाना चाहिए।


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