पूर्णिया में चिराग पासवान को बिहार का CM बनाने की मांग

पूर्णिया में एक बड़ी पॉलिटिकल मीटिंग हुई, जिसमें खूब सारे लोग आए। लोगों ने खूब नारे लगाए और कहा कि चिराग पासवान को बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहिए। इससे साफ पता चल रहा है कि बिहार में लीडर बदलने की बात जोर पकड़ रही है। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कहा कि आने वाले इलेक्शन में चिराग पासवान को आगे रखना चाहिए।

बैकग्राउंड

चिराग पासवान, जो लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष हैं, कुछ सालों में बिहार की पॉलिटिक्स में एक जाना-माना यंग चेहरा बन गए हैं। 2020 के इलेक्शन में और उसके बाद जो पॉलिटिक्स में उथल-पुथल हुई, उसमें उनकी पार्टी को कितने वोट मिले, इस पर खूब बातें हुईं। पूर्णिया और सीमांचल एरिया में यह मीटिंग ऐसे वक्त पर हुई है, जब राज्य में इलेक्शन की तैयारी चल रही है और पार्टियां आपस में सीट शेयरिंग को लेकर बात कर रही हैं। पासवान का स्लोगन बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट को शहर और गांव दोनों जगह पर खूब फैलाया जा रहा है।

मीटिंग में क्या कहा गया

मीटिंग में कार्यकर्ताओं और लोकल लीडर्स ने कहा कि बिहार को आगे बढ़ाने के लिए चिराग पासवान को लीडर बनाना चाहिए। मीटिंग कराने वालों ने कहा कि यह यंग लीडरशिप, अच्छा शासन और डेवलपमेंट पर ध्यान देने का प्रतीक है। पार्टी के लोगों ने यह भी कहा कि लोगों का सपोर्ट मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा चुनने में बहुत जरूरी होगा। मीटिंग में आए कई सामाजिक संगठनों के लोगों ने भी कहा कि उन्हें नौकरी, हेल्थ और एजुकेशन पर ठोस प्लान चाहिए और वे चाहते हैं कि लीडर बदले।

लोगों की राय

विपक्षी पार्टियों ने कहा कि यह इलेक्शन का माहौल बनाने की एक चाल है। मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह तो गठबंधन और जनता ही तय करेगी। वहीं, सत्ता पक्ष के नेताओं ने कहा कि यह डेमोक्रेटिक मांग है और हर पार्टी को अपना चेहरा दिखाने का हक है, लेकिन आखिरी फैसला तो सहयोगी पार्टियां मिलकर ही करेंगी। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे पता चलता है कि लोजपा (रामविलास) पार्टी को अपने ऊपर कितना भरोसा है और सीमांचल में उनकी पॉलिटिकल एक्टिविटी बढ़ रही है।

एनालिसिस

लीडरशिप की बात: बिहार की पॉलिटिक्स में अक्सर यह देखा जाता है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह गठबंधन से तय होता है। चिराग पासवान को आगे करने की मांग का मतलब है कि पार्टी यंग वोटर्स और शहरी लोगों को अपनी ओर खींचना चाहती है।

जाति का रोल: पासवान समुदाय और दलित वोट बैंक में चिराग की अच्छी पकड़ है और यह उनकी सबसे बड़ी ताकत है। अगर वे पिछड़े वर्ग और पहली बार वोट करने वाले युवाओं को अपनी बात समझा पाते हैं, तो इसका इलेक्शन पर असर पड़ सकता है।

एरिया का फैक्टर: सीमांचल, जिसमें पूर्णिया भी शामिल है, में अलग-अलग जाति और धर्म के लोग रहते हैं। यहां डेवलपमेंट, नौकरी और बुनियादी सुविधाएं जैसे मुद्दों पर जोर देने से किसी भी पार्टी को फायदा हो सकता है।

गठबंधन की पॉलिटिक्स: अगर लोजपा (रामविलास) मुख्यमंत्री पद के लिए अपना चेहरा दिखाती है, तो इससे सहयोगी पार्टियों के साथ सीट बंटवारे, प्रचार और फंड के बंटवारे पर नया असर पड़ सकता है। वहीं, विपक्षी पार्टियां भी लीडरशिप और एजेंडे को मजबूत करके मुकाबले को और भी दिलचस्प बना सकती हैं।

निष्कर्ष

पूर्णिया की मीटिंग में जो मांग उठी है, उसने बिहार की पॉलिटिक्स में लीडरशिप को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। अब देखना यह है कि इस मांग का पार्टी की रणनीति, गठबंधन की बातचीत और लोगों के सपोर्ट पर कितना असर होता है।

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