डिजिटल डिवाइड की खाई: ग्रामीण इंटरनेट की कमी से पढ़ाई कैसे पिछड़ रही है

ग्रामीण भारत में शिक्षा में बढ़ती असमानता: डिजिटल खाई का प्रभाव

प्रस्तावना

विद्यालय की घंटी बजती है, लेकिन छात्रों की निगाहें कक्षा से बाहर नेटवर्क की तलाश में घूमती हैं, यह दर्शाती हैं कि शिक्षा का भविष्य अब केवल ब्लैकबोर्ड तक सीमित नहीं है, बल्कि मोबाइल स्क्रीन और इंटरनेट कनेक्टिविटी पर भी निर्भर है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधाओं का अभाव शिक्षा के स्वरूप को बदल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में किताबें तो हैं, लेकिन नेटवर्क नहीं है, स्मार्टफोन तो हैं, लेकिन उनके उपयोग की अनुमति नहीं है। इसके परिणाम स्वरूप एक नई असमानता पैदा हो रही है, जिसे डिजिटल डिवाइड के नाम से जाना जाता है। बिहार जैसे कई राज्यों में लाखों छात्र इस डिजिटल खाई के कारण शिक्षा के मौलिक अवसरों से वंचित हो रहे हैं।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

डिजिटल इंडिया और ब्रॉडबैंड के विस्तार की घोषणाओं के बीच, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 2017-18 के सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि भारत में केवल 24% घरों में इंटरनेट उपलब्ध था, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा केवल 15% था, और कंप्यूटर तो केवल 4% ग्रामीण घरों में ही उपलब्ध थे, जो डिजिटल असमानता की गहरी जड़ों को दर्शाता है। महामारी के दौरान, भारत में स्कूल लगभग 73 हफ्तों तक बंद रहे, जबकि वैश्विक औसत लगभग 35 सप्ताह था। इस वजह से पढ़ाई तेजी से ऑनलाइन माध्यम पर स्थानांतरित हो गई, जिसके चलते पुरानी असमानताएं और भी गहरी हो गईं। डिजिटल पहुंच परिवारों की आय, लिंग और भौगोलिक स्थिति के अनुसार विभाजित हो गई, जिसका शिक्षा से जुड़ाव और सीखने के अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

वर्तमान परिदृश्य: पहुंच बनाम उपयोग

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2021 के अनुसार, ग्रामीण भारत में 67.6% बच्चों के घरों में स्मार्टफोन तो थे, लेकिन उनमें से केवल 26.1% बच्चों को ही पढ़ाई के लिए उनका उपयोग करने का अवसर मिला। इससे स्पष्ट होता है कि उपकरणों की उपलब्धता और वास्तविक पहुंच के बीच एक बड़ा अंतर है। राज्य स्तर पर भी भारी असमानता है। केरल में 97.5% घरों में स्मार्टफोन उपलब्ध थे, और 76.2% बच्चे उनका उपयोग पढ़ाई के लिए कर पाते थे, जबकि हिमाचल प्रदेश में 95.6% उपलब्धता के बावजूद, केवल 25.1% तक ही हमेशा पहुंच सीमित थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि उपलब्धता पहुंच की गारंटी नहीं देती है। इसके अतिरिक्त, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम वार्षिक संकेतकों के अनुसार, ग्रामीण इंटरनेट सब्सक्राइबर घनत्व अभी भी प्रति 100 आबादी पर लगभग 45 है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल समावेशन की धीमी गति को दर्शाता है।

बिहार: डिजिटल दूरी का केंद्र

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के अनुसार, बिहार में इंटरनेट का उपयोग करने वाले पुरुषों की संख्या 43.6% है, जबकि महिलाओं की संख्या केवल 20.6% है, जिसका अर्थ है कि लगभग पांच में से चार महिलाओं ने कभी इंटरनेट का उपयोग नहीं किया है। इससे स्पष्ट होता है कि लैंगिक डिजिटल खाई यहां बहुत अधिक है। ग्रामीण बिहार में महामारी के बाद ट्यूशन लेने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। असर 2021 के अनुसार, बिहार और पश्चिम बंगाल में 70% से अधिक बच्चे ट्यूशन पर निर्भर थे, जो यह दर्शाता है कि स्कूल और घर दोनों जगह डिजिटल सपोर्ट की कमी को स्थानीय, भुगतान-आधारित समाधानों से पूरा किया जा रहा है। यह निर्भरता आर्थिक बोझ के साथ-साथ सीखने की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाती है, क्योंकि डिजिटल/स्कूल सपोर्ट की कमी के कारण असंगठित ट्यूशन नेटवर्क से असमान लाभ मिलता है।

विद्यालयों की डिजिटल स्थिति

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई+) 2021-22 का राज्य/प्रबंधन-वार डेटासेट स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि स्कूलों में इंटरनेट सुविधा की उपलब्धता असमान है, और सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में डिजिटल संसाधनों की खाई बनी हुई है। कई राज्यों में, विशेष रूप से कम संसाधन वाले जिलों में, कंप्यूटर, इंटरनेट और आईसीटी लैब की उपलब्धता सीमित होने से ऑनलाइन सामग्री, डिवाइस शेयरिंग और डिजिटल कक्षाओं का लाभ सीमित छात्र समूह तक ही सीमित रह जाता है। असर 2021 के स्कूल सर्वेक्षण में यह भी दर्ज किया गया है कि शिक्षकों के अनुसार, महामारी के बाद कक्षा में सबसे बड़ी चुनौती बच्चों की पाठ्यक्रम समझने में अक्षमता रही, जिसे 65.4% शिक्षकों ने प्रमुख समस्या बताया।

जमीनी हकीकत और विशेषज्ञों के विचार

असर विश्लेषण स्पष्ट रूप से कहता है कि उपलब्धता पहुंच की गारंटी नहीं देती है। स्मार्टफोन घर में हो सकता है, लेकिन बच्चों की पहुंच से दूर हो सकता है, और यदि पहुंच है भी, तो शैक्षिक उपयोग सुनिश्चित नहीं है। असर 2021 की टिप्पणी में, रुक्मिणी बनर्जी और विलिमा वाधवा लिखती हैं कि 2021 में सरकारी स्कूलों में नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि और निजी स्कूलों में गिरावट देखी गई, लेकिन इससे सीखने की खाई अपने आप नहीं भर जाएगी, क्योंकि बच्चों को वर्तमान कक्षा के पाठ्यक्रम तक पहुंचने में भारी कठिनाई हो रही है। इसके विपरीत, एक प्रमुख राष्ट्रीय संपादकीय में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि डिजिटल पहुंच में असमानता केवल डेटा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मान्यताओं का प्रतिबिंब है, विशेषकर लड़कियों की डिजिटल पहुंच और स्वायत्तता पर।

सरकारी पहल और प्रगति

सरकार का दावा है कि ग्रामीण इंटरनेट पहुंच बढ़ाने के लिए भारतनेट जैसे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं, जिसका उद्देश्य सभी ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है। 2023 में स्वीकृत त्वरित भारतनेट कार्यक्रम (एबीपी) के तहत, 2.64 लाख ग्राम पंचायतों को रिंग टोपोलॉजी से ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, 10-वर्षीय संचालन और रखरखाव, पावर बैकअप और आरएफएमएस जैसी सुविधाओं के साथ जोड़ने के लिए ₹1,39,579 करोड़ का प्रावधान किया गया है। यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के अनुसार, अब तक 2,14,325 ग्राम पंचायतें भारतनेट के माध्यम से जुड़ चुकी हैं, जो पैमाने का संकेत है, लेकिन अंतिम-मील उपयोग, स्कूल-समेकन और टिकाऊ रखरखाव अभी भी चुनौतियां हैं। इसके अतिरिक्त, ट्राई के वार्षिक प्रदर्शन संकेतक बताते हैं कि ग्रामीण इंटरनेट घनत्व की गति बढ़ रही है, लेकिन शिक्षा-उन्मुख उपयोग (सामग्री, डिवाइस, शिक्षक प्रशिक्षण) में समानांतर निवेश के बिना, यह कनेक्टिविटी सीधे सीखने के बेहतर परिणामों में परिवर्तित नहीं होती है।

अंतर्विरोध और नीतिगत कमियां

एनएसओ 2017-18 के आंकड़े दर्शाते हैं कि ग्रामीण इंटरनेट पहुंच 15% और कंप्यूटर 4% घरों में ही उपलब्ध थे, जिससे पता चलता है कि बेसलाइन ही कमजोर थी। महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा की ओर तेजी से बदलाव ने इस खाई को और भी चौड़ा कर दिया। असर 2021 ने 'घर पर डिवाइस' बनाम 'पढ़ाई के लिए पहुंच' के बीच अंतर को उजागर किया। घर में स्मार्टफोन होने के बावजूद, 26.1% बच्चों को पढ़ाई के लिए इसका उपयोग करने का अवसर नहीं मिला, जो निजी स्वामित्व, घरेलू प्राथमिकताओं और लैंगिक मानदंडों के कारण बढ़ता है। यूडीआईएसई+ डेटा इंगित करता है कि स्कूल-स्तरीय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में असमानता बनी हुई है। जब तक स्कूल और पंचायत-स्तर पर कनेक्टिविटी का एकीकरण, टीचर-सपोर्ट और कंटेंट-डिजाइन नहीं होगा, तब तक 'कनेक्शन' पढ़ाई में 'परिवर्तन' नहीं ला पाएगा।

राज्य और वैश्विक स्तर

केरल जैसे राज्यों में स्मार्टफोन की पहुंच 97.5% परिवारों तक और 'हमेशा' शैक्षिक उपयोग 76.2% तक दर्ज होने से स्पष्ट होता है कि नीति-कार्यान्वयन और सामाजिक वातावरण मिलकर डिजिटल समावेशन को संभव बनाते हैं। इसके विपरीत, बिहार में एनएफएचएस-5 के मुताबिक महिलाओं में इंटरनेट का 'कभी उपयोग' 20.6% और पुरुषों में 43.6% रहने से डिजिटल-लैंगिक खाई गहरी दिखती है। वहीं सिक्किम, गोवा, मिजोरम जैसे राज्यों में महिलाओं के इंटरनेट उपयोग के उच्च स्तर बेहतर सामाजिक-सांस्कृतिक समर्थन और बुनियादी ढांचे की ओर इशारा करते हैं। वैश्विक संदर्भ में, भारत के 73 हफ्तों के स्कूल बंद रहने की अवधि (विश्व औसत 35 हफ्तों से दोगुनी) ने डिजिटल असमानता के प्रभाव को और दीर्घकालिक बना दिया, खासकर ग्रामीण और कम-संसाधन वाले परिवारों में।

शिक्षा के लिए डिजिटल न्याय

सबसे पहले, ग्राम पंचायत-स्तर की ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को स्कूलों, आंगनवाड़ियों और सामुदायिक लर्निंग स्पेस से जोड़कर 'अंतिम-मील उपयोग' सुनिश्चित किया जाना चाहिए। एक्सीलरेटेड भारतनेट प्रोग्राम (एबीपी) की यही मूल भावना है, जिसे शिक्षा-उन्मुख उपयोग में अनुवादित करना होगा। दूसरा, असर के निष्कर्षों के अनुरूप, 'पाठ्यक्रम-पकड़' पर लक्षित ब्रिज कोर्स, शिक्षक प्रशिक्षण और ऑफलाइन-फर्स्ट कंटेंट की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि कनेक्टिविटी की अनिश्चितताओं के बावजूद सीखना जारी रहे। तीसरा, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और असर से स्पष्ट लैंगिक-डिजिटल खाई को कम करने के लिए लड़कियों के लिए डिवाइस स्वामित्व, सुरक्षित उपयोग और अभिभावक-समर्थन कार्यक्रमों को नीति में केंद्र में रखा जाना चाहिए, क्योंकि डिजिटल असमानता केवल आंकड़ा नहीं है, बल्कि सामाजिक मान्यताओं का आईना है।

निष्कर्ष

डिजिटल तकनीक शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाने का वादा करती है, लेकिन ग्रामीण भारत में आज यह वादा असमान पहुंच, कमजोर बुनियादी ढांचे और सामाजिक बाधाओं की त्रिकोणीय दीवार से टकरा रहा है। जब तक शिक्षा के लक्ष्य से जुड़ी ग्रामीण इंटरनेट पहुंच, स्कूल-स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर और समाज-लैंगिक मानदंडों में ठोस सुधार नहीं होते, डिजिटल डिवाइड पढ़ाई को जोड़ने से ज्यादा तोड़ेगा। सवाल अब सिर्फ कनेक्शन का नहीं है, बल्कि कनेक्टिविटी को सीखने में बदलने के आवश्यक साहस, संसाधन और जवाबदेही का है।

मुख्य तथ्य/डेटा बॉक्स

  • एनएसओ (2017-18): इंटरनेट उपलब्धता - कुल 24%, ग्रामीण 15%, शहरी 42%; कंप्यूटर - ग्रामीण 4%, शहरी 23%।
  • असर 2021: 67.6% ग्रामीण बच्चों के घर स्मार्टफोन मौजूद, पर उनमें से 26.1% को पढ़ाई के लिए पहुंच नहीं; राज्य-अंतर व्यापक।
  • केरल (असर 2021): 97.5% घरों में स्मार्टफोन; 'हमेशा' शैक्षिक पहुंच 76.2%; हिमाचल में 'हमेशा' पहुंच 25.1%
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (बिहार): पुरुष 43.6%, महिलाएं 20.6% - 'इंटरनेट का कभी उपयोग'; लैंगिक डिजिटल खाई गहरी।
  • विद्यालय डिजिटल सुविधा: यूडीआईएसई+ 2021-22 में राज्य/प्रबंधन-वार स्कूलों में इंटरनेट उपलब्धता का रिकॉर्ड; सरकारी-निजी अंतर स्पष्ट।
  • स्कूल बंद: भारत ~73 हफ्ते; वैश्विक औसत ~35 हफ्ते।
  • ट्राई (2024-25): ग्रामीण इंटरनेट सब्सक्राइबर ~45.03 प्रति 100 आबादी; इंटरनेट ग्राहक आधार 2024-25 में ~969 मिलियन।
  • भारतनेट: 2.14 लाख+ ग्राम पंचायतें कनेक्ट; एबीपी (2023) के तहत 2.64 लाख ग्राम पंचायतों हेतु ऑप्टिकल फाइबर रिंग टोपोलॉजी, 10-वर्ष संचालन और रखरखाव, आरएफएमएस; लागत ₹1,39,579 करोड़।

चर्चा के प्रश्न

  1. क्या डिवाइस की उपलब्धता को शैक्षिक उपयोग में बदलने के लिए स्कूल-परिवार-पंचायत के साझा मॉडल की ज़रूरत है?
  2. लड़कियों की डिजिटल पहुंच बढ़ाने के लिए कौन सी नीतियां (डिवाइस स्वामित्व, डेटा कूपन, सुरक्षित उपयोग प्रशिक्षण) सबसे प्रभावी हो सकती हैं?
  3. भारतनेट/एबीपी की तेज़ प्रगति को स्कूल-स्तर पर सीखने के ठोस नतीजों से कैसे जोड़ा जाए? कौन से केपीआई (KPI) तय हों और उनकी सार्वजनिक जवाबदेही कैसे बने?
  4. क्या असर/यूडीआईएसई+/ट्राई संकेतकों को जिला-रिपोर्ट-कार्ड में जोड़कर स्थानीय योजना, बजट और निगरानी को डेटा-चालित बनाना संभव है?

उद्धरण/स्वर

  • उपलब्धता पहुंच की गारंटी नहीं देती है।
  • भारतनेट एक महत्वाकांक्षी परियोजना है... जिसका उद्देश्य सभी ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है।
  • डिजिटल पहुंच में असमानता केवल डेटा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मान्यताओं का आईना है।
  • 2021 में... बिहार और पश्चिम बंगाल में 70% से अधिक बच्चे ट्यूशन ले रहे थे... शिक्षक कहते हैं कि बच्चे पाठ्यक्रम पकड़ नहीं पा रहे हैं (65.4%)।

स्रोत

  • यूडीआईएसई+ राज्यवार स्कूल इंटरनेट उपलब्धता (2021-22)।
  • असर 2021 रिपोर्ट और विश्लेषण।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 इंटरनेट उपयोग (बिहार/अन्य)।
  • एनएसओ 75वां दौर - शिक्षा पर घरेलू उपभोग (2017-18)।
  • ट्राई वार्षिक/त्रैमासिक संकेतक (ग्रामीण इंटरनेट घनत्व)।
  • भारतनेट/एबीपी नीति विवरण।

Raviopedia

तेज़ रफ्तार जिंदगी में सही और भरोसेमंद खबर जरूरी है। हम राजनीति, देश-विदेश, अर्थव्यवस्था, अपराध, खेती-किसानी, बिजनेस, टेक्नोलॉजी और शिक्षा से जुड़ी खबरें गहराई से पेश करते हैं। खेल, बॉलीवुड, हॉलीवुड, ओटीटी और टीवी की हलचल भी आप तक पहुंचाते हैं। हमारी खासियत है जमीनी सच्चाई, ग्राउंड रिपोर्ट, एक्सप्लेनर, संपादकीय और इंटरव्यू। साथ ही सेहत, धर्म, राशिफल, फैशन, यात्रा, संस्कृति और पर्यावरण पर भी खास कंटेंट मिलता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post