हर दिन बिजली गुल, थोड़ी सी भी भरोसेमंद नहीं, और पैसे की भी दिक्कत... ऐसे में क्या सोलर पावर गाँव-देहात के लिए, खासकर बिहार के लिए, टिकने वाला जुगाड़ हो सकता है? और सरकार की योजनाएँ ज़मीन पर कितनी काम कर रही हैं?
अरे भाई, गाँव में शाम होते ही हैंडपंप जवाब दे जाता है, पंखा घूमना बंद, और जैसे ही अंधेरा होता है, लोग मोबाइल की टॉर्च जलाकर घर-गली में रास्ता खोजते हैं। ऐसा नज़ारा आज भी कई गाँवों में दिख जाता है। सरकार चाहे जो भी कहे, लेकिन सच तो यही है। वो तो कहते हैं कि 2024 में गाँव में लगभग 22 घंटे बिजली आ रही है, लेकिन बिहार जैसे राज्य में बिजली की सबसे ज़्यादा कमी 7.8% तक पहुँच गई है।
गाँव के लोग बताते हैं कि बिहार में तो दिन में 6 घंटे तक बिजली कट जाती है। इससे गाँव का जीवन और कारोबार सब ठप हो जाता है। पूरे देश में बिजली की कमी 2023-24 में 0.3% रही, लेकिन अलग-अलग राज्यों में ये आँकड़ा अलग है। और तो और, बिजली बाँटने में जो कमज़ोरी है, वो गाँव में ठीक से बिजली न पहुँचने का सबसे बड़ा कारण है।
पहले क्या होता था
बिजली का सिस्टम 2003 के कानून के बाद तीन हिस्सों में बँट गया - बिजली बनाना, बिजली पहुँचाना, और बिजली बाँटना। लेकिन गाँव-देहात में असली बदलाव तो तब आया, जब DDU-GJY और फिर RDSS जैसी योजनाएँ आईं। इनमें सब्सिडी दी जाती थी, पुराने बिजली के तारों को ठीक किया जाता था, और प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का वादा किया गया था। इससे सरकार पुराने शहर और गाँव के प्रोग्राम को मिलाकर काम को और बेहतर बनाना चाहती थी।
सौभाग्य जैसी स्कीम से घर-घर में बिजली तो पहुँच गई, लेकिन ठीक से बिजली न मिलना, लाइन में खराबी, और पैसे की वसूली में दिक्कत के कारण ये स्कीम ज़्यादा चल नहीं पाई। 2022-23 में तो राज्य की बिजली कंपनियों को एक यूनिट बिजली बनाने में 7.1 रुपये का खर्चा आया, लेकिन वो वसूल पाए सिर्फ 6.7 रुपये। और तो और, बिजली की चोरी और लाइन में नुकसान 15.4% रहा। ट्रांसमिशन लाइनें भी कई सालों में पूरी तरह से नहीं बन पाईं। ज़मीन के चक्कर और परमिशन मिलने में देरी ने भी सोलर पावर को ग्रिड में जोड़ने में दिक्कतें पैदा कीं, जिससे गाँव में बिजली की सप्लाई पर बुरा असर पड़ा।
अभी क्या चल रहा है
सरकार कह रही है कि 2023-24 में पूरे देश में बिजली की कमी 0.3% और पीक ऑवर में 1.4% रही। लेकिन बिहार में पीक ऑवर में बिजली की कमी 7.8% रही। इसका मतलब है कि राज्य में बिजली की सप्लाई अभी भी ठीक नहीं है। हाँ, एक अच्छी बात ये है कि बिहार की बिजली कंपनियों ने कहा है कि वो बिजली की चोरी और लाइन में नुकसान को 15.5% तक ले आएँगे, जो कि पूरे देश के औसत से कम है। लेकिन 2022-23 में तो ये नुकसान 25% था। अब देखना ये है कि ये सुधार कब तक टिकता है। दूसरी तरफ, बिहार में एक आदमी एक महीने में सिर्फ 348 यूनिट बिजली इस्तेमाल करता है, जो कि पूरे देश में सबसे कम है। इससे पता चलता है कि गाँव में बिजली की कमी का असर लोगों के काम-धंधे, खेती-किसानी, और पढ़ाई-लिखाई पर कितना पड़ रहा है।
लोगों का क्या कहना है
मुसहर बस्ती से लेकर गंडक के किनारे बसे गाँवों तक, हर जगह स्मार्ट प्रीपेड मीटर का विरोध हो रहा है। लोगों का कहना है कि बिजली कटने से पानी भी बंद हो जाता है। मजबूरी में लोग शिकायत करते हैं कि अब तो भरोसा भी उठ गया है। लेकिन जो कंपनियाँ बिना ग्रिड वाली और मिनी-ग्रिड वाली बिजली सप्लाई करती हैं, उनका कहना है कि गाँव के छोटे-मोटे कारोबारों को तो बस वोल्टेज की घट-बढ़ से छुटकारा चाहिए और भरोसेमंद बिजली चाहिए। एक मिनी-ग्रिड कंपनी के बड़े अफसर का कहना है कि ग्रिड से शायद सस्ती बिजली मिल जाए, लेकिन वो तो अच्छी क्वालिटी की बिजली देकर लोगों की कमाई बढ़ा रहे हैं। उनकी कंपनी बिहार और यूपी में 200 से ज़्यादा मिनी-ग्रिड चला रही है और आगे भी काम बढ़ाना चाहती है। बिजली कंपनियाँ और सरकार कहती हैं कि वो नुकसान कम कर रही हैं, प्रोजेक्ट जल्दी पूरे कर रही हैं, और RDSS के तहत मीटर और नेटवर्क को सुधार रही हैं, जिससे कामकाज में सुधार आ रहा है। सरकार तो इसे नई ऊँचाई कह रही है, लेकिन ज़मीन पर तो तभी पता चलेगा, जब गाँव में ज़्यादा घंटे बिजली मिलेगी और वोल्टेज ठीक रहेगा।
पॉलिसी में क्या गड़बड़ है
RDSS के तहत स्मार्ट मीटर को बड़ा समाधान बताया गया, लेकिन जुलाई 2024 तक 22.2 करोड़ मीटर लगाने की मंजूरी मिलने के बावजूद सिर्फ 1.28 करोड़ मीटर ही लग पाए। इससे बिलिंग और वसूली में सुधार नहीं हो रहा है और गाँव में बिजली का नुकसान भी कम नहीं हो रहा है। PM-KUSUM के तहत खेतों में सोलर पंप लगाने और छोटे-छोटे प्लांट लगाने का टारगेट 2026 तक बढ़ा दिया गया है, लेकिन पैसे की कमी, राज्य सरकार की सब्सिडी, और काम में देरी के कारण ये योजना अभी तक सफल नहीं हो पाई है। सरकार का कहना है कि जनवरी 2024 तक 2.95 लाख से ज़्यादा ऑफ-ग्रिड सोलर पंप लगाए गए हैं, लेकिन छोटे-छोटे ग्रिड से जुड़े प्लांट लगाने में ज़्यादा तरक्की नहीं हुई है। रूफटॉप सोलर में भी 2022 का 40 GW का टारगेट पूरा नहीं हो पाया है, लेकिन हाल ही में इसमें तेज़ी आई है। 2025 की पहली तिमाही में 1.2 GW रूफटॉप जुड़ा और कुल 14.9 GW तक पहुँच गया। सरकार का डैशबोर्ड बताता है कि जुलाई 2025 तक लगभग 19.88 GW ग्रिड से जुड़े रूफटॉप हो जाएँगे, लेकिन गाँव के गरीब परिवारों के लिए अभी भी पैसे, मॉड्यूल की सप्लाई, और कानूनी अड़चनें बनी हुई हैं।
बिहार और दूसरे राज्य
रूफटॉप सोलर में गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहे हैं। 2025 की पहली तिमाही में गुजरात सबसे ऊपर रहा। इससे पता चलता है कि अगर सरकार मदद करे, नियम आसान हों, और बिजली कंपनियाँ और लोग मिलकर काम करें, तो काम तेज़ी से हो सकता है। रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाने में भी राज्यों में फर्क है। कुछ राज्यों ने 2022-23 में अपनी ज़रूरत से ज़्यादा रिन्यूएबल एनर्जी खरीदी, जबकि बिहार में ये आँकड़ा सिर्फ 16% था। इससे गाँव में बिजली की भरोसेमंद सप्लाई और ग्रीन एनर्जी पर असर पड़ता है। पूरे देश में बिजली की माँग और सप्लाई में सुधार हुआ है, लेकिन CEA की रिपोर्ट बताती है कि राज्यों में बिजली पहुँचाने में दिक्कतें और कोयला-पानी से बिजली बनाने में परेशानी के कारण गाँव में बिजली की सप्लाई अभी भी कमज़ोर है।
सोलर से क्या हो सकता है
बिहार के गाँव में खेतों के पास 500 kW से 2 MW तक के छोटे-छोटे सोलर प्लांट, PM-KUSUM के पंप, और मिनी-ग्रिड लगाकर सिंचाई, छोटे कारोबार, और स्कूल-अस्पताल जैसी जगहों पर बिजली पहुँचाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए बिजली के तारों को अलग करना होगा, समय पर पेमेंट करना होगा, और बिजली कंपनियों के साथ PPA का समझौता करना होगा। मिनी-ग्रिड मॉडल से छोटे कारोबारों को अच्छी क्वालिटी की बिजली मिल रही है और बिहार-यूपी में ये फैल भी रहा है। लेकिन इसे और बढ़ाने के लिए सरकार को नियम बनाने होंगे, टैरिफ को ठीक करना होगा, और पैसे आसानी से मिलने चाहिए। रूफटॉप में PM सूर्य-घर के तहत लोगों को तेज़ी से फायदा मिल रहा है, लेकिन गाँव के गरीबों के लिए अभी भी पैसे, मॉड्यूल की उपलब्धता, और पोर्टल/कंपनी के चक्कर काटना मुश्किल है।
सरकार, विरोधी पार्टियाँ और जानकार लोग
सरकार कह रही है कि वो बिजली की चोरी कम कर रही है, RDSS में पैसा लगा रही है, और स्मार्ट मीटर लगा रही है, जिससे बिजली की सप्लाई अच्छी हो रही है और पैसे की बचत हो रही है। बिहार सरकार भी यही कह रही है। लेकिन विरोधी पार्टियाँ और गाँव के लोग सवाल उठा रहे हैं कि स्मार्ट मीटर ठीक से नहीं लग रहे हैं, अचानक बिजली कट जाती है, और कोई बात भी नहीं करता है। गाँव में लोग विरोध कर रहे हैं और बिजली काटने के आरोप लगा रहे हैं। जानकार लोगों का कहना है कि पूरे देश में हालात शायद बेहतर हो रहे हैं, लेकिन असली बात तो ये है कि गाँव में 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए, वोल्टेज ठीक रहना चाहिए, और खेती-किसानी और छोटे कारोबार के लिए अच्छी बिजली मिलनी चाहिए। इसके लिए बिजली के तारों को मज़बूत करना होगा, बिजली को स्टोर करना होगा, और सोलर पावर को गाँव में ही लगाना होगा।
आखिर में
गाँव में बिजली का मतलब सिर्फ कनेक्शन देना नहीं है, बल्कि भरोसेमंद बिजली, कम बिल, और अच्छी क्वालिटी का वोल्टेज देना है। यहीं पर गाँव में बिजली की किल्लत और सोलर पावर के मौके मिलते हैं। अगर RDSS के तहत मीटर और नेटवर्क को सुधारा जाए, PM-KUSUM के तहत पैसे और डिज़ाइन को ठीक किया जाए, और PM सूर्य-घर के प्रोसेस को आसान बनाया जाए, तो बिहार जैसे राज्यों में अंधेरी शाम को हमेशा के लिए उजाले में बदला जा सकता है। सवाल ये नहीं है कि सोलर पावर से समाधान होगा या नहीं, सवाल ये है कि सरकार कितनी जल्दी और कितनी ईमानदारी से लोगों तक मदद पहुँचाती है।
कुछ ज़रूरी बातें
- 2023-24 में पूरे देश में बिजली की कमी: 0.3%; पीक ऑवर में कमी: 1.4%
- 2023-24 में बिहार में पीक ऑवर में बिजली की कमी: 7.8%
- बिहार में बिजली की चोरी और लाइन में नुकसान: 2022-23 में 25%; 2024-25 में 15.5% तक लाने का दावा
- गाँव में बिजली की सप्लाई (सरकार का अनुमान, 2024): 21.9 घंटे; मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 6 घंटे कटती है
- एक आदमी एक महीने में कितनी बिजली इस्तेमाल करता है (मार्च 2023): बिहार 348 kWh—देश में सबसे कम
- रूफटॉप सोलर: 2025 की पहली तिमाही में 1.2 GW जोड़कर कुल 14.9 GW; जुलाई 2025 तक लगभग 19.88 GW होने का अनुमान
- PM-KUSUM: 31 जनवरी 2024 तक 2.95 लाख से ज़्यादा ऑफ-ग्रिड सोलर पंप लगे; टारगेट पूरा करने में देरी और राज्य सरकार की सब्सिडी में दिक्कत
आपसे कुछ सवाल
- क्या RDSS के स्मार्ट मीटर और लाइन को ठीक किए बिना गाँव में 24 घंटे बिजली मिल सकती है, या सोलर पावर ही सबसे आसान तरीका है?
- PM-KUSUM को किसानों के लिए आसान बनाने के लिए पैसे (CAPEX/OPEX), सब्सिडी और PPA में क्या बदलाव करने चाहिए?
- क्या बिहार को मिनी-ग्रिड/रूफटॉप के लिए गुजरात जैसे राज्य सरकार के मॉडल और आसान प्रोसेस को अपनाना चाहिए?
- गाँव के लोगों का विरोध और भरोसे की कमी को दूर करने के लिए स्मार्ट मीटर/टैरिफ को कैसे लागू करना चाहिए?
