योजनाओं, मॉनिटरिंग और दावों के बीच क्यों टूटी सड़कों और अधूरे संपर्क मार्गों की खबरें लगातार आती हैं—आंकड़ों, रिपोर्टों और ज़मीनी आवाज़ों के साथ एक पड़ताल
लखीसराय जिले के चानन इलाके में इस बार सावन की झमाझम बारिश क्या हुई, नई बनी सड़कें ताश के पत्तों की तरह उखड़ गईं। एंबुलेंस भी कीचड़ में फँस गई। गाँव वालों का कहना है कि हर साल यही हाल होता है। दूसरी तरफ, सरकारी कागज़ों में सड़कों की तीन-स्तरीय जाँच और मरम्मत का दावा किया जा रहा है। तो सवाल यह है कि सड़कें और सरकारी वादे, दोनों क्यों टूट रहे हैं?
क्या है मामला
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) साल 2000 में शुरू हुई थी, ताकि गाँवों को सड़कों से जोड़ा जा सके। इसके बाद अलग-अलग चरणों में सड़कों को बेहतर बनाने और नक्सल प्रभावित इलाकों पर ध्यान दिया गया। हाल ही में, इसके चौथे चरण को मंजूरी मिली है, जिससे लाखों ग्रामीणों को हर मौसम में इस्तेमाल होने वाली सड़कें मिल सकें। इस योजना में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर 60:40 के अनुपात में पैसे लगाती हैं (कुछ विशेष राज्यों को छोड़कर)। ठेकेदार को पाँच साल तक सड़कों की मरम्मत करनी होती है, जिसे ई-मार्ग (eMARG) नाम के सिस्टम से देखा जाता है। सरकार के मुताबिक, तीन स्तरों पर क्वालिटी कंट्रोल होता है - PIU, राज्य स्तर पर SQM और राष्ट्रीय स्तर पर NQM। ये टीमें लगातार जाँच करती हैं और अगर कोई कमी मिलती है, तो ठेकेदार को अपने खर्च पर उसे ठीक करना होता है।
बिहार की हालत:
बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग के अनुसार, बिहार उन राज्यों में शामिल है जहाँ गाँवों में सड़कों की हालत बहुत खराब है। यहाँ 1,29,209 गाँवों की पहचान की गई है, जिनमें से सिर्फ 68,174 को ही बारहमासी सड़कों से जोड़ा जा सका है। इसका मतलब है कि लगभग 61,035 गाँवों तक अभी भी सड़कें पहुँचाना बाकी है। हालाँकि, बिहार सरकार ने PMGSY और अपनी योजनाओं - मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना और उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री ग्राम संपर्क योजना (MMGSY) - के ज़रिए 68,591 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनाई हैं, लेकिन 60,882 किलोमीटर सड़कें अभी भी बननी बाकी हैं। सरकार का कहना है कि छोटी आबादी वाले गाँवों को ग्रामीण टोला संपर्क निश्चय योजना (GTSNY) के तहत बारहमासी सड़कों से जोड़ा जा रहा है। इस योजना में 100 से 249 लोगों वाले गाँवों को जोड़ा जा रहा है।
अभी क्या हो रहा है?
PMGSY के डैशबोर्ड के अनुसार, पूरे देश में 8,36,850 किलोमीटर सड़कों को बनाने की मंजूरी मिली थी, जिनमें से 7,81,209 किलोमीटर बन चुकी हैं। अब 2024-29 के लिए 62,500 किलोमीटर का नया लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिए लगभग 70,125 करोड़ रुपये खर्च होंगे। जनवरी 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में PMGSY के तहत कुल 72,140.87 किलोमीटर में से 59,710.95 किलोमीटर सड़कें बन चुकी हैं और 4,073.99 किलोमीटर बाकी हैं। इससे पता चलता है कि राज्य में काम तो हो रहा है, लेकिन अभी भी काफी कुछ करना बाकी है। 2024-25 में ग्रामीण कार्य विभाग ने 4,818 किलोमीटर सड़कों और 852 पुलों के निर्माण की जानकारी दी है। विभाग ने 5,250 किलोमीटर से ज़्यादा नई ग्रामीण सड़कों को बनाने की मंजूरी भी दी है। राज्य के मंत्री ने यह भी कहा है कि PMGSY सड़कों पर 1,000 पुल बनाए जाएंगे, ताकि नदियों और नालों के कारण होने वाली परेशानी को कम किया जा सके।
ज़मीनी हकीकत
स्थानीय अखबारों की खबरों के मुताबिक, चानन जैसे इलाकों में PMGSY से बनी सड़कें जल्दी टूट रही हैं, क्योंकि उनकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। बारिश में सड़कें खराब हो जाती हैं और लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है। लोकसभा की एक समिति ने भी कहा है कि PMGSY में कई जगह खराब क्वालिटी की सड़कें बनाई जा रही हैं, जो बिल्कुल भी ठीक नहीं है। समिति ने यह भी कहा है कि कम कीमत पर ठेका देने और सड़कों की मरम्मत पर ध्यान न देने से भी दिक्कतें हो रही हैं। सरकार का कहना है कि NQM और SQM की टीमें लगातार जाँच कर रही हैं और IT सिस्टम से भी निगरानी रखी जा रही है। अगर कोई कमी मिलती है, तो उसे ठीक किया जाता है। सरकार का यह भी कहना है कि हाल के सालों में सड़कों की क्वालिटी में सुधार हुआ है।
क्वालिटी कंट्रोल
कागज़ पर तो ऐसा लगता है कि सड़कों की तीन स्तरों पर जाँच हो रही है, वारंटी भी है और ई-मार्ग जैसा सिस्टम भी है। लेकिन ज़मीन पर कई दिक्कतें हैं, जैसे कि कम कीमत पर ठेका देना, घटिया सामग्री का इस्तेमाल करना, पानी की निकासी का सही इंतजाम न होना और समय पर मरम्मत न करना। इन कमियों को दूर करने के लिए सरकार ने eMARG से QR कोड को जोड़ना ज़रूरी कर दिया है। इससे लोग सीधे सड़कों की हालत के बारे में जानकारी दे सकते हैं और फोटो भी अपलोड कर सकते हैं। इन जानकारियों का इस्तेमाल AI/ML की मदद से सड़कों की परफॉर्मेंस को मापने में किया जाएगा। फिर भी, अगर कोई बाहरी एजेंसी सही तरीके से जाँच नहीं करती है, ठेके की शर्तों का पालन नहीं होता है और समय पर भुगतान नहीं होता है, तो इन सिस्टम का कोई खास फायदा नहीं होगा।
बिहार और दूसरे राज्य
एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने 70,615.72 किलोमीटर PMGSY सड़कें बनाई हैं, जो बिहार के 59,710.95 किलोमीटर से ज़्यादा है। इससे पता चलता है कि बिहार को सड़कों के निर्माण की गति को और तेज़ करने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों ने PMGSY-III में बड़े पैमाने पर काम किया है, जबकि बिहार में PMGSY-III के तहत 6,162.89 किलोमीटर सड़कों को बनाने की मंजूरी मिली थी, जिनमें से 2,818.31 किलोमीटर बन चुकी हैं और 3,323.37 किलोमीटर बाकी हैं। इससे पता चलता है कि बिहार को सड़कों के निर्माण पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है।
दूसरे देशों से सीख
वियतनाम में ग्रामीण सड़क योजनाओं का मूल्यांकन किया गया, जिसमें पाया गया कि सड़कों को बेहतर बनाने से अस्पताल पहुँचने में लगने वाला समय लगभग 45 मिनट कम हो गया और गरीब लोगों को ज़्यादा फायदा हुआ। इससे पता चलता है कि अगर सड़कों की क्वालिटी अच्छी हो और उनकी मरम्मत समय पर हो, तो लोगों को सीधा फायदा होता है। वियतनाम में सड़कों की मरम्मत और पर्यावरण को बचाने पर भी ध्यान दिया गया था। भारत को भी इससे सीख लेनी चाहिए। सबसे ज़रूरी बात यह है कि सिर्फ सड़कें बनाने से काम नहीं चलेगा, उनकी मरम्मत पर भी ध्यान देना होगा।
क्या हैं कमियां?
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक तरफ तो सरकार कह रही है कि सड़कों की क्वालिटी में सुधार हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ संसदीय समिति और स्थानीय खबरों में कम कीमत पर ठेका देने, घटिया क्वालिटी की सड़कें बनाने और मरम्मत पर ध्यान न देने की बात कही जा रही है। बिहार सरकार MMGSY और GTSNY जैसी योजनाओं से छोटे गाँवों को सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य बना रही है, लेकिन सरकार का यह भी कहना है कि अभी भी कई गाँवों तक सड़कें पहुँचाना बाकी है, जिसके लिए लगभग 65,500 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी। QR कोड और eMARG जैसी तकनीक अच्छी पहल हैं, लेकिन अगर समय पर मरम्मत नहीं होती है, पानी की निकासी का सही इंतजाम नहीं होता है और बाहरी एजेंसी से जाँच नहीं कराई जाती है, तो इनका कोई खास फायदा नहीं होगा।
अलग-अलग राय
सरकार का कहना है कि तीन स्तरों पर जाँच हो रही है, सड़कों की क्वालिटी में सुधार हो रहा है और eMARG व QR कोड जैसी पहलों से पारदर्शिता बढ़ रही है। सरकार का यह भी कहना है कि अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है। वहीं, विपक्ष और विशेषज्ञों का कहना है कि कम कीमत पर ठेका देने से बचना चाहिए, निगरानी करने वाली एजेंसी स्वतंत्र होनी चाहिए और सड़कों की मरम्मत पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। लोगों का कहना है कि बारिश और बाढ़ में सड़कें खराब हो जाती हैं, पुल और ड्रेनेज सिस्टम ठीक नहीं हैं और समय पर मरम्मत नहीं होती है, जिससे उन्हें रोज़ाना परेशानी होती है। उनका कहना है कि सिर्फ उद्घाटन करने से कुछ नहीं होगा, सड़कों को टिकाऊ बनाना होगा और उनकी मरम्मत पर ध्यान देना होगा।
निष्कर्ष
ग्रामीण सड़कें सिर्फ मिट्टी और डामर नहीं हैं, बल्कि ये स्कूल, अस्पताल, बाज़ार और तरक्की के रास्ते हैं। इसलिए सड़कों की क्वालिटी और गाँवों को सड़कों से जोड़ने के मामले में हर किलोमीटर की जवाबदेही तय होनी चाहिए। बिहार को अब डिज़ाइन, ड्रेनेज और मटीरियल पर ध्यान देना होगा, बाहरी एजेंसी से जाँच करानी होगी, कम कीमत पर ठेका देने से बचना होगा, eMARG और QR कोड से मिलने वाली जानकारी का सही इस्तेमाल करना होगा और ठेकेदारों को सड़कों की मरम्मत के लिए मजबूर करना होगा। तभी सड़कें वादों की तरह टिकेंगी। जब गाँव सड़कों से जुड़ेंगे, तभी सही मायने में विकास होगा और लोगों को सुरक्षित सड़कें मिलेंगी।
कुछ खास बातें
- भारत में PMGSY के तहत 8,36,850 किलोमीटर सड़कों को बनाने की मंजूरी मिली थी, जिनमें से 7,81,209 किलोमीटर बन चुकी हैं। 2024-29 में 62,500 किलोमीटर का नया लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिए लगभग 70,125 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
- बिहार में PMGSY के तहत कुल 72,140.87 किलोमीटर में से 59,710.95 किलोमीटर सड़कें बन चुकी हैं और 4,073.99 किलोमीटर बाकी हैं (03.01.2024 के अनुसार)।
- बिहार में 1,29,209 गाँवों में से 68,174 गाँवों को सड़कों से जोड़ा गया है; लगभग 61,035 गाँवों को अभी भी सड़कों से जोड़ा जाना बाकी है।
- 2024-25 में 4,818 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें और 852 पुल बनाए गए; 5,250 किलोमीटर से ज़्यादा नई सड़कों को बनाने की मंजूरी दी गई।
- PMGSY में सड़कों की क्वालिटी की जाँच तीन स्तरों पर होती है - PIU, SQM और NQM। अगर कोई कमी मिलती है, तो ठेकेदार को अपने खर्च पर उसे ठीक करना होता है।
- सरकार ने eMARG से QR कोड को जोड़ना ज़रूरी कर दिया है, जिससे लोग सीधे सड़कों की हालत के बारे में जानकारी दे सकते हैं और फोटो भी अपलोड कर सकते हैं।
- संसदीय समिति ने कहा है कि कम कीमत पर ठेका देने और सड़कों की मरम्मत पर ध्यान न देने से दिक्कतें हो रही हैं।
- वियतनाम में सड़कों को बेहतर बनाने से अस्पताल पहुँचने में लगने वाला समय लगभग 45 मिनट कम हो गया और गरीब लोगों को ज़्यादा फायदा हुआ।
कुछ सवाल
- क्या QR कोड और eMARG जैसी तकनीकों से सड़कों की मरम्मत और जवाबदेही तय हो पाएगी या फिर बाहरी एजेंसी से जाँच कराना और ठेकेदारों पर जुर्माना लगाना ज़रूरी होगा?
- कम कीमत पर ठेका देने से बचने और डिज़ाइन व मटीरियल के नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
- MMGSY और GTSNY जैसी योजनाओं के ज़रिए छोटे गाँवों को सड़कों से जोड़ने में क्या दिक्कतें आ रही हैं - पैसे की कमी, ज़मीन की दिक्कत, डिज़ाइन की दिक्कत या काम करने की क्षमता की कमी?
- वियतनाम जैसे देशों से सीख लेकर बिहार अपने ग्रामीण सड़क नेटवर्क को बेहतर कैसे बना सकता है?
