पर्यावरण का संकट गहराता जा रहा है: गंगा और भारत की नदियों में प्रदूषण, प्लास्टिक बैन की सच्चाई क्या है?
हमारी नदियां, खासकर गंगा, खतरे में हैं। सीवेज, कारखानों से निकलने वाले कचरे और प्लास्टिक ने इन्हें बीमार कर दिया है। नियम और कानून तो बहुत बने, अभियान भी चले, लेकिन प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा। ऐसा लगता है कि सब कुछ बस कागजों पर ही है।
जुलाई 1, 2022 से प्लास्टिक पर बैन लगा दिया गया। नमामि गंगे योजना के तहत खूब पैसा भी लगाया गया। लेकिन अगर हम असलियत देखें, जमीनी हकीकत, अदालती मामलों और विशेषज्ञों की राय को सुनें, तो पता चलता है कि सुधार बहुत कम हुआ है, और जो हुआ भी है, वह अधूरा है।
क्या हो रहा है
311 जगहों पर नदियां दूषित पाई गई हैं। बिहार में गंगा के 34 घाटों पर फीकल कोलीफॉर्म (मल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया) की मात्रा खतरनाक स्तर से ऊपर है। प्लास्टिक पर बैन लगने के बाद भी, कायदे-कानूनों का पालन ठीक से नहीं हो रहा है। ये सब देखकर लगता है कि नीतियां तो बन गईं, पर उन्हें लागू करने में हम बहुत पीछे हैं।
गंगा किनारे की सच्चाई
पटना के गायघाट से बक्सर तक, गंगा किनारे आरती तो होती है, दीये भी जलते हैं, लेकिन उसी पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि उसमें नहाना तो दूर, उसे छूना भी खतरे से खाली नहीं है। बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खुद कहा है कि 2020-21 में 34 जगहों पर गंगा के पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा नहाने लायक स्तर से कहीं ज़्यादा पाई गई। ये देखकर बहुत दुख होता है।
क्या है मामला
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) 2009 से नदियों की जांच कर रहा है। वे देखते हैं कि नदियों में कितना प्रदूषण है और फिर प्रदूषित जगहों की पहचान करते हैं। 2022 में उन्होंने एक रिपोर्ट निकाली। इसमें पता चला कि 2018 में 351 प्रदूषित जगहें थीं, जो 2022 में घटकर 311 हो गईं। थोड़ा सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत काम करना बाकी है। 108 जगहें ऐसी हैं जहां प्रदूषण बहुत ज़्यादा है, और उन पर ध्यान देना ज़रूरी है।
दूसरी तरफ, सरकार ने प्लास्टिक के कचरे को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। 2021-22 में नियमों में बदलाव किए गए, 2022 में सिंगल-यूज प्लास्टिक (एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक) पर बैन लगा दिया गया, और उत्पादकों को भी कचरे के लिए ज़िम्मेदार बनाया गया।
अभी के आंकड़े, रिपोर्ट और केस स्टडी
- CPCB के अनुसार, 2022 में 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 279 नदियों में 311 जगहें प्रदूषित पाई गईं। ये 2018 के 351 से कम है, लेकिन समस्या अभी भी गंभीर है।
- बिहार में, बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB) ने अदालत को बताया कि 2020-21 से गंगा के 34 घाटों पर फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा तय मानकों से ज़्यादा है। पटना के गायघाट पर 2020-21 में ये मात्रा 1,60,000 MPN/100 ml तक पहुंच गई थी, और अभी भी 20,000 MPN/100 ml है। जबकि नहाने के लिए ये मात्रा 500–2,500 MPN/100 ml से कम होनी चाहिए।
- दिल्ली में यमुना नदी में भी बहुत प्रदूषण है। 2024-25 में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा बहुत ज़्यादा बढ़ गई, जो सुरक्षित स्तर से हज़ारों गुना ऊपर थी। इसका मतलब है कि शहरों का सीवेज अभी भी नदियों में जा रहा है, और उसे साफ करने का कोई इंतज़ाम नहीं है।
- नमामि गंगे योजना के तहत सरकार 2025 तक 3,780–3,781 MLD क्षमता वाले 136–167 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) बनाने का दावा कर रही है। सरकार ये भी कह रही है कि नदियों में ऑक्सीजन की मात्रा (DO) में सुधार हुआ है।
- प्लास्टिक बैन: सरकार ने 1 जुलाई 2022 से कई सिंगल-यूज प्लास्टिक आइटम, जैसे इयर-बड स्टिक, कप, प्लेट, कटलरी, स्ट्रॉ और 100 माइक्रोन से पतले बैनर पर पूरे देश में बैन लगा दिया।
- कार्रवाई: सरकार का कहना है कि जुलाई 2022 से उन्होंने देशभर में 8.5 लाख से ज़्यादा जगहों पर जांच की, 3.44 लाख उल्लंघन पाए, लगभग ₹19.05 करोड़ का जुर्माना लगाया, और 19.5 लाख किलो प्लास्टिक जब्त किया।
कौन क्या कहता है
- हिंदुस्तान टाइम्स और TOI में छपी खबरों के अनुसार, BSPCB के पूर्व अध्यक्ष अशोक घोष का कहना है कि 2022 में सख्ती दिखाने के बाद, सिंगल-यूज प्लास्टिक पर पकड़ ढीली हो गई है। बाजारों में फिर से खुलेआम प्लास्टिक की थैलियां बिक रही हैं। उन्होंने कहा कि सख्त कानून, निर्माताओं पर निगरानी और उपभोक्ताओं पर जुर्माना लगाना ज़रूरी है।
- दिल्ली में जल संसाधन के पूर्व सचिव एस के सरकार का कहना है कि “जब तक 100% सीवेज ट्रीटमेंट नहीं होगा, यमुना साफ नहीं होगी।” ये बात गंगा नदी के किनारे बसे शहरों पर भी लागू होती है। BSPCB ने अदालत में माना है कि घरों से निकलने वाला ज़्यादातर सीवेज बिना ट्रीटमेंट के ही गंगा में जा रहा है। कई शहरों में नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बन रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत कमी है।
क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए
- सरकार का कहना है कि गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा (DO) में सुधार हुआ है और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ाई जा रही है। लेकिन बिहार में 34 जगहों पर गंगा के पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा अभी भी खतरनाक स्तर से ऊपर है। इससे पता चलता है कि सरकार जो कह रही है और जो असलियत है, उसमें बहुत फर्क है। शहरों में सीवेज मैनेजमेंट ठीक से नहीं हो रहा है। CPCB की 2022 की रिपोर्ट में प्रदूषित जगहों की संख्या में कमी दिखाई गई है, लेकिन अभी भी बहुत काम करना बाकी है।
- प्लास्टिक बैन के बाद भी, बाजारों में सिंगल-यूज प्लास्टिक फिर से दिखाई देने लगी है। इसका मतलब है कि कायदे-कानूनों का पालन ठीक से नहीं हो रहा है।
- बिहार में सीवेज की समस्या: BSPCB के अनुसार, बिहार में हर दिन लगभग 1,100 MLD सीवेज निकलता है, लेकिन उसे ट्रीट करने की क्षमता सिर्फ 343 MLD है। पटना, बाढ़, मुंगेर, सोनपुर, मनेर, दानापुर, फुलवारी शरीफ जैसे शहरों में नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी बहुत कमी है।
- राज्य में प्लास्टिक बैन तो लगा दिया गया है, लेकिन इसका पालन ठीक से नहीं हो रहा है।
दूसरे राज्यों का हाल
- दिल्ली में यमुना नदी का हाल भी बहुत बुरा है। शहरों से निकलने वाला सीवेज नदियों को प्रदूषित कर रहा है। सर्दियों में नदी में झाग बन जाता है, क्योंकि प्रदूषण बहुत ज़्यादा होता है।
- दूसरी तरफ, सरकार का कहना है कि नमामि गंगे योजना के तहत कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए हैं, जिससे नदियों में सुधार हुआ है। लेकिन अगर इन प्लांटों को ठीक से नहीं चलाया गया तो ये बेकार हो जाएंगे।
- प्लास्टिक बैन को लागू करने के लिए सरकार ने कई अभियान चलाए हैं, लेकिन बाजारों में प्लास्टिक का इस्तेमाल अभी भी हो रहा है। सरकार को प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों पर भी ध्यान देना होगा।
विशेषज्ञों की राय
सरकार का कहना है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनने से नदियों में सुधार हो रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक 100% सीवेज ट्रीटमेंट नहीं होगा, नदियां साफ नहीं होंगी। लोगों को भी जागरूक होना होगा और प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना होगा।
क्या करना चाहिए
- शहरों के नालों को नदियों में मिलने से रोकना चाहिए।
- कारखानों पर निगरानी रखनी चाहिए और देखना चाहिए कि वे कचरा नदियों में न डालें।
- पानी की जांच करके लोगों को बताना चाहिए कि पानी कितना साफ है।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को समय पर पूरा करना चाहिए और उन्हें ठीक से चलाना चाहिए।
- प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों पर निगरानी रखनी चाहिए और प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए।
- अदालतों को भी इस मामले में ध्यान देना चाहिए और सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि वह नदियों को साफ करने के लिए ज़रूरी कदम उठाए।
- लोगों को भी नदियों को साफ रखने में मदद करनी चाहिए और कचरा नदियों में नहीं डालना चाहिए।
गंगा और दूसरी नदियों को बचाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। जब तक हम सीवेज को ठीक से ट्रीट नहीं करेंगे और प्लास्टिक के कचरे को कम नहीं करेंगे, तब तक हमारी नदियां साफ नहीं होंगी।
आंकड़े
- 311 जगहें ऐसी हैं जहां नदियां प्रदूषित पाई गई हैं।
- बिहार में 34 जगहों पर गंगा के पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा खतरनाक स्तर से ऊपर है।
- नमामि गंगे योजना के तहत कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जा रहे हैं।
- 1 जुलाई 2022 से कई सिंगल-यूज प्लास्टिक आइटम पर बैन लगा दिया गया है।
- प्लास्टिक बैन के बाद सरकार ने कई जगहों पर जांच की है और जुर्माना लगाया है।
आपसे कुछ सवाल
- क्या लोगों को मिलकर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की निगरानी नहीं करनी चाहिए?
- प्लास्टिक बैन को लागू करने में कहां कमी है?
- क्या सरकार को पानी की जांच करके लोगों को बताना नहीं चाहिए कि पानी कितना साफ है?
- बिहार में नदियों को साफ करने के लिए क्या करना चाहिए?
