परिचय
देहरादून में जनवरी 2025 में एक अनोखी चीज़ हुई। उत्तराखंड के यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के तहत, देश का पहला लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) रजिस्ट्रेशन हुआ। कुछ जोड़े इसे लेकर थोड़े हिचकिचा रहे थे, क्योंकि उन्हें अपनी प्राइवेसी (Privacy) का डर था। ये वाकया दिखाता है कि भारत में आज के रिश्तों को लोग किस नज़र से देखते हैं और सरकार इसमें क्या रोल (Role) निभा रही है।
2021 में एक सर्वे (Survey) हुआ था, जिसमें पता चला कि ज़्यादातर भारतीय चाहते हैं कि लोग अपनी जाति या समुदाय में ही शादी करें। इससे पता चलता है कि कानून तो आगे बढ़ रहा है, लेकिन लोगों की सोच अभी भी पुरानी है। अभी भी बहुत कम लोग (5-10%) दूसरी जातियों में शादी करते हैं। इससे पता चलता है कि हमारे समाज में पुरानी परंपराएँ कितनी गहरी हैं। हालाँकि, अच्छी बात यह है कि युवाओं की सोच बदल रही है। 2007 से 2016 के बीच दूसरी जाति में शादी करने को लेकर लोगों की स्वीकृति बढ़ी है। ये बदलाव अच्छा है, क्योंकि रिश्ते सिर्फ़ दो लोगों के बीच की बात नहीं है। इससे सामाजिक-आर्थिक हालात, मानसिक सेहत और लोगों के अधिकारों पर भी असर पड़ता है। भारत की अदालतें भी कह चुकी हैं कि जीवनसाथी चुनना हर इंसान का निजी मामला है और ये उसकी आज़ादी का हिस्सा है।
समस्या की जड़
2021 में प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) ने एक रिपोर्ट (Report) निकाली। इसमें पता चला कि लगभग दो-तिहाई (Two-Third) भारतीय नहीं चाहते कि उनके समुदाय के लोग किसी दूसरे धर्म में शादी करें। ऐसा हिंदू और मुसलमान, दोनों ही समुदायों में देखने को मिलता है। ये सोच परिवारों और शादियों को लेकर लोगों के विचारों को तय करती है। यही वजह है कि आज भी ज़्यादातर शादियाँ परिवार वाले ही तय करते हैं, जबकि लव मैरिज (Love Marriage) कम होती हैं। IHDS और दूसरी स्टडीज़ (Studies) में भी यही बात सामने आई है कि लगभग 95% शादियाँ अपनी ही जाति में होती हैं। कुछ जगहों पर तो ये आंकड़ा और भी ज़्यादा है। पश्चिमी भारत में कुछ लोग दूसरी जातियों में शादी करते हैं, लेकिन पूरे देश में ऐसा बहुत कम होता है।
मीडिया (Media) और सामाजिक कार्यकर्ताओं (Social workers) का कहना है कि जो लोग अलग-अलग धर्मों में शादी करते हैं, उन्हें समाज से दूर कर दिया जाता है, उन्हें धमकियाँ मिलती हैं और कानूनी अड़चनें भी आती हैं। इसकी वजह से लोग अपनी मर्ज़ी से शादी करने से डरते हैं।
समाज और दिमाग पर असर
जो लोग दूसरी जाति या धर्म में शादी करते हैं, उन्हें डर लगता है कि समाज उन्हें अपनाएगा या नहीं। इसलिए, कई जोड़े अपनी पहचान छुपाते हैं और छुप-छुपाकर रहते हैं। इससे उन्हें काफ़ी तनाव होता है। परिवार वाले उनसे रिश्ता तोड़ लेते हैं, जिससे उनकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में, काउंसलिंग (Counseling), सुरक्षित घर और कानूनी मदद बहुत ज़रूरी हो जाती है। अगर समुदाय (Community) उनका साथ दे और उन्हें कानूनी सुरक्षा मिले, तो उनके रिश्ते टिकने की संभावना बढ़ जाती है।
जेनरेशन गैप
युवा पीढ़ी अब दूसरी जातियों में शादी करने को लेकर ज़्यादा खुली सोच रखती है। 2007 से 2016 के बीच ऐसे लोगों की संख्या में 24% की बढ़ोतरी हुई है, जो दूसरी जाति में शादी करने को सही मानते हैं। हालाँकि, अलग-अलग धर्मों में शादी करने को लेकर अभी भी ज़्यादा विरोध है। लगभग 45% युवाओं का कहना है कि वे इसे बिल्कुल गलत मानते हैं। इससे पता चलता है कि धर्म आज भी लोगों के लिए कितना ज़रूरी है।
रिश्तों में मुश्किलें
जो लोग अलग-अलग धर्मों में शादी करते हैं, उन्हें स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act) के तहत शादी करने में दिक्कतें आती हैं। पहले, इसमें 30 दिन का नोटिस देना होता था, जिससे उनकी प्राइवेसी को खतरा होता था। हालाँकि, 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि ये नोटिस ज़रूरी नहीं है, जिससे लोगों को थोड़ी राहत मिली है।
इसके अलावा, ऑनर किलिंग (Honor Killing) का खतरा भी बना रहता है। NCRB और मीडिया रिपोर्ट्स (Media reports) के मुताबिक, 2019 और 2020 में 25-25 और 2021 में 33 ऑनर किलिंग के मामले दर्ज हुए थे। हालाँकि, असल में ये संख्या और भी ज़्यादा हो सकती है। परिवारों में धर्म और जाति को लेकर बहुत ज़्यादा मान-मर्यादा होती है, जिसकी वजह से कई बार जोड़ों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उन्हें कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है, समाज से दूर कर दिया जाता है और मानसिक तनाव भी होता है। इन खतरों को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में राज्यों को सुरक्षित घर और हेल्पलाइन (Helpline) जैसी सुविधाएँ देने का निर्देश दिया था।
क्या करें?
1. कानूनी मदद लें: स्पेशल मैरिज एक्ट के बारे में अच्छे से जान लें। किसी वकील (Lawyer) से सलाह लेकर अपनी शादी को कानूनी तौर पर सुरक्षित करें।
2. सुरक्षा लें: अगर आपको खतरा महसूस हो, तो पुलिस (Police) से मदद माँगें। सरकार ने सुरक्षित घर और हेल्पलाइन जैसी सुविधाएँ भी दी हैं।
3. अपनी पहचान छुपाएँ: अपनी पहचान और उम्र के कागज़ात (Documents) संभाल कर रखें। ऑनलाइन (Online) फ़ॉर्म भरते समय अपनी जानकारी को सुरक्षित रखें।
4. अपने अधिकारों के बारे में बात करें: अपने परिवार वालों को बताएँ कि सुप्रीम कोर्ट भी जीवनसाथी चुनने के अधिकार को सही मानता है।
5. समझौता करें: अगर आपके परिवार वाले नहीं मान रहे हैं, तो किसी बड़े-बुज़ुर्ग या काउंसलर (Counselor) की मदद लें।
एक सच्ची कहानी: हदिया मामला
केरल हाई कोर्ट ने हदिया नाम की एक लड़की की शादी को रद्द कर दिया था। लेकिन, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उस शादी को फिर से बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर इंसान को अपनी मर्ज़ी से जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। इस मामले से पता चलता है कि अदालतें लोगों की आज़ादी की रक्षा के लिए कितनी ज़रूरी हैं।
भारत और दुनिया
भारत में आज भी ज़्यादातर लोग अपनी जाति या धर्म में ही शादी करना चाहते हैं। लेकिन, अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहाँ लगभग 39% लोग अलग-अलग धर्मों में शादी करते हैं। इससे पता चलता है कि अलग-अलग देशों में लोगों की सोच अलग-अलग होती है।
कानून और नियम
स्पेशल मैरिज एक्ट (1954) अलग-अलग धर्मों के लोगों को शादी करने की इजाज़त देता है। 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी कहा कि शादी करने के लिए 30 दिन का नोटिस देना ज़रूरी नहीं है। ऑनर किलिंग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को कई निर्देश दिए हैं। उत्तराखंड में 2025 से लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर (Register) कराना ज़रूरी हो गया है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
- प्यू (2021): लगभग दो-तिहाई भारतीय नहीं चाहते कि उनके समुदाय के लोग किसी दूसरे धर्म में शादी करें।
- IHDS: बहुत कम लोग (5-6%) दूसरी जातियों में शादी करते हैं।
- युवाओं की सोच: 2007 से 2016 के बीच दूसरी जाति में शादी करने को लेकर लोगों की स्वीकृति बढ़ी है।
- ऑनर किलिंग: हर साल ऑनर किलिंग के कई मामले सामने आते हैं।
रिश्तों में क्या करें?
1. कानून को जानें: स्पेशल मैरिज एक्ट के बारे में जानकारी रखें।
2. सुरक्षा लें: खतरे की आशंका होने पर पुलिस से मदद माँगें।
4. बातचीत करें: परिवार वालों को अपने अधिकारों के बारे में बताएँ।
5. समझौता करें: अगर ज़रूरत पड़े तो किसी बड़े-बुज़ुर्ग या काउंसलर की मदद लें।
6. माहौल को समझें: अपने आस-पास के माहौल को देखकर ही कोई कदम उठाएँ।
अच्छी और बुरी बातें
अच्छी बातें: अदालतें लोगों के अधिकारों की रक्षा करती हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट से शादी करना आसान हो गया है। युवा पीढ़ी अब ज़्यादा खुली सोच रखती है।
बुरी बातें: समाज का विरोध, ऑनर किलिंग और सरकारी मदद की कमी।
भारत और दुनिया में क्या फ़र्क है?
भारत में धर्म और जाति को ज़्यादा महत्व दिया जाता है। अमेरिका में लोग अलग-अलग धर्मों में भी शादी कर लेते हैं।
सीख
2025 तक कानून में लोगों को ज़्यादा अधिकार मिलेंगे। युवा पीढ़ी की सोच बदल रही है। हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा और एक-दूसरे का साथ देना होगा।


