अकेलापन और डिप्रेशन 2025: परिवार, जेनरेशन गैप

एक ज़रूरी मुद्दा:

ज़रा सोचिए, एक घर में तीन लोग हैं, लेकिन तीनों अपनी-अपनी स्क्रीन में डूबे हुए हैं। बातें कम होती हैं, गलतफहमियां बढ़ती हैं, और अकेलापन महसूस होता है। ये आज की कड़वी सच्चाई है, जिसे दुनिया अकेलेपन की महामारी कह रही है।

कितनी बड़ी समस्या है ये?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2025 की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में छह में से एक इंसान अकेलेपन से जूझ रहा है। इस वजह से हर साल लगभग 8.71 लाख लोग समय से पहले मर जाते हैं। ये एक गंभीर समस्या है, जिस पर ध्यान देना ज़रूरी है। सामाजिक जुड़ाव अब सिर्फ़ एक अच्छी बात नहीं है, बल्कि ये हमारी सेहत के लिए ज़रूरी है।
अमेरिका के सर्जन जनरल का कहना है कि सामाजिक रूप से अलग-थलग रहना उतना ही बुरा है जितना कि एक दिन में 15 सिगरेट पीना। ये सिर्फ़ हमारे मन को नहीं, बल्कि हमारे शरीर और समाज को भी नुकसान पहुंचाता है। इसका असर हमारे रिश्तों, काम, पढ़ाई और समुदाय पर पड़ता है।

अकेलापन क्या है?

अकेलापन एक दर्दनाक भावना है जो तब होती है जब आपके रिश्ते उतने गहरे नहीं होते जितने आप चाहते हैं। सामाजिक अलगाव का मतलब है कि आपके पास कम रिश्ते हैं और आप लोगों से कम मिलते हैं। दोनों ही रिश्तों की क्वालिटी, भरोसे और सुरक्षा की भावना को ठेस पहुंचाते हैं।
पिछले 20 सालों में लोगों ने एक-दूसरे से मिलना-जुलना कम कर दिया है और अकेले ज़्यादा वक़्त बिता रहे हैं। इससे दोस्ती कम हो गई है और घर में साथ रहते हुए भी लोग एक-दूसरे के साथ कम वक़्त बिताते हैं।
दुनिया भर में अकेले रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। इससे सामाजिक सुरक्षा और दूसरों से मदद मिलने की उम्मीद कम हो जाती है। हालांकि, अकेले रहने वाले हर इंसान को अकेला कहना सही नहीं है।

अकेलेपन के बुरे असर:

मज़बूत सामाजिक जुड़ाव से शरीर में सूजन कम होती है, दिल की बीमारी, स्ट्रोक, डायबिटीज और डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है, और उम्र बढ़ती है। लेकिन अकेलापन इन सभी खतरों को बढ़ाता है और समय से पहले मौत का खतरा भी बढ़ जाता है।
जो लोग अकेला महसूस करते हैं, उनमें डिप्रेशन होने की संभावना लगभग दोगुनी होती है। इसके अलावा, उन्हें चिंता, खुद को नुकसान पहुंचाने के विचार, काम में मन न लगना और पढ़ाई में खराब प्रदर्शन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
किशोरों में अकेलापन होने से उनके ग्रेड खराब होने की संभावना 22% तक बढ़ जाती है। और समाज में लोगों के बीच संबंध टूटने से स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च और काम की क्षमता में कमी आ जाती है, जिससे अरबों का नुकसान होता है।

क्या युवा पीढ़ी ज़्यादा अकेली है?

अकेलापन हर उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन 13 से 29 साल के युवाओं में ये समस्या ज़्यादा देखी जाती है। लगभग 17 से 21% युवा अकेलापन महसूस करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आजकल युवा ज़्यादातर ऑनलाइन रहते हैं और उनके ऑफ़लाइन दोस्त कम होते हैं।
कम आय वाले देशों में अकेलेपन की दर लगभग 24% है, जबकि ज़्यादा आय वाले देशों में ये दर लगभग 11% है। इससे पता चलता है कि पैसे, सुविधाएं और भेदभाव जैसे कारणों से लोगों के अनुभव अलग-अलग होते हैं।
अमेरिका के सर्जन जनरल का कहना है कि लोगों के बीच जुड़ाव को बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि हम व्यक्तिगत, रिश्तों, समुदाय और सरकारी नीतियों पर ध्यान दें। युवाओं से बात करना, उन्हें ऑनलाइन सुरक्षित रहने के बारे में बताना, और उनके लिए सार्वजनिक जगहों को बेहतर बनाना ज़रूरी है।

परिवारों में क्या दिक्कतें आ रही हैं?

आजकल ज़्यादातर परिवार छोटे होते हैं और लोगों के पास वक़्त की कमी होती है। लोग एक-दूसरे से ज़्यादा फ़ोन में लगे रहते हैं, जिसकी वजह से परिवार में प्यार और समझ कम हो रही है। इससे गलतफहमियां, झगड़े और भरोसे की कमी जैसी समस्याएं हो रही हैं।
पार्क, लाइब्रेरी और सामुदायिक केंद्र जैसी जगहों की कमी होने से लोगों को एक-दूसरे से मिलने और बात करने का मौका नहीं मिल पाता है।
अकेलापन और डिप्रेशन की वजह से लोग एक-दूसरे से ठीक से बात नहीं करते। वे अपनी बातें छुपाते हैं, अपनी भावनाओं को दबाते हैं, और एक-दूसरे की आलोचना करते हैं। इससे रिश्तों में तनाव बढ़ता है, चाहे वो पति-पत्नी का रिश्ता हो, पैरेंटिंग हो या किसी की देखभाल करना हो।

कुछ ज़रूरी आंकड़े:

  • WHO की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में हर 6 में से 1 व्यक्ति अकेलेपन से जूझ रहा है।
  • अकेलेपन के कारण हर साल 8.71 लाख से ज़्यादा लोग समय से पहले मर जाते हैं।
  • अमेरिका के सर्जन जनरल के अनुसार, सामाजिक रूप से अलग-थलग रहना उतना ही बुरा है जितना कि एक दिन में 15 सिगरेट पीना।
  • भारत में 2017 में 19.73 करोड़ लोग मानसिक बीमारियों से पीड़ित थे, जिनमें 4.57 करोड़ डिप्रेशन और 4.49 करोड़ एंग्जायटी के मामले थे।

भारत और बाकी दुनिया में क्या हो रहा है?

दुनिया भर में अकेलेपन को एक गंभीर समस्या माना जा रहा है। WHO ने इससे निपटने के लिए नीतियां बनाने, रिसर्च करने, लोगों की मदद करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए एक योजना बनाई है।
भारत में टेलि-MANAS जैसी हेल्पलाइन शुरू की गई हैं, जो 24 घंटे लोगों को उनकी भाषा में काउंसलिंग की सुविधा देती हैं। 2024 तक इस हेल्पलाइन पर 10 लाख से ज़्यादा कॉल आ चुके हैं।
भारत में परिवार हमेशा से लोगों को सपोर्ट करते आए हैं, लेकिन आजकल शहरों में रहने वाले लोग और डिजिटल दुनिया में खोए रहने वाले लोगों को क्लीनिकल सपोर्ट और समुदाय से जुड़ने की ज़रूरत है।

एक सच्ची कहानी:

रीना और आदित्य दोनों काम करते हैं, और उनका बच्चा ऑनलाइन क्लास में व्यस्त रहता है। घर में सब एक साथ कम वक़्त बिताते हैं। रीना अकेलापन महसूस करती है और डिप्रेशन के लक्षण दिखाती है, जिससे उनके रिश्तों में दिक्कतें आती हैं।
ऐसी स्थिति में, छोटे-छोटे बदलाव करके रिश्तों को बेहतर बनाया जा सकता है। जैसे कि डिनर के दौरान फ़ोन का इस्तेमाल न करना, हर हफ़्ते साथ में टहलने जाना, और आस-पड़ोस के लोगों के साथ मिलकर कुछ करना।
अगर परेशानी बनी रहती है, तो टेलि-MANAS जैसे प्लेटफॉर्म से मदद लेना और रिश्तों को सुधारने की कोशिश करना ज़रूरी है।

अच्छी और बुरी बातें:

अगर हम लोगों को आपस में जोड़ते हैं, तो स्वास्थ्य संबंधी खतरे कम हो जाते हैं, लोग खुश रहते हैं और परिवारों में सहयोग और सुरक्षा की भावना लौट आती है। ये एक तरह से बीमारियों से बचने का एक अच्छा तरीका है।
लेकिन अगर अकेलापन बहुत लंबे समय तक रहता है, तो इससे डिप्रेशन, चिंता, सोचने-समझने की क्षमता में कमी और काम करने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं, जो परिवार को आर्थिक और भावनात्मक रूप से तोड़ सकती हैं।
ये याद रखना ज़रूरी है कि अकेले रहना और अकेलापन महसूस करना दोनों अलग बातें हैं। कभी-कभी अकेले रहना अच्छा होता है, लेकिन हमेशा अकेलापन महसूस करना सेहत के लिए हानिकारक होता है।

युवा पीढ़ी, तकनीक और बातचीत:

युवाओं में अकेलापन ज़्यादा देखा जाता है। इसका मतलब है कि ऑनलाइन दोस्तों की संख्या से ज़्यादा ज़रूरी है कि हमारे ऑफ़लाइन दोस्त हों और हम समुदाय में हिस्सा लें।
अलग-अलग पीढ़ी के लोगों की उम्मीदें और बातचीत करने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। इसलिए परिवार में खुलकर बात करना, सप्ताहांत में साथ में कुछ करना और डिनर के दौरान फ़ोन से दूर रहना ज़रूरी है।
कम आय वाले समुदायों और देशों में लोगों को जुड़ने में दिक्कत होती है क्योंकि उनके पास पैसे, शिक्षा, घर और सुरक्षित सार्वजनिक जगहों की कमी होती है। इसलिए सरकार और समुदाय को मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए।

परिवार में आने वाली मुश्किलें:

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में एक-दूसरे के लिए कम वक़्त निकालने से रिश्ते सिर्फ़ लेन-देन तक सीमित हो जाते हैं। परिवार में एक-दूसरे की भावनाओं को समझने, ध्यान से सुनने और मिलकर फ़ैसले लेने के बिना गलतफहमियां बढ़ जाती हैं।
पति-पत्नी के बीच अनसुलझे झगड़े और एक-दूसरे की आलोचना करने से दूरियां बढ़ जाती हैं। इसे रोकने के लिए ज़रूरी है कि वे खुलकर बात करें और अपने रिश्तों को सुधारने की कोशिश करें।
जो लोग दूसरों की देखभाल करते हैं, वे बहुत ज़्यादा थक जाते हैं और अपने बच्चों और बूढ़े माता-पिता दोनों की ज़िम्मेदारी निभाते हैं, जिससे उनके पास एक-दूसरे के लिए वक़्त कम हो जाता है। ऐसे में परिवार के सदस्यों को मिल-बांटकर काम करना चाहिए और दूसरों से मदद लेनी चाहिए।

समाधान, टिप्स और एक्सपर्ट्स की सलाह:

  • छोटी-छोटी आदतें अपनाएं: हर दिन 15-30 मिनट के लिए नो-फोन फैमिली टाइम रखें, हफ़्ते में एक बार साथ में टहलने जाएं और हर हफ़्ते साथ में खाना खाएं।
  • पार्क और लाइब्रेरी का इस्तेमाल करें: हर हफ़्ते 1-2 बार पार्क, लाइब्रेरी, स्पोर्ट्स क्लब या धार्मिक समूहों में जाएं।
  • फ़ोन से दूर रहें: परिवार के साथ वक़्त बिताते वक़्त फ़ोन का इस्तेमाल न करें और बच्चों के लिए ऑनलाइन और ऑफ़लाइन गतिविधियों के बीच संतुलन बनाए रखें।
  • मानसिक स्वास्थ्य मदद लें: अगर आपको कोई परेशानी है तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। भारत में टोल-फ़्री टेलि-MANAS हेल्पलाइन नंबर 14416/1-800-891-4416 पर 24 घंटे आपकी भाषा में काउंसलिंग की सुविधा उपलब्ध है।
  • पॉलिसी में बदलाव: सरकार को पार्क, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और सुरक्षित सार्वजनिक जगहों को बेहतर बनाना चाहिए। WHO ने भी लोगों को जोड़ने के लिए पांच सुझाव दिए हैं।
  • दूसरों के लिए अच्छा बनें: दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखाएं, उनसे बात करें, अपने पड़ोसियों और दोस्तों से मिलें और दूसरों की मदद करें।

भारत में मदद कहां मिलेगी?

भारत में राष्ट्रीय टेली-मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के तहत टेलि-MANAS प्लेटफॉर्म हर राज्य में 51 सेंटर्स के साथ लोगों को जोड़ता है। ये हेल्पलाइन कई भाषाओं में मदद उपलब्ध कराती है।
इससे परिवारों को घर बैठे काउंसलिंग और मार्गदर्शन मिल जाता है, जिससे लोगों को मदद मांगने में शर्म नहीं आती और वे आसानी से पहला कदम उठा पाते हैं।
भारत में डिप्रेशन एक बड़ी समस्या है। इसलिए ज़रूरी है कि लोगों को इसके बारे में जानकारी हो और वे मदद के लिए आगे आएं।

भारत में डिप्रेशन:

ICMR के अनुसार, भारत में 2017 में 4.57 करोड़ लोग डिप्रेशन और 4.49 करोड़ लोग एंग्जायटी से पीड़ित थे। डिप्रेशन मानसिक बीमारियों का एक बड़ा कारण है।
ये समस्या उम्र के साथ बढ़ती है और आत्महत्या का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए परिवारों को डिप्रेशन के लक्षणों को पहचानना, एक-दूसरे को सपोर्ट करना और डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है।
ऐसे में, परिवारों को ये पता होना चाहिए कि कब, कैसे और किससे मदद मांगनी है। इससे रिश्तों को सुधारने और डिप्रेशन को रोकने में मदद मिलेगी।

दुनिया भर में क्या हो रहा है?

WHO ने सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिए एक कैंपेन शुरू किया है। इसका लक्ष्य है कि नीतियां बनाई जाएं, रिसर्च की जाए, लोगों की मदद की जाए और जागरूकता बढ़ाई जाए।
इसका मतलब है कि स्थानीय स्तर पर सामाजिक सुविधाओं को बेहतर बनाया जाए, स्कूलों और कार्यस्थलों में लोगों को जोड़ने के लिए नीतियां बनाई जाएं और हेल्थकेयर में लोगों को जोड़ने के लिए सिस्टम बनाए जाएं।
लक्ष्य ये है कि घर के अंदर और बाहर दोनों जगह लोगों को सुरक्षित महसूस हो, ताकि रिश्तों में मज़बूती आए।

निष्कर्ष:

सबसे ज़रूरी बात ये है कि परिवारों में प्यार और समझ अपने आप नहीं होती, बल्कि इसके लिए हर दिन कोशिश करनी पड़ती है, खुलकर बात करनी पड़ती है और दूसरों से मदद लेनी पड़ती है। यही अकेलापन और डिप्रेशन को हराने का तरीका है।
घर, स्कूल, कार्यस्थल और मोहल्ले में लोगों को जोड़ने के लिए पुल बनाने होंगे। छोटे-छोटे कदम, जैसे कि डिनर के दौरान फ़ोन से दूर रहना, हर हफ़्ते समुदाय में कुछ करना और समय पर डॉक्टर से सलाह लेना, बड़े बदलाव ला सकते हैं।
याद रखें, रिश्तों को ठीक किया जा सकता है। जब लोग एक-दूसरे को सुनते हैं, समझते हैं और साथ खड़े होते हैं, तो घर फिर से घर लगता है, और यहीं से एक स्वस्थ समाज की शुरुआत होती है।

नोट: इस लेख में बताई गई हेल्पलाइन टेलि-MANAS 14416/1-800-891-4416 भारत सरकार की 24 घंटे चलने वाली मानसिक स्वास्थ्य सेवा है। ज़रूरत पड़ने पर तुरंत मदद लें।

Raviopedia

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