जन्माष्टमी, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन है। यह त्यौहार भारत में बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह भक्ति, आनंद और संस्कृति का संगम है। आधी रात को कृष्ण जन्म की पूजा होती है, भजन-कीर्तन किए जाते हैं, झांकियां निकाली जाती हैं, व्रत-उपवास किए जाते हैं और दही-हांडी जैसे उत्सव मनाए जाते हैं। मथुरा-वृंदावन और द्वारका जैसे तीर्थ स्थलों से लेकर शहरों की गलियों तक, जन्माष्टमी भारत की विविधता को एक साथ लाती है।
इतिहास और शुरुआत
जन्माष्टमी की कहानी वेदों और पुराणों से जुड़ी है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेकर धर्म की स्थापना की और अधर्म का नाश किया। श्रीमद्भागवत महापुराण, विष्णु पुराण और हरिवंश में कृष्ण के जन्म और उनकी लीलाओं का विस्तार से वर्णन है। कंस का अत्याचार, देवकी और वसुदेव की जेल यात्रा और यमुना पार करके गोकुल पहुंचने की कहानी हर भारतीय को याद है।
कब मनाते हैं?
परंपरा के अनुसार, कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र और आधी रात के समय जन्म-पूजन किया जाता है। उत्तर भारत में यह त्यौहार भाद्रपद के महीने में आता है, जबकि दक्षिण भारत के कई हिस्सों में श्रावण मास में रोहिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
अलग-अलग नाम
उत्तर भारत में इसे कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी कहते हैं, महाराष्ट्र में गोकुलाष्टमी और दही-हांडी, तमिलनाडु में श्रीकृष्ण जयंती, केरल में श्रीकृष्ण जयनती या अष्टमीरोहिणी और कर्नाटक-आंध्र में कृष्णाष्टमी के रूप में जाना जाता है।
कथाएँ और मान्यताएँ
कृष्ण से जुड़ी कहानियाँ लोगों को भक्ति और जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं:
- जन्म कथा: कृष्ण का जन्म देवकी के आठवें पुत्र के रूप में हुआ था। वसुदेव ने उन्हें जेल से निकालकर यमुना पार गोकुल में नंद और यशोदा के घर पहुंचाया। इस दौरान चमत्कार हुए और जेल के बंधन खुल गए। यह कहानी जन्माष्टमी की पूजा का मुख्य हिस्सा है।
- बचपन की लीलाएँ: माखन चोरी, गोपियों के साथ रास-लीला, कालिया नाग का दमन और गोवर्धन पर्वत को उठाना - ये सभी काम हमें सिखाते हैं कि निस्वार्थ भाव से काम करना, दूसरों की रक्षा करना और प्रेम-भक्ति का महत्व क्या है।
- दर्शन: भगवद्गीता में कृष्ण ने धर्म, कर्मयोग और भक्तियोग के बारे में बताया है। इससे पता चलता है कि कृष्ण सिर्फ लीला करने वाले भगवान नहीं थे, बल्कि जीवन के सबसे बड़े गुरु भी थे।
मान्यताएँ:
कई घरों में लोग दरवाजे से लेकर रसोई तक छोटे-छोटे पैरों के निशान बनाते हैं, ताकि लगे कि कृष्ण आ रहे हैं। आधी रात को शृंगार-आरती और जन्म-घंटा बजाना बहुत खास माना जाता है।
कैसे मनाते हैं?
जन्माष्टमी मंदिरों, घरों और सार्वजनिक जगहों पर अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है:
- व्रत और उपवास: बहुत से लोग बिना कुछ खाए व्रत रखते हैं, कुछ लोग सिर्फ फल खाते हैं। रात 12 बजे जन्म-पूजन के बाद प्रसाद खाया जाता है।
- पूजा विधि: लड्डू गोपाल को झूले पर बैठाया जाता है, पंचामृत से अभिषेक किया जाता है, श्रृंगार किया जाता है, भजन-कीर्तन किए जाते हैं, भागवत का पाठ किया जाता है और रात में निशीथ पूजन किया जाता है।
- सजावट और झांकियाँ: मंदिरों और घरों में मथुरा, गोकुल और वृंदावन की झांकियाँ बनाई जाती हैं। गोवर्धन लीला और रास-रंग जैसे सीन भी दिखाए जाते हैं। बच्चे कृष्ण और राधा के रूप में सजते हैं।
- भोजन और प्रसाद: उपवास में खाए जाने वाले व्यंजन, माखन-चीनी, पंजीरी, फल, माखन-मिश्री और कई जगह छप्पन भोग भगवान को चढ़ाए जाते हैं। कुछ मंदिरों में 108 तरह के व्यंजन भी परोसे जाते हैं।
- भजन, कीर्तन और नृत्य: मंदिरों, इस्कॉन केंद्रों और पंडालों में लगातार कीर्तन, गोविंद नाम का जाप और रास-नृत्य होते हैं।
- दही-हांडी/मटकी-फोड़: महाराष्ट्र में यह बहुत खास होता है। ऊँचाई पर एक मटकी लटकाई जाती है, जिसे लोग पिरामिड बनाकर तोड़ते हैं। यह कृष्ण की माखन चोरी की कहानी को दिखाता है। इसमें टीम वर्क, साहस और खुशी सब कुछ होता है।
कुछ और बातें:
- कई जगहों पर जन्माष्टमी से पहले ही झूला उत्सव शुरू हो जाता है, जिसमें लड्डू गोपाल को सजे हुए झूलों पर बैठाया जाता है।
- इस्कॉन मंदिरों में पूरी रात हरिनाम संकीर्तन, गीता-पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। आजकल कई शहरों में लाइव दर्शन भी बहुत पसंद किया जा रहा है।
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रंग
भारत में जन्माष्टमी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह से मनाई जाती है:
- उत्तर प्रदेश (मथुरा-वृंदावन): श्रीकृष्ण जन्मभूमि, द्वारकाधीश और बांके बिहारी मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है, झांकियां निकाली जाती हैं और बड़ी रथ यात्राएं होती हैं। आधी रात को होने वाली जन्म-महाआरती बहुत मशहूर है।
- गुजरात (द्वारका): द्वारकाधीश मंदिर में भगवान का शानदार श्रृंगार होता है, समुद्र के किनारे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं और छप्पन भोग की परंपरा निभाई जाती है।
- महाराष्ट्र: दही-हांडी उत्सव में स्थानीय मंडल इनाम रखते हैं, गाने-बजाने होते हैं और लोग मिलकर भाग लेते हैं।
- राजस्थान और हरियाणा: माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है, मेहंदी-रंगोली बनाई जाती है, लोक-संगीत होता है और घरों में पूजा और आरती होती है।
- दक्षिण भारत (तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र-तेलंगाना, केरल): इसे श्रीकृष्ण जयंती/अष्टमीरोहिणी के रूप में मनाते हैं। घर के आँगन में चावल के आटे से छोटे पैरों की आकृतियाँ बनाते हैं, भक्ति-स्तुति करते हैं और पंचामृत चढ़ाते हैं। उडुपी और गुरुवायूर जैसे मंदिर खास आकर्षण होते हैं।
- पूर्वोत्तर (मणिपुर, असम): मणिपुर की रास-लीला परंपरा बहुत खास है। इसमें नृत्य, संगीत और वेशभूषा का अद्भुत संगम होता है।
- ओडिशा (पुरी): जगन्नाथ परंपरा में कृष्ण-भक्ति, पाठ और कीर्तन के विशेष आयोजन होते हैं।
समाज और संस्कृति में महत्व
जन्माष्टमी सिर्फ एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, यह लोगों को एक साथ लाने का भी जरिया है:
- परिवार और समुदाय: लोग मिलकर पूजा करते हैं, झांकियां निकालते हैं, प्रसाद बांटते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं, जिससे परिवार और पड़ोस के लोगों के बीच प्यार बढ़ता है।
- मूल्य और शिक्षा: कृष्ण की कहानियाँ हमें साहस, दया, धर्म की रक्षा करना और निस्वार्थ भाव से काम करना सिखाती हैं। ये बातें नई पीढ़ी के लिए जीवन में बहुत काम आती हैं।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था: फूलों, मिठाइयों, सजावट के सामान, पारंपरिक कपड़े और लाईटिंग की दुकानों पर खूब बिक्री होती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को फायदा होता है।
- सेवा: कई जगहों पर रक्तदान, अन्नदान और स्वच्छता अभियान जैसे काम भी जन्माष्टमी के साथ किए जाते हैं।
आजकल का रूप
समय के साथ जन्माष्टमी मनाने के तरीके में कुछ बदलाव आए हैं:
- डिजिटल और सोशल मीडिया: लोग लाइव दर्शन करते हैं, ऑनलाइन कीर्तन में भाग लेते हैं, दान देते हैं और #Janmashtami, #KrishnaJanmashtami जैसे हैशटैग का इस्तेमाल करते हैं। इससे युवा पीढ़ी भी जुड़ रही है। रील्स और शॉर्ट्स पर भजन और नृत्य खूब देखे जा रहे हैं।
- सुरक्षा और नियम: दही-हांडी के आयोजनों में अब सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है। जाल, पानी, हेल्मेट और उम्र के हिसाब से नियम बनाए गए हैं। स्थानीय प्रशासन के नियमों का भी पालन किया जाता है।
- पर्यावरण का ध्यान: लोग प्लास्टिक की सजावट से बच रहे हैं, फूलों और पत्तियों से सजावट कर रहे हैं, मिट्टी के दीये जला रहे हैं और ऑर्गेनिक रंगोली बना रहे हैं।
- सबको साथ लेकर चलना: पंडालों में दिव्यांगों के लिए रैंप और बैठने की जगह बनाई जा रही है, ब्रेल और ऑडियो गाइड उपलब्ध कराए जा रहे हैं और बुजुर्गों के लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है।
- ज्ञान के साथ उत्सव: स्कूल और कॉलेजों में गीता-वाचन, वाद-विवाद, क्विज़ और नाटक किए जा रहे हैं, जिससे त्योहार को सोचने-समझने का मौका मिल रहा है और भक्ति के साथ ज्ञान और संवेदना भी बढ़ रही है।
उदाहरण:
- कई इस्कॉन केंद्र अन्नदान और फूड फॉर लाइफ जैसी पहल चलाते हैं, जिससे उत्सव को सेवा भाव से जोड़ा जाता है।
- मुंबई-पुणे में कुछ मंडल दही-हांडी की ऊँचाई कम रखते हैं और महिला गोविंदा पथकों और मिक्स टीम को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे सभी लोग बराबर से भाग ले सकें।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति का एक ऐसा त्यौहार है, जहाँ धर्म और जीवन एक-दूसरे को बेहतर बनाते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि खुशी और जिम्मेदारी, प्रेम और नियम, साहस और दया - सब कुछ एक साथ चल सकता है।
आज के समय में जन्माष्टमी हमें तीन बातें सिखाती है:
- धर्म का मतलब न्याय और दया है।
- निस्वार्थ भाव से काम करना व्यक्तिगत और सामाजिक विकास के लिए जरूरी है।
- उत्सव तभी अच्छा है जब वह सुरक्षित हो, सभी को साथ लेकर चले और पर्यावरण का ध्यान रखे।
आगे भी यह त्यौहार टेक्नोलॉजी, रिसर्च और सेवा के साथ और भी महत्वपूर्ण होता जाएगा। इसमें भक्ति के साथ ज्ञान और उत्सव के साथ जिम्मेदारी का सुंदर मेल बना रहेगा।




