लिव-इन या शादी: 2025 में रिश्तों के फायदे-नुकसान

लिव-इन रिलेशनशिप और शादीशुदा ज़िंदगी, दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं. ये आपके ऊपर है कि आप किसे चुनें, क्योंकि इसका असर आपकी ज़िंदगी और परिवार पर पड़ेगा. 2025 में कानून और समाज के हिसाब से क्या सही है, यह भी देखना ज़रूरी है.
रिसर्च बताती है कि शादी में लोगों को ज़्यादा भरोसा होता है और वे ज़्यादा खुश रहते हैं. वहीं, लिव-इन में आपको ज़्यादा आज़ादी मिलती है और यह आसान भी होता है. लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपनी ज़िम्मेदारी समझें, पैसों के बारे में बात करें और भविष्य के लिए योजना बनाएं.

परिचय

हाल ही में, उत्तराखंड में एक नया नियम आया है कि लिव-इन में रहने वाले लोगों को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. शुरुआत में तो बहुत कम लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन शादियां खूब रजिस्टर हुईं. इससे पता चलता है कि हमारा समाज बदल तो रहा है, लेकिन थोड़ा हिचकिचा रहा है.
वहीं, दुनिया भर में लोग शादी से पहले साथ रहने लगे हैं, शादी में देरी कर रहे हैं और परिवार के अलग-अलग रूप को अपना रहे हैं. इससे भारत में भी रिश्तों को लेकर नई बातें हो रही हैं. भारत में अभी भी लोग औरत और मर्द के रोल को लेकर पुरानी सोच रखते हैं, लेकिन अब युवा पीढ़ी सोच-समझकर रिश्ते बना रही है, क्योंकि शादी की उम्र बढ़ रही है.

क्या है दिक्कत?

पिछले दस सालों में, अमेरिका जैसे देशों में लोग देर से शादी कर रहे हैं और साथ रहने का चलन बढ़ गया है. 18 से 44 साल के बहुत से लोग शादी से पहले साथ रह चुके हैं. कुछ लोग तो पैसों और सुविधा के लिए शादी के बजाय साथ रहना पसंद करते हैं. दुनिया के कई देशों में लगभग 42% बच्चे बिना शादी के पैदा होते हैं, जो दिखाता है कि परिवार का रूप बदल रहा है और लोग इसे अपना रहे हैं.
भारत में, उत्तराखंड सरकार ने लिव-इन रजिस्ट्रेशन का नियम बनाया है, ताकि समाज में व्यवस्था बनी रहे. लेकिन अभी भी लोगों की सोच पुरानी है.

समाज और मन पर असर

रिसर्च बताती है कि शादीशुदा लोग अपने रिश्तों में ज़्यादा भरोसा करते हैं, खुश रहते हैं और एक-दूसरे के करीब होते हैं. वहीं, लिव-इन में रहने वाले लोग भी खुश रहते हैं, लेकिन उन्हें भविष्य को लेकर थोड़ी चिंता रहती है. लिव-इन में लोग प्यार के साथ-साथ पैसे और सुविधा को भी देखते हैं, जिससे उन पर तनाव कम होता है. लेकिन उन्हें लंबी अवधि की सुरक्षा और ज़िम्मेदारी के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए.
बहुत से लोगों का मानना है कि लिव-इन में रहने वाले लोग भी बच्चों को अच्छे से पाल सकते हैं, अगर उनका रिश्ता अच्छा हो और वे स्थिर हों.

पीढ़ी का अंतर

युवा लोग लिव-इन को ज़्यादा आसानी से अपना लेते हैं. वे इसे शादी की तरफ पहला कदम मानते हैं. वहीं, बूढ़े लोग शादी को ज़्यादा अहमियत देते हैं, क्योंकि यह उनके लिए एक सामाजिक समझौता है. भारत में, औरत और मर्द के रोल को लेकर लोगों की सोच अलग-अलग है, जिससे पीढ़ियों में टकराव हो सकता है. यह टकराव अक्सर शादी से पहले साथ रहने, करियर और परिवार को संभालने और परिवार की इज़्ज़त जैसे मुद्दों पर होता है. लेकिन अगर लोग खुलकर बात करें, तो यह दूर हो सकता है.

रिश्ते और परिवार में दिक्कतें

लिव-इन में आपको कानूनी सुरक्षा अपने आप नहीं मिलती. अगर आपको संपत्ति, बच्चे या गुजारा भत्ता चाहिए, तो आपको अलग से समझौता करना होगा. हालांकि, अदालतें कुछ मामलों में लिव-इन को शादी जैसा मानती हैं और सुरक्षा देती हैं. उत्तराखंड में लिव-इन रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है, लेकिन इसका फॉर्म भरना और नियम मानना थोड़ा मुश्किल है. इससे लोग हिचकिचाते हैं.
लिव-इन में परिवार का साथ, पड़ोसियों और समाज की प्रतिक्रिया, और भविष्य की अनिश्चितता (जैसे ब्रेक-अप के बाद कानूनी और वित्तीय स्पष्टता) तनाव पैदा कर सकती है. वहीं, शादी में लोगों की पुरानी सोच और उम्मीदें दबाव बना सकती हैं.

समाधान, टिप्स और सलाह

  • रिश्ते का मतलब और ज़िम्मेदारी: आप साथ क्यों रह रहे हैं या शादी क्यों कर रहे हैं? क्या आप सिर्फ़ एक-दूसरे को परखना चाहते हैं, या हमेशा के लिए साथ रहना चाहते हैं, या परिवार बनाना चाहते हैं? इस बारे में शुरुआत से ही बात करें. रिसर्च दिखाती है कि शादी में ज़िम्मेदारी लेने से रिश्ता मज़बूत होता है और भरोसा बढ़ता है.
  • पैसों का हिसाब: बजट बनाएं, जॉइंट या अलग-अलग खाते रखें, बड़े खर्चों और कर्ज़ों के बारे में बात करें और तय करें कि कौन किस पर कितना निर्भर रहेगा. लिव-इन में 'पैसों की सुविधा' एक बड़ी वजह होती है, लेकिन अगर इस बारे में खुलकर बात न की जाए, तो आगे चलकर तनाव हो सकता है.
  • कानूनी तैयारी: लिव-इन में रहने वाले लोग एक समझौता (agreement) लिखवाएं, जिसमें नॉमिनेशन, बीमा, पावर ऑफ अटॉर्नी और बच्चों और संपत्ति के बारे में सब कुछ लिखा हो. जहां ज़रूरी हो, वहां रजिस्ट्रेशन भी कराएं.
  • परिवार से बात: परिवार की चिंताओं को समझें और उन्हें बताएं कि आपने क्या सोचा है. उन्हें बताएं कि आप रिश्ते को कितना समय देना चाहते हैं, आपके क्या प्लान हैं और आप बच्चों को कैसे पालेंगे. इससे उन्हें भरोसा होगा.
  • काउंसलिंग: अगर आप दोनों के बीच बातचीत में दिक्कत हो रही है, तो किसी एक्सपर्ट से सलाह लें. इससे आपका रिश्ता मज़बूत होगा और आप ज़्यादा खुश रहेंगे.

आंकड़े और रिसर्च

अमेरिका में लोग देर से शादी कर रहे हैं और साथ रहने का चलन बढ़ गया है. 2019 के एक सर्वे में पता चला कि शादीशुदा लोग ज़्यादा खुश और भरोसेमंद होते हैं. दुनिया के कई देशों में 2020 के आसपास 42% बच्चे बिना शादी के पैदा हुए. भारत में भी लोग अब देर से शादी कर रहे हैं, जिससे पता चलता है कि वे रिश्तों के बारे में ज़्यादा सोच-विचार कर रहे हैं.

उदाहरण

उत्तराखंड में जब लिव-इन रजिस्ट्रेशन ज़रूरी हो गया, तो शुरुआत में बहुत कम लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन शादियां खूब रजिस्टर हुईं. इससे पता चलता है कि अगर नियम मुश्किल हों, तो लोग उन्हें अपनाने से हिचकिचाते हैं. सरकार को चाहिए कि वह नियमों को आसान बनाए, लोगों की गोपनीयता का ध्यान रखे और उन्हें डराए नहीं. इससे लोग बिना डरे कानूनी रास्ते अपनाएंगे.

भारत और दुनिया की सोच

दुनिया में कई जगहें ऐसी हैं जहां साथ रहना आम बात हो गई है और बहुत से बच्चे बिना शादी के पैदा हो रहे हैं. रिश्तों को लेकर लोगों की सोच बदल रही है. अमेरिका जैसे देशों में युवा लोग साथ रहने को शादी की तरफ कदम मानते हैं, लेकिन फिर भी शादी को ज़्यादा भरोसेमंद माना जाता है. भारत में अभी भी परिवार और औरत-मर्द के रोल को लेकर पुरानी सोच है, इसलिए यहां बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है.

क्या अच्छा है, क्या बुरा है

  • लिव-इन के फायदे: आज़ादी, एक-दूसरे को जानने का मौका और पैसों की सुविधा.
  • लिव-इन के नुकसान: शादी से कम भरोसा और कानूनी सुरक्षा की कमी.
  • शादी के फायदे: ज़्यादा भरोसा, ज़िम्मेदारी का एहसास और समाज का साथ.
  • शादी के नुकसान: औरत-मर्द के रोल को लेकर पुरानी सोच और दबाव. आधुनिक शादी में इन सब बातों पर दोबारा सोचने की ज़रूरत है.

कानून (भारत, 2025)

भारत में अदालतें कह चुकी हैं कि अगर दो बालिग लोग अपनी मर्जी से साथ रहते हैं, तो यह गैरकानूनी नहीं है. कुछ मामलों में 'शादी जैसे' रिश्तों को भी घरेलू हिंसा कानून के तहत सुरक्षा दी गई है. लेकिन आपको अपने आप सारे अधिकार नहीं मिलते. उत्तराखंड का UCC लिव-इन रजिस्ट्रेशन को ज़रूरी बनाता है और कुछ नियम और सज़ाएं भी तय करता है. इससे कानूनी स्पष्टता तो आती है, लेकिन लोगों की गोपनीयता और आज़ादी को लेकर बहस भी होती है.

निष्कर्ष

परिवार का भविष्य एक जैसा नहीं होगा. अलग-अलग तरह के परिवार होंगे- शादी, लिव-इन और अन्य व्यवस्थाएं. कानून को भी इन बदलावों के हिसाब से बदलना होगा. चाहे आप कोई भी रास्ता चुनें, ज़रूरी है कि आपका रिश्ता अच्छा हो, आप ज़िम्मेदारी लें, पैसों और कानून के बारे में सब कुछ जान लें और

खुलकर बात करें. यही खुश रहने का सबसे अच्छा तरीका है.
Raviopedia

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