नवरात्रि और दुर्गा पूजा: भक्ति, कला और सामाजिक सद्भाव का पर्व

नवरात्रि और दुर्गा पूजा, ये सिर्फ़ दो त्योहार नहीं हैं, बल्कि ये भारत की आत्मा हैं। ये वो समय है जब पूरा देश भक्ति, उत्साह और एकता के रंग में रंग जाता है। नौ रातों तक चलने वाली नवरात्रि, जिसमें देवी के नौ रूपों की पूजा होती है, और पाँच दिनों तक चलने वाली दुर्गा पूजा, जो बंगाल और पूर्वी भारत में धूमधाम से मनाई जाती है, दोनों ही बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। ये त्योहार हमें सिखाते हैं कि हमें अपने अंदर की बुराइयों को मारकर एक बेहतर इंसान बनना चाहिए और समाज में प्यार और भाईचारा फैलाना चाहिए।

कैसे हुई शुरुआत?

नवरात्रि का मतलब है 'नौ रातें'। इन नौ रातों में हम देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं। ये त्योहार अश्विन महीने में आता है और इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं, जिसे पूरे देश में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। कहानियों के अनुसार, देवताओं ने देवी शक्ति से प्रार्थना की कि वे महिषासुर नाम के एक राक्षस से उन्हें बचाएं। देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक उससे युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। इसी घटना को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।


दुर्गा पूजा की एक और कहानी है 'अकाल बोधन'। कहा जाता है कि भगवान राम ने शरद ऋतु में देवी दुर्गा की विशेष पूजा की और उनसे आशीर्वाद पाकर रावण को हराया था। इसलिए, बंगाल में शारदीय दुर्गोत्सव का बहुत महत्व है। पहले, बंगाल के जमींदार अपने घरों में दुर्गा पूजा करते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह एक सार्वजनिक उत्सव बन गया, जिसमें लोग पंडाल बनाते और अलग-अलग थीम पर सजावट करते थे।

कहानियाँ और मान्यताएँ

  • महिषासुर मर्दिनी: देवी दुर्गा का यह रूप हमें बताता है कि हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए।
  • राम–दुर्गा संबंध: विजयादशमी के दिन राम ने रावण को हराया था, इसलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
  • नौ रूपों की पूजा: नवरात्रि के नौ दिनों में हम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं।
  • शक्ति और प्रकृति: देवी को सृष्टि की ऊर्जा माना जाता है, इसलिए कई लोग अनाज, फूल और पत्तों की भी पूजा करते हैं।

त्योहार मनाने का तरीका

  • कलश स्थापना: पहले दिन, लोग पवित्र जल, आम के पत्ते और नारियल से कलश स्थापित करते हैं और व्रत रखने का संकल्प लेते हैं।
  • व्रत और भोजन: व्रत में लोग फल, साबूदाना, समक चावल और कुट्टू के आटे से बनी चीजें खाते हैं। इस दौरान प्याज और लहसुन नहीं खाया जाता है।
  • पूजा-विधि: सुबह-शाम दीप, धूप, फूल और शंख-घंटी के साथ आरती की जाती है। लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और हवन करते हैं।
  • संगीत और नृत्य: पश्चिम में गरबा और डांडिया की धूम होती है, तो पूर्व में ढाक की थाप और धुनुची नृत्य किया जाता है। उत्तर भारत में कीर्तन और जागरण किए जाते हैं।
  • अष्टमी/नवमी: अष्टमी पर कन्या पूजन किया जाता है और नवमी को हवन और सामूहिक आरती होती है।
  • दुर्गा पूजा के रंग: दुर्गा पूजा में पंडालों को सजाया जाता है, देवी की सुंदर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, 'संधि पूजा' की जाती है, 'सिंदूर खेला' होता है और दशमी को मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
  • दशहरा/विजयादशमी: उत्तर और पश्चिम भारत में रावण का पुतला जलाया जाता है और शस्त्रों की पूजा की जाती है। लोग एक-दूसरे को 'शमी-पत्र' या 'अपराजिता' के पत्ते देते हैं।

अलग-अलग जगहों पर अलग रंग

  • पश्चिम बंगाल/असम/त्रिपुरा/ओडिशा: यहाँ दुर्गा पूजा के बड़े-बड़े पंडाल बनते हैं, ढाक की थाप बजती है और लोग खिचड़ी, लाबड़ा और रसगुल्ले खाते हैं। कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को ने भी अपनी सूची में शामिल किया है।
  • गुजरात: यहाँ रात भर गरबा और डांडिया खेला जाता है। लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं और गोल-गोल घूमकर नाचते हैं।
  • महाराष्ट्र: यहाँ घटस्थापना की जाती है और नवरात्रि में देवी के मंदिरों में विशेष दर्शन होते हैं। दसरे पर लोग एक-दूसरे को सोना पत्ती देते हैं।
  • उत्तर भारत: यहाँ रामलीला का मंचन होता है, रावण दहन होता है, कन्या पूजन होता है और भंडारे किए जाते हैं। लोग घरों और मंदिरों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं।
  • कर्नाटक: यहाँ मैसूरु दशहरा बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें शाही झांकी और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
  • तमिलनाडु/आंध्र प्रदेश/तेलंगाना: यहाँ 'गोलू' की परंपरा है, जिसमें सीढ़ीनुमा सजावट पर मूर्तियाँ रखी जाती हैं। तेलंगाना में 'बतुकम्मा' मनाया जाता है, जो फूलों से जुड़ा एक सामुदायिक पर्व है।
  • हिमाचल/उत्तराखंड: यहाँ शक्तिपीठों में विशेष मेले लगते हैं और कुल्लू दशहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।
  • बिहार/झारखंड: यहाँ सामुदायिक पंडाल बनते हैं, दुर्गा पूजा के जुलूस निकलते हैं और लोग स्थानीय लोक-संगीत का आनंद लेते हैं।

समाज और संस्कृति में महत्व

नवरात्रि और दुर्गा पूजा समाज में एकता और उत्साह बढ़ाते हैं। पंडाल बनाने से लेकर सुरक्षा, सजावट, भोजन और संगीत तक, हर काम में स्थानीय लोग मिलकर काम करते हैं।

  • परिवार और रिश्ते: सामूहिक पूजा, प्रसाद वितरण, एक साथ भोजन और नृत्य रिश्तों को मजबूत करते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: इन त्योहारों से कारीगरों, मूर्तिकारों, फूल व्यापारियों, दर्जी और लाइटिंग वालों को काम मिलता है। पर्यटन बढ़ता है और बाजारों में रौनक आती है।
  • स्त्री-शक्ति का उत्सव: देवी की पूजा स्त्री-शक्ति, साहस और सृजनात्मकता का उत्सव है, जो समाज में समानता और सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है।
  • संस्कृति और रचनात्मकता: थीम-आधारित पंडाल, लोक-नृत्य, लोक-संगीत और शिल्प प्रदर्शनी कला-संस्कृति को बढ़ावा देते हैं।

आज के दौर में

आजकल, लोग इन त्योहारों को नए तरीके से मना रहे हैं, लेकिन इनका महत्व आज भी वही है।

  • डिजिटल और मीडिया: लोग ऑनलाइन आरती देखते हैं, दान करते हैं और सोशल मीडिया पर गरबा और डांडिया के वीडियो शेयर करते हैं।
  • पर्यावरण का ध्यान: लोग मिट्टी की मूर्तियाँ बनाते हैं, प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं, कम आवाज वाले पटाखे जलाते हैं और प्लास्टिक का उपयोग कम करते हैं।
  • सबका साथ, सबका विकास: पंडालों में व्हीलचेयर की सुविधा होती है, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है और भीड़ को संभालने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
  • थीम और संदेश: पंडालों में शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और स्वच्छता जैसे विषयों पर सजावट की जाती है, ताकि लोगों को इन मुद्दों के बारे में जागरूक किया जा सके।
  • ऑफिस और कॉलेज में: ऑफिस और कॉलेजों में भी इन त्योहारों को मनाया जाता है, जिससे लोगों में एकता और सहयोग की भावना बढ़ती है।

कुछ दिलचस्प बातें

  • नवरात्रि के हर दिन एक खास रंग का महत्व होता है और लोग उस रंग के कपड़े पहनते हैं।
  • संधि पूजा के 48 मिनट बहुत पवित्र माने जाते हैं।
  • ढाक की लय और धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा की पहचान हैं, तो वहीं गरबा गुजरात की पहचान है।
  • कुल्लू दशहरा दशमी से शुरू होकर कई दिनों तक चलता है।

क्या करें और क्या न करें

यह समय आत्म-अनुशासन, संयम और सकारात्मक ऊर्जा का है। लोग टीवी और मोबाइल से दूर रहने, ध्यान करने, दान करने और दूसरों की सेवा करने का संकल्प लेते हैं।

  • क्या करें: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, घर या मंदिर में आरती करें, देवी के नाम का जाप करें और सात्विक भोजन करें।
  • क्या न करें: व्रत के दौरान ज्यादा तला-भुना भोजन न करें और हाइड्रेटेड रहें।
  • दूसरों की मदद करें: भंडारे में सेवा करें, स्वच्छता अभियान में भाग लें और रक्तदान या कपड़ा दान करें।

आस्था और दर्शन

देवी की पूजा सिर्फ़ एक रस्म नहीं है, बल्कि यह एक दर्शन है, जो हमें अपने अंदर की शक्ति, धैर्य और करुणा को जगाने का संदेश देती है। महिषासुर मर्दिनी का संदेश है कि हमें अपने अहंकार, आलस्य और भ्रम जैसे दुश्मनों को हराना चाहिए। नवरात्रि हमें हमेशा बेहतर बनने, समानता और भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देती है।

निष्कर्ष

नवरात्रि और दुर्गा पूजा भारत की संस्कृति का अहम हिस्सा हैं। ये त्योहार हमें सिखाते हैं कि हमें साहस, करुणा और अनुशासन के साथ हर मुश्किल का सामना करना चाहिए और मिलकर एक बेहतर समाज बनाना चाहिए। तकनीक और पर्यावरण का ध्यान रखते हुए, हम इन त्योहारों को और भी बेहतर तरीके से मना सकते हैं और देवी की ऊर्जा से एक नया युग बना सकते हैं।

Raviopedia

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