दीपावली, जिसे दीवाली या दीपोत्सव भी कहते हैं, भारत का एक बहुत ही खास त्योहार है। यह रोशनी का त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज का एक अहम हिस्सा है। यह एक ऐसा समय है जब हम अपने घरों को साफ करते हैं, रिश्तों को मजबूत करते हैं और नई शुरुआत करते हैं।
इतिहास और शुरुआत:
माना जाता है कि दीपावली की शुरुआत पुराने समय में हुई थी, जब लोग फसल काटने के बाद खुशियाँ मनाते थे। बारिश के मौसम के बाद, शरद पूर्णिमा और कार्तिक अमावस्या के आसपास, लोग दीप जलाकर समृद्धि की कामना करते थे। धीरे-धीरे, यह त्योहार कई धर्मों और मान्यताओं से जुड़ गया। हिंदू धर्म में, यह लक्ष्मी जी की पूजा और शुभ-लाभ की कामना का दिन है। जैन धर्म में, यह भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, और सिख धर्म में, यह बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। व्यापारी लोग इस समय को अपना नया वित्तीय वर्ष मानते हैं, इसलिए दीपावली भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत जरूरी है।
कहानियाँ और मान्यताएँ:
दीपावली से जुड़ी कई कहानियाँ हैं।
राम की अयोध्या वापसी:
सबसे लोकप्रिय कहानी यह है कि जब राम, सीता और लक्ष्मण 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। इसी वजह से इस त्योहार का नाम दीपावली पड़ा।
समुद्र मंथन और लक्ष्मी जी का प्रकट होना:
माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी जी प्रकट हुईं थीं, इसलिए इस रात लक्ष्मी जी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
नरकासुर का वध:
दक्षिण भारत में लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। वे कृष्ण भगवान द्वारा नरकासुर के वध की खुशी मनाते हैं।
जैन धर्म:
जैन धर्म के लोग इस दिन भगवान महावीर के निर्वाण की याद में दीप जलाते हैं, पढ़ाई करते हैं और अहिंसा का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
सिख धर्म:
सिख धर्म के लोग इस दिन गुरु हरगोबिंद साहिब के ग्वालियर किले से रिहा होकर अमृतसर लौटने की खुशी मनाते हैं। हरमंदिर साहिब को रोशनी से सजाया जाता है, इसलिए इसे बंदी छोड़ दिवस भी कहते हैं।
मनाने का तरीका:
दीपावली का त्योहार आमतौर पर पाँच दिनों तक चलता है, लेकिन यह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
- धनतेरस: इस दिन धन्वंतरि जी की पूजा की जाती है और लोग अच्छी सेहत की कामना करते हैं। सोना, चांदी, बर्तन और नए वाहन खरीदना शुभ माना जाता है। लोग अपने घरों में दीये जलाना और सजावट करना शुरू कर देते हैं।
- नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली): इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है और दीये जलाए जाते हैं। कई जगहों पर इसी दिन थोड़ी-बहुत सजावट भी हो जाती है।
- लक्ष्मी पूजा (मुख्य दीवाली): शाम को लोग अपने घरों और दुकानों में लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा करते हैं। दीये जलाए जाते हैं, रंगोली बनाई जाती है और मिठाइयाँ बांटी जाती हैं। व्यापारी लोग इस दिन नए खाते खोलते हैं।
- गोवर्धन पूजा/अन्नकूट और बलीप्रतिपदा: इस दिन कृष्ण भगवान द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने की कहानी याद की जाती है। अन्नकूट में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भगवान को भोग लगाया जाता है। पश्चिम भारत में यह दिन नए साल की शुरुआत और बलीप्रतिपदा के रूप में भी मनाया जाता है।
- भैया दूज/भाई फोटा: इस दिन बहनें अपने भाइयों की आरती करती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं। यह भाई-बहन के प्यार का त्योहार है।
त्योहार के खास प्रतीक और रीति-रिवाज:
- दीपक और रोशनी: मिट्टी के दीये, आकाश कंदील, तेल/घी के दीये और LED लाइटें जलाई जाती हैं। दरवाजों पर तोरण लगाए जाते हैं, लक्ष्मी जी के पैरों के निशान बनाए जाते हैं और रंगोली बनाई जाती है।
- भोजन और मिठाइयाँ: उत्तर भारत में गुझिया, लड्डू और काजू कतली बनाई जाती है। पश्चिम भारत में चकली और फरसाण, दक्षिण भारत में अक्की/मुरुक्कू और मैसूर पाक, और पूर्व भारत में नारियल-नारू और संसारियाँ बनाई जाती हैं। अन्नकूट में ढेर सारी सब्जियाँ मिलाकर बनाई जाती हैं।
- भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम: लोग मिलकर दीपदान करते हैं, पटाखे जलाते हैं (लेकिन कम मात्रा में), और रंगोली और दीपसज्जा जैसी प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
- दान-पुण्य: अन्नदान, वस्त्र-वितरण, गौसेवा और सामुदायिक रसोई का आयोजन किया जाता है। यह त्योहार हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की याद दिलाता है।
क्षेत्रीय विविधताएँ:
- उत्तर भारत: अयोध्या, वाराणसी और मथुरा में दीपावली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। गंगा आरती और दीयों की जगमगाहट देखने लायक होती है। कई घरों में तुलसी के पौधे के पास विशेष दीये जलाए जाते हैं।
- पश्चिम भारत (गुजरात-महाराष्ट्र): यहाँ व्यापारी लोग चोपड़ा पूजन करते हैं और नए साल की शुरुआत करते हैं। बलीप्रतिपदा और पाड़वा पर पति-पत्नी एक दूसरे का सम्मान करते हैं। पाटण के पटोला से लेकर सूरत के बाजारों तक, हर जगह रौनक होती है।
- पूर्व भारत (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम): यहाँ काली पूजा अमावस्या की रात को की जाती है। ओडिशा में लोग अपने पूर्वजों के नाम पर दीप जलाते हैं और बड़ा-बड़ुआ डाका की रस्म निभाते हैं।
- दक्षिण भारत (तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र-तेलंगाना, केरल): यहाँ सुबह जल्दी दीपावली मनाई जाती है। लोग अभ्यंग स्नान करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और नरकासुर के वध की खुशी मनाते हैं। कुछ जगहों पर लक्ष्मी पूजा सादगी से की जाती है, लेकिन परिवार के साथ भोजन करने पर जोर दिया जाता है।
- नेपाल: नेपाल में तिहार मनाया जाता है, जिसमें काग तिहार, कुत्ता तिहार, गौ/लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन/म्हा पूजा और भाई टीका शामिल हैं। यहाँ पशुओं और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:
दीपावली रिश्तों को सुधारने और समाज को फिर से जोड़ने का त्योहार है। लोग एक दूसरे से मिलते हैं, पुरानी बातों को भूल जाते हैं और मिलजुल कर रहते हैं। यह त्योहार अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि लोग हस्तशिल्प, सजावट का सामान, मिठाइयाँ, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और वाहन खरीदते हैं, जिससे कारीगरों और छोटे व्यापारियों को फायदा होता है। सांस्कृतिक रूप से, यह त्योहार हमें सुंदरता, रचनात्मकता और सामुदायिक कला को बढ़ावा देता है। आध्यात्मिक रूप से, दीपावली हमारे अंदर के अंधकार - अज्ञान, लालच और डर - को दूर करती है और हमें दयालु और कृतज्ञ बनने के लिए प्रेरित करती है।
आज का महत्व:
आज के समय में दीपावली का रूप बदल गया है। ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल गिफ्ट कार्ड और सोशल मीडिया ने इस त्योहार को एक नया रूप दिया है। रोशनी के लिए LED लाइटों और सोलर लालटेन का इस्तेमाल बढ़ गया है। लोग पर्यावरण और सेहत के बारे में भी ज्यादा जागरूक हो रहे हैं, इसलिए वे हरित पटाखे जलाने, प्रदूषण कम करने और जानवरों के प्रति संवेदनशील रहने जैसे कदम उठा रहे हैं। कंपनियों में बोनस और उपहार दिए जाते हैं और कर्मचारियों को सेहत और सुरक्षा के बारे में सलाह दी जाती है। नई पीढ़ी के लिए यह त्योहार कम खर्च करने और ज्यादा खुशियाँ मनाने का एक तरीका बन गया है।
कुछ सुझाव:
- मिट्टी के दीये जलाएँ और उन्हें स्थानीय कुम्हारों से खरीदें।
- तेल/घी के दीये और LED लाइटों का सही तरीके से इस्तेमाल करें।
- केमिकल रंगों की जगह चावल के आटे और फूलों से रंगोली बनाएँ।
- बुजुर्गों, बच्चों और पालतू जानवरों के लिए कम आवाज वाले पटाखे जलाएँ।
- मिलावटी मिठाइयों से बचने के लिए भरोसेमंद दुकानों से ही मिठाई खरीदें या घर पर बनाएँ।
कुछ रोचक तथ्य:
- अयोध्या, वाराणसी और उज्जैन जैसे शहरों में दीपोत्सवों में लाखों दीये एक साथ जलाकर रिकॉर्ड बनाने की कोशिश की जाती है।
- गुजरात और महाराष्ट्र में व्यापारी लोग इस समय पुराने खातों को बंद करते हैं और नए खाते खोलकर शुभ लाभ की प्रार्थना करते हैं।
- नेपाल के तिहार में कुत्ता तिहार पालतू और बेघर कुत्तों का सम्मान करने का एक अच्छा उदाहरण है, जो हमें त्योहारों में दयालु बनने का संदेश देता है।
- कई परिवार लक्ष्मी पूजा से पहले घर के दरवाजे पर धान/गेहूं की बालियाँ और लक्ष्मी जी के पैरों के निशान बनाते हैं, जो समृद्धि का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
दीपावली हमें सिखाती है कि प्रकाश सिर्फ घर को नहीं, बल्कि मन को भी रोशन करता है। साफ-सफाई से लेकर सजावट तक, और दान-पुण्य से लेकर परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने तक, हर काम में एक खास मतलब छुपा होता है। आने वाले समय में दीपावली और भी ज्यादा समावेशी, पर्यावरण के अनुकूल और समुदाय-केंद्रित होगी। इसमें स्थानीय कारीगरों को समर्थन दिया जाएगा, हरित तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा और सामाजिक सेवा को बढ़ावा दिया जाएगा। यही दीपावली का असली संदेश है: दयालुता, कृतज्ञता और सद्भाव। छोटे-छोटे दीये मिलकर बड़े अंधेरे को भी हरा सकते हैं।



