रघुवंश प्रसाद सिंह एक ऐसे नेता थे जिन पर लोग भरोसा करते थे। वे एक बेहतरीन आयोजक थे, उनकी संसदीय समझ बहुत अच्छी थी, और वे गांवों को बेहतर बनाने के लिए हमेशा सोचते रहते थे। उन्होंने मनरेगा को केंद्र सरकार के ज़रिए लागू करवाकर लोगों के जीवन को बदल दिया।
कौन थे रघुवंश प्रसाद सिंह?
रघुवंश प्रसाद सिंह (1946–2020) बिहार के एक बड़े नेता थे। वे समाजवादी विचारों वाले थे। पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। उनकी सबसे बड़ी पहचान यह थी कि वे जो भी नीति बनाते थे, उसे ज़मीन पर लागू भी करवाते थे।
लोग उन्हें मनरेगा का ‘आर्किटेक्ट’ मानते हैं। मनरेगा एक ऐसी योजना है जिससे गांवों के करोड़ों लोगों को काम मिला और उनकी आमदनी बढ़ी।
बचपन और शुरुआती जीवन
रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म 6 जून 1946 को बिहार के वैशाली जिले के शाहपुर गांव में हुआ था। वे राजपूत परिवार से थे। उनके पिता का नाम रामवृक्ष सिंह था।
उन्होंने गणित में पीएचडी की थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने उत्तर बिहार के एक कॉलेज में गणित पढ़ाया। इसके बाद वे राजनीति में आए।
राजनीति में कैसे आए?
रघुवंश प्रसाद सिंह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन और राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रभावित थे। इसलिए वे छात्र आंदोलनों और किसान संगठनों से जुड़ गए।
1977 में वे पहली बार बेलसंड (सीतामढ़ी) से विधायक बने। कर्पूरी ठाकुर की सरकार में उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया गया। यहीं से लोगों को पता चला कि वे कितने अच्छे नेता हैं और उन्हें लोगों की कितनी फिक्र है।
क्या काम किए?
- रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 से 2014 तक लगातार पांच बार वैशाली से लोकसभा के सदस्य रहे। 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने मनरेगा को पूरे देश में लागू करवाया।
- हिंदुस्तान टाइम्स ने उन्हें मनरेगा का “अनकहा आर्किटेक्ट” बताया था। इसके अलावा, उन्होंने राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (जिसमें बुढ़ापा पेंशन, विधवा पेंशन और विकलांग पेंशन शामिल हैं) का विस्तार किया। उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून में भी किसानों के लिए सुधार करवाए।
- वे संसद में हमेशा सक्रिय रहते थे। उनके भाषणों में आंकड़े और तर्क होते थे। वे संविधान के अनुसार बात करते थे। पीआरएस के आंकड़ों के अनुसार, संसद में उनकी उपस्थिति और बहस में भागीदारी हमेशा ‘ऊंची’ रही।
विवाद और परेशानियां
2014 में वे वैशाली से चुनाव हार गए। इसके बाद उनकी राजनीति में बदलाव आया। उन्होंने राम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गए थे। जब उन्हें पता चला कि राम सिंह उनकी पार्टी में शामिल हो सकते हैं, तो उन्होंने इसका विरोध किया।
सितंबर 2020 में उन्होंने एम्स से एक पत्र लिखकर अपनी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इससे बिहार की राजनीति में हलचल मच गई। इसके तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।
समाज और देश पर क्या असर हुआ?
मनरेगा की वजह से गांवों में लोगों को 100 दिन का काम मिलने की गारंटी मिली। इससे प्रवासी मजदूरों और बेरोजगार लोगों को बहुत मदद मिली। रघुवंश बाबू ने इस योजना को अच्छे से लागू करवाया, जिससे लोगों को पता चला कि वे कितने काबिल थे।
उन्होंने सामाजिक सुरक्षा पेंशन का विस्तार किया जिससे गांवों के बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों को पैसे मिलने लगे।
यादें
रघुवंश बाबू एक सरल, ईमानदार और समझदार नेता थे। वे मंत्रालय के दफ्तरों से ज्यादा गांवों में लोगों के बीच रहते थे।
बिहार की राजनीति में उन्हें ‘सच्चे समाजवादी’ और ‘नीतियों के शिल्पी’ के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने सत्ता को लोगों की सेवा करने का जरिया माना, अपना लक्ष्य नहीं।
निष्कर्ष
रघुवंश प्रसाद सिंह उन नेताओं में से थे जो मानते थे कि राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता हासिल करना नहीं है, बल्कि लोगों का भला करना है। मनरेगा और सामाजिक सुरक्षा जैसी योजनाओं से उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत बनाया।
बिहार और पूरे भारत में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा क्योंकि उन्होंने बहस, नीति और काम को एक साथ जोड़ा। उन्होंने दिखाया कि कोई भी नीति तभी सफल होती है जब उसे गांव के लोग भी समझें और संसद में उस पर चर्चा भी हो।
कुछ खास बातें
- जन्म: 6 जून 1946, वैशाली (शाहपुर), बिहार
- परिवार: राजपूत
- पिता: रामवृक्ष सिंह
- शिक्षा: गणित में पीएचडी
- पेशा: उत्तर बिहार में गणित के प्रोफेसर से राजनीति में आए
- राजनीतिक सफर: 1977 में पहली बार विधायक बने। कर्पूरी ठाकुर सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। 1996–2014 तक वैशाली से पांच बार सांसद रहे। यूपीए-1 सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे।
- अहम काम: मनरेगा को लागू करवाया। सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़वाई। भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार करवाए।
- पार्टी और पद: राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। लालू प्रसाद यादव के करीबी थे।
- मृत्यु: 13 सितंबर 2020, एम्स (नई दिल्ली)। कोविड-19 की वजह से।
आपसे कुछ सवाल
- क्या मनरेगा जैसी योजनाओं से गांवों में रोजगार और मजदूरी में सुधार हुआ है? क्या अब इन योजनाओं को बदलने की जरूरत है?
- क्या बिहार की राजनीति में रघुवंश बाबू जैसे सरल और नीति बनाने वाले नेता आगे भी आ सकते हैं? हम उनसे क्या सीख सकते हैं?
- रघुवंश बाबू ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन और गांवों के विकास के लिए जो काम किए, उनसे आज की योजनाओं को क्या सीख मिल सकती है?

