RailTel को BEPC से ₹210 करोड़ का ऑर्डर, डिजिटल शिक्षा

बिहार में स्कूलों के डिजिटल ढांचे को मजबूत करने के लिए बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (BEPC) ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी रेलटेल को लगभग 210 करोड़ रुपये का बड़ा काम सौंपा है। इस समझौते के तहत, राज्य के चुने हुए सरकारी स्कूलों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) प्रयोगशालाएं, स्मार्ट कक्षाएं, तेज इंटरनेट और रखरखाव की व्यवस्था की जाएगी। सरकार को उम्मीद है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता, सीखने के नतीजे और प्रशासनिक निगरानी में अच्छा सुधार होगा।

समस्या क्या थी?

बिहार में पिछले कुछ सालों में स्कूली शिक्षा को आधुनिक बनाने की कोशिशें तेज हुई हैं। मगर, गांव और कस्बों के स्कूलों में ICT सुविधाएं, अच्छी कनेक्टिविटी और शिक्षकों को ट्रेनिंग देने जैसी बुनियादी चीजों की कमी अब भी बनी हुई है। इसी को ध्यान में रखते हुए BEPC ने रेलटेल को 210 करोड़ रुपये का काम दिया है, ताकि स्कूलों में डिजिटल संसाधन बढ़ें, स्मार्ट कक्षाएं बनें और इंटरनेट की स्पीड और कवरेज बेहतर हो। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है कि शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल से सबकी पहुंच बढ़े, शिक्षा बेहतर हो और निगरानी भी अच्छे से हो।

पहले क्या हुआ?

बिहार जैसे बड़े राज्य में, जहां आबादी बहुत ज्यादा है, सभी बच्चों तक शिक्षा पहुंचाना हमेशा से मुश्किल रहा है। कई जिलों में स्कूल तो बढ़े हैं, लेकिन डिजिटल लर्निंग के लिए जरूरी चीजें, जैसे कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, कंटेंट, शिक्षकों को ट्रेनिंग और बिना रुके बिजली, सब जगह बराबर नहीं हैं। कोविड-19 के बाद ऑनलाइन पढ़ाई का महत्व तो बढ़ गया, लेकिन गांवों में कनेक्टिविटी की कमी और लोगों के पास डिजिटल डिवाइस न होने से पढ़ाई में दिक्कत आई।
पिछले सालों में BEPC ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और ICT जैसी योजनाओं को बढ़ावा दिया है। भारतनेट जैसे सरकारी कार्यक्रमों से गांवों में कनेक्टिविटी तो बढ़ी है, लेकिन स्कूलों में हर चीज एक साथ, जैसे नेटवर्किंग, डिवाइस, कंटेंट और रखरखाव, समय पर मिल पाना अब भी मुश्किल है। रेलटेल, जिसके पास रेलवे का मजबूत ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क है और सार्वजनिक वाई-फाई का अच्छा अनुभव है, ऐसे समाधान देने में सक्षम है। इसलिए, इस बड़े काम को शिक्षा के ढांचे में सरकार का एक महत्वपूर्ण निवेश माना जा रहा है।

अभी क्या हो रहा है?

यह काम लगभग 210 करोड़ रुपये का है और इसमें तीन चीजों पर ध्यान दिया जा रहा है: स्कूलों में ICT का ढांचा, कनेक्टिविटी और रखरखाव। प्राइमरी, मिडिल और हायर सेकंडरी स्कूलों में जरूरत के हिसाब से अलग-अलग चरणों में काम किया जाएगा।
सरकार ने शिक्षा में डिजिटल बदलाव को जरूरी माना है, ताकि बच्चों के सीखने के नतीजे बेहतर हों, कंटेंट आसानी से मिल सके और स्कूलों में डेटा अच्छे से मैनेज हो सके। कई जगहों पर बिजली कनेक्शन के साथ बैकअप पावर (जैसे सोलर/यूपीएस) की योजना भी बनाई जा रही है, ताकि ICT लैब और स्मार्ट कक्षाएं बिना रुके चल सकें। 

इस प्रोजेक्ट में क्या-क्या होगा?

  • ICT लैब और स्मार्ट कक्षाएं: प्रोजेक्टर, डेस्कटॉप/टैब, डिजिटल कंटेंट और सुरक्षा के इंतजाम।
  • कनेक्टिविटी: स्कूलों में तेज इंटरनेट (फाइबर/4G-5G), वाई-फाई और नेटवर्क सुरक्षा।
  • रखरखाव : तय समय तक वारंटी, जरूरत पड़ने पर मदद, समय पर मरम्मत और सर्विस एग्रीमेंट के हिसाब से निगरानी।
  • शिक्षक ट्रेनिंग: ICT का इस्तेमाल, डिजिटल कंटेंट को पढ़ाना और कक्षा में तकनीक का सही इस्तेमाल।
  • निगरानी: डैशबोर्ड के जरिए इस्तेमाल, अपटाइम, ट्रेनिंग और सीखने के तरीकों पर लगातार नजर रखना।

शहरों में कनेक्टिविटी अच्छी होने से काम जल्दी होने की उम्मीद है, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में नेटवर्क, साइट की तैयारी और बिजली जैसी दिक्कतों का पहले से ध्यान रखा जा रहा है। स्थानीय प्रशासन स्कूलों में कमरे, फर्नीचर, सुरक्षा और बिजली से जुड़े काम साथ-साथ कर रहा है।

सरकार और विशेषज्ञों का क्या कहना है?

BEPC के मुताबिक, रेलटेल को दिया गया यह बड़ा काम बिहार में स्कूली शिक्षा को डिजिटल बनाने में मदद करेगा। विभाग ने यह भी कहा है कि:

  • यह प्रोजेक्ट धीरे-धीरे शुरू होगा और जिन स्कूलों में तैयारी हो चुकी है, वहां काम जल्दी शुरू किया जाएगा।
  • क्वालिटी, सर्विस और सप्लाई/इंस्टॉलेशन पर सख्त निगरानी रखी जाएगी।
  • शिक्षकों को ट्रेनिंग देना और स्कूलों को मदद करना इस योजना का जरूरी हिस्सा होगा।

रेलटेल का कहना है कि कंपनी अपने फाइबर नेटवर्क और शिक्षा के क्षेत्र में पहले किए गए कामों के अनुभव से बिहार में हर तरह का समाधान देगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कंटेंट अच्छा हो, स्थानीय भाषा में हो और इंटरनेट न होने पर भी काम करे, तो सीखने के नतीजे ज्यादा अच्छे होंगे। शिक्षा नीति के जानकारों के अनुसार, यह प्रोजेक्ट NEP 2020 के लक्ष्यों के साथ सही दिशा में जा रहा है।

लोगों की क्या राय है?

स्थानीय अभिभावकों को यह चिंता है कि डिजिटल सुविधा का फायदा सभी बच्चों को बराबर मिले, खासकर उन परिवारों को जिनके पास अपने डिवाइस नहीं हैं। एक अभिभावक ने कहा, अगर स्कूल में नियमित स्मार्ट क्लास होंगी तो घर के मोबाइल और डेटा पर निर्भरता कम होगी। छात्रों ने भी बताया कि इंटरैक्टिव कंटेंट से विषय समझना आसान होता है, लेकिन वे चाहते हैं कि कंप्यूटर लैब का समय बढ़े और परीक्षा/कैरियर के बारे में भी डिजिटल कंटेंट मिले।
गांव के पंचायत प्रतिनिधि इस प्रोजेक्ट को विकास के लिए अच्छा मानते हैं। उनका कहना है कि अगर प्रशासन स्कूलों में सोलर पावर बैकअप और सुरक्षा जैसी जरूरतों को भी पूरा करे, तो उपकरणों का इस्तेमाल ज्यादा समय तक हो पाएगा। नागरिक समाज समूहों ने यह भी सुझाव दिया कि लड़कियों के लिए डिजिटल लैब में सुरक्षित माहौल होना चाहिए, जैसे अलग समय और महिला प्रशिक्षक हों।

क्या दिक्कतें हैं?

इस प्रोजेक्ट में जितनी उम्मीदें हैं, उतनी ही दिक्कतें भी हैं:

  • रखरखाव: उपकरणों का रखरखाव, स्पेयर पार्ट्स मिलना और समय पर मरम्मत कराना मुश्किल हो सकता है। सर्विस एग्रीमेंट का सख्ती से पालन जरूरी होगा।
  • बिजली: कई स्कूलों में बिजली ठीक से नहीं आती है। यूपीएस/सोलर बैकअप की क्वालिटी और रखरखाव पर ध्यान देना होगा।
  • शिक्षक ट्रेनिंग: सिर्फ उपकरण नहीं, बल्कि शिक्षकों को कक्षा में योजना बनाने, मूल्यांकन करने और कंटेंट को पढ़ाने का तरीका सिखाना जरूरी है।
  • डिजिटल डिवाइड: जिन इलाकों में नेटवर्क कमजोर है या छात्रों के पास घर पर डिवाइस नहीं हैं, वहां स्कूल के समय में ही ज्यादा से ज्यादा सिखाना होगा।
  • सुरक्षा: नेटवर्क्ड लैब में साइबर सुरक्षा और डेटा सुरक्षा जरूरी है।
  • कॉन्ट्रैक्ट: बड़ा ऑर्डर होने के कारण खरीदारी, डिलीवरी और ऑडिट में पारदर्शिता रखनी होगी।
  • समानता: दिव्यांग छात्रों के लिए सहायक तकनीक और ट्रेनिंग को योजना में शामिल करना होगा।

कभी-कभी बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स पर विक्रेता, कीमत और समय को लेकर सवाल उठते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समाधान अपनाए जाएं, जिनसे भविष्य में अपग्रेड करना आसान हो।

आगे क्या हो सकता है?

इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे:

  • साइट की तैयारी: बिजली, कमरे, सुरक्षा, फर्नीचर और नेटवर्क सब तैयार होने पर ही इंस्टॉलेशन करें।
  • कंटेंट: कंटेंट हिंदी और स्थानीय भाषा में होना चाहिए।
  • शिक्षक ट्रेनिंग: शिक्षकों को लगातार ट्रेनिंग मिलनी चाहिए।
  • समुदाय: स्कूल मैनेजमेंट कमेटी और पंचायतों के जरिए निगरानी होनी चाहिए।
  • निगरानी डैशबोर्ड: अपटाइम, इस्तेमाल, ट्रेनिंग और सीखने के तरीकों पर नजर रखनी चाहिए।
  • धीरे-धीरे आगे बढ़ना: पहले कुछ स्कूलों में शुरू करें और फिर बड़े पैमाने पर विस्तार करें।
  • तालमेल: BEPC, शिक्षा विभाग, IT विभाग, जिला प्रशासन और सेवा-प्रदाताओं के बीच तालमेल होना चाहिए।
  • रखरखाव फंड: स्कूल स्तर पर छोटे खर्चों के लिए तुरंत पैसे मिलने चाहिए।

लंबे समय में, यह निवेश छात्रों के सीखने, शिक्षकों की क्षमता, परीक्षा की तैयारी और प्रशासनिक काम में मदद कर सकता है। अगर सफल रहा तो मॉडल को ज्यादा स्कूलों और कौशल केंद्रों तक फैलाया जा सकता है।

निष्कर्ष

BEPC द्वारा रेलटेल को दिया गया 210 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट बिहार की शिक्षा में डिजिटल बदलाव की अच्छी पहल है। यह कदम तभी सफल होगा जब स्कूल में तैयारी, शिक्षक ट्रेनिंग, अच्छी कनेक्टिविटी और रखरखाव साथ-साथ हो। लोगों की भागीदारी और निगरानी से यह प्रोजेक्ट सफल होगा और डिजिटल खाई को भी पाटेगा। सरकार, प्रशासन और लोग सब मिलकर अगर शिक्षा पर ध्यान दें, तो यह निवेश शिक्षा के विकास में बदल सकता है।

Raviopedia

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