भारत के 7 प्राकृतिक स्थल यूनेस्को संभावित सूची में

भारत ने सात नए प्राकृतिक धरोहर स्थलों को यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल करके एक खास कदम उठाया है। इससे भारत की प्राकृतिक सुंदरता को दुनिया भर में पहचान मिलने की उम्मीद है। इस लिस्ट में डेक्कन ट्रैप्स और मेघालय की गुफाएँ खास हैं।

क्या है ये नया अपडेट?

भारत सरकार ने यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए सात नए जगहों को चुना है। इन जगहों को संभावित लिस्ट में डाला गया है। इसमें डेक्कन ट्रैप्स और मेघालय की गुफाएँ सबसे खास हैं। इन दोनों जगहों का भू-विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा महत्व है।
किसी भी जगह को संभावित लिस्ट में शामिल करना, उसे विश्व धरोहर घोषित करवाने की दिशा में पहला कदम होता है। इसका मतलब है कि भारत सरकार अब इन जगहों के बारे में पूरी जानकारी और दस्तावेज तैयार करेगी, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनका मूल्यांकन किया जा सके। अगर बात प्राकृतिक जगहों की हो, तो उनका मूल्यांकन IUCN नाम की संस्था करती है।

डेक्कन ट्रैप्स क्यों है खास?

  • डेक्कन ट्रैप्स दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखीय क्षेत्रों में से एक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये लगभग 6.6 करोड़ साल पहले बना था, जब धरती पर बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी फटे थे। उसी समय दुनिया से कई जीव-जंतु हमेशा के लिए खत्म हो गए थे।
  • आज डेक्कन ट्रैप्स का इलाका पश्चिम और मध्य भारत में फैला हुआ है। खासकर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक में इसके हिस्से देखने को मिलते हैं।
  • माना जाता है कि कभी यह इलाका लाखों वर्ग किलोमीटर में फैला था, लेकिन आज भी इसके लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर के अवशेष मौजूद हैं।
  • इस इलाके में बेसाल्ट चट्टानों की परतें, सीढ़ीनुमा पहाड़ियाँ और गहरी घाटियाँ हैं, जो इसे एक अलग पहचान देती हैं।
  • यूनेस्को के नियमों के अनुसार, डेक्कन ट्रैप्स को इसलिए खास माना जा रहा है, क्योंकि इससे पृथ्वी के इतिहास और भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है। यह जगह पृथ्वी के विकास और जीवाश्मों से जुड़े महत्व को दिखाती है।

मेघालय की गुफाएँ क्यों हैं महत्वपूर्ण?

  • मेघालय की कार्स्ट गुफाएँ भारत की सबसे लंबी और महत्वपूर्ण गुफाओं में से हैं। ये पूर्वी और पश्चिमी जयंतिया और खासी पहाड़ियों में फैली हुई हैं। इन गुफाओं में स्टैलेग्माइट और स्टैलेकटाइट जैसी संरचनाएँ हैं। यहाँ भूमिगत नदियाँ भी बहती हैं और कई तरह के जीव-जंतु पाए जाते हैं।
  • मेघालय में 500 किलोमीटर से ज्यादा गुफाओं का पता लगाया जा चुका है, जिनमें क्रीम लिआट प्राह और क्रीम मावमलुह जैसी गुफाएँ प्रमुख हैं।
  • 'मेघालयेन एज' का नाम क्रीम मावमलुह गुफा के नाम पर रखा गया है। इस गुफा में मिले सबूतों से पता चलता है कि लगभग 4.2 हजार साल पहले दुनिया में जलवायु परिवर्तन हुआ था।
  • यह जगह कई मायनों में खास है। यह पारिस्थितिकी और जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी जरूरी है।
  • मेघालय की गुफाएँ भू-विज्ञान, जलवायु विज्ञान और गुफा विज्ञान के अध्ययन के लिए एक बेहतरीन जगह हैं। ये स्थानीय लोगों की संस्कृति और जीवन से भी जुड़ी हुई हैं। इसलिए, इनका संरक्षण जरूरी है, लेकिन लोगों को भी इसमें शामिल करना होगा।

यूनेस्को की संभावित सूची क्या है?

  • किसी भी जगह को विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल करने से पहले, उसे सदस्य देश की संभावित लिस्ट में डालना होता है। यह कदम नामांकन से कम से कम एक साल पहले जरूरी है।
  • संभावित लिस्ट में शामिल होने के बाद, संबंधित विभाग उस जगह के बारे में पूरी जानकारी तैयार करते हैं। इसमें यह बताना होता है कि वह जगह क्यों खास है, उसकी सीमाएँ क्या हैं, उसे कैसे सुरक्षित रखा जाएगा, उससे क्या खतरे हैं, और उसे बचाने के लिए क्या योजनाएँ हैं।
  • प्राकृतिक जगहों का मूल्यांकन IUCN करता है, जबकि सांस्कृतिक जगहों का मूल्यांकन ICOMOS करता है। इसके बाद, यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति हर साल बैठक करके अंतिम फैसला लेती है।
  • इस प्रक्रिया में लगभग 18-24 महीने लग सकते हैं। कई बार समिति कुछ बदलाव या अतिरिक्त जानकारी भी मांग सकती है।
  • इस काम में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय लोगों, वैज्ञानिकों और समुदायों को भी शामिल किया जाता है, ताकि उस जगह को सुरक्षित रखा जा सके और उसका विकास भी हो सके।

भारत की विश्व धरोहर स्थिति

  • भारत में कई तरह की विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित स्थल शामिल हैं। प्राकृतिक जगहों में काज़ीरंगा, मानस, केओलादेव, सुंदरबन, नंदा देवी और वैली ऑफ फ्लावर्स, पश्चिमी घाट और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क जैसी जगहें शामिल हैं। कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित श्रेणी में दर्ज है।
  • प्राकृतिक श्रेणी में नए नाम जुड़ने से भारत की जैव विविधता और भू-वैज्ञानिक विरासत और भी मजबूत होगी।
  • पश्चिमी घाट और डेक्कन ट्रैप्स का भू-संबंध भी वैज्ञानिकों के लिए खास है, जो भारत के भूभाग के विकास को समझने में मदद करता है।
  • सात जगहों को एक साथ संभावित लिस्ट में शामिल करना दिखाता है कि भारत प्राकृतिक धरोहरों को कितना महत्व दे रहा है।
  • यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भारत ने पिछले कुछ सालों में सांस्कृतिक स्थलों के साथ-साथ प्राकृतिक स्थलों के लिए भी जरूरी कागजात और योजनाएँ तैयार करने पर ध्यान दिया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करना आसान हो गया है।


संरक्षण और प्रबंधन

  • डेक्कन ट्रैप्स कई राज्यों में फैला हुआ है, जबकि मेघालय की गुफाएँ कुछ खास जिलों में ही हैं। इसलिए, इनके प्रबंधन के लिए अलग-अलग स्तरों पर काम करना होगा।
  • राज्य वन विभाग, खनन विभाग, पर्यटन विभाग, भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और पर्यावरण मंत्रालय को मिलकर काम करना होगा।
  • गुफा क्षेत्रों में पर्यटकों की भीड़, शोर और प्रदूषण, कचरा प्रबंधन और गुफा में रहने वाले जीवों की सुरक्षा जैसी समस्याओं पर ध्यान देना होगा।
  • डेक्कन ट्रैप्स क्षेत्र में अवैध खनन, शहरों का विस्तार और विकास परियोजनाओं के असर को कम करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से पर्यावरण मूल्यांकन करना होगा।
  • इन जगहों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए बफर जोन, ज़ोनिंग और पर्यटकों की संख्या को सीमित करना जैसे उपाय जरूरी हैं।
  • स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करके, जैसे कि समुदाय-आधारित पर्यटन, गाइडिंग और हस्तशिल्प को बढ़ावा देकर, संरक्षण को सामाजिक और आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाया जा सकता है।

पर्यावरण, पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर असर

  • विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल होने और बाद में दर्जा मिलने से पर्यटन बढ़ता है और ब्रांड वैल्यू में सुधार होता है। इससे रोजगार, स्थानीय कारोबार और सेवाओं को बढ़ावा मिलता है। लेकिन इसके साथ ही संरक्षण की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है।
  • डेक्कन ट्रैप्स में भू-पर्यटन (जियो-टूरिज्म) के लिए रास्ते, जानकारी केंद्र और शैक्षिक यात्राएँ आयोजित की जा सकती हैं।
  • मेघालय की गुफाओं में सुरक्षा और नियमों का पालन करते हुए गुफा पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे नई नौकरियाँ पैदा होंगी।
  • विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के लिए जलवायु अध्ययन और जीव विज्ञान से जुड़े शोध के अवसर बढ़ेंगे।
  • पर्यटकों की भीड़, कचरा प्रबंधन और नाजुक संरचनाओं पर दबाव जैसी समस्याओं से निपटने के लिए पहले से योजनाएँ बनाना और आपदा के लिए तैयारी करना जरूरी होगा।
  • आर्थिक लाभ तभी टिकाऊ रहेंगे जब पर्यटन को स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुसार नियंत्रित किया जाए।

विशेषज्ञों की राय

भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि डेक्कन ट्रैप्स का महत्व सिर्फ़ नज़ारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पृथ्वी के इतिहास में ज्वालामुखी, जलवायु परिवर्तन और जीवों के विलुप्त होने के बीच संबंध को समझने में भी मदद करता है। वहीं, मेघालय की गुफाएँ मानसून से जुड़े जल और तलछट के रिकॉर्ड के ज़रिए एशियाई मानसून के बारे में जानकारी देती हैं।
दुनिया भर में, कार्स्ट और गुफा प्रणालियाँ और बड़े ज्वालामुखी क्षेत्र यूनेस्को की सूची में शामिल हैं। भारत के ये प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और दक्षिण एशिया की प्राकृतिक धरोहर को दिखाते हैं।

आगे की राह

संभावित सूची में शामिल होने के बाद, हर जगह के लिए विस्तृत नामांकन डोजियर तैयार करना होगा।

इसमें ये चीजें शामिल होंगी:

  • जगह की खासियत (OUV) को सबूतों के साथ पेश करना और दूसरी जगहों से तुलना करना।
  • जगह की सीमाएँ, बफर ज़ोन और ज़मीन के मालिकाना हक के बारे में जानकारी देना।
  • लंबे समय के लिए प्रबंधन योजना, फंडिंग और जिम्मेदारियों के बारे में बताना।
  • खतरों से निपटने की योजना बनाना, जैसे अवैध खनन, पर्यटन, जलवायु परिवर्तन और आपदाएँ।
  • स्थानीय लोगों, संस्थाओं और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करके उनकी सहमति लेना।

डोजियर जमा करने के बाद IUCN उस जगह का दौरा करती है, जिसके बाद यूनेस्को समिति अंतिम फैसला लेती है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो भारत आने वाले सालों में प्राकृतिक श्रेणी में नए विश्व धरोहर स्थल हासिल कर सकता है।

निष्कर्ष

भारत द्वारा सात नए प्राकृतिक स्थलों को यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल करना, देश की भू-वैज्ञानिक और पारिस्थितिक धरोहर को दुनिया के सामने लाने का एक अच्छा कदम है। अब चुनौती यह है कि अच्छी तरह से दस्तावेज तैयार किए जाएँ, वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन किया जाए और स्थानीय लोगों को साथ लेकर उनका संरक्षण किया जाए, ताकि नामांकन प्रक्रिया सफल हो और भविष्य में इन स्थलों को विश्व धरोहर के तौर पर सुरक्षा और पहचान मिल सके।

Raviopedia

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