बिहार के रोहतास ज़िले के सासाराम में शेरशाह सूरी का मक़बरा है। यह 16वीं सदी की इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। यह मक़बरा एक वर्गाकार कृत्रिम झील के बीच एक वर्गाकार चबूतरे पर बना है। यह लाल बलुआ पत्थर से बनी तीन मंज़िला अष्टकोणीय इमारत है। इसका निर्माण 1540 से 1545 के बीच हुआ था और 16 अगस्त 1545 को यह बनकर तैयार हुआ। कहा जाता है कि इसे मीर मुहम्मद अलीवाल ख़ाँ ने डिज़ाइन किया था। उस समय इसे भारत का सबसे बड़ा मक़बरा माना जाता था। अंदर, खूबसूरत जालियाँ और मेहराब हैं। बाहर, छतरियाँ और एक घुमावदार बरामदा है। यहाँ फ़ोटोग्राफ़ी की अनुमति है और वातावरण शांत है। यह जगह वास्तुकला और इतिहास के प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। यहाँ घूमने का सबसे अच्छा समय सितंबर से अप्रैल तक है। पास का रेलवे स्टेशन सासाराम (SSM) है और हवाई अड्डे गया, पटना और वाराणसी में हैं। यह जगह NH-2/19 से सड़क द्वारा भी अच्छी तरह से जुड़ी हुई है।
परिचय
सासाराम में शेरशाह सूरी का मक़बरा एक विशाल कृत्रिम झील के बीच स्थित एक अष्टकोणीय, तीन मंज़िला स्मारक है। यह इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक बहुत ही अच्छा उदाहरण है और बिहार के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक माना जाता है और अपने समय में यह भारत का सबसे बड़ा मक़बरा था। इस वजह से, इसका ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प महत्व बहुत ज़्यादा है।
इतिहास और पौराणिक महत्व
शेरशाह सूरी ने सूर साम्राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में ही इस मक़बरे का निर्माण शुरू करवा दिया था। 22 मई 1545 को कालिंजर किले के बाहर एक बारूद विस्फोट में उनकी मृत्यु हो गई। इसके तीन महीने बाद, 16 अगस्त 1545 को यह मक़बरा बनकर तैयार हुआ। स्थानीय लोगों के अनुसार, इसके वास्तुकार मीर मुहम्मद अलीवाल ख़ाँ थे और इसका निर्माण इस्लाम शाह सूरी के शासनकाल में पूरा हुआ था। इसकी वास्तुकला सैय्यद-लोदी काल के अष्टकोणीय मकबरों और शेरशाह सूरी के पूर्ववर्ती, हसन ख़ान सूरी के मक़बरे से प्रेरित है।
यहाँ क्या देखें
- कृत्रिम झील और वर्गाकार चबूतरा: मक़बरा लगभग 22 एकड़ की झील के बीच एक ऊँचे वर्गाकार पत्थर के चबूतरे पर बना है। यह चबूतरा एक पत्थर के पुल/मार्ग से मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है।
- अष्टकोणीय, तीन मंज़िला संरचना: 122 फुट ऊँची यह इमारत लाल बलुआ पत्थर से बनी है। इसमें एक विशाल गुंबद है और हर मंज़िल के कोनों पर खूबसूरत छतरियाँ हैं।
- बरामदा, मेहराब और जालियाँ: इमारत के चारों ओर एक बरामदा है, जिसमें तिहरी मेहराबें हैं। अंदर रोशनी देने वाली जालियाँ हैं, जो बेहतरीन कारीगरी का नमूना हैं।
- मेहराब और क़िबला दीवार: पश्चिमी दीवार पर नक्काशीदार मेहराब है और कुरान की आयतों से सजी अंदरूनी सज्जा है। यह कलात्मक विवरण का एक दुर्लभ उदाहरण है।
- प्रवेश द्वार/गेटहाउस: उत्तरी तट पर एक छोटा गुंबददार द्वार और पत्थर की सीढ़ियाँ हैं। यह झील की सुंदरता और कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं।
- फ़ोटोग्राफ़ी: यहाँ मोबाइल/कैमरा जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की अनुमति है।
पर्यटन और अनुभव
यहाँ आकर आपको एक शांत झील, लाल बलुआ पत्थर की भव्यता और अष्टकोणीय अनुपात की शुद्धता का अनुभव होगा। यहाँ इतिहास और वास्तुकला आपस में मिलते हैं। यहाँ घूमने का सबसे अच्छा समय सितंबर से अप्रैल तक है, क्योंकि इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और स्मारक रंगों में बहुत सुंदर दिखता है। यहाँ फ़ोटोग्राफ़ी, वास्तुकला का अध्ययन, शांत वातावरण और सासाराम शहर से ऑटो/टैक्सी द्वारा आसान पहुँच इसे परिवार और अकेले यात्रा करने वालों दोनों के लिए एक अच्छी जगह बनाती है।
कैसे पहुँचें
- ट्रेन: पास का रेलवे स्टेशन सासाराम जंक्शन (SSM) है। यह हावड़ा-गया-दिल्ली ग्रैंड कॉर्ड सेक्शन पर स्थित है और यहाँ प्रमुख शहरों से नियमित रूप से ट्रेनें आती हैं।
- सड़क: सासाराम से NH-2/19 (ग्रैंड ट्रंक रोड) गुजरती है। इस वजह से, पटना, आरा, वाराणसी, नई दिल्ली, कोलकाता, रांची आदि से सड़क संपर्क बहुत अच्छा है।
- हवाई मार्ग: सबसे पास के हवाई अड्डे गया (लगभग 98-122 किमी), वाराणसी (लगभग 120-138 किमी) और पटना (लगभग 150-157 किमी) में हैं। यहाँ से सड़क/रेल द्वारा सासाराम पहुँचा जा सकता है।
कहाँ ठहरें
सासाराम शहर और जीटी रोड/स्टेशन के आसपास कई बजट से लेकर मध्यम श्रेणी के होटल/रिसॉर्ट उपलब्ध हैं। इनमें होटल मौर्या रॉयल, होटल डीके इन, मोटेल हाईवे इन, समृद्धि होटल एंड रिसॉर्ट्स, होटल श्री विजय लक्ष्मी इंटरनेशनल और होटल नटराज जैसे विकल्प बहुत लोकप्रिय हैं। आप ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल्स पर इनकी उपलब्धता, दरें और समीक्षाएँ देखकर बुकिंग कर सकते हैं। इससे आपकी यात्रा योजना लचीली और किफायती रहेगी।
स्थानीय खानपान और संस्कृति
यहाँ के खानपान में लिट्टी-चोखा, सत्तू-आधारित व्यंजन/पेय, ठेकुआ और खाजा जैसे पारंपरिक बिहारी स्वाद प्रमुख हैं। लोक संस्कृति में झिज्हिया जैसे नवरात्रि-नृत्य, विद्यापति गीतों पर आधारित प्रस्तुति, और बिदेसिया/पैका जैसी विधाएँ क्षेत्रीय पहचान को दर्शाती हैं। छठ पर्व के दौरान सोन नदी के घाटों पर रोहतास में लोक-गीतों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से माहौल बहुत खुशनुमा हो जाता है।
निष्कर्ष
कृत्रिम झील के बीच खड़ा शेरशाह सूरी का मक़बरा अपने समय का सबसे बड़ा और आज भी बिहार का सबसे शानदार इंडो-इस्लामिक स्मारक है। यहाँ इतिहास, कला और प्रकृति का एक संतुलित अनुभव मिलता है। यहाँ का मौसम बहुत अच्छा होता है, यहाँ पहुँचना आसान है, यहाँ फ़ोटोग्राफ़ी की अनुमति है और आसपास सांस्कृतिक और खानपान के कई विकल्प मौजूद हैं। अगर आप बिहार घूमने जा रहे हैं, तो सासाराम को अपनी सूची में ज़रूर शामिल करें।

