Tejashwi की बिहार अधिकार यात्रा पर BJP का वार

बिहार में ‘अधिकार यात्रा’ को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। तेजस्वी यादव की इस यात्रा पर बीजेपी ने सवाल उठाए हैं, तो आरजेडी ने पलटवार किया है।

तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ 16 सितंबर को शुरू हुई और 20 सितंबर को वैशाली में खत्म हो गई। इस दौरान बीजेपी ने कहा कि यात्रा में आम लोग नहीं दिख रहे, सिर्फ वो नेता दिख रहे हैं जो टिकट चाहते हैं। आरजेडी ने जवाब दिया कि ये यात्रा लोगों से जुड़ने और उनकी समस्याओं को उठाने के लिए है।

दरअसल, बिहार में अगले साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में, ये टकराव सत्ता के समीकरणों को बदलने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। फिलहाल, एनडीए सरकार अपनी सरकार के बने रहने का दावा कर रही है।

यात्रा का रूट और बीजेपी का आरोप

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने 16 सितंबर को जहानाबाद से ‘बिहार अधिकार यात्रा’ शुरू की थी। ये यात्रा नालंदा, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, समस्तीपुर और उजियारपुर होते हुए वैशाली तक गई।

बीजेपी नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने आरोप लगाया कि यात्रा में आम जनता नहीं दिख रही, सिर्फ टिकट चाहने वाले नेता ही दिख रहे हैं। वहीं, आरजेडी का कहना है कि वो बेरोजगारी, महंगाई और सरकार से जुड़े मुद्दों पर लोगों से बात कर रहे हैं।

2025 में होने वाले चुनावों को देखते हुए ये यात्रा दोनों तरफ के दलों के लिए लोगों का समर्थन जानने का एक जरिया बन गई है।

सियासी पृष्ठभूमि

2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में कई बार गठबंधन बदले। 2024 की शुरुआत में नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़कर फिर से एनडीए के साथ सरकार बना ली। तब से वो लगातार एनडीए के साथ रहने की बात कह रहे हैं।

2020 में बीजेपी ने 74 और जेडीयू ने 43 सीटें जीती थीं और वो सरकार में शामिल हुए थे। आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद विपक्ष में बैठी थी। तभी से राज्य की राजनीति में उठापटक की बातें होती रही हैं।

इसी बीच, कांग्रेस ने अगस्त में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकाली थी, जिसमें वोटर लिस्ट और चुनाव की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए थे। आरजेडी के नेता भी उस यात्रा में शामिल हुए थे।

अभी क्या हो रहा है?

बीजेपी के सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव सिर्फ वोट के लिए यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां भी ये लोग जा रहे हैं, वहां आम जनता नहीं दिख रही, सिर्फ टिकट चाहने वाले नेता ही दिख रहे हैं। उन्होंने इसे लोगों की बेरुखी बताया।

जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने ‘नौकरी के बदले जमीन’ मामले को लेकर तेजस्वी की बात पर शक जताया। उन्होंने कहा कि तेजस्वी को पितृपक्ष में गरीबों को जमीन दान करनी चाहिए।

वहीं, आरजेडी का कहना है कि यात्रा बेरोजगारी, महंगाई, पलायन, भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था और उद्योगों की हालत खराब होने जैसे मुद्दों पर लोगों का ध्यान खींचने के लिए है। आरजेडी ने दावा किया कि उन्होंने 11 जिलों में लोगों से बात की और वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए जागरूक किया।

ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक, समस्तीपुर-वैशाली रूट पर यात्रा के दौरान भीड़ भी दिखी और विरोध भी हुआ। इससे सोशल मीडिया पर यात्रा की ताकत को लेकर बहस छिड़ गई।

इसका क्या मतलब है?

इस टकराव का सबसे पहला असर ये होगा कि कौन से मुद्दे उठाए जाते हैं। अगर आरजेडी बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर लोगों का समर्थन पाने में सफल होती है, तो एनडीए को अपनी रणनीति बदलनी होगी। खासकर तब, जब सीटों के बंटवारे पर बात चल रही हो।

चुनाव से पहले ऐसी यात्राएं अक्सर पार्टी को मजबूत करती हैं और उम्मीदवार चुनने में मदद करती हैं। इसलिए बीजेपी का ये कहना कि यात्रा में सिर्फ टिकट चाहने वाले नेता हैं, आरजेडी के 'जन-आधार' के दावे को चुनौती देता है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तेजस्वी का 'वोटर अधिकार' की बात छोड़कर रोजगार और सरकार पर ध्यान देना, ये दिखाता है कि वो विपक्ष के नेता बनना चाहते हैं और सीधे जनता से जुड़ना चाहते हैं।

अलग-अलग इलाकों पर असर

जहानाबाद से वैशाली तक का जो रूट चुना गया है, वो मगध, मध्य और उत्तर बिहार के लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को दर्शाता है। यहां बेरोजगारी, पलायन और उद्योगों की कमी जैसे मुद्दे हमेशा से राजनीतिक बहस का हिस्सा रहे हैं।

समस्तीपुर और वैशाली जैसे जिलों में यात्रा के दौरान भीड़ और विरोध दोनों देखने को मिले। इससे पता चलता है कि यात्रा ने समर्थक और विरोधी दोनों तरह के लोगों को अपनी ओर खींचा है। इसका असर चुनाव पर पड़ सकता है।

अगर भीड़ को पार्टी के कार्यकर्ताओं में बदला जा सका, तो आरजेडी को उम्मीदवार चुनने और बूथ लेवल पर तैयारी करने में फायदा हो सकता है। नहीं तो, बीजेपी ये कह सकती है कि ये सिर्फ 'दिखावटी भीड़' थी, जिससे वोट नहीं मिलेंगे।

रणनीति और गठबंधन

एनडीए में बीजेपी और जेडीयू के बीच 201 सीटें बांटने और बाकी सीटें छोटे दलों को देने की बात चल रही है। इससे साफ है कि सत्ताधारी दल सबसे पहले संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दे रहा है।

वहीं, विपक्षी दल यात्राओं के जरिए मैदान में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना चाहते हैं, ताकि टिकट बंटवारे के समय पार्टी में सब ठीक रहे।

नीतीश कुमार बार-बार एनडीए के साथ बने रहने की बात कह रहे हैं। ये उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता को बनाए रखने की कोशिश है। वो ये संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार स्थिर है।

जनता पर क्या असर होगा?

अगर यात्रा में बेरोजगारी, महंगाई और पलायन जैसे मुद्दों पर ठोस वादे किए जाते हैं, तो युवाओं और बाहर रहने वाले परिवारों का रुझान बदल सकता है। खासकर उन इलाकों में जहां रोजगार के अवसर कम हैं।

वोटर लिस्ट को अपडेट करने और वोट देने के अधिकार के बारे में बात करने से लोगों में जागरूकता बढ़ सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष तथ्यों और प्रक्रियाओं के बारे में खुलकर बात करें।

दूसरी तरफ, अगर सरकार इन बातों का जवाब देती है और बताती है कि उन्होंने क्या काम किया है और कानून व्यवस्था को कैसे सुधारा है, तो चुनावी बहस इस बात पर आ जाएगी कि किसने क्या काम किया।

विशेषज्ञों की राय

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि तेजस्वी का रोजगार और सरकार पर जोर देना दिखाता है कि वो विपक्ष के नेता बनना चाहते हैं और लोगों की दिक्कतों से सीधे जुड़ना चाहते हैं। इससे चुनाव पर असर पड़ सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'वोटर अधिकार' यात्रा में भीड़ देखकर बीजेपी को भी अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना पड़ा। इससे पता चलता है कि मैदान में जो कुछ भी हो रहा है, उससे सत्ताधारी दल भी हरकत में आ रहा है।

कुल मिलाकर, ये यात्राएं अपनी बात रखने की होड़ हैं। भीड़, मैसेज और उम्मीदवार का चुनाव, ये तीनों चीजें मिलकर तय करेंगी कि आगे क्या होगा।

निष्कर्ष

‘बिहार अधिकार यात्रा’ पर बीजेपी के आरोपों और आरजेडी के जवाबों से राजनीतिक माहौल गरमा गया है। दोनों पक्ष लोगों को अपनी ओर करने की कोशिश कर रहे हैं।

अगले साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने की संभावना है। ऐसे में ये समय मुद्दों को उठाने और संगठन को मजबूत करने का है। सीटों का बंटवारा, उम्मीदवार का चुनाव और आपसी तालमेल ही असली बढ़त दिलाएंगे।

आगे ये देखना होगा कि क्या भीड़ को वोटों में बदला जा सकता है और क्या आरोप-प्रत्यारोप से हटकर ठोस वादे किए जाते हैं।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ 16 से 20 सितंबर के बीच जहानाबाद से वैशाली तक 11 जिलों में हुई। आरजेडी ने इसे बेरोजगारी, महंगाई, पलायन और सरकार में सुधार के एजेंडे से जोड़ा, जबकि बीजेपी ने आरोप लगाया कि यात्रा में आम जनता नहीं, बल्कि टिकट चाहने वाले नेता ही दिख रहे हैं। जेडीयू ने भी ‘नौकरी के बदले जमीन’ मामले का हवाला देकर तेजस्वी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। चुनावी साल में ये टकराव मुद्दों को उठाने, सीट बंटवारे और संगठन को मजबूत करने की असली परीक्षा है, जहां भीड़ और मैसेज को वोटों में बदलने की चुनौती सबसे बड़ी होगी।


Raviopedia

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