बिहार में शिक्षक भर्ती परीक्षा (TRE-4) के नोटिफिकेशन में हो रही देरी को लेकर छात्रों का विरोध बढ़ रहा है. पिछले कुछ हफ़्तों से पटना में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. छात्रों की मांग है कि इलेक्शन का नियम लागू होने से पहले ही नोटिफिकेशन जारी हो जाए, ताकि भर्ती प्रोसेस में कोई रुकावट न आए.
प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना है कि सरकार ने पहले कहा था कि भर्ती अलग-अलग चरणों में होगी और बड़ी संख्या में खाली पद भरे जाएंगे. लेकिन अब सरकार की चुप्पी और देरी से युवाओं का भरोसा टूट रहा है, जिससे सरकार को राजनीतिक नुकसान भी हो सकता है.
शिक्षा मंत्री ने ज़रूर कहा है कि परीक्षा 16 से 19 दिसंबर के बीच होगी, जिससे कुछ उम्मीद जगी है. लेकिन, जब तक ऑफिशियल नोटिफिकेशन नहीं आता, तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी. छात्र सड़क पर और सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं.
पहले क्या हुआ था?
साल के आखिर में होने वाले विधान सभा चुनावों को देखते हुए, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि TRE-4 में बिहार के लोगों को शिक्षक भर्ती में सबसे पहले मौका दिया जाएगा. इसे युवाओं को खुश करने वाला कदम माना जा रहा था.
सरकार ने पहले भी शिक्षकों की भर्ती के कई चरण पूरे किए हैं. TRE-1 और TRE-2 में लगभग 1.70 लाख और 70 हजार शिक्षकों की भर्ती हुई थी. TRE-3 में 87,774 खाली पदों में से 66,603 पद भरे जा सके. अब सरकार TRE-4 को 2025 में और TRE-5 को 2026 में कराने की बात कर रही है. इससे सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह शिक्षा व्यवस्था को सुधारना चाहती है और युवाओं को नौकरी के ज्यादा मौके देना चाहती है.
अभी क्या हो रहा है?
पटना कॉलेज से शुरू हुए प्रदर्शनों में छात्रों ने साफ तौर पर कहा है कि TRE-4 का नोटिफिकेशन 1.2 लाख पदों के लिए तुरंत जारी किया जाए. छात्रों का कहना है कि अगर इलेक्शन का नियम लागू हो गया तो भर्ती कई महीनों तक रुक सकती है.
कई छात्रों ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री ने पहले बड़ी संख्या में वैकेंसी निकालने का वादा किया था, लेकिन अब विभाग पदों की संख्या घटाकर सिर्फ 26 हजार बताने लगा है. छात्रों का कहना है कि यह वादा खिलाफी है.
9 और 19 सितंबर को हुए प्रदर्शनों में पुलिस ने छात्रों को रोकने के लिए पानी की बौछारें और बैरिकेडिंग का इस्तेमाल किया. अभी हाल ही में हुआ प्रदर्शन शांति से खत्म हो गया और अधिकारियों ने छात्रों के प्रतिनिधियों को भरोसा दिलाया कि जल्द ही रोस्टर तैयार करके वैकेंसी निकाली जाएगी.
सरकार और विपक्ष क्या कह रहे हैं?
शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने कहा है कि TRE-4 परीक्षा 16 से 19 दिसंबर के बीच कराई जाएगी और रिजल्ट 20 से 26 जनवरी के बीच घोषित किए जाएंगे. लेकिन, छात्रों की मांग है कि ऑफिशियल नोटिफिकेशन जारी किया जाए और ज्यादा से ज्यादा वैकेंसी निकाली जाएं.
सरकार का कहना है कि भर्ती प्रोसेस पूरी तरह से सही तरीके से होगा. लेकिन, छात्र नेताओं ने चेतावनी दी है कि नोटिफिकेशन में देरी से राजनीतिक असर पड़ सकता है और बेरोजगार युवाओं का गुस्सा वोट में दिख सकता है.
विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने कई बार मुख्यमंत्री आवास की ओर जाने की कोशिश की, जिसे पुलिस ने रोक दिया. इस वजह से यह मुद्दा अब राजनीतिक रूप से भी बढ़ गया है.
सोशल मीडिया पर क्या हो रहा है?
सोशल मीडिया पर #BPSCTRE4 हैशटैग के साथ नोटिफिकेशन जारी करने और 1.2 लाख पदों को भरने की मांग की जा रही है. लोग पोस्ट लिखकर कह रहे हैं कि वैकेंसी कम नहीं होनी चाहिए और भर्ती प्रोसेस में देरी नहीं होनी चाहिए.
छात्रों का यह भी कहना है कि TRE-4 से पहले STET जैसी लंबित परीक्षाओं का रिजल्ट समय पर घोषित किया जाना चाहिए, ताकि छात्रों को कोई परेशानी न हो. पटना की सड़कों पर विरोध और सोशल मीडिया पर ट्रेंड एक साथ चल रहे हैं, जिससे पता चलता है कि भर्ती नीति बिहार के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन गई है.
चुनाव पर क्या असर होगा?
नोटिफिकेशन में देरी और वैकेंसी की संख्या में कमी से युवाओं में नाराजगी बढ़ सकती है, जो चुनावों में एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं. अगर दिसंबर में परीक्षा हो भी जाती है, तो भी नोटिफिकेशन और ज्यादा वैकेंसी के बिना सरकार को फायदा होने की जगह नुकसान हो सकता है.
अगर सरकार नोटिफिकेशन जारी करती है, रोस्टर तैयार करती है और स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की नीति को सही तरीके से लागू करती है, तो वह लोगों का भरोसा जीत सकती है और विरोध को कम कर सकती है.
जातीय समीकरण और इलाको पर क्या असर होगा?
शिक्षक भर्ती का ज्यादातर हिस्सा गांवों और छोटे शहरों के सरकारी स्कूलों से जुड़ा हुआ है. इसलिए, देरी का सबसे ज्यादा असर उन जिलों पर पड़ेगा जो शिक्षा के मामले में पिछड़े हुए हैं. ऐसे इलाकों में शिक्षकों की उपलब्धता का चुनावों पर बहुत असर पड़ता है.
स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की नीति से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं, और इसके लागू होने से आगे के फैसले लिए जाएंगे.
सरकार की रणनीति में बदलाव क्यों?
स्थानीय लोगों को प्राथमिकता और महिलाओं को आरक्षण देने की शर्तों से पता चलता है कि सरकार अपनी रणनीति बदल रही है. इसे चुनाव से पहले युवाओं और महिलाओं का समर्थन पाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
विपक्ष के लिए यह मुद्दा सरकार पर सवाल उठाने का एक मौका है, खासकर जब सोशल मीडिया पर लगातार दबाव बना हुआ है और लोग सड़कों पर उतर कर विरोध कर रहे हैं. इसलिए, भर्ती कब होगी, STET जैसी परीक्षाओं का रिजल्ट कब आएगा और कितनी वैकेंसी होंगी, इन सब बातों पर दोनों पार्टियों की रणनीति निर्भर करेगी.
आम जनता पर क्या असर होगा?
नोटिफिकेशन में देरी होने से बेरोजगार युवाओं को और भी चिंता होगी, क्योंकि इलेक्शन के नियम लागू होते ही भर्ती प्रोसेस कई महीनों तक रुक सकती है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने का काम भी धीमा हो जाएगा, जिससे छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा और लोगों का भरोसा टूटेगा.
महिलाओं के लिए 35% आरक्षण को बिहार की महिलाओं तक सीमित करने से स्थानीय महिलाओं के लिए अवसर बढ़ेंगे, लेकिन इसका फायदा तभी होगा जब भर्ती समय पर और पर्याप्त संख्या में हो.
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, स्थानीय नीति का एलान विपक्ष को कमजोर करने की कोशिश है, लेकिन असली बात तो यह है कि इसे कितनी ईमानदारी और समय पर लागू किया जाता है. शिक्षा के बारे में लिखने वाले पत्रकारों का कहना है कि लगातार भर्ती और सही जानकारी देने से ही भरोसा वापस आएगा, नहीं तो सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक नाराजगी चुनावों पर भारी पड़ेगी. मंत्रियों ने परीक्षा की तारीख बताकर थोड़ा भरोसा तो दिलाया है, लेकिन नोटिफिकेशन के बिना यह वादा अधूरा ही माना जाएगा.
निष्कर्ष
TRE-4 के नोटिफिकेशन में देरी बिहार की चुनावी राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गई है. सरकार के वादों, नीतियों में बदलाव और युवाओं की उम्मीदों के बीच भरोसे की डोर नाजुक बनी हुई है. अगर सरकार जल्द ही पारदर्शी तरीके से ज्यादा वैकेंसी के लिए नोटिफिकेशन जारी करती है और परीक्षा का कैलेंडर जारी करती है, तो वह राजनीतिक नुकसान से बच सकती है, नहीं तो विरोध वोट में बदल सकता है.


