बिहार मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना: 50 लाख महिलाओं को मिलेंगे 10,000 रुपये, राजनीति में गर्माहट
22 सितंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत करने जा रहे हैं। इस योजना के तहत, वे 50 लाख महिलाओं के बैंक खातों में कुल 5,000 करोड़ रुपये ट्रांसफर करेंगे। यानी, हर महिला को शुरुआत में DBT (Direct Benefit Transfer) के माध्यम से 10,000 रुपये मिलेंगे।
राजनीतिक दृष्टिकोण
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए इतने बड़े पैमाने पर पैसे का ट्रांसफर होना, सत्ताधारी पार्टी की एक महत्वपूर्ण चुनावी रणनीति मानी जा रही है। दूसरी ओर, विपक्ष इसे 'चुनावी तोहफा' बता रहा है और सत्ताधारी पार्टी पर उनकी योजनाओं की नकल करने का आरोप लगा रहा है। विपक्ष का कहना है कि सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए ऐसा कर रही है।
पृष्ठभूमि
बिहार की राजनीति में पिछले कुछ सालों में कई बड़े बदलाव हुए हैं। 2020 में NDA (National Democratic Alliance) ने महागठबंधन को मामूली अंतर से हराया था, NDA को 125 सीटें मिली थीं जबकि महागठबंधन को 110। फिर 2022 में JDU (Janata Dal (United)) ने RJD (Rashtriya Janata Dal) और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। लेकिन 2024 की शुरुआत में JDU फिर से NDA में शामिल हो गई।
इन सभी राजनीतिक बदलावों के बीच, महिलाओं का वोट हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। शराबबंदी, जीविका कार्यक्रम, आरक्षण और कई कल्याणकारी योजनाओं ने महिलाओं को एक मजबूत वोट बैंक के रूप में स्थापित किया है। 2024 के लोकसभा चुनावों में NDA के अच्छे प्रदर्शन से सत्ताधारी पार्टी को यह भरोसा हो गया है कि अगर विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह का प्रदर्शन रहा, तो वे आसानी से जीत सकते हैं।
JDU और BJP (Bharatiya Janata Party) दोनों ही महिलाओं तक सीधे पहुंचने की रणनीति पर काम कर रही हैं। वहीं, RJD के नेतृत्व में विपक्ष ने भी 'माई-बहन' जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। ऐसे में, 10,000 रुपये की पहली किस्त और आगे 2 लाख रुपये तक की मदद का वादा मतदाताओं को वित्तीय रूप से लुभाने का एक तरीका है।
अभी क्या हो रहा है?
इस योजना के तहत, एक परिवार की एक महिला को अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए DBT के माध्यम से 10,000 रुपये की पहली किस्त मिलेगी। ज्यादातर महिलाएं स्वयं सहायता समूहों (SHG) से जुड़ी हुई हैं, जिन्हें जीविका भी कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों में इस योजना को लागू करने का काम ग्रामीण विकास विभाग करेगा, जबकि शहरों में यह काम नगर विकास विभाग करेगा।
कहा जा रहा है कि अब तक 1 करोड़ से ज़्यादा आवेदन आ चुके हैं। शुरुआत में 50 लाख खातों में पैसे ट्रांसफर होने से एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। सरकार इस योजना को जिला, प्रखंड और क्लस्टर स्तर पर कार्यक्रमों के ज़रिए एक उत्सव की तरह मनाने की तैयारी कर रही है।
कौन क्या कह रहा है?
सत्ताधारी पार्टी के नेता महिला उद्यमिता, स्थानीय बाजारों और GDP में छोटे व्यवसायों के योगदान पर ज़ोर दे रहे हैं। दूसरी ओर, विपक्ष का कहना है कि यह सिर्फ 'चुनाव से पहले पैसे बांटने' जैसा है, जिसका मकसद लंबे समय तक आय बढ़ाना नहीं, बल्कि सिर्फ 'चुनाव जीतना' है। RJD का तो यह भी कहना है कि यह उनकी मासिक नकद ट्रांसफर योजना की नक़ल है।
सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अच्छा कदम बता रहे हैं, तो कुछ आलोचकों का कहना है कि यह 'मुफ्त की चीज़ें बांटने' की होड़ का एक और उदाहरण है। ज़मीनी स्तर पर SHG नेटवर्क में इस योजना को लेकर उत्साह भी है और कुछ सवाल भी हैं।
विश्लेषण
चुनाव पर असर: बिहार में महिलाओं का वोट प्रतिशत हमेशा से ही निर्णायक रहा है। ऐसे में, 50 लाख खातों में सीधे पैसे ट्रांसफर होने से महिलाओं पर मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक दोनों तरह से असर पड़ेगा। यह देखना होगा कि क्या महिलाएं सरकार को 'धन्यवाद' के रूप में वोट देती हैं या नहीं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि योजना को कितनी जल्दी लागू किया जाता है, लोगों का अनुभव कैसा रहता है और अगले छह महीनों में 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त मदद का वादा कितना विश्वसनीय लगता है।
जातीय समीकरण: EBC (Extremely Backward Classes), महादलित, दलित, पिछड़े और सीमांचल-मगध जैसे क्षेत्रों में महिला SHG नेटवर्क काफ़ी मजबूत है। इन क्षेत्रों में छोटे व्यवसाय, पशुपालन, खाद्य प्रसंस्करण, सिलाई/कढ़ाई और खुदरा सेवाओं के ज़रिए जल्दी से आय बढ़ाई जा सकती है। पासवान और कुर्मी/कोईरी बहुल क्षेत्रों में NDA का पहले से ही मजबूत समर्थन है, और महिलाओं के लिए योजनाओं से सत्ताधारी पार्टी को और भी ज़्यादा फायदा हो सकता है। वहीं, RJD के गढ़ में विपक्ष 'मासिक भत्ता' देने की बात करके सरकार के दावों को कमज़ोर करने की कोशिश करेगा।
रणनीतिक बदलाव: इस योजना से विपक्ष को अपनी घोषणाओं की विश्वसनीयता और पैसे के स्रोत को स्पष्ट करने की चुनौती मिलेगी। वहीं, सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरा यह है कि अगर पैसे देने में देरी हुई या लाभार्थियों के चुनाव में कोई गड़बड़ी हुई, तो यह योजना उलटी भी पड़ सकती है। चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद आचार संहिता लागू हो जाएगी। इसलिए, 22 सितंबर की तारीख सत्ताधारी पार्टी के लिए एक बड़ा संदेश देने का आखिरी मौका माना जा रहा है।
लोगों पर असर
महिलाएं/युवा: 10,000 रुपये की पहली किस्त छोटे व्यवसायों को शुरू करने के लिए पूंजी की तरह काम कर सकती है। इससे छोटे-मोटे स्टॉल, घर पर खाना बनाने, ब्यूटी पार्लर/सिलाई, डेयरी, मोबाइल रिपेयरिंग जैसी गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है। युवाओं के लिए, परिवार की महिलाओं को मिलने वाले पैसे से घर की आर्थिक तंगी थोड़ी कम हो सकती है, जिससे उन्हें नौकरी ढूंढने और कौशल विकास में मदद मिलेगी।
किसान/ग्रामीण अर्थव्यवस्था: महिला SHG द्वारा चलाए जा रहे कृषि व्यवसायों (सब्जी, दूध, मुर्गी पालन) में यह राशि पूंजी का काम कर सकती है। अगर इसे 'जीविका निधि' जैसी कम ब्याज वाली योजनाओं से जोड़ा जाए, तो 6-12 महीनों में इसे और बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, बाज़ार तक पहुंच, डिजिटलीकरण, सप्लाई चेन और स्थानीय बाजारों तक पहुंच एक चुनौती है। यहीं पर सरकार की असली परीक्षा होगी।
विशेषज्ञों की राय
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में महिला मतदाताओं ने पिछले 15 सालों में सरकारों को बनाने और बिगाड़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए, महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई नकद हस्तांतरण योजनाएं चुनावी समीकरण बदल सकती हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों का कहना है कि 10,000 रुपये की किस्त तभी स्थायी आय में बदलेगी जब इसे कम ब्याज वाले लोन, सलाह, बाज़ार से संपर्क और डिजिटल भुगतान से जोड़ा जाए। नहीं तो, इसका असर सिर्फ थोड़े समय के लिए ही रहेगा।
विपक्ष के समर्थक कहते हैं कि मासिक नकद भत्ते का मनोवैज्ञानिक असर चुनावी रूप से ज़्यादा मज़बूत होता है। वहीं, सत्ताधारी पार्टी के समर्थक एकमुश्त पूंजी के 'उद्यम शुरू करने के असर' पर ज़ोर देते हैं। आख़िरकार, किस योजना का ज़्यादा असर होगा, यह योजना के लागू होने और निगरानी के डेटा से ही पता चलेगा।
निष्कर्ष
22 सितंबर को 5,000 करोड़ रुपये का सीधा हस्तांतरण बिहार के चुनावी माहौल को महिलाओं के आसपास तेज़ी से घुमाने की ताकत रखता है। असली कहानी अब लाभार्थियों को जोड़ने, समय पर DBT करने, शिकायतों का समाधान करने और छह महीनों के भीतर 'अतिरिक्त मदद/कम ब्याज वाले लोन' देने पर लिखी जाएगी। इसी से तय होगा कि यह कदम सिर्फ 'चुनाव का इवेंट' बनकर रह जाता है या 'आर्थिक सशक्तिकरण का कार्यक्रम' बनता है।
बिहार में 22 सितंबर को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 50 लाख महिलाओं के खातों में कुल 5,000 करोड़ रुपये (प्रति लाभार्थी 10,000) की DBT होगी। चुनाव से पहले महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए इतने बड़े पैमाने पर पैसे का ट्रांसफर होना, सत्ताधारी पार्टी की एक महत्वपूर्ण रणनीति है, जबकि विपक्ष इसे 'चुनावी तोहफा' बता रहा है। इस योजना का उद्देश्य महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना, जीविका SHG नेटवर्क से जोड़कर सस्ती क्रेडिट और स्थानीय बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित करना है। विश्लेषकों का कहना है कि असली असर योजना के लागू होने, शिकायतों का समाधान करने, बाज़ार से संपर्क बनाने और आगे 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त मदद की विश्वसनीयता पर निर्भर करेगा। यह कदम EBC, महादलित और सीमांचल-मगध जैसे क्षेत्रों में महिला मतदाताओं को सीधे संबोधित करता है और 2025 के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक समीकरण बदल सकता है।

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