US H‑1B पर $100,000 फीस प्रस्ताव: भारतीय IT प्रोजेक्ट्स पर असर

अमेरिका में H-1B वीजा को लेकर एक नई बात सामने आई है, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों की चिंता बढ़ सकती है। खबर है कि अमेरिका में H-1B वीजा पर सालाना 100,000 डॉलर तक की फीस लगाने का प्रस्ताव है। अगर ऐसा होता है, तो भारत की आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका में चल रहे प्रोजेक्ट महंगे हो जाएंगे और उन्हें अपनी योजनाओं पर दोबारा सोचना होगा।

प्रस्ताव में क्या है?

दरअसल, अमेरिका में H-1B वीजा पर हर साल 100,000 डॉलर तक की फीस लगाने की बात चल रही है। ये फीस हर कर्मचारी पर हर साल लगेगी, जिसका मतलब है कि तीन साल के H-1B वीजा के दौरान कुल 300,000 डॉलर तक का खर्च आ सकता है। अगर ये नियम लागू होता है, तो कंपनियों पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ेगा।

लेकिन, अभी तक इस फीस को कानून का रूप नहीं दिया गया है। अमेरिका की आव्रजन एजेंसी सिर्फ अपनी लागत वसूलने के लिए कुछ फीस बढ़ा सकती है। अगर सरकार को कोई बड़ा बदलाव करना है, तो उसके लिए कांग्रेस की मंजूरी जरूरी होगी। इसलिए, अगर ये प्रस्ताव आगे बढ़ता है, तो इस पर खूब बहस होगी, बदलाव किए जाएंगे और शायद कानूनी दिक्कतें भी आ सकती हैं।

अभी H-1B वीजा का क्या खर्च है?

अभी H-1B वीजा के लिए कंपनियों को कई तरह की फीस देनी होती है। जैसे कि फाइलिंग फीस, ट्रेनिंग फीस और फ्रॉड प्रिवेंशन फीस। कुछ बड़ी कंपनियों को अतिरिक्त शुल्क भी देना पड़ता है। इन सब को मिलाकर, एक कंपनी को कुछ हजार से लेकर 15,000 डॉलर तक खर्च करने पड़ते हैं। इसमें वकील और अन्य खर्च अलग से होते हैं।

लेकिन, अगर सालाना 100,000 डॉलर की फीस लगती है, तो ये बहुत ज्यादा होगी। ये तो कई कर्मचारियों की सालाना सैलरी से भी ज्यादा हो सकती है। इतना ज्यादा शुल्क लगने से H-1B वीजा का मतलब ही खत्म हो जाएगा, क्योंकि इसका मकसद तो कुशल लोगों की कमी को पूरा करना है।

भारतीय आईटी कंपनियों पर क्या असर होगा?

भारत की आईटी कंपनियां, जैसे कि TCS, Infosys, Wipro और HCL Tech, अमेरिका को अपना सबसे बड़ा बाजार मानती हैं। इन कंपनियों की कमाई का बड़ा हिस्सा अमेरिकी ग्राहकों से आता है। H-1B वीजा की वजह से ही ये कंपनियां अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेज पाती हैं।

अगर सालाना 100,000 डॉलर की फीस लगती है, तो:

  • अमेरिका में काम करने वाले कर्मचारियों का खर्च बहुत बढ़ जाएगा।
  • कई प्रोजेक्ट में H-1B वीजा पर कर्मचारियों को भेजना मुश्किल हो जाएगा।
  • कंपनियों को अपने बिलिंग रेट बढ़ाने पड़ेंगे, लेकिन हो सकता है कि ग्राहक ज्यादा पैसे देने को तैयार न हों।
  • छोटी आईटी कंपनियों पर ज्यादा दबाव पड़ेगा, क्योंकि उनके पास मार्जिन कम होता है।
  • कंपनियां ज्यादा से ज्यादा काम भारत से ही करने की कोशिश करेंगी।

H-1B वीजा पर कितने लोग आते हैं?

USCIS के आंकड़ों के अनुसार, H-1B वीजा पर आने वाले लोगों में सबसे ज्यादा भारतीय होते हैं। अक्सर 70% से ज्यादा लोग भारत से ही होते हैं। H-1B वीजा की सालाना सीमा 85,000 है, जिसमें से 65,000 सामान्य वीजा होते हैं और 20,000 अमेरिकी डिग्री वाले लोगों के लिए होते हैं।

हालांकि, भारतीय आईटी कंपनियां धीरे-धीरे H-1B वीजा पर निर्भरता कम कर रही हैं और ज्यादा से ज्यादा लोगों को भारत में ही नौकरी दे रही हैं। लेकिन, कुछ मुश्किल प्रोजेक्ट के लिए अभी भी कर्मचारियों को अमेरिका भेजना जरूरी होता है।

कंपनियां क्या कर सकती हैं?

अगर इतना ज्यादा खर्च आता है, तो कंपनियां कुछ तरीके अपना सकती हैं:

  • अमेरिका के लोगों को नौकरी पर रखना: कंपनियां अमेरिकी नागरिकों और ग्रीन कार्ड धारकों को नौकरी दे सकती हैं, लेकिन इसके लिए सही Skill वाले लोग मिलना मुश्किल है।
  • L-1 वीजा का इस्तेमाल करना: कंपनियां अपने कर्मचारियों को दूसरे देशों से अमेरिका ट्रांसफर कर सकती हैं, लेकिन L-1 वीजा के नियम भी सख्त हैं।
  • दूसरे देशों में ऑफिस खोलना: कंपनियां कनाडा, मेक्सिको और लैटिन अमेरिका जैसे देशों में अपने ऑफिस खोल सकती हैं, ताकि अमेरिका के करीब रहकर काम किया जा सके।
  • ज्यादातर काम भारत से करना: कंपनियां क्लाउड और अन्य तकनीकों का इस्तेमाल करके ज्यादा से ज्यादा काम भारत से ही कर सकती हैं।
  • ऑटोमेशन और AI का इस्तेमाल करना: कंपनियां ऑटोमेशन और AI का इस्तेमाल करके अमेरिका में कम कर्मचारियों की जरूरत कर सकती हैं।
  • कॉन्ट्रैक्ट पर दोबारा बात करना: कंपनियां अपने कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव करके ग्राहकों से ज्यादा पैसे लेने की कोशिश कर सकती हैं।

कानूनी प्रक्रिया क्या होगी?

इतनी ज्यादा फीस लगाना आसान नहीं होगा। अमेरिका की एजेंसियां आमतौर पर अपनी लागत के हिसाब से ही फीस बढ़ाती हैं। अगर सरकार को 100,000 डॉलर जैसी फीस लगानी है, तो उसके लिए कांग्रेस की मंजूरी जरूरी होगी। इसलिए, इस प्रस्ताव पर खूब राजनीतिक बहस होगी और शायद कानूनी दिक्कतें भी आ सकती हैं।

भारत और अमेरिका के बीच पहले भी वीजा फीस को लेकर विवाद हो चुके हैं। अगर अमेरिका बहुत ज्यादा फीस बढ़ाता है, तो भारत WTO में भी शिकायत कर सकता है।

अमेरिका के जॉब मार्केट पर क्या असर होगा?

अगर ये प्रस्ताव लागू होता है, तो कंपनियां H-1B वीजा की जगह अमेरिकी लोगों को नौकरी पर रखने की कोशिश कर सकती हैं, जिससे कुछ नौकरियों में सैलरी बढ़ सकती है। लेकिन, कुछ खास Skill, जैसे कि क्लाउड आर्किटेक्चर और साइबर सुरक्षा, वाले लोग आसानी से नहीं मिलते हैं।

दूसरी ओर, जिन नौकरियों के लिए Skill आसानी से मिल जाते हैं, उनमें कंपनियां अमेरिकी लोगों को नौकरी दे सकती हैं, जिससे अमेरिकी STEM ग्रेजुएट्स को फायदा होगा।

स्टार्टअप्स और छोटे ग्राहकों पर क्या असर होगा?

बड़ी कंपनियां तो किसी तरह खर्च झेल लेंगी या कोई और तरीका निकाल लेंगी। लेकिन, स्टार्टअप्स और छोटे ग्राहकों को ज्यादा दिक्कत होगी, क्योंकि वे कम खर्च में अमेरिका में सपोर्ट चाहते हैं। इससे नए प्रोजेक्ट रुक सकते हैं और काम में देरी हो सकती है।

कई प्रोजेक्ट में H-1B वीजा पर आए लोग, जैसे कि टेक लीड और सॉल्यूशन आर्किटेक्ट, ग्राहकों के साथ मिलकर काम करते हैं। अगर इन लोगों को भारत वापस भेज दिया जाता है, तो कम्युनिकेशन और काम को समझने में दिक्कत हो सकती है।

उद्योग कैसे प्रतिक्रिया देगा?

उम्मीद है कि उद्योग-संघ और कंपनियां इस प्रस्ताव पर कुछ इस तरह से প্রতিক্রিয়া देंगी:

  • वे बताएंगे कि इस फैसले से अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा।
  • वे कुछ वैकल्पिक उपाय सुझाएंगे, जैसे कि ज्यादा H-1B वीजा वाले नियोक्ताओं पर ज्यादा फीस लगाना।
  • वे सरकार से मांग करेंगे कि इस नियम को धीरे-धीरे लागू किया जाए और कुछ खास नौकरियों को छूट दी जाए।

इसके अलावा, भारत सरकार भी कूटनीतिक तरीके से इस मामले को उठाएगी और कहेगी कि वीजा नियमों को आसान बनाया जाए।

क्या हो सकता है?

  • अगर प्रस्ताव जस का तस लागू होता है: H-1B वीजा का इस्तेमाल सिर्फ बहुत जरूरी नौकरियों के लिए किया जाएगा। कंपनियां ज्यादा से ज्यादा काम भारत से ही करवाएंगी और कई कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव किए जाएंगे।
  • अगर फीस थोड़ी कम होती है: कंपनियां कुछ कर्मचारियों को अमेरिका में रखेंगी, लेकिन बाकी खर्च कम करने के लिए दूसरे तरीके अपनाएंगी।
  • अगर प्रस्ताव रुक जाता है: अभी जैसी स्थिति है, वैसी ही बनी रहेगी, लेकिन कंपनियां धीरे-धीरे H-1B वीजा पर निर्भरता कम करती रहेंगी।

इसका क्या मतलब है?

भले ही ये प्रस्ताव अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन ये साफ है कि वीजा नियमों को लेकर अनिश्चितता बनी रहेगी। कंपनियों को इसे एक खतरे के रूप में देखना चाहिए और इसके लिए तैयार रहना चाहिए। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बदलाव और विकास के लिए जरूरी है कि दुनिया भर के Skill को आपस में बांटा जाए।

भारतीय आईटी कंपनियों को ग्राहकों से बात करनी चाहिए, खर्च कम करने के तरीके ढूंढने चाहिए और ज्यादा से ज्यादा काम भारत से करने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें Skill डेवलपमेंट, लोकल टैलेंट और दूसरे देशों में ऑफिस खोलने पर भी ध्यान देना चाहिए।

निष्कर्ष

अगर H-1B वीजा पर सालाना 100,000 डॉलर की फीस लगती है, तो इससे भारतीय आईटी उद्योग और अमेरिकी अर्थव्यवस्था, दोनों पर असर पड़ेगा। फिलहाल, ये प्रस्ताव कानून नहीं है, इसलिए इस पर खूब बहस होगी। कंपनियों को चाहिए कि वे इसके लिए तैयार रहें और ग्राहकों से खुलकर बात करें।

Raviopedia

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