बिहार में चुनावी घमासान: सीटों का बंटवारा, अविश्वास और चुनाव आयोग पर सवाल

बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर NDA और इंडिया ब्लॉक में ज़ोरदार खींचातानी; कांग्रेस ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठाए सवाल।

मुख्य खबर:

बिहार में होने वाले चुनावों से पहले सियासी माहौल गरमा गया है। NDA और इंडिया ब्लॉक, दोनों ही गठबंधन सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन मामला अभी तक सुलझा नहीं है। इस बीच, कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर माहौल को और भी दिलचस्प बना दिया है।

क्या हो रहा है:

बिहार चुनाव से पहले NDA और इंडिया ब्लॉक के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत आगे बढ़ रही है। दोनों ही गठबंधन ज़्यादा से ज़्यादा सीटें हासिल करना चाहते हैं, इसलिए हर सीट पर ज़ोरदार बहस चल रही है। वहीं, कांग्रेस ने चुनाव आयोग के समय और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है और निष्पक्ष चुनाव कराना मुश्किल है।

यह क्यों हो रहा है:

इस कड़ी टक्कर के चलते, उम्मीदवारों की जल्द घोषणा और सटीक मैसेजिंग के लिए सीटों का सही तालमेल ज़रूरी है। हर पार्टी चाहती है कि उसके उम्मीदवार जल्दी घोषित हों ताकि उन्हें प्रचार करने का ज़्यादा समय मिल सके। इसके अलावा, चुनाव आयोग की घोषणा से पहले सरकारी योजनाओं के एलान को विपक्ष चुनावी आचार संहिता के खिलाफ़ बता रहा है। उनका मानना है कि सरकार चुनाव से पहले लोगों को लुभाने की कोशिश कर रही है, जो कि ग़लत है।

किस पर असर होगा:

इसका असर उम्मीदवार चुनने, प्रचार की रणनीति बनाने, पैसे के बंटवारे और चुनाव के चरणों की प्लानिंग पर होगा। ज़ाहिर है, अगर सीटों का बंटवारा ठीक से नहीं होता है तो हर पार्टी को नुकसान होगा। उम्मीदवार चुनने में दिक्कत होगी, प्रचार की रणनीति बनाने में परेशानी होगी और पैसे का सही इस्तेमाल नहीं हो पाएगा। साथ ही, लोगों की राय और एंटी-इंकम्बेंसी जैसे मुद्दे भी उठ सकते हैं।

प्रतिक्रियाएं:

राज्य के नेताओं का कहना है कि चुनाव एक या दो चरणों में ही होने चाहिए, ताकि कम समय में चुनाव खत्म हो जाए। वहीं, विपक्ष का तर्क है कि छठ पूजा के बाद ज़्यादा लोगों की भागीदारी होगी, इसलिए चुनाव बाद में होने चाहिए। अलग-अलग पार्टियों का कहना है कि सीटों को लेकर जल्द ही सब कुछ साफ़ हो जाएगा।

पिछला रिकॉर्ड:

अगर 2020 के चुनावों को देखें, तो सामाजिक समीकरण, क्षेत्रीय मुद्दे और नेता के दम पर प्रचार ज़्यादा असरदार दिखे थे। इसलिए, सीटों के बंटवारे में सामाजिक समीकरणों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। हर पार्टी यह देख रही है कि किस इलाके में किस जाति या समुदाय के लोग ज़्यादा हैं और उसी हिसाब से अपनी रणनीति बना रही है।

विश्लेषण:

कम चरणों में चुनाव कराने से पैसा और सुरक्षा का खर्च कम हो सकता है, लेकिन इससे प्रशासन पर दबाव बढ़ेगा। ज़्यादा चरणों में चुनाव कराना सुरक्षित तो है, लेकिन इससे प्रचार का खर्च और थकान बढ़ जाएगी। इसलिए, बीच का रास्ता निकालना ही सही होगा।

आगे क्या:

सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला और स्टार प्रचारकों का शेड्यूल तय होते ही मुकाबला मुद्दा-आधारित संदेशों से सोशल मीडिया और ज़मीनी प्रचार में बदल जाएगा। हर पार्टी सोशल मीडिया पर एक्टिव है और अपने समर्थकों के ज़रिए ज़मीनी स्तर पर भी प्रचार कर रही है।

Raviopedia

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