पार्टी के खिलाफ काम करने वालों पर गिरी गाज। 6 और 11 नवंबर को वोटिंग, 14 को नतीजे। BJP-JD(U) ने बराबर सीटों पर लड़ने का किया फैसला।
मुख्य खबर:
बिहार में चुनावी घमासान ज़ोरों पर है, और इसी बीच राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने एक बड़ा फैसला लिया है। पार्टी ने अपने 27 नेताओं को 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इन नेताओं पर पार्टी विरोधी काम करने का आरोप है। निकाले गए नेताओं में कुछ विधायक भी हैं और कुछ पहले विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा, कुछ जिला और राज्य स्तर के पदाधिकारी भी शामिल हैं।
पार्टी का कहना है कि ये नेता उन सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार कर रहे थे, जहाँ से पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। कुछ नेता तो ऐसे भी थे जो बागी होकर निर्दलीय ही चुनाव में कूद पड़े थे।
जिस दिन RJD ने यह कार्रवाई की, उसी दिन BJP ने भी अपने चार बागी नेताओं को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। इससे पता चलता है कि दोनों ही पार्टियाँ अनुशासन को लेकर कितनी सख्त हैं।
बिहार में वोटिंग 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होगी, और वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी। ऐसे में पार्टियाँ दल-बदल और बगावत को रोकने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं।
सीटों के बंटवारे में इस बार एक खास बात यह है कि BJP और जदयू दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। 2005 के बाद यह पहली बार है जब दोनों पार्टियाँ बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं।
दूसरी तरफ, जन सुराज के कर्ता-धर्ता प्रशांत किशोर ने SIR को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इस बार चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा।
वहीं, विपक्षी महागठबंधन छठ के त्योहार के दिन अपना घोषणापत्र जारी करने वाला है। उम्मीद है कि इसमें रोजगार और बिजली जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया जाएगा।
बिहार में छठ का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। चुनावी माहौल में इस त्योहार की वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ और भी बढ़ गई हैं। ऐसे में प्रशासन को सभाओं और रैलियों के समय और भीड़ को संभालने पर खास ध्यान देना पड़ रहा है।
यह चुनावी मौसम पार्टियों के लिए अपनी एकजुटता और उम्मीदवारों के सही चुनाव को साबित करने का एक मौका है।
असर/विश्लेषण:
RJD और BJP ने जिस तरह से बड़ी संख्या में नेताओं को निकाला है, उससे यह संदेश जाता है कि पार्टियाँ अनुशासन को लेकर सख्त हैं। पार्टियाँ यह दिखाना चाहती हैं कि टिकट बंटवारे में नाराजगी और स्थानीय समीकरणों के बावजूद पार्टी का आदेश सबसे ऊपर है। इससे पार्टियों को बागी वोटों को अपने पक्ष में करने में मदद मिलेगी।
घोषणापत्र और बड़े नेताओं के प्रचार में आने से मुकाबला और भी दिलचस्प होगा। वहीं, SIR और सुरक्षा व्यवस्था जैसी चीजें चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से कराने में मदद करेंगी।
निष्कर्ष/आगे की राह:
अगले 7-10 दिनों में यह साफ हो जाएगा कि उम्मीदवार अपनी आखिरी रणनीति क्या बनाते हैं। बागियों की वापसी या समझौता और स्थानीय गठबंधन चुनाव के नतीजे बदल सकते हैं।
