वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचादो को लोकतंत्र के लिए किए गए उनके कामों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस घोषणा के बाद, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी निराशा व्यक्त की, जबकि व्हाइट हाउस ने पुरस्कार समिति पर राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप लगाया।
मुख्य खबर:
वेनेजुएला की एक जानी-मानी विपक्षी नेता, मारिया कोरिना माचादो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है। यह सम्मान उन्हें उनके देश में लोकतंत्र, मानवाधिकारों और संस्थाओं की बहाली के लिए किए गए एफर्ट्स के लिए मिला है। इस खबर के फैलते ही दुनिया भर के राजनैतिक हल्कों में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगीं, जिनमें सबसे ज़्यादा ध्यान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान पर गया।
ट्रंप ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उन्होंने लाखों जानें बचाई हैं और इशारों में पुरस्कार समिति के फैसले पर सवाल उठाए। वहीं, व्हाइट हाउस के कुछ सूत्रों ने यह भी कहा कि समिति ने शांति से ज़्यादा पॉलिटिक्स को अहमियत दी है।
इस बीच, अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की इमिग्रेशन पॉलिसी और टेक इंडस्ट्री में टैलेंट के फ्लो को लेकर भी काफी बहस चल रही है। खबरों के अनुसार, ट्रंप की टीम H-1B वीजा पर और भी सख्ती करने की सोच रही है। हाल ही में 100,000 डॉलर की फीस बढ़ाने का प्रपोज़ल आया था, और अब और भी कड़े नियम आने की आशंका है।
अगर ऐसा होता है, तो इसका सीधा असर भारत जैसे देशों पर पड़ेगा, जहाँ की IT इंडस्ट्री अमेरिकी टेक सेक्टर को काबिल प्रोफेशनल्स देती है।
इसके साथ ही, पूरी दुनिया की नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि माचादो लैटिन अमेरिका में लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए क्या करती हैं।
असर और विश्लेषण:
इस शांति पुरस्कार से वेनेजुएला में विपक्ष का हौसला बढ़ेगा और उन्हें इंटरनेशनल सपोर्ट भी मिलेगा, जिससे सत्ता के खेल में कुछ बदलाव आ सकते हैं।
अमेरिका की इमिग्रेशन पॉलिसी में सख्ती से भारतीय IT कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, खासकर टैलेंट को लाने-ले जाने, लागत और प्रोजेक्ट पूरे करने में।
आगे क्या होगा:
आने वाले हफ्तों में नॉर्वेजियन कमेटी, व्हाइट हाउस और लैटिन अमेरिका के नेता इस पर और भी बयान दे सकते हैं। H-1B वीजा को लेकर नए नियम आने पर भारतीय टेक इंडस्ट्री को अपनी स्ट्रैटेजी बदलनी पड़ सकती है।
