रतन टाटा का निधन 9 अक्टूबर, 2024 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 86 वर्ष की उम्र में हुआ था. 2025 में उनकी पहली बरसी पर, टाटा समूह और पूरे देश ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.
कई नेताओं, उद्योगपतियों और आम लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. टाटा कंपनियों ने उन्हें पीढ़ियों को बनाने वाला व्यक्ति कहा. टाटा समूह के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे लोगों ने कहा कि वे अपने मूल्यों और परोपकार के कारण देश के लिए एक प्रेरणा थे.
मुख्य खबर:
9 अक्टूबर, 2025, गुरुवार को भारत रतन टाटा की पहली बरसी मनाई गई. 9 अक्टूबर, 2024 को 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया था. पूरे हफ्ते सोशल मीडिया और कई संस्थानों में उन्हें याद किया गया. टाटा समूह ने बताया कि उनका निधन हो गया है, लेकिन इसका कारण नहीं बताया. कुछ खबरों में कहा गया कि उनका इलाज आईसीयू में चल रहा था.
पहली बरसी पर, टाटा कंपनियों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर A life that shaped generations (एक ऐसा जीवन जिसने पीढ़ियों को आकार दिया) लिखकर उन्हें याद किया गया. इसके बाद, उद्योग जगत, छात्रों, स्टार्टअप और कई राज्यों के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी उन्हें एक देशभक्त, प्रेरणादायक और संवेदनशील नेता बताया.
क्या हुआ और कहां हुआ:
9 अक्टूबर, 2024 की देर रात मुंबई में उनका निधन हो गया था. 9 अक्टूबर, 2025 को उनकी पहली बरसी पर, पूरे देश में उन्हें अलग-अलग तरीकों से याद किया गया. डिजिटल और ऑफलाइन कार्यक्रम हुए, लेख लिखे गए और उनकी जीवन यात्रा के बारे में बताया गया. मीडिया और कई संस्थानों ने उनकी उपलब्धियों के बारे में बात की. हिंदुस्तान टाइम्स, मनीकंट्रोल और न्यूज़18 जैसी जगहों ने उनके बारे में विशेष लेख छापे, जिसमें उनके विचार, जीवन और टाटा समूह के विकास के बारे में बताया गया था. गूगल पर भी लोगों ने उनके बारे में खूब खोजा, जिससे पता चलता है कि लोग उन्हें कितना याद करते हैं.
क्यों हुआ और इसका क्या असर होगा:
यह बरसी सिर्फ दुख मनाने का दिन नहीं है. यह उस विरासत को याद करने का दिन है, जिसने टाटा समूह को ईमानदारी, नए विचारों और परोपकार का प्रतीक बना दिया. इसका असर उद्योग, सीएसआर, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्टार्टअप पर लंबे समय तक दिखाई देगा. रतन टाटा के समय में, टाटा समूह ने कई विदेशी कंपनियों को खरीदा और अलग-अलग क्षेत्रों में विकास किया. इससे भारतीय उद्योग को दुनिया में एक नई पहचान मिली. इसका असर आज भी मैन्युफैक्चरिंग, ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता उत्पाद और सेवाओं में दिखाई देता है. टाटा ट्रस्ट्स, जो टाटा संस में दो-तिहाई हिस्सेदारी के मालिक हैं, परोपकार के कामों को करते हैं. इससे आने वाले सालों में भी स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक विकास पर अच्छा असर पड़ेगा.
किसने क्या कहा:
टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने रतन टाटा को एक असाधारण नेता बताया. उन्होंने कहा कि उनके मूल्यों को बनाए रखना समूह की जिम्मेदारी है. बरसी पर भी, समूह ने यही बात कही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें एक दूरदर्शी, दयालु और असाधारण व्यक्ति बताया. उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ उद्योग में ही नहीं, बल्कि समाज को सुधारने में भी योगदान दिया. बीबीसी और न्यूयॉर्क टाइम्स ने उनकी वैश्विक पहचान और नैतिक नेतृत्व के बारे में लिखा. उन्होंने बताया कि टाटा समूह ने उनके निधन की पुष्टि की है और आज भी लोग उन्हें याद करते हैं.
पृष्ठभूमि:
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को हुआ था. उन्होंने 1990 के दशक से टाटा समूह के चेयरमैन के रूप में काम किया. उन्होंने विदेशी कंपनियों को खरीदकर समूह की कमाई और दुनिया भर में पहचान बढ़ाई. टेटली टी, कोरस स्टील और जगुआर-लैंड रोवर जैसे सौदे भारतीय कारोबार के इतिहास में मील के पत्थर माने जाते हैं. इनसे भारतीय कंपनियों को दुनिया में बढ़ने का मौका मिला. बीबीसी के अनुसार, टाटा समूह में सौ से ज्यादा कंपनियां हैं, जिसमें लाखों लोग काम करते हैं. रतन टाटा को भारत के सबसे प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक माना जाता है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि टाटा संस का बड़ा हिस्सा टाटा ट्रस्ट्स के पास है. इससे जो भी पैसा आता है, वह परोपकार के कामों में जाता है. इसी वजह से टाटा ब्रांड इतना भरोसेमंद है.
अहम उपलब्धियां और वैश्विक सौदे:
- टेटली को खरीदने से टाटा की एफएमसीजी और पेय बाजार में एक मजबूत पहचान बनी.
- कोरस स्टील के सौदे से भारतीय स्टील को यूरोपीय बाजार में बढ़ने का मौका मिला.
- जगुआर-लैंड रोवर को खरीदने से भारतीय ऑटो उद्योग को दुनिया भर में पहचान मिली.
नेतृत्व शैली और सामाजिक पूंजी:
रतन टाटा को सिर्फ सौदों के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी विनम्रता, ईमानदारी और मूल्यों पर आधारित नेतृत्व के लिए भी जाना जाता है. बीबीसी ने उन्हें मॉडेस्ट टायकून कहा है. हिंदुस्तान टाइम्स ने उनकी बरसी पर लिखा कि 2024 में उनका जाना सिर्फ एक युग का अंत नहीं था, बल्कि यह सोचने का भी समय था कि क्या आज के दौर में मूल्य-आधारित नेतृत्व कम हो रहा है. हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने भी उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा, परोपकार और नैतिक मूल्यों के बारे में बात की.
निधन:
9 अक्टूबर, 2024 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया. टाटा समूह ने इसकी पुष्टि की, लेकिन कारण नहीं बताया. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, एन. चंद्रशेखरन ने उसी रात उन्हें याद करते हुए कहा कि उन्होंने समूह और देश के लिए बहुत कुछ किया है. इकोनॉमिक टाइम्स ने एक वीडियो में दिखाया कि अंतिम संस्कार से पहले उनके पार्थिव शरीर को एनसीपीए में रखा गया था, ताकि लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें.
असर:
उनकी पहली बरसी पर, टाटा समूह के मूल्यों, लंबी सोच और परोपकार के कामों पर ध्यान दिया जा रहा है. एन. चंद्रशेखरन और समूह के लोग भी यही बात कह रहे हैं. रतन टाटा ने भारतीय कंपनियों को विदेशी ब्रांडों को खरीदने और उनसे फायदा उठाने का तरीका सिखाया. मीडिया में भी उनके बारे में खूब लिखा जा रहा है. टाटा ट्रस्ट्स शिक्षा, स्वास्थ्य और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में लगातार पैसा लगा रहे हैं.
लोगों ने कैसे याद किया:
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, टाटा कंपनियों समेत लाखों लोगों ने सोशल मीडिया पर उनके विचार, कहानियां और तस्वीरें शेयर कीं. न्यूज़18 और मनीकंट्रोल ने उनके बड़े सौदों और जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर विशेष लेख छापे, ताकि युवाओं को उनके बारे में जानकारी मिल सके. रतन टाटा सिर्फ एक कारोबारी नहीं थे, बल्कि वे समाज के लिए भी एक प्रेरणा थे.
निष्कर्ष:
उनकी पहली बरसी पर, यह संदेश दिया जा रहा है कि टाटा समूह अपने मूल्यों - ईमानदारी, नए विचारों और समाज-सेवा - को बनाए रखेगा. टाटा ट्रस्ट्स शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में पैसा लगाना जारी रखेंगे. कारोबार जगत रतन टाटा से सीख लेगा कि कैसे दुनिया भर में फैला जाए और मुनाफा कमाया जाए.
