अमेरिका भारतीय आयात पर टैरिफ घटा सकता है: CEA

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार का कहना है कि अमेरिका कुछ भारतीय सामानों पर लगने वाले टैक्स को कम कर सकता है। पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के व्यापार में अच्छी प्रगति हुई है, और अब सरकारें मिलकर इस बारे में बात कर रही हैं, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को फायदा हो सकता है।

खबर

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने हाल ही में कहा कि अमेरिका भारत से आने वाले कुछ सामानों पर टैक्स कम करने के बारे में सोच सकता है। ये खबर ऐसे समय में आई है जब भारत और अमेरिका के आर्थिक रिश्ते कई तरीकों से बेहतर हो रहे हैं, जैसे कि अलग-अलग मंचों पर मिलकर काम करना, उच्च स्तर पर बातचीत करना और सप्लाई चेन में एक दूसरे का साथ देना।

ये खबर सिर्फ कारोबारियों के लिए ही अच्छी नहीं है, बल्कि ये सरकार को भी उम्मीद देती है कि व्यापार को आसान बनाने में कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। अगर टैक्स कम होते हैं, तो भारत से सामान बेचने वालों के लिए मुकाबला करना आसान हो जाएगा और अमेरिका के सामान खरीदने वालों के लिए भी अलग-अलग जगह से सामान मिल सकेगा।

किन सामानों पर मिल सकती है छूट

ये अभी तक साफ नहीं है कि किन सामानों पर टैक्स कम हो सकता है। हालांकि, व्यापार के जानकारों का मानना है कि उन क्षेत्रों में छूट मिलने की संभावना ज्यादा है जहां भारत अच्छी तरह से सामान बना सकता है और अमेरिका को अलग-अलग जगहों से सामान लेने की ज़रूरत है।

  • स्टील और एल्यूमिनियम से बने सामान, जिन पर पहले ज्यादा टैक्स लगाया गया था।
  • इंजीनियरिंग के सामान, मशीनों के पार्ट्स और गाड़ियों के पार्ट्स।
  • केमिकल्स, डाई-स्टफ्स और खास तरह के केमिकल्स।
  • कपड़े, चमड़े के उत्पाद और जूते।
  • रत्न, आभूषण और हस्तशिल्प, जिनकी पूरी दुनिया में मांग है।
  • दवाइयों के कुछ हिस्से, खासकर जेनेरिक दवाइयां (हालांकि इनके लिए नियम और कानून भी देखने होंगे)।

आखिरी लिस्ट इस बात पर निर्भर करेगी कि बातचीत का क्या नतीजा निकलता है, उद्योग जगत के लोग कितनी कोशिश करते हैं और अमेरिका की सरकार की क्या प्राथमिकताएं हैं। इसके अलावा, ये भी ज़रूरी होगा कि टैक्स में कितनी कटौती होती है - पूरी तरह से टैक्स हटाना, धीरे-धीरे कम करना या टैक्स की दर तय करना।

पहले क्या हुआ: विवादों का समाधान

पिछले कुछ सालों में दोनों देशों ने व्यापार से जुड़े मतभेदों को सुलझाने के लिए कदम उठाए हैं। कई पुराने विवादों को सुलझाया गया है और टैक्स हटाए गए हैं, जिससे भरोसा वापस आया है। भारत ने अमेरिका से आने वाले कुछ कृषि और खाद्य उत्पादों पर लगने वाले ज्यादा टैक्स को वापस ले लिया, जबकि दोनों देशों ने विश्व व्यापार संगठन से जुड़े कई मामलों में समझौते किए।

डिजिटल सेवा कर के मामले में भी एक अस्थायी समझौता हुआ, जिससे जुर्माना लगने का खतरा टल गया। इन कदमों से बातचीत करने वालों को आगे बढ़ने में मदद मिली और उद्योग जगत में अनिश्चितता कम हुई।

इसके साथ ही, 2021 से ट्रेड पॉलिसी फोरम (TPF) और उच्च-प्रौद्योगिकी सहयोग ढांचा iCET को फिर से शुरू किया गया है, जिससे लगातार बातचीत होती रही है। इन मंचों पर बाजार तक पहुंच, मानक-मान्यता, सप्लाई-चेन सुरक्षा और नई तकनीकों में साझेदारी पर बातें हो रही हैं।

व्यापार के आंकड़े और रुझान

अमेरिका पिछले कुछ सालों से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है। पूरी दुनिया में सामानों के व्यापार में थोड़ी कमी आई है, लेकिन फिर भी भारत और अमेरिका के बीच व्यापार का स्तर ऊंचा बना हुआ है, जबकि सेवाओं में - खासकर आईटी और बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट में - बढ़ोतरी हो रही है।

भारत से पेट्रोलियम उत्पाद, इंजीनियरिंग सामान, दवाइयां, रत्न, आभूषण, कपड़े और केमिकल्स सबसे ज्यादा निर्यात होते हैं। अमेरिका में इन चीजों की मांग बदलती रहती है। दूसरी तरफ, भारत अमेरिका से उच्च-तकनीकी मशीनरी, हवाई जहाज के पार्ट्स, मेडिकल उपकरण, कृषि उत्पाद और ऊर्जा से जुड़ी चीजें आयात करता है।

टैक्स में कटौती का असर उन चीजों पर सबसे ज्यादा दिखेगा जिन पर अभी टैक्स लगने से मुकाबला मुश्किल हो रहा है। छोटे और मध्यम आकार के निर्यातकों के लिए कुछ प्रतिशत की कटौती भी ऑर्डर बुक में बड़ा बदलाव ला सकती है।

उद्योग पर क्या असर हो सकता है

टैरिफ में कमी से भारतीय उद्योग को कई तरह से फायदे हो सकते हैं।

  • कीमत में मुकाबला: अमेरिका के सामान खरीदने वालों के लिए लागत कम होगी, जिससे भारत के सामान बेचने वालों को ज्यादा ऑर्डर और लंबे समय के लिए समझौते मिल सकते हैं।
  • बाजार में विस्तार: कपड़े, जूते, चमड़ा और हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों में नए ग्राहक मिल सकते हैं।
  • क्षमता में निवेश: मांग बढ़ने पर उत्पादन क्षमता, गुणवत्ता और प्रमाणन में निवेश बढ़ेगा।
  • आपूर्ति श्रृंखला में विविधता: अमेरिका की 'फ्रेंडशोरिंग' रणनीति के तहत भारत वैकल्पिक सोर्सिंग हब बन सकता है।
  • एसएमई को प्रोत्साहन: नियमों का पालन आसान होने और मुनाफा बढ़ने से छोटे निर्यातक सीधे अमेरिकी रिटेल चेन से जुड़ सकेंगे।

हालांकि, भारत को कोरिया, वियतनाम, मैक्सिको और लैटिन अमेरिकी देशों से भी मुकाबला करना होगा। इसलिए, लॉजिस्टिक्स, मानक-पालन और प्रमाणन की लागत कम करना भी उतना ही जरूरी है जितना टैक्स में छूट।

GSP बहाली और विधायी पहल

अमेरिका का जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (GSP) कार्यक्रम, जिसके तहत विकासशील देशों को कुछ उत्पादों पर बिना टैक्स या कम टैक्स पर सामान बेचने का मौका मिलता था, भारत के लिए 2019 से बंद है। इसे वापस शुरू करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी चाहिए और इसमें पात्रता शर्तों को बदलने पर भी बहस हो रही है।

अगर GSP फिर से शुरू होता है, तो छोटे उद्योगों द्वारा निर्यात किए जाने वाले हजारों सामानों पर लागत काफी कम हो सकती है। हालांकि, GSP एक अलग मुद्दा है; अभी जो संकेत मिल रहे हैं, वे कुछ खास उत्पादों पर टैक्स को कम करने की बात करते हैं। दोनों प्रक्रियाएं एक साथ चल सकती हैं - एक प्रशासनिक/वार्तालाप और दूसरी विधायी।

भारत की तरफ से भी टैक्स ढांचे को बेहतर बनाना, मानक-मान्यता में सहयोग (MRAs) और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को डिजिटल करना GSP या अन्य छूटों के फायदे को बढ़ा सकता है।

कूटनीतिक पहलू और सप्लाई चेन

टैरिफ पर बातचीत सिर्फ व्यापार नहीं है, बल्कि यह एक बड़े रणनीतिक समीकरण का भी हिस्सा है। सेमीकंडक्टर, क्वांटम, एआई, स्वच्छ ऊर्जा और रक्षा उद्योग में सहयोग बढ़ने के साथ, सप्लाई चेन को मजबूत करने पर ध्यान दिया जा रहा है। चीन पर निर्भरता कम करने से भारत को फायदा हो सकता है, लेकिन इसके लिए गुणवत्ता, स्केल और विश्वसनीयता पर लगातार निवेश करना होगा।

इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के सप्लाई-चेन स्तंभ के तहत पारदर्शिता, श्रम-पर्यावरण मानकों और जरूरी खनिजों की सुरक्षा पर जो मानक बन रहे हैं, वे भविष्य में टैरिफ से जुड़े फैसलों को प्रभावित करेंगे। भारत के लिए यह जरूरी होगा कि वह मानकीकरण, ट्रेसबिलिटी और स्थिरता रिपोर्टिंग में उद्योग को सक्षम करे।

संभावित चुनौतियां और सावधानियां

टैरिफ में कटौती का रास्ता हमेशा आसान नहीं होता है। अमेरिका के घरेलू उद्योगों की चिंताएं, चुनावी माहौल और व्यापार घाटे पर राजनीतिक बहस फैसलों को प्रभावित कर सकती है। किसी भी प्रस्ताव पर लोगों की राय, हितधारकों की सुनवाई और एजेंसियों की समीक्षा आम बात है।

दूसरी ओर, भारत के लिए मुख्य चुनौती गुणवत्ता मानकों का पालन करना, समय पर डिलीवरी करना और बौद्धिक संपदा/सेफ्टी रेगुलेशंस का पालन करना है। गैर-टैरिफ बाधाएं - जैसे उत्पाद सुरक्षा, लेबलिंग, सर्टिफिकेशन - भी बाजार तक पहुंच को उतना ही प्रभावित करती हैं जितना कि टैरिफ।

संभावित समयरेखा

उम्मीद है कि अगले चरण में दोनों देशों के बीच बातचीत और तेज होगी। ट्रेड पॉलिसी फोरम की आने वाली बैठकों, मंत्रिस्तरीय संवादों और उद्योग परामर्शों में प्राथमिकता वाले उत्पाद समूह तय किए जा सकते हैं। किसी भी टैरिफ में राहत का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि यह कब से लागू होता है, ट्रांजिशन के नियम क्या हैं और निगरानी कैसे की जाएगी।

उद्योग जगत को उत्पाद-वार लागत बेंचमार्किंग, अमेरिकी मानकों के अनुसार जल्द से जल्द प्रमाणन और वितरण साझेदारियों की समीक्षा करनी चाहिए। निर्यात संवर्द्धन परिषदें बाजार की जानकारी, ट्रेड फेयर और रिटेल चेन से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

निष्कर्ष

मुख्य आर्थिक सलाहकार का संकेत बताता है कि भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों में सुधार की गुंजाइश है और यह जल्द ही हो सकता है। चुनिंदा भारतीय सामानों पर अमेरिकी टैरिफ में कमी का कदम उद्योग, निर्यात और सप्लाई चेन में विविधता लाने के लिए अच्छा साबित होगा। अब ध्यान इस बात पर होगा कि बातचीत किस दिशा में जाती है, किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है और इसे कब तक लागू किया जाता है, जिसमें दोनों सरकारें और उद्योग जगत मिलकर काम करेंगे।

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