अमित शाह का बिहार दौरा: 27 सितंबर को 3 जिलों में रणनीति बैठकें

अमित शाह का बिहार दौरा: 27 सितंबर को तीन जिलों में चुनावी रणनीति पर मंथन

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बड़े नेता अमित शाह 27 सितंबर को बिहार आ रहे हैं। वे यहां तीन जिलों में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग करेंगे। इन मीटिंग में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर बात होगी। समझा जा रहा है कि वे चुनाव जीतने के लिए पार्टी को क्या करना है, इस बारे में टिप्स भी देंगे।
खबर है कि ये मीटिंग बंद कमरे में होंगी। इनमें जिले और मंडल स्तर के पार्टी पदाधिकारी शामिल होंगे। मीटिंग में बूथ स्तर पर काम करने, अलग-अलग जातियों के लोगों को साथ लाने और सीटों के बंटवारे पर बात हो सकती है। माना जा रहा है कि ये सभी चीजें 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बहुत जरूरी हैं।

अभी के हालात

बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा और उसके साथी दल चाहते हैं कि वे मिलकर चुनाव लड़ें और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतें। इसके लिए वे संगठन को मजबूत करने, बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को जुटाने और सीटों के बंटवारे पर तेजी से काम कर रहे हैं।
2024 के बाद राजनीतिक माहौल बदल गया है। नए गठबंधन बन रहे हैं, जातियों के समीकरण बदल रहे हैं और सरकार की योजनाओं पर भी खूब बातें हो रही हैं।
जानकारों का मानना है कि अमित शाह का यह दौरा यह देखने के लिए है कि जिलों में पार्टी कितनी मजबूत है। वे कार्यकर्ताओं को सही संदेश देने और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के बारे में भी बात कर सकते हैं।

पार्टी का क्या कहना है

पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि मीटिंग में बूथ कमेटियों को सक्रिय करने, पन्ना प्रमुखों (वोटर लिस्ट के इंचार्ज) की जिम्मेदारी तय करने और सोशल मीडिया पर एक जैसा मैसेज देने पर खास ध्यान दिया जाएगा।
यह भी सुनने में आ रहा है कि एनडीए के सहयोगी दलों के बीच तालमेल बढ़ाने, जिन सीटों पर विवाद है उन पर सहमति बनाने और साथ में रैलियां करने के बारे में भी बात हो सकती है।
जो लोग चुनाव का काम देखते हैं, उनका कहना है कि इस दौरे में उम्मीदवारों को चुनने के नियम, जमीन पर डेटा के हिसाब से प्रचार करने और महिलाओं और युवाओं तक पहुंचने के तरीकों पर बात हो सकती है।

विपक्ष का क्या कहना है

विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार लोगों के असली मुद्दों से ध्यान भटका रही है। उनका कहना है कि बेरोजगारी, शिक्षा और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर सरकार को जवाब देना चाहिए।
महागठबंधन (विपक्षी दलों का गठबंधन) के लोग भी साथ मिलकर प्रचार करने, एक साझा कार्यक्रम बनाने और उम्मीदवारों के नाम जल्द तय करने की कोशिश कर रहे हैं।
अमित शाह के दौरे को लेकर स्थानीय प्रशासन तैयारी कर रहा है और सुरक्षा बढ़ा दी गई है। वहीं, भाजपा कार्यकर्ता इसे पार्टी में नई ऊर्जा भरने के तौर पर देख रहे हैं।

क्या हो सकता है

  • इन तीन जिलों में मीटिंग करने से पता चलता है कि भाजपा अलग-अलग इलाकों के हिसाब से अलग रणनीति बना रही है। वह देहाती और शहरी इलाकों, सीमांचल, कोसी और मगध जैसे इलाकों के लिए अलग संदेश दे सकती है।
  • जाति की राजनीति को देखते हुए भाजपा यह कोशिश करेगी कि उसकी योजनाओं का फायदा ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग), ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), एससी-एसटी (अनुसूचित जाति और जनजाति) और महिलाओं तक पहुंचे। वह सुरक्षा, बुनियादी सुविधाओं और रोजगार के बारे में भी बात कर सकती है।
  • अगर सीटों के बंटवारे पर जल्दी सहमति बन जाती है, तो उम्मीदवारों को चुनने में कम दिक्कत होगी और प्रचार का काम समय पर शुरू हो जाएगा। वहीं, विपक्ष को यह दिखाना होगा कि उसके पास एक मजबूत संदेश है और उसके नेता लोगों के बीच भरोसेमंद हैं।
  • इस दौरे का मकसद बूथ स्तर पर मैनेजमेंट (1000-1200 मतदाताओं के समूह की रणनीति), डेटा के हिसाब से प्रचार और सोशल मीडिया पर तालमेल बिठाना हो सकता है।

कुल मिलाकर

अमित शाह का 27 सितंबर का बिहार दौरा एनडीए की रणनीति, सीटों के बंटवारे और बूथ मैनेजमेंट को देखने के लिए है। आने वाले दिनों में पता चल सकता है कि वे साथ में कितनी रैलियां करेंगे, उम्मीदवारों के नाम कब तक तय होंगे और जिलों में आगे क्या-क्या मीटिंग होंगी।

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