ऑस्ट्रेलिया: 2035 तक उत्सर्जन 70% घटाने का प्रस्ताव

ऑस्ट्रेलिया ने अपना जलवायु लक्ष्य और बड़ा कर दिया है। अब देश 2035 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 70% तक कम करने का इरादा रखता है। सरकार इस लक्ष्य को पेरिस समझौते के तहत अपनी अगली राष्ट्रीय योगदान योजना में शामिल करने की तैयारी कर रही है। इसका मतलब है कि ऊर्जा, परिवहन और उद्योग जैसे क्षेत्रों में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।

प्रस्ताव क्या है?

ऑस्ट्रेलियाई सरकार का नया लक्ष्य है कि 2035 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2005 के मुकाबले 70% तक कम कर दिया जाए। यह पेरिस समझौते के तहत नेशनल्ली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन (NDC) को अपडेट करने जैसा है। इसे औपचारिक रूप से 2025 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) को सौंपा जाएगा। इस प्रस्ताव का मकसद है कि ऑस्ट्रेलिया वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में अपनी भूमिका निभाए।
सरकार का कहना है कि यह लक्ष्य वैज्ञानिक आधार पर तय किया गया है और इसमें बिजली, परिवहन, उद्योग, भवन, कृषि और भूमि उपयोग जैसे सभी मुख्य क्षेत्र शामिल होंगे। यह कदम 2030 तक 43% की कटौती और 2050 तक नेट-जीरो के लक्ष्य के बीच का एक पुल भी है।

पिछला रिकॉर्ड और लक्ष्य

ऑस्ट्रेलिया ने धीरे-धीरे अपने जलवायु लक्ष्यों को बढ़ाया है। 2030 तक 2005 के स्तर से 43% की कटौती का लक्ष्य पहले से ही लागू है, और 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का वादा भी कायम है। 2005 को आधार वर्ष इसलिए चुना गया क्योंकि उस समय उत्सर्जन का स्तर काफी ऊँचा था, और कई अन्य देश (जैसे अमेरिका और कनाडा) भी इसे संदर्भ वर्ष मानते हैं।

पिछले दस सालों में, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और भूमि प्रबंधन में सुधार के कारण उत्सर्जन में कमी आई है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, 2005 की तुलना में कुल राष्ट्रीय उत्सर्जन में पहले ही लगभग 30% की कमी आई है। 2035 तक 70% का लक्ष्य हासिल करने के लिए, अगले दस सालों में कटौती की गति और नीतियों को तेज़ी से लागू करना होगा, ताकि 2050 तक नेट-जीरो के रास्ते पर बने रहें।

कौन से तरीके अपनाए जाएंगे?

सरकार ने बताया है कि 70% कटौती के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई तरह की नीतियाँ अपनाई जाएंगी:

  • बिजली क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: सौर और पवन ऊर्जा को राष्ट्रीय बिजली बाजार में तेज़ी से बढ़ाया जाएगा। ग्रिड को आधुनिक बनाने, बैटरी स्टोरेज, और ट्रांसमिशन परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो।
  • उद्योगों और खदानों पर नियम: बड़े औद्योगिक स्थलों के लिए उत्सर्जन को कम करने के नियम (जैसे ऑस्ट्रेलिया की सेफगार्ड प्रणाली) धीरे-धीरे सख्त किए जाएंगे, ताकि उद्योग अपनी कार्बन तीव्रता को लगातार कम करते रहें।
  • परिवहन के लिए मानक और बिजली का उपयोग: नई गाड़ियों के लिए उत्सर्जन मानक, ईवी चार्जिंग नेटवर्क, सार्वजनिक परिवहन और माल ढुलाई के लिए बिजली का उपयोग बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इसका लक्ष्य पेट्रोल-डीज़ल पर निर्भरता कम करना और स्वच्छ वाहनों को बढ़ावा देना है।
  • मीथेन उत्सर्जन में कमी: कोयला और गैस आपूर्ति में मीथेन के रिसाव को रोकने के लिए निगरानी और नई तकनीकें इस्तेमाल की जाएंगी।
  • ऊर्जा दक्षता और भवन निर्माण कोड: घरों और इमारतों के लिए बेहतर ऊर्जा मानक, उपकरणों की दक्षता और रेटिंग सिस्टम ऊर्जा की मांग को कम करने में मदद करेंगे।
  • भूमि और कार्बन बाजार: पेड़ लगाने, भूमि उपयोग में सुधार और मृदा-कार्बन जैसी पहलें कार्बन को सोखने की क्षमता बढ़ा सकती हैं। कार्बन क्रेडिट सिस्टम में पारदर्शिता और गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाएगा।
  • नई तकनीकें: हरित हाइड्रोजन और कार्बन कैप्चर जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कुछ खास क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहाँ दूसरे विकल्प मुश्किल हों।

अलग-अलग सेक्टरों पर असर

  • बिजली: 2035 तक लक्ष्य हासिल करने में बिजली क्षेत्र का अहम रोल होगा। बड़े पैमाने पर सौर-पवन ऊर्जा संयंत्र, रूफटॉप सोलर, बैटरी स्टोरेज और ग्रिड इंटरकनेक्शन परियोजनाएं बिजली की ज़रूरत को पूरा करेंगी। जीवाश्म ईंधन वाले संयंत्रों को धीरे-धीरे बंद किया जाएगा।
  • उद्योग और संसाधन: इस्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट, रसायन और एलएनजी जैसे क्षेत्रों को ऊर्जा दक्षता, ईंधन परिवर्तन और नई तकनीकों के इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन कम करना होगा।
  • परिवहन: यात्री वाहनों में ईवी का इस्तेमाल बढ़ेगा, जबकि भारी वाहन और लंबी दूरी की माल-ढुलाई में बायोफ्यूल या हाइड्रोजन जैसे विकल्प देखने को मिल सकते हैं। चार्जिंग और रिफ्यूलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाना होगा।
  • भवन और शहर: नई इमारतों के लिए कोड, पुराने घरों को बेहतर बनाने के कार्यक्रम और स्मार्ट-एप्लायंसेज से ऊर्जा की खपत कम होगी। शहरों में ट्रांजिट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट और हरित क्षेत्रों का विस्तार भी उत्सर्जन घटाएगा।
  • कृषि और भूमि: पशुधन से मीथेन कम करने के लिए फीड-एडिटिव, बेहतर चराई प्रबंधन और खाद प्रबंधन जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं।

आर्थिक असर और निवेश

70% कटौती का लक्ष्य ऊर्जा के क्षेत्र में बड़े निवेश को आकर्षित कर सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रिड, स्टोरेज, ईवी और ऊर्जा दक्षता के बाजार में नए अवसर पैदा होंगे। लंबे समय में ऊर्जा की लागत स्थिर रहने और आपूर्ति सुरक्षित होने की संभावना है।
नौकरियों के मामले में, कोयला और गैस क्षेत्रों से जुड़े रोजगार में बदलाव आएगा। सरकार कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर ध्यान देगी, ताकि प्रभावित लोगों को नए हरित उद्योगों में समायोजित किया जा सके।
वित्तीय क्षेत्र में हरित बॉन्ड और सस्टेनेबिलिटी-लिंक्ड लोन की मांग बढ़ सकती है। नियमों में स्पष्टता और स्थिर नीति निवेश जोखिम को कम करते हैं, इसलिए 2035 का स्पष्ट लक्ष्य पूंजी प्रवाह के लिए अच्छा माना जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर

वैश्विक स्तर पर 1.5°C का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2030 के दशक में और तेजी से कटौती की जानी चाहिए। कई विकसित देश 2030 तक बड़े पैमाने पर कटौती के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं और 2035/2040 के लक्ष्यों की योजना बना रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया का 70% का लक्ष्य इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
यूरोपीय संघ, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों के साथ स्वच्छ आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग बढ़ सकता है। स्वच्छ हाइड्रोजन और हरित आयरन-स्टील में ऑस्ट्रेलिया की स्थिति मजबूत होगी।
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि घरेलू उत्सर्जन लक्ष्यों में निर्यात किए गए जीवाश्म ईंधनों के जलने से होने वाले विदेशी उत्सर्जन शामिल नहीं हैं। फिर भी, वैश्विक रुझान और वित्तीय संस्थानों की नीतियां निर्यात पर असर डाल सकती हैं।

चुनौतियाँ और बहस

यह लक्ष्य बड़ा है और इसे लागू करना आसान नहीं होगा। कुछ मुख्य चुनौतियाँ हैं:

  • ग्रिड और इन्फ्रास्ट्रक्चर: ट्रांसमिशन लाइनों को समय पर मंजूरी मिलना, भूमि का अधिग्रहण और पर्यावरणीय स्वीकृतियां ज़रूरी हैं।
  • निवेश और आपूर्ति श्रृंखला: टरबाइन, सोलर मॉड्यूल, बैटरी और ईवी के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता लागत और समय को प्रभावित कर सकती है।
  • सिस्टम की विश्वसनीयता: नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ने के साथ बैकअप और स्टोरेज का सही संयोजन ज़रूरी होगा, ताकि लागत और विश्वसनीयता बनी रहे।
  • सामाजिक स्वीकार्यता: परियोजनाओं का वितरण न्यायपूर्ण होना चाहिए और स्थानीय समुदायों के अधिकारों का सम्मान होना चाहिए।
  • नीति निरंतरता: दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए पारदर्शी और स्थिर नीतियां ज़रूरी हैं। बार-बार बदलाव निवेशकों का भरोसा कम कर सकते हैं।

कुछ पर्यावरण समूह जीवाश्म ईंधनों पर और सख्त नीति की मांग कर सकते हैं, जबकि उद्योग व्यावहारिक समयसीमा और लागत पर सवाल उठा सकते हैं। कार्बन क्रेडिट की गुणवत्ता पर भी बहस जारी रह सकती है।

आगे क्या होगा?

सरकार इस प्रस्ताव पर व्यापक विचार-विमर्श करने की योजना बना रही है। 2025 में अगला NDC जमा करने से पहले, उद्योग, राज्यों, वैज्ञानिकों, श्रमिक संगठनों और नागरिकों से राय ली जाएगी। उसके बाद, क्षेत्र-विशेष कार्यान्वयन योजनाएं और निगरानी-रिपोर्टिंग ढांचे स्पष्ट किए जाएंगे।
अगर 2035 तक 70% कटौती का लक्ष्य समय पर और कुशलता से हासिल कर लिया जाता है, तो 2050 तक नेट-जीरो तक पहुंचना आसान हो सकता है। यह न केवल जलवायु लक्ष्यों, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा और हरित नौकरियों के लिए भी अच्छा होगा।

निष्कर्ष

ऑस्ट्रेलिया का 2035 तक 70% उत्सर्जन कटौती का प्रस्ताव जलवायु के लिए एक बड़ा कदम है। इसका सफल होना बिजली, परिवहन और उद्योग में तेज़ बदलाव, विश्वसनीय ग्रिड और मजबूत नीतियों पर निर्भर करेगा। विचार-विमर्श और ठोस योजना के साथ, यह लक्ष्य 2050 तक नेट-जीरो की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

Raviopedia

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