बीजिंग फोरम में डोंग जुन का ‘हिगेमोनिक लॉजिक’ पर वार

चीन के रक्षा मंत्री डोंग जुन ने बीजिंग में आयोजित सुरक्षा संबंधी एक बड़े सम्मेलन में कुछ देशों की दादागिरी वाली नीतियों पर खुलकर अपनी राय रखी। उन्होंने सीधे तौर पर किसी देश का नाम तो नहीं लिया, लेकिन माना जा रहा है कि उनका इशारा अमेरिका की तरफ था।

बीजिंग फोरम में चीन के रक्षा मंत्री डोंग जुन का अमेरिका पर अप्रत्यक्ष वार

क्या था मामला?

बीजिंग में एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन हुआ, जिसमें अलग-अलग देशों के रक्षा, कूटनीति और रणनीति के एक्सपर्ट शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में चीन के रक्षा मंत्री डोंग जुन ने दुनिया भर के हालात, ताकत के समीकरण और अपने इलाके की सुरक्षा पर बात की। उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में सुरक्षा सभी के लिए एक जैसी होनी चाहिए और किसी एक देश के दबाव में नहीं आनी चाहिए।
डोंग जुन ने दादागिरी वाली सोच जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन नीतियों पर सवाल उठाए, जिनके जरिए कुछ देश अपने फायदे के लिए नियम बनाते हैं। उनके बयानों से साफ था कि चीन अब अपनी सुरक्षा से जुड़ी बातों को और भी मजबूती से दुनिया के सामने रखेगा।
सम्मेलन में इस बात पर भी जोर दिया गया कि बातचीत और पारदर्शिता से ही इलाके में तनाव कम किया जा सकता है। हालांकि, डोंग जुन की बातें थोड़ी सख्त थीं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मुश्किल हालात से निपटने, खतरे को कम करने और सेनाओं के बीच बातचीत जरूरी है।

दादागिरी वाली सोच का मतलब क्या है?

  • दादागिरी वाली सोच का मतलब है कि कोई ताकतवर देश अपने फायदे के लिए नियम, गठबंधन और तकनीक का इस्तेमाल करता है। डोंग जुन के मुताबिक, यह तरीका सभी देशों को साथ लेकर चलने की भावना के खिलाफ है और इससे सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होती है, जिसमें सभी को बराबर समझा जाए।
  • चीन का मानना है कि इस तरह की दादागिरी से सप्लाई चेन, तकनीकी नियम और समुद्री रास्तों पर एकतरफा शर्तें लगाई जाती हैं। इससे छोटे और मध्यम देशों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचते और आपसी सहमति से काम करने में दिक्कत होती है।
  • बीजिंग का कहना है कि सुरक्षा को सिर्फ अपने फायदे के लिए नहीं देखना चाहिए। अगर किसी इलाके में ताकत का संतुलन बनाने के लिए दबाव डाला जाता है, पाबंदियां लगाई जाती हैं या सेना भेजी जाती है, तो इससे शक बढ़ता है और गलत फैसले होने की संभावना बढ़ जाती है।

अमेरिका पर सीधा निशाना नहीं

हालांकि डोंग जुन ने सीधे तौर पर अमेरिका का नाम नहीं लिया, लेकिन दादागिरी जैसे शब्द चीन अक्सर अमेरिका की नीतियों की आलोचना करने के लिए इस्तेमाल करता है। इसमें सैन्य गठबंधनों को बढ़ाना, चीजों के एक्सपोर्ट पर कंट्रोल रखना, पाबंदियां लगाना और समुद्री अभियान जैसे मुद्दे शामिल हैं।
बीजिंग लंबे समय से यह कहता आया है कि नियमों पर आधारित व्यवस्था को कुछ ताकतें अपने हिसाब से चलाती हैं। चीन का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के बनाए अंतरराष्ट्रीय कानून ही सभी के लिए होने चाहिए, न कि सिर्फ कुछ देशों के बनाए नियम।
डोंग जुन के बयान इस बात का हिस्सा हैं कि एशिया-प्रशांत में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी किसकी है और इलाके की सुरक्षा कैसे की जानी चाहिए। चीन खुद को सभी के साथ मिलकर सुरक्षा करने वाला बताता है, जबकि अमेरिका नियमों पर आधारित व्यवस्था पर जोर देता है।

ताइवान और दक्षिण चीन सागर का मुद्दा

  • ताइवान और दक्षिण चीन सागर के मुद्दे भी बातचीत के केंद्र में हैं। ताइवान को लेकर चीन वन-चाइना नीति पर कायम है और बाहरी दखल को बर्दाश्त नहीं करता। वहीं, अमेरिका ताइवान की मदद करता है, जिससे शक बना रहता है।
  • दक्षिण चीन सागर में समुद्री रास्तों की स्वतंत्रता, द्वीपों पर कब्जा और समुद्री संसाधनों को लेकर कई देशों के बीच विवाद है। अलग-अलग देशों की सेनाओं की गतिविधियां और जहाजों की आवाजाही से अक्सर तनाव बढ़ जाता है, जिस पर चीन आपत्ति जताता है।
  • इन दोनों समुद्री इलाकों में गलतफहमी या दुर्घटना का खतरा हमेशा बना रहता है। इसलिए, चीन हॉटलाइन, जानकारी साझा करने और मुश्किल हालात से निपटने के तरीकों पर जोर देता है ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे और बातचीत जारी रहे।

कुछ जरूरी आंकड़े

बीजिंग के संदेश को समझने के लिए कुछ आंकड़े जानना जरूरी है:

  • अमेरिका हर साल अपनी सेना पर लगभग 800-900 अरब डॉलर खर्च करता है।
  • चीन का आधिकारिक रक्षा बजट लगभग 1.6-1.7 ट्रिलियन युआन है।
  • अनुमान के मुताबिक, दक्षिण चीन सागर से हर साल 3 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का व्यापार होता है।
  • इस इलाके में QUAD और AUKUS जैसे सुरक्षा संगठन हैं, जिन पर चीन को आपत्ति है।
  • टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सेमीकंडक्टर, एआई और 5जी/6जी जैसी चीजों के एक्सपोर्ट पर पाबंदियां लगी हुई हैं, जो विवाद का कारण बनी हुई हैं।
  • हाल के सालों में सेनाओं के बीच बातचीत फिर से शुरू करने की कोशिश की गई है, क्योंकि सीधी बातचीत से खतरे को कम किया जा सकता है।

इन आंकड़ों से पता चलता है कि विवाद सिर्फ बातों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रणनीति, तकनीक और अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है। बीजिंग को लगता है कि दादागिरी वाली सोच का असर इन सभी चीजों पर पड़ता है।

चीन का पुराना रवैया

चीन लंबे समय से किसी की दादागिरी नहीं की बात करता आया है। उसका मानना है कि कोई भी ताकतवर देश अपने नियम थोपकर दुनिया की व्यवस्था को कमजोर नहीं कर सकता। बीजिंग के मुताबिक, सुरक्षा का रास्ता आपसी सहयोग, विकास और सम्मान से होकर जाता है।
बीजिंग के सुरक्षा सम्मेलनों में अक्सर सभी के लिए सुरक्षा, मिलकर सुरक्षा और हमेशा के लिए सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है। चीन 2000 के दशक से ऐसे सम्मेलनों के जरिए अपनी बातों को रखता आया है, ताकि इलाके के देशों को अपनी सोच के साथ जोड़ सके।
चीन का यह भी मानना है कि आर्थिक विकास और सुरक्षा अलग-अलग नहीं हैं। सप्लाई चेन की स्थिरता, टेक्नोलॉजी तक पहुंच और समुद्री व्यापार की आजादी, ये सभी मुद्दे सुरक्षा से जुड़े हुए हैं।

दुनिया की प्रतिक्रिया और असर

अमेरिका और उसके साथी देश नियमों पर आधारित व्यवस्था को इलाके में शांति बनाए रखने का आधार मानते हैं। उनका कहना है कि समुद्री कानून, रास्तों की आजादी और देशों की संप्रभुता का सम्मान करने से शांति बनी रहती है। लेकिन चीन इसे दादागिरी वाली सोच कहता है।
जानकारों का मानना है कि इस तरह के सख्त बयान दो बातें दिखाते हैं: पहला, अपने देश और दुनिया के लोगों को मजबूत संदेश देना; दूसरा, बातचीत के लिए दबाव बनाना। चीन यह जताना चाहता है कि वह अपनी शर्तों पर समझौता नहीं करेगा, लेकिन बातचीत के दरवाजे खुले रखेगा।
इसका सबसे बड़ा असर छोटे और मध्यम देशों पर पड़ता है। कई देश सिर्फ एक ताकत पर निर्भर नहीं रहना चाहते और अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर संतुलन बनाते हैं। ऐसे में सख्त बयानों के साथ-साथ मदद, आपदा राहत और गैर-पारंपरिक सुरक्षा जैसे कामों पर भी जोर दिया जा सकता है।

आगे क्या हो सकता है?

आगे खतरे को कम करने और मिलकर काम करने पर ध्यान देना होगा। सेनाओं के बीच हॉटलाइन, समुद्री टकराव से बचने के नियम, जानकारी साझा करना और संयुक्त कार्यसमूह जैसे उपाय तनाव कम करने में मदद कर सकते हैं।
टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पारदर्शिता, सीमित समझौते और भरोसेमंद नियम बनाने की जरूरत है, ताकि मुकाबला लड़ाई में न बदल जाए। सेमीकंडक्टर, एआई और साइबर सुरक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में नियम तय करना बातचीत का हिस्सा बन सकता है।
डोंग जुन के बयान से साफ है कि चीन अपनी सुरक्षा से जुड़ी बातों को मजबूती से आगे रखेगा। इसके साथ ही, वह क्षेत्रीय साझेदारियों में हिस्सा लेकर और सम्मेलनों में शामिल होकर यह भी दिखा रहा है कि वह सख्त संदेश के साथ बातचीत के लिए भी तैयार है।

निष्कर्ष

बीजिंग के सम्मेलन में डोंग जुन का दादागिरी वाली सोच पर दिया गया बयान एशिया-प्रशांत इलाके में सुरक्षा को लेकर चीन की सोच को दिखाता है। इसमें चीन ने साफ कर दिया है कि वह अकेले दबाव डालने का विरोध करेगा और सभी के साथ मिलकर सुरक्षा करने पर जोर देगा।

Raviopedia

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