भारत के सरकारी गोदामों में चावल का भंडार अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गया है, और गेहूँ का स्टॉक भी पिछले चार सालों में सबसे ज़्यादा है। FCI के पास इतना अनाज होने से सरकार के लिए कीमतें काबू में रखना, गरीबों को राशन पहुँचाना और त्यौहारों के समय बढ़ी हुई माँग को पूरा करना आसान हो जाएगा।
विस्तृत जानकारी
रिकॉर्ड स्तर का मतलब क्या है?
चावल का भंडार इतना ज़्यादा है कि यह सरकार के तय किए हुए बफर स्टॉक के नियमों से भी कहीं ज़्यादा है। ऐसा तब होता है जब फसल की पैदावार अच्छी होती है, लोग कम अनाज खरीदते हैं, और सरकार अनाज बाहर भेजने के बजाय देश में ही रखने पर ध्यान देती है। गेहूँ का स्टॉक भी पिछले चार सालों से बेहतर है, जो कि 2022 की गर्मी और कम खरीद के बाद एक अच्छी खबर है।
केंद्रीय पूल के भंडार का क्या फायदा है?
केंद्रीय पूल में अनाज का भंडार ज़्यादा होने से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के ज़रिए लोगों को राशन मिलता रहता है, खुले बाज़ार में भी अनाज की सप्लाई बनी रहती है, और खाने-पीने की चीज़ों के दाम भी कंट्रोल में रहते हैं। अगर अनाज का स्टॉक अच्छा हो तो सरकार को मौका मिलता है कि जब कीमतें बढ़ने लगें तो वो उसमें दखल दे सके।
FCI, बफर नॉर्म, और अनाज का चक्र
भारत में अनाज को सरकारी तौर पर रखने का काम ज़्यादातर भारतीय खाद्य निगम (FCI) और कुछ राज्य सरकार की एजेंसियां करती हैं। बफर नॉर्म का मतलब है कि साल के अलग-अलग समय (अप्रैल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी) में कितना अनाज रखना है, ताकि फसल की कटाई और अनाज के आने-जाने का हिसाब बना रहे।
गेहूँ की खरीद रबी मार्केटिंग सीजन (RMS) में होती है और चावल की खरीद खरीफ मार्केटिंग सीजन (KMS) में होती है। चावल का भंडार ज़्यादा होने का मतलब है कि KMS में खरीद अच्छी हुई और जितना अनाज गोदामों से निकाला गया, उससे ज़्यादा अंदर आया। गेहूँ का ज़्यादा स्टॉक दिखाता है कि हाल ही में RMS में खरीद बढ़ी है, और सरकार की नीतियों की वजह से निजी व्यापारी भी ज़्यादा स्टॉक जमा नहीं कर पाए हैं।
ये स्टॉक कैसे बढ़ा है?
स्टॉक बढ़ने के तीन मुख्य कारण हैं:
1. सरकार MSP पर लगातार अनाज खरीद रही है और राज्य सरकार की एजेंसियां भी इसमें मदद कर रही हैं। धान (चावल) और गेहूँ दोनों के लिए सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया है, उससे किसानों को मंडियों में अनाज बेचने में प्रोत्साहन मिला है, और केंद्रीय पूल में अनाज की आवक बढ़ी है।
2. सरकार ने अनाज के निर्यात पर थोड़ा नियंत्रण रखा है। चावल की कुछ किस्मों (खासकर गैर-बासमती) पर पाबंदी लगाने या शुल्क लगाने से देश में अनाज की उपलब्धता बढ़ी है। गेहूँ के निर्यात पर 2022 से लगी रोक ने भी देश के अंदर सप्लाई को प्राथमिकता दी है, जिससे स्टॉक को फिर से भरने में मदद मिली है।
3. सरकार ने खुले बाज़ार में सीमित मात्रा में गेहूँ बेचा, जिससे कीमतें काबू में रहीं और स्टॉक भी बहुत ज़्यादा कम नहीं हुआ। चावल के मामले में, PDS और PM-गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अनाज का वितरण बेहतर तरीके से किया गया, जिससे भंडार को संतुलित रखने में मदद मिली।
कीमतों पर क्या असर होगा?
अनाज का भंडार ज़्यादा होने से महंगाई को काबू में रखने में मदद मिलती है। अगर स्टॉक ज़्यादा है तो सरकार खुदरा और थोक बाज़ारों में कीमतें स्थिर रख सकती है। अगर कीमतें बढ़ने लगें तो सरकार खुले बाज़ार में अनाज बेचकर कीमतों को कम कर सकती है।
त्यौहारों के समय जब अनाज की मांग बढ़ती है, तब भी ज़्यादा स्टॉक होने से सप्लाई में कोई कमी नहीं आती। इससे शहरों और गांवों में कीमतों में अचानक उछाल नहीं आता। कुल मिलाकर, चावल का रिकॉर्ड भंडार और गेहूँ का ज़्यादा स्टॉक खाद्य महंगाई को कम रखने में मदद करते हैं।
सामाजिक सुरक्षा: PDS और PM-GKAY को मजबूती
भारत में 80 करोड़ से ज़्यादा लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत अनाज मिलता है। हाल ही में सरकार ने मुफ्त अनाज वितरण योजना (PM-GKAY) को आगे भी जारी रखने का फैसला किया है, जिससे नियमित सप्लाई बनाए रखना और भी ज़रूरी हो गया है।
चावल का भंडार ज़्यादा होने से PDS दुकानों पर समय पर अनाज पहुँचाना और बाँटना आसान हो जाता है। इससे राज्य सरकारों को भी ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स की प्लानिंग करने में मदद मिलती है। गेहूँ का ज़्यादा स्टॉक होने से स्कूलों में PM-पोषण (मिड-डे मील) और दूसरी पोषण योजनाओं के लिए भी अनाज की सप्लाई ठीक से होती रहती है, जिससे लोगों को सही पोषण मिलता है।
किसानों और अर्थव्यवस्था पर असर
अनाज का भंडार ज़्यादा होने से किसानों को भरोसा होता है कि सरकार MSP पर अनाज खरीदेगी। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों में किसानों को मंडी तक पहुँचने और समय पर भुगतान मिलने से उनकी फसल में निवेश करने की क्षमता बढ़ती है और वो बेहतर फैसले ले पाते हैं।
हालांकि, भंडार बहुत ज़्यादा होने से सरकार का खर्च भी बढ़ सकता है, जैसे कि भंडारण, ट्रांसपोर्ट, ब्याज और रखरखाव का खर्च। इसलिए सरकार को खरीद, वितरण और खुले बाज़ार में बिक्री के बीच ऐसा संतुलन बनाना होता है जिससे किसानों को भी नुकसान न हो और सरकार का ज़्यादा पैसा भी खर्च न हो।
दुनिया पर क्या असर होगा?
भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा व्यापारी है। अगर देश में चावल का भंडार ज़्यादा है तो इसका असर अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों पर भी पड़ता है। अगर देश में अनाज की उपलब्धता अच्छी है और कीमतें स्थिर हैं, तो सरकार भविष्य में निर्यात नीति में कुछ बदलाव कर सकती है, खासकर तब जब देश में कीमतें ज़्यादा न हों और मानसून अच्छा रहे।
गेहूँ के मामले में, दुनिया के बाज़ार में होने वाले बदलावों का असर पड़ता है, जैसे कि राजनीतिक तनाव और मौसम में बदलाव। भारत ने 2022 से देश में सप्लाई को प्राथमिकता दी है। अगर स्टॉक ज़्यादा है तो सरकार धीरे-धीरे और सीमित मात्रा में निर्यात फिर से शुरू कर सकती है, लेकिन यह तभी होगा जब देश में कीमतें स्थिर रहें और बफर स्टॉक सुरक्षित हो।
भंडारण, गुणवत्ता और बुनियादी ढाँचा
अगर स्टॉक ज़्यादा है तो इसका मतलब है कि भंडारण की क्षमता और अनाज की गुणवत्ता पर ज़्यादा ध्यान देना होगा। आधुनिक स्टील के बने गोदाम, PPP मॉडल पर हब-एंड-स्पोक भंडारण, और वैज्ञानिक तरीके से अनाज रखने के तरीकों को बढ़ाना ज़रूरी है। इससे न सिर्फ नुकसान (चोरी, नमी, कीड़े) कम होगा, बल्कि लॉजिस्टिक्स भी बेहतर होगा।
अनाज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए समय पर अनाज निकालना, ग्रेडिंग-स्टैंडर्डाइजेशन करना, और डिजिटल टेक्नोलॉजी (e-Procurement, e-Office, GPS ट्रैकिंग) का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। राज्यों के साथ मिलकर डिपो से लेकर राशन की दुकानों तक अनाज पहुँचाने की व्यवस्था को मज़बूत करने से लोगों तक सही समय पर अनाज पहुँच पाएगा।
क्या खतरे हैं?
भले ही भंडार मज़बूत हों, लेकिन कुछ बातों पर ध्यान रखना ज़रूरी है। अगर मानसून में देरी होती है या बाढ़ या सूखा पड़ता है, तो अगली फसल पर असर पड़ सकता है। दुनिया के बाज़ार में कीमतों में तेज़ी से बदलाव होने पर देश में भी कीमतें बढ़ सकती हैं। ज़्यादा भंडार होने से सरकार का खर्च भी बढ़ सकता है, इसलिए खुले बाज़ार में बिक्री, PDS के ज़रिए अनाज का वितरण, और निर्यात के बीच सही संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है।
इसके अलावा, व्यापारियों के लिए स्टॉक की सीमा तय करने जैसी नीतियाँ कीमतों को कंट्रोल करने में मदद करती हैं, लेकिन इनका लागू रहना समय और हालात पर निर्भर करता है। नीतियों के बारे में स्पष्ट जानकारी होने से बाज़ार में अनिश्चितता कम होती है और किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा होती है।
आगे क्या करना चाहिए?
आगे बढ़ते हुए सरकार के लिए तीन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है: लोगों के लिए कीमतें स्थिर रहें, किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिले, और सरकार का ज़्यादा पैसा खर्च न हो। इसके लिए सरकार को अनाज खरीदने और बाँटने की रणनीति बनानी होगी, आधुनिक भंडारण में निवेश करना होगा, और डेटा के आधार पर फैसले लेने होंगे (मांग-आपूर्ति का अनुमान लगाना)।
अगर आने वाले महीनों में कीमतें कंट्रोल में रहती हैं और बफर स्टॉक सुरक्षित रहता है, तो सरकार चावल के निर्यात पर धीरे-धीरे ढील दे सकती है और गेहूँ को खुले बाज़ार में बेचकर मांग और आपूर्ति को संतुलित कर सकती है। लक्ष्य यही होना चाहिए कि भंडार सिर्फ ज़्यादा न हों, बल्कि उनका सही इस्तेमाल भी हो, ताकि लोगों को पोषण मिल सके, कीमतें स्थिर रहें, और किसानों की आय भी बढ़े।
निष्कर्ष
भारत में चावल का रिकॉर्ड भंडार और गेहूँ का चार साल में सबसे ज़्यादा स्टॉक होना अच्छी खबर है, क्योंकि इससे खाद्य सुरक्षा, कीमत स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मज़बूती मिलेगी। अब चुनौती यह है कि इन भंडारों को कुशलता से मैनेज किया जाए, अनाज की गुणवत्ता बनाए रखी जाए और सरकार का ज़्यादा पैसा खर्च न हो। सही तरीके से खरीद-वितरण करके और आधुनिक भंडारण व्यवस्था बनाकर भारत आने वाले महीनों में खाद्य महंगाई को कंट्रोल में रख सकता है और PDS के ज़रिए लोगों तक अनाज पहुँचाना सुनिश्चित कर सकता है।

